भारत ने प्रति व्यक्ति आय के मोर्चे पर लंबी छलांग लगाई है. वर्तमान सरकार के 9 वर्षों में यह लगभग दोगुनी हो गई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब 2014 में पहली बार शपथ ली थी, तब भारत की प्रति व्यक्ति आय 86,467 रुपए थी, जो अब बढ़कर 1.72 लाख रुपए हो गई है. 


नेशनल स्टैटिस्टिक्स ऑफिस यानी एनएसओ (NSO) के ताजा डेटा के मुताबिक नरेंद्र मोदी सरकार के लगभग एक दशक के शासन में यह उपलब्धि हासिल की गई है. एनएसओ आंकड़ों और सांख्यिकी के लिए भारत का सबसे प्रतिष्ठित संस्थान माना जाता है. देश के विकास का विश्लेषण करने के लिए भारत भर के अर्थशास्त्री इसके आंकड़ों का इंतजार करते हैं.


शुद्ध राष्ट्रीय आय (नेट नेशनल इनकम) को अगर मौजूदा मूल्यों के संदर्भ में देखते हुए प्रति व्यक्ति आय की बात करें तो एनएसओ ने 2020-21 के लिए 1, 27,065 और 2021-22 के लिए 1,48, 524 रुपये का अनुमान लगाया था. अभी जो प्रति व्यक्ति आय है, वह पिछले साल की तुलना में 15.8 फीसदी बढ़ी है. इससे यह पता चलता है कि भारत की अर्थव्यवस्था बिल्कुल स्वस्थ है और प्रति व्यक्ति आय में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. 


अर्थव्यवस्था जितनी बड़ी, विकास उतना तेज


विकास का पूरा डायनैमिक्स हमें एक तथ्य से समझने की जरूरत है. इकोनॉमी का साइज जितना बढ़ेगा, उसके विकास की संभावना उतनी ही बढ़ती है. लोगों के पास पैसा होगा तो लोग खर्च करेंगे भी. इससे बहुत तेजी से विकास बढ़ता है. आज गांव में भी लोग बिसलेरी पी रहे हैं और जल आधारित बीमारियां बहुत कम हो गई हैं. लोगों के पास पैसा आएगा तो वो अपने ऊपर खर्च करेंगे. यही वजह है कि जैसे ही आपकी अर्थव्यवस्था का आकार बढ़ता है, उसके विकास की गति भी उतनी ही तेज होती है. इसी बात को आगे बढ़ाते हुए बिहार के डेवलपमेंट मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट में प्रोफेसर अर्थशास्त्री सूर्यभूषण कहते हैं कि भले ही विश्व बैंक ने भारत की जीडीपी ग्रोथ के आकलन को थोड़ा घटाया है, लेकिन भारत का विकास अभी पूरी तेजी से हो रहा है। वह समझाते हैं, 'जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद में जब हम जनसंख्या से भाग देते हैं, तो प्रति व्यक्ति आय निकलती है. वह अगर 9 साल में दोगुनी हुई है, तो यह साफ दिखाता है कि भारत में विकास की दर अभी बहुत तेज है. आम तौर पर हम लोग 14 साल में इसके दोगुने होने की उम्मीद रखते हैं. दरअसल, भारत के विकास को अनदेखा भी किया जाता है, अंडरएस्टीमेट भी किया जाता है. ऐसा इसलिए होता है कि वे तो वाशिंगटन में बैठकर रपट बना रहे हैं. वे देख रहे हैं कि पूरी दुनिया में तो हालत खराब है, फिर भारत में ये क्यों नहीं हो रहा है. वे दरअसल ग्राउंड लेवल की सच्चाई देख नहीं पाते, इसलिए प्रोजेक्शन अक्सर गलत होते हैं. यह बात बिल्कुल तथ्यगत तौर पर सही है कि भारतीय इकोनॉमी अभी सुरक्षित है, स्वस्थ है और इसकी विकास गाथा अभी आगे भी चलेगी.'


भारत में दरअसल जो प्रतिरोधक क्षमता है, जो बाउंस बैक करने की ताकत है, वही इसके डेवलपमेंट को भी मजबूत और तेज करती है. भारत में अर्थव्यवस्था का अधिकांश अभी भी अनौपचारिक यानी असंगठित क्षेत्र का ही है. यहीं विख्यात अर्थशास्त्री एडम स्मिथ की बात याद आती है, जिसे वह 'इनविजिबल हैंड ऑफ मार्केट' कहते हैं, उसके सही दर्शन तो भारत में ही होते हैं. उदाहरण के लिए सब्जी-मार्केट का हवाला लेते हैं. वहां न तो सरकार और न ही नगर निगम दाम तय करते हैं. वहां तो शुद्ध मांग और आपूर्ति का खेल है और उसी के आधार पर दाम तय होते हैं, इसीलिए वह मार्केट-इकोनॉमी का सबसे बढ़िया उदाहरण है. अमूमन हमारी गलती ये होती है कि हम असंगठित क्षेत्र को इसका विरोधी समझते हैं. यही भारत के लिए वरदान है और इसकी अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य का आधार भी. 


अर्थव्यवस्था में चौतरफा 'अच्छे दिन'


वैश्विक सूचकांक हमें बताते हैं कि भारत में 2014 से 2019 के दौरान प्रति व्यक्ति आय औसतन 5.6 फीसदी की दर से बढ़ी. इस दौरान स्वास्थ्य, शिक्षा, मकान, सामाजिक और आर्थिक गतिशीलता के अन्य आंकड़े- जैसे, शौचालय, गैस चूल्हे तक पहुंच, संचार के साधनों तक पहुंच आदि- भी सुधरे हैं. कोविड ने इस रफ्तार पर ब्रेक लगाई, लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था उस भयंकर दौर से भी बहुत जल्द और बहुत तेजी से उभरी. डॉक्टर सूर्यभूषण बताते हैं कि अगर हम पांच-छह प्रतिशत साला वृद्धि की ये रफ्तार बनाए रहें, तो फिर अर्थव्यवस्था में पैसे वापस भी आएंगे. जो री-डिस्ट्रीब्यूशन है, उसका खयाल इकोनॉमी खुद ही कर लेगी. सरकार को बस इस मोमेंटम को बनाए रखना चाहिए और क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करने पर ध्यान देना चाहिए. प्रति व्यक्ति आय के बारे में एक बात और गौर करने की है कि एनएसओ का आंकड़ा अगर वर्तमान मूल्यों पर है, जो बढ़त को दोगुना दिखा रहा है, तो रीयल टर्म्स यानी 'स्थिर मूल्य' पर भी यह 72 हजार से बढ़कर 98 हजार हुआ है, यानी 35 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. 


भारतीय अर्थव्यवस्था की इस खुशहाली और प्रति व्यक्ति आय की बढ़ोतरी के पीछे कई सरकारी नीतियां, जैसे जीएसटी, नोटबंदी और डिजिटल पेमेंट को सहज बनाना भी कारण है. भारत में 2022 में यूपीआई से हरेक सेकेंड 2348 ट्रांजैक्शन हुए हैं. भारत का यूपीआई डिजिटल पेमेंट अब वैश्विक हो गया है, क्योंकि सिंगापुर ने तो इसको अपना ही लिया है. संयुक्त अरब अमीरात और इंडोनेशिया जैसे देश इसको अपनाने की तैयारी में हैं. इससे भारतीय निवेशकों को खासी आसानी होगी. भारतीय रुपया भी मजबूत स्थिति में चल रहा है और मौजूदा रूस-यूक्रेन संकट के दौरान भारत ने रुपए में भुगतान कर मौके का फायदा भी उठाया है. भारत अब अधिकतर व्यापार रुपए में करने का इच्छुक है और निर्यात को बढ़ाकर अपना व्यापार घाटा कम करना चाहता है. अर्थव्यवस्था को औपचारिक यानी संगठित बनाने, कर राजस्व के अधिक संग्रहण औऱ भ्र्ष्टाचार में कमी से प्रति व्यक्ति आय भी बढ़ी है और अर्थव्यवस्था भी दुरुस्त हुई है. 


भारत अब वैश्विक मंच पर आने को तैयार 


भारत अपनी धीमी किंतु सतत रफ्तार की वजह से दुनिया में अभी सबकी निगाहों में है. अभी कुछ ही दिनों पहले वर्ल्ड ऑफ स्टैटिस्टिक्स ने दावा किया था कि भारत में मंदी आने की संभावना शून्य प्रतिशत है, जबकि यूके से लेकर अमेरिका, पूरे यूरोप और ब्राजील वगैरह में यह 75 फीसदी से 35 प्रतिशत तक थी. कारों की बिक्री समेत रिकॉर्ड GST कलेक्शन, हवाई यात्रियों की बढ़ती संख्या, टोल कलेक्शन में आ रहा उछाल, सर्विसेज PMI के 13 साल के उच्चतम स्तर और मैन्युफैक्चरिंग PMI के 4 महीने सहित तमाम तरह के आंकड़ों से भी पता चल रहा है कि भारतीय इकोनॉमी में दम है. IMF के मुताबिक इस साल फिर से भारतीय अर्थव्यवस्था दुनियाभर में सबसे अधिक तेजी से बढ़ेगी. अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी के बाद भारत पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था पहले ही बन चुका है. इसने इंग्लैंड को पीछे छोड़कर यह मुकाम हासिल किया है.


भारत फिलहाल जी20 और एससीओ का अध्यक्ष है. दुनिया एशिया की ताकत के तौर पर बड़ी आशा से इसकी ओर देख रही है, क्योंकि भारत का रिकॉर्ड एक विश्वस्त सहयोगी होने का रहा है. वैश्विक मंच पर भारत लगातार अपनी जगह बना रहा है और विदेश नीति हो या घरेलू नीति, सॉफ्ट पावर के साथ हार्डलाइन लेने से भी नहीं चूक रहा है. एनएसओ का आंकड़ा बताता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था कोवड महामारी के समय लड़खड़ाई लेकिन व्यावहारिक आर्थिक नीतियों से संबल भी गई. यही कारण है कि तब प्रति व्यक्ति आय में कमी आने के बाद भी वित्तीय वर्ष 2021-22 और 2022-23 में इसमें तेज बढ़ोतरी हुई.