जी 20 शिखर सम्मेलन का आयोजन 9 और 10 सितंबर को नई दिल्ली में होना है. भारत फिलहाल जी20 का अध्यक्ष है. भारत के अध्यक्ष बनने के साथ ही पूरे देश में जी 20 की विभिन्न बैठकें हुईं. कश्मीर से कटक और लखनऊ से ईटानगर तक भारत ने पिछले लगभग एक साल के दौरान दर्जनों बैठकें कीं. इसके जरिए भारत ने अपनी विविधता, राजनीतिक स्थिरता और मेहमाननवाजी को भी सबके सामने पेश किया.


वैश्विक कूटनीति में बढ़ती भारत की ताकत


जी 20 शिखर सम्मेलन में जिस घोषणापत्र पर सहमति बने, उसमें भारत की बढ़ती ताकत का भी एहसास पूरी दुनिया को हो, इसी की तैयारी में भारत जुटा है. गुरुवार 27 जुलाई को जापानी विदेश मंत्री हयाशी योशिमासा और भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपनी मुलाकात के बाद इस आशय की घोषणा भी कर दी. उन्होंने चीन का नाम तो नहीं लिया, पर समझने वाले इशारा तो समझ ही गए हैं.


जयशंकर ने कहा कि जापान और भारत मिलकर रक्षा सहयोग को इतना बढ़ा रहे हैं कि "बुरे से बुरा सपना" भी सच होने के "पहले ही" सुरक्षा मिल सके. भारतीय विदेश मंत्री ने इस मीटिंग के बाद जापानी मंत्री की तारीफ में कशीदे काढ़े तो वह बेवजह नहीं था.


भारत दरअसल जी 20 के शिखर सम्मेलन में सर्व सहमति से किसी भी प्रस्ताव को पारित करना चाहता है. अब तक जी 20 की अधिकांश बैठकों में "चेयर समरी" जारी की गयी है, जो कि सर्व सहमति नहीं है. अभी पर्यावरण को लेकर हुई बैठक में सउदी अरब ने भारत के जीवाश्म-ईंधन के उपभोग में कटौती के प्रस्ताव पर कतरनी चला दी, तो उससे पहले रूस के विदेश मंत्री क्वाड को चीन से टक्कर लेने के लिए बनाया गया संगठन करार दे चुके हैं.


रूस और यूक्रेन युद्ध अब 17वें महीने में है. रूस के साथ पुराने संबंधों का लिहाज करते हुए भारत ने कभी भी वैश्विक मंच पर खुलेआम रूस की निंदा नहीं की है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने अपने समकक्ष रूसी प्रीमियर व्लादीमिर पुतिन को यह पाठ जरूर पढ़ाया था कि यह समय युद्ध का नहीं है. 



विदेश मंत्री जयशंकर की चौंकाने वाली अदा


भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर ने इससे पहले एक और चौंकाने वाला काम किया. इंडो-जापान स्ट्रेटेजिक अफेयर्स की मीटिंग के बाद उन्होंने हालिया विदेश दौरों और उनके हासिल को बढ़ाने के लिए अपना वीडियो ट्वीट किया.


हालांकि, इसका कारण उन्होंने भारत की संसद में चल रहे मौजूदा गतिरोध को बताया और विपक्ष पर आरोप लगाया कि उनके लिए देशहित से अधिक महत्वपूर्ण संसद का बायकॉट और अपना हित साधना है. अमेरिका को जयशंकर ने गुड़ में लपेटकर नीम की फली भी खिला दी और कहा कि भारत तो हमेशा से एक जैसा ही रहा है, लेकिन अमेरिका ही तकनीक या हथियार देने में हिचकता रहा है.


भारत को यह पता है कि अमेरिका हमेशा अपने हित को देखता है. बदली हुई विदेश नीति में भारत भी अब अपने हितों को सभी से, किसी से भी ऊपर रखता है. इसीलिए, भारत किसी एक देश पर न तो निर्भर रहना चाहता है, न एक को अपना मसीहा बनाना चाहता है.


जापान भी यह जानता है कि भारत एक भरोसेमंद और जिम्मेदार देश है, भविष्य की ताकत भी, इसलिए वह भी भारत के साथ अपने संबंध बढ़ा रहा है. योशिमासा ने तो कहा भी कि भारत और जापान एक साथ हैं और एक जैसी सोच रखने वाले देशों जैसे भारत और जापान के लिए आतंकवाद से लड़ाई पहली प्राथमिकता है. उन्होंने यह भी कहा कि जी 20 अध्यक्षता को सफल बनाने के लिए जापान, भारत के साथ मिलकर काम करने को बहुत उत्सुक हैं.


भारत जापान का साथ इसलिए भी चाह रहा है क्योंकि फिलहाल जी7 की अध्यक्षता जापान के पास है. विकसित देशों के साथ भारत की जुगलबंदी जमी रहे, इसलिए भारत अब जापान के साथ अपना सहयोग और अधिक बढ़ाना चाह रहा है.


फिलहाल, जापान भारत में पांचवां सबसे बड़ा प्रत्यक्ष विदेशी निवेशक है और भारत में फिलहाल लगभग 1500 जापानी कंपनियां काम कर रही हैं. चीन के विस्तारवादी रवैए से जापान की भी पेशानी पर बल पड़े हुए हैं. वह भी चाहता है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत एक मजबूत ताकत बनकर उभरे, ताकि चीन के मंसूबों पर नकेल लगायी जा सके.


भारत और जापान अपने रक्षा समझौते को नयी ऊंचाई दे रहे हैं, ताकि वे एक मुक्त हिंद-प्रशांत क्षेत्र सुनिश्चित कर सकें. हयाशी ने अपने मैसेज में ये भी कहा कि जिस बारंबारता से भारत और जापान के बीच उच्चस्तरीय भेंट और वार्ता हो रही है, वही हमारी रीढ़ है. जनवरी में संयुक्त फाइटर जेट एक्सरसाइज के अलावा हमने समंदर और हवा में भी डिफेंस अभ्यास किए हैं. नए क्षेत्रों जैसे साइबर और स्पेस जगत में भी भारत और जापान के बीच सहयोग तेज हो रहा है. रक्षा उपकरण और तकनीक के मामले में भी सहयोग बढ़ा है. 


भारत ले रहा है संभले हुए कदम


वैश्विक राजनीति अभी जो करवट ले रही है, उसमें भारत के लिए स्थितियां बहुत ही जटिल हैं. एक तरफ तो भारत को अमेरिका को साधना है, दूसरी तरफ रूस उसका पुराना सहयोगी है. रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद पूरी दुनिया मानो दो खेमे में बंट चुकी है. चीन इन हालात में अपनी विस्तारवादी गतिविधियां और एजेंडा पूरी गति से चला रहा है. भारत के पड़ोसी पाकिस्तान, अफगानिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश बेहाल हैं, कारण भले चाहे जो भी हो. भारत के पास अपनी सीमाओं से घुसपैठ रोकने की अलग समस्या है. इसके साथ ही जी20 में सर्वसहमति से प्रस्ताव भी पारित करवाना है. ऐसे में भारत को मुफीद दांव यही लग रहा है कि वह देशों के साथ वन टू वन रिलेशन रखे और उसी के मुताबिक काम करे. यानी, वह दूसरों का लठैत बनने को राजी नहीं है. भारत की विदेश नीति पहले भी गुट-निरपेक्षता की रही होगी, लेकिन अभी अंतर यह आया है कि भारत अब मुखर और पुरजोर तरीके से अपनी बात भी रख रहा है, अपने समीकरण भी बना रहा है और किसी का पिछलग्गू बनने को तैयार भी नहीं है.