भारत 2047 में अपना 100 स्वतंत्रता दिवस मना रहा होगा तब देश की अर्थव्यवस्था 26 ट्रिलियन (26 trillion Economy) की होगी. अर्नेस्ट और यंग (Ernst and Young) की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत साल 2030 तक जापान और जर्मनी को पीछे छोड़ते हुए विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा. ईवाई ने अपनी रिपोर्ट जिसका नाम इंडिया @2047: रियलाइजिंग द पोटेंशियल ऑफ 26 ट्रिलियन इकॉनोमी में यह अनुमान जताया है कि वर्ष 2048 तक भारत में प्रति व्यक्ति आय 15000 यूएस डॉलर होगा.
टाटा संस के कार्यकारी अधिकारी एन चंद्रशेखरन ने रिपोर्ट में कहा है जब वैश्विक अर्थजगत मंदी की चपेट में है, महंगाई अपने चरम पर है, कर्ज का स्तर काफी बढ़ गया है. ऐसे में भारत लगातार तीसरी दफा तेजी से बढ़ने वाला इकॉनोमी है. उन्होंने आगे कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था 10वें पायदान से पांचवें स्थान पर पहुंच गया है. आईएमएफ के मध्यावधि अनुमानों और ओईसीडी के लॉन्ग टर्म फॉर कास्ट का उपयोग करते हुए ईवाई ने वित्तीय वर्ष 2023 से लेकर 2061 तक के लिए एक वैकल्पिक अनुमानों के अंतर्गत अपनी एक रिपोर्ट तैयार की है. आईएमएफ ने वर्ष 2023 से 28 तक के लिए भारत के रियल और नॉमिनल जीडीपी के साथ-साथ नॉमिनल सेविंग्स का उपयोग किया है. इस पहले पांच वर्षों के लिए भारत की वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद 6.6 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया गया है और इस पर वैश्विक अर्थतंत्र की हल्की फुल्की प्रभाव पड़ने से उतार-चढ़ाव हो सकता है.
तेजी से बढ़ेगी इकॉनोमी
ओईसीडी ने भारत के ग्रोथ प्रोफाइल को देखते हुए अपने मेथडोलॉजी में इसके अनुरूप परिवर्तन करते हुए लंबी अवधि में वर्ष 2028 के बाद की बात कही है. ईवाई ने यह विश्वास जताया है कि मार्केट एक्सचेंज के टर्म में भारत 5, 10 और 20 ट्रिलियन डॉलर के इकनॉमिक थ्रेसहोल्ड को क्रमश: वित्तीय वर्ष 2028, 2036 और 2045 तक पूरा कर लेगा. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि बाजार विनिमय के टर्म में भारत का प्रति व्यक्ति आय वर्ष 2045 तक 13000 यूएस डॉलर का हो जाएगा और ऐसा होने पर यह विकसित अर्थव्यवस्था की श्रेणी में आ जाएगा.
इस पर आर्यभटृ कालेज की इकॉनोमिक्स प्रोफेशर आस्था अहूजा ने कहा कि पीएम मोदी ने 15 अगस्त 2022 को लालकिले से कहा था कि हमें अपने देश को साल 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनाना है. इसके लिए हमें इम्पोर्ट को कम करना है और अपने घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना है. ये बहुत अच्छा सपना है और मैं एक नागरिक के तौर पर यह चाहूंगी की हमारा देश नई उच्चाईयों को छूए. लेकिन मैं यह कहना चाहती हूं कि अभी जो हालात हैं देश के इसमें आंकड़े उठा कर देखेंगे तो यह पता चलता है कि हमेशा हम कृषि पर ही निर्भर रहे हैं. विनिर्माण क्षेत्र का जो आउटपुट है वो स्टेगनेंट रहा आजादी से लेकर अबतक. हालांकि सेवा क्षेत्र में वृद्धि हुई है, लेकिन कोविड के दौरान हमने देखा कि इंडस्ट्री की क्या हालत रही और सर्विसेज की हालत हुई. अगर हमें एक विकसित राष्ट्र के लक्ष्य को हासिल करना है तो हमें शिक्षा और स्वास्थ्य पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है. शिक्षा पर जो अब तक बजट मिला है वो 3 प्रतिशत ही रहा है.
विकसित राष्ट्र एक सपना
उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति में इसे 6 प्रतिशत करने की बात कही है लेकिन इस बार भी यह 3.1 प्रतिशत ही रहा है. डिजिटाइजेशन का क्या हाल रहा ये सबने कोविड के दौरान देखा है कि बच्चों को पढ़ाई के लिए कितना दिक्कत हुआ. भारत सरकार को रोजगार बढ़ाने के लिए असंगठित क्षेत्र को मजबूत करना होगा. इनइक्वालिटि भी देश में बहुत ज्यादा है. मामला सिर्फ आर्थिक इनइक्वालिटि का नहीं है बल्की सामाजिक स्तर पर भी है तो ऐसे में 2047 तक भारत को आर्थिक रूप से विकसित बनाने के लिए इन सभी पहलुओं को भी देखना होगा...
भारत सबसे तेजी से बढ़ने वाला अर्थव्यवस्था बना रहेगा
अभी के मेगाट्रेंड्स के मुताबिक भारत के पास अपनी मजबूत घरेलू मांग, डिजिटलीकरण, वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ा टैलेंट पूल, वित्तीय समावेशन, वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता और स्थिरता इसे सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बनाए रखेगा। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि व्यापक आर्थिक स्थिरता, व्यापार के लिए नियमों को उदार बनाना, उर्जा क्षेत्र में सुधार भारत के आर्थिक लचीलेपन की कुंजी है। EY ने आठ भारत के अर्थ व्यवस्था के लिए आठ प्रमुख क्षेत्रों की पहचान की है जो अगले दशक में भारत के विकास को परवान चढ़ाएंगे.
1. भारत दुनिया का आईटी और सर्विसेज हब होगा
इसी साल यानी कि 2023 में भारत जनसंख्या बल के मामले में चीन को पीछे छोड़ते हुए वैश्विक कार्यबल में सबसे बड़ा योगदान देने वाला देश बन जाएगा. भारत का मजबूत सेवा निर्यात पिछले दो दशकों में 14 प्रतिशत बढ़कर 2021-22 में 254.5 बिलियन डॉलर का हो गया है. वर्ष 2021-22 में 157 बिलियन डॉलर के साथ सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) सेवा और बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (बीपीओ) सेवाओं के निर्यात का एक बड़ा हिस्सा है. "यह वृद्धि भारतीय मुख्यालय और वैश्विक आईटी कंपनियों दोनों द्वारा संचालित है. इसके अलावा, अन्य वैश्विक निगम भारत में अपने क्षमता केंद्रों के माध्यम से भारतीय प्रतिभा का लाभ उठा रहे हैं, जो 5 मिलियन से अधिक लोगों को रोजगार देते हैं. भारत में 1,500 वैश्विक क्षमता प्रवेश (जीसीसी) हैं. जो वैश्विक जीसीसी के 45% का प्रतिनिधित्व करते हुए भारत को "वैश्विक कार्यालय" बनने का अवसर मिल रहा है. ईवाई का मानना है कि अधिकांश भारतीय और वैश्विक आईटी सेवा कंपनियों के पास भारत में क्लाउड, एनालिटिक्स और एआई और अन्य प्रौद्योगिकी के लिए उत्कृष्टता केंद्र होगा. इसी तरह, गैर-आईटी सेवा क्षेत्रों में, भारत के पास प्रतिभा अंतर को भरने का एक अनूठा अवसर है क्योंकि जनसांख्यिकीय परिवर्तनों के कारण विकसित अर्थव्यवस्थाओं को कुशल प्रतिभा की कमी का सामना करना पड़ता है. यह शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा जैसे क्षेत्रों में होगा, जहां डिजिटल माध्यम से सेवाएं तेजी से दी जा रही हैं.
2. डिजिटाइजेशन
रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार सहित देश में डिजिटलीकरण के जरिए शासन में तीव्र गति से सुधार, वित्तीय समावेशन और नए बाजारों तक पहुंचने और नए उत्पादों और सेवाओं को बनाने के लिए निजी निवेशकर्ताओं के लिए लाभकारी सिद्ध होगा। देश में अग्रणी इंडिया स्टैक अब अधिकांश देशों के लिए वैश्विक बेंचमार्क है. सरकारी और निजी क्षेत्रों में डिजिटलीकरण के बाद, वर्ष 2014 से 2019 की अवधि में डिजिटल अर्थव्यवस्था 15.6% बढ़ी है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि की तुलना में 2.4 गुना अधिक है. ओपन क्रेडिट इनेबलमेंट नेटवर्क (OCEN) और ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC) जैसे प्लेटफॉर्म क्रमश स्केल और ई-कॉमर्स मार्केट में क्रेडिट का लेन देन का लोकतांत्रिकरण करने में अपनी भूमिका निभा रहे हैं. इसके अलावा, UPI इंटरफेस की सुविधा ने भारतीयों के लेन-देन करने के व्यवहार में मौलिक परिवर्तन लाया है, जिसे कारण कैशलेस और पेपरलेस लेनदेन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है. इसके अलावा भारत में ब्रॉडबैंड का उपयोग भी तेज गति से बढ़ रहा है। पिछले पांच वर्षों में मोबाइल ब्रॉडबैंड (एमबीबी) ग्राहकों की संख्या 345 मिलियन से बढ़कर 765 मिलियन हो गई है.
3 वृद्धि के लिए क्रेडिट गैप को कम करना:
रिपोर्ट में कहा गया है कि जीडीपी के अनुपात में भारत का निजी ऋण बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे कम बना हुआ है. इसके लिए भारत को अगले 20-30 वर्षों के दौरान 200-300 बीपीएस वृद्धिशील वार्षिक जीडीपी का लक्ष्य हासिल करना होगा ताकि वर्तमान वैश्विक औसत निजी ऋण का बराबरी किया जा सके. कॉरपोरेट बॉन्ड बाजार और डिजिटल क्रेडिट के विकास के साथ, एक सशक्त वित्तीय संरचना व्यक्तियों और सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों ("एमएसएमई") के ऋण मांग और आपूर्ति के अंतर को दूर करने में मददगार हो सकता है. इससे पूंजी की लागत को कम करने में भी मदद मिलेगा और उच्च विकास को बनाए रखने के लिए निजी ऋण की हिस्सेदारी को भी बढ़ाना आसान होगा.
4. निजी पूंजी द्वारा प्रेरित संपन्न उद्यमिता :
पिछले छह वर्षों में भारत में स्टार्टअप का विकास एक उल्लेखनीय रूप से आगे बढ़ा है. भारत वैश्विक स्तर पर स्टार्ट-अप का तीसरा सबसे बड़ा देश के रूप में उभरा है. भारत में पीई/वीसी निवेश वित्तीय वर्ष 2021-22 में रिकॉर्ड $82 बिलियन के स्तर तक पहुंच गया. वित्त वर्ष 2021-22 में इन फंडों के 42.5 बिलियन डॉलर के सफल निकासी भी हुई है, जो आगे भारत में निवेश के बढ़ते विश्वास को प्रदर्शित करता है भारत में तेजी से हो रहे डिजिटलीकरण, बड़े घरेलू बाजार और मजबूत पूंजी उपलब्धता के दम पर प्रौद्योगिकी और अन्य क्षेत्रों में नई कंपनियां अर्थव्यवस्था को अपेक्षाकृत उच्च और निरंतर विकास प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी. हालांकि वैश्विक स्तर पर वित्तीय स्थितियों में बदलावों के कारण थोड़े समय के लिए अस्थिरता होगी लेकिन लंबी अवधि के लिए निवेश का यहां सकारात्मक रहने की उम्मीद है.
5. जनसांख्यिकीय लाभांश प्राप्त करना:
अगले दशक में वृद्धिशील वैश्विक कार्यबल का कम से कम 25 प्रतिशत योगदान भारत देगा. भारत में 2.14 मिलियन (47% महिलाएं) और 6.2 मिलियन हेल्थकेयर पेशेवरों के साथ अंग्रेजी बोलने वाले एसटीईएम स्नातकों का सबसे बड़ा पूल भी है, जिसमें डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ शामिल हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि यह बड़ी युवा और कामकाजी आबादी न केवल सेवा क्षेत्र में भारत के प्रतिस्पर्धी लाभ को मजबूत करेगी बल्कि विनिर्माण को भी बढ़ावा देगी और घरेलू खपत में भारी वृद्धि होगी.
6. घरेलू विनिर्माण को प्रतिस्पर्धी बनाना
जैसा कि हम देख पार रहे हैं कि कोरोना जैसी वैश्विक माहामारी के बाद वैश्विक आपूर्ति चेन को मजबूत बनाने का काम जारी है. देश को विनिर्माण क्षेत्र का हब बनाने के लिए सरकार ने 'आत्मनिर्भर भारत' की पहल है. इसके अलावा उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन (पीएलआई) जैसी नीतियों के माध्यम से इसे और अधिक प्रोत्साहन मिला है. आगे बढ़ते हुए, भारत के पास मौका है कि वह जटिल, उच्च मूल्य वाले उत्पाद निर्माण और सनराइज सेक्टर जैसे सेमीकंडक्टर, मोबाइल फोन और ईवीएस के माध्यम से वैल्यू चेन को बढ़ा सकता है, जो भारत को घरेलू और वैश्विक बाजारों के लिए विनिर्माण के केंद्र के रूप में स्थापित करेगा.
7. भविष्य के बुनियादी ढांचे का निर्माण
सरकार रोडवेज के विकास पर बड़े स्तर पर खर्च कर रही है. इसके अलावा नेशनल लॉजिस्टिक पॉलिसी के तहत भौतिक बुनियादी ढांचे में निवेश को आईटी-आधारित ईज-ऑफ-डूइंग-बिजनेस के द्वारा पूरक किया जा रहा है, जिसका उद्देश्य दक्षता में वृद्धि करना और आवाजाही की लागत को कम करना है. रेलवे और डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (DFCs) के आधुनिकीकरण पर जोर देने से माल और निर्यात की आवाजाही में काफी बदलाव आएगा है, जिससे भारत की हाई लॉजिस्टिक मूल्य कम हो सकती है, जिससे कार्गो की डिलीवरी अधिक प्रभावी, किफायती और विश्वसनीय हो सकती है.
8. स्थायी ऊर्जा के लिए सतत ऊर्जा को बढ़ावा देना
सरकार ने 2070 तक भारत को जीरो कार्बन उत्सर्जन वाला देश और 2005 के स्तर की तुलना में 2030 तक कार्बन लेवल को 45% तक कम करने का लक्ष्य रखा है. नवीकरणीय ऊर्जा और ग्रीन हाइड्रोजन का विकास हाइड्रोकार्बन के आयात को कम करके ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के प्रयास में मदद कर सकता है. भारत सरकार ने 2030 तक वैश्विक हाइड्रोजन की मांग का 10 प्रतिशत के लक्ष्य को पूरा करने के साथ-साथ ग्रीन हाइड्रोजन को अपनाने की दिशा में कई प्रगतिशील नीतियों की घोषणा की है। हाल ही में 19500 करोड़ रुपये सरकार ने सिर्फ ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के लिए आवंटित किया है.
सरकार की नीतिगत बदलाव ने निजी क्षेत्र और राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों दोनों के निवेश को बढ़ावा दिया है, जो यह उम्मीद दिलाती है कि 24 घंटे उत्सर्जन मुक्त ऊर्जा एक वास्तविकता बन सकती है। भारत की नवीकरणीय ऊर्जा की क्षमता जो वर्ष 2014 में 40 GW थी अब वह 2022 तक 166 GW की हो गई है. जैसे-जैसे भारत आगे बढ़ेगा उसके उत्पादन क्षमता, उपकरण निर्माण, भंडारण और परिवहन सेवाओं और अन्य संबद्ध क्षेत्रों में तेजी से लक्ष्य को हासिल करने के लिए निजी उद्यम सामने आ रहे हैं.