पूरा विश्व क्लाइमेट चेंज की समस्या से जूझ रहा है. औद्योगिक व आर्थिक विकास के लक्ष्य को हासिल करने की होड़ में हमने प्रकृति का इतना दोहन किया है कि हमें उसका प्रतिफल क्लाइमेट चेंज के रूप में मिल रहा है. अब सभी देश पर्यावरणीय बदलाव के कुप्रभाव को कम करने के लिए अपने स्तर से प्रयास कर रहे हैं. भारत चूंकि प्रकृति को पूजने वाला देश है. हमारी संस्कृति व सभ्यता में प्रकृति पूजा को बहुत महत्व दिया गया है. पेड़-पौधों को भगवान का दर्जा दिया जाता है. ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज से भारत भी अछूता नहीं है तो हमने वर्ष 2047 तक हरित उर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने का लक्ष्य रखा है. इसके साथ ही हमने वर्ष 2070 तक कार्बन उत्सर्जन को नेट जीरो स्तर तक लाने का संकल्प लिया है.


हरित उर्जा से देश के लोगों को मिलेंगे सस्ते ईंधन


ऐसे में अगर हम वर्ष 2047 तक हरित उर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल कर लेते हैं तो इसका सबसे अधिक लाभ उपभोक्ताओं को होगा. भारत में लोगों को यह सस्ती दामों में उपलब्ध होगा और इससे तकरीबन 2.5 खरब अमेरिकी डॉलर तक की बचत होगी. ये बात दरअसल अमेरिकी उर्जा विभाग के लॉरेंस बर्कले नेशनल लेबोरेटरी (बर्कले लैब) द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में भी कही गई है. रिपोर्ट का शीर्षक 'पाथ-वे-टू-आत्मनिर्भर' रखा गया है और इसमें भारत में उर्जा की सबसे अधिक खपत होने वाले क्षेत्रों का अध्ययन किया गया है. जिसमें परिवहन, बिजली उत्पादन और औद्योगिक इकाइयों को शामिल किया गया है. इसमें हरित उर्जा को बढ़ावा देने से पर्यावरण की सुरक्षा तो की ही जा सकेगी साथ में इससे बहुत बड़ा आर्थिक लाभ भी होगा. साथ ही जीवाश्म ईंधन के आयात को 240 खरब डॉलर तक प्रतिवर्ष कम किया जा सकेगा. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में लिथियम के भंडार भी हैं. ऐसे में यह भारत को हरित उर्जा को बढ़ावा देने के लिए लागत को प्रभावी तरीके से कम करने में मदद करेगा. इसके साथ ही भारत हरित उर्जा के लक्ष्यों को सबसे कम कीमत पर हासिल करने वाला देश है.


वैश्विक उर्जा खपत में 2050 तक हमारी हिस्सेदारी हो जाएगी दोगुनी


चूंकि बढ़ती जनसंख्या से देश में उर्जा की मांग बढ़ रही है. पारंपरिक उर्जा के स्रोत जैसे कोयला, जीवाश्म ईंधन सीमित होते जा रहे हैं और वे पर्यावरण में कार्बन उत्सर्जन का सबसे बड़ा कारण भी है. ऐसे में हमें हरित उर्जा को बढ़ावा देना ही होगा. इसी लक्ष्य के साथ भारत सरकार आगे बढ़ रही है. हम तेजी से प्रगति के पथ पर आगे बढ़ रहे हैं. अब हम दुनिया के तीसरे सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता, तेल का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता, तीसरा सबसे बड़ा एलपीजी का उपभोक्ता, चौथा सबसे बड़ा एलएनजी का आयातक बन गए हैं, चौथा सबसे बड़ा रिफाइनर और दुनिया का चौथा सबसे बड़ा ऑटोमोबाइल बाजार बन गए हैं. वैश्विक उर्जा खपत में 2050 तक हमारी हिस्सेदारी दोगुनी हो जाएगी. अमेरिकी रिपोर्ट के मुताबिक भारत में उर्जा की मांग चौगुनी हो जाएगी. हमें अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए खपत का 90 प्रतिशत तेल, 80 प्रतिशत औद्योगिक कोयला 40 प्रतिशत प्राकृतिक गैस का आयात करना पड़ता है और चूंकि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इनकी कीमत में अस्थिरता रहती है और इसका सबसे गंभीर प्रभाव अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति के ऊपर होती है.


2025-26 तक 20% इथेनॉल ब्लेंडेडिंग का है लक्ष्य


इस परिस्थिति से पार पाने के लिए और देश को उर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए भारत सरकार ने घरेलू उत्पाद इथेनॉल को एक वैकल्पिक फ्यूल के रूप में चुना है. भारत ने 10 प्रतिशत इथेनॉल ब्लेंडिंग के लक्ष्य को तय समय से पांच महीने पहले ही पूरा कर लिया है. इसके साथ ही इथेनॉल ब्लेंडिंग के 20 प्रतिशत के लक्ष्य को हासिल करने का टारगेट 2030 से कम करके 2025-26 तक कर दिया गया है. स्वच्छ उर्जा को बढ़ावा देने के लिए भारत के चुनिंदा शहरों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने E-20 पेट्रोल को लॉन्च कर दिया है. चूंकि हम ब्राजील के बाद विश्व स्तर पर दूसरा सबसे बड़ा गन्ना उत्पादक देश हैं. ऐसे में हमारे पास गन्ना और दूसरे खाद्यान्न से इथेनॉल का उत्पादन करने की एक विशेष क्षमता है. इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल को भारत सरकार के संबंधित मंत्रालय द्वारा बढ़ावा दिया जा रहा है. इससे जहां एक तरफ हम पर्यावरण को बचा सकेंगे वहीं दूसरी तरफ इसका लाभ देश के किसानों को आर्थिक मजबूती प्रदान करने के तौर पर मिल रहा है.


इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने पर जोर


भारत सरकार इलेक्ट्रिक उर्जा से संचालित वाहनों को बढ़ावा दे रही है. इसके लिए लिथियम आधारित बैटरी के विनिर्माण को बढ़ावा दिया जा रहा है. इलेक्ट्रिक वाहनों को चार्ज करने के लिए नेशनल हाईवे, औद्योगिक कॉरिडोर के साथ-साथ देश भर में चार्जिंग स्टेशन को निर्माण किया जा रहा है. इसके साथ ही भारत सरकार ने 15 वर्ष से अधिक पुराने वाहनों को बदलने के लिए स्क्रैपेज पॉलिसी लाई है, ताकि उनसे निकलने वाले कार्बन उत्सर्जन से हो रहे पर्यावरणीय नुकसान को कम किया जा सके. इसके लिए सरकार पुरानी व कबाड़ गाड़ियों को हटाने के लिए लोगों को वित्तीय मदद भी देगी. बैटरी आधारित वाहनों के अलावा ग्रीन हाइड्रोजन फ्यूल को भी बढ़ावा दिया जा रहा है. इसके लिए सरकार ने अलग से 19 हजार 500 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है. इसके जरिए सरकार का जोर निजी कंपनियों, नए उद्यमियों को ग्रीन हाइड्रोजन फ्यूल के निर्माण के लिए वित्तीय मदद पहुंचाना है ताकि हम स्वच्छ उर्जा के क्षेत्र में तेजी से अपने लक्ष्यों को पूरा कर सकें. बुधवार को जारी की गई अमेरिकी रिपोर्ट के अनुसार भारत 2035 तक 100 प्रतिशत तक इलेक्ट्रिक वाहनों को संचालित करने वाला देश बन जाएगा.


2030 तक 500 गीगा वाट का बिजली उत्पादन का है लक्ष्य


विद्युत मंत्रालय ने केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया था. जिसमें वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधनों से 500 गीगा वाट बिजली उत्पादन के लक्ष्य को हासिल करने के लिए प्रौद्योगिकियों को प्राप्त करने की आवश्यकता पर बल दिया है. समिति ने राज्यों और अन्य हितधारकों के परामर्श से 500 गीगा वाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता के एकीकरण की दिशा में कदम बढ़ाया है. वर्ष 2030 तक 537 गीगा वाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता हासिल करने के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकियों की व्यापक योजना पर काम चल रहा है. देश में वर्तमान में स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता 409 गीगा वॉट है जिसमें गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों की हिस्सेदारी 173 गीगा वॉट है, जो कुल बिजली उत्पादन क्षमता का लगभग 42 प्रतिशत है. इसे और बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार ने किसानों को सोलर पंप सेट, घरों में रूफ टॉप सोलर आधारित प्रणाली को स्थापित करने के लिए भी सब्सिडी दे रही है. वहीं, अमेरिकी रिपोर्ट में यह कहा गया है कि भारत स्वच्छ उर्जा के लक्ष्यों को वर्ष 2040 तक 80 प्रतिशत और 2047 में 90 प्रतिशत तक हासिल कर लेगा.