भारतीय नौसेना का दिखा दमखम, सोमालियन पाइरेट्स से 21 बंधकों को छुड़ाया सकुशल और बनाया इतिहास
एक बृहत परिदृश्य में, एक बड़े कैनवास पर देखें तो जिस तरह से अदन की खाड़ी में, अरब सागर में भारत के व्यापारिक और सामरिक हित हैं, उसको देखते हुए भारतीय नौसेना लगातार काम कर रही है.
सागर में पाइरेट्स यानी जलदस्युओं का आतंक हम सभी को पता है. फिलहाल, हिंद महासागर और प्रशांत महासागर में इनका आतंक जोरों पर है. अभी सोमालिया बंदरगाह के पास एक जहाज लीला आइकॉर्फ पर भी इन्होंने हमला किया, लेकिन भारतीय नौसेना ने सभी बंधकों को छुड़ा लिया.
भारतीय नौसेना की बढ़ती ताकत
खासकर इस ऑपरेशन की अगर बात करें तो इसमें हेलीकॉप्टर्स की भी भूमिका थी और इसे आइएनएस चेन्नै के जरिए अंजाम दिया गया. इसमें ड्रोन्स की भी मदद ली गयी. इसमें बेहद महत्वपूर्ण भूमिका स्पेशल मार्कोस कमांडो की थी. आधिकारिक तौर पर इनको मरीन कमांडो फोर्स कहते हैं. इनको स्पेशल समुद्री कामंडो भी कहते हैं. इनकी एक बड़ी भूमिका रही थी. इनका बेस कैंप और ट्रेनिंग कैंप विशाखापट्टनम में है और इनकी ट्रेनिंग बहुत ही आला दर्जे की है. मरीन कमांडो का बहुत अच्छा इतिहास रहा है और ये खासकर गैर-पारंपरिक युद्धों, बंधकों को छुड़ाने और स्पेशल ऑपरेशन्स के माहिर होते हैं.
साथ में यह भी जानना दिलचस्प होगा कि इस अभियान में प्रिडेटर एमक्यू 9 बी की भी भूमिका रही है. पी8आई की भी भूमिका थी, लेकिन मुख्य तौर पर कमांडोज ने ही दमखम दिखाया. हालांकि, नौसेना का ये कहना है कि जब वो इस अभियान में आगे बढ़ रहे थे, तो जब मरीन कमांडो वहां पहुंचे तो उन्हें कोई भी हाइजैकर यानी अपहरणकर्ता नहीं दिखा. हालांकि, यह मानना पड़ेगा कि भारतीय नौसेना की जो शक्ति है, जो क्षमता है, उसकी वजह से उन अपहरणकर्ताओं की हिम्मत नहीं रही कि वे वहां रहें और इसीलिए वे वहां से भाग गए.
भारतीय नौसेना की आत्मनिर्भरता
अगर हम एक बृहत परिदृश्य में, एक बड़े कैनवास पर देखें तो जिस तरह से अदन की खाड़ी में, अरब सागर में भारत के व्यापारिक और सामरिक हित हैं, उसको देखते हुए भारतीय नौसेना लगातार काम कर रही है. इन्हीं हितों को देखते हुए नयी तैनाती भी अदन की खाड़ी में की गयी है. चाहे हम आइएनएस कोच्चि, आइएनएस कोलकाता, आइएनएस मोर्दुआओ की बात करें, या फिर भारतीय नौसेना जो अपने स्टील्थ विमानों की भी तैनाती कर रही है, जैसे आइएनएस विशाखापट्टनम की भी तैनाती कर रही है. भारतीय नौसेना की आज की जिस क्षमता की हम बात कर रहे हैं, इसकी तैयारी भारतीय नौसेना काफी पहले से कर रही है और इस क्षेत्र में भारत के हितों को देखते हुए, चीन की चुनौती को देखते हुए, चाहे वह जिगुती हो या हॉर्न ऑफ अफ्रीका हो, या ग्वादर हो या करांची हो, यहां जो चीन की उपस्थिति हो या दक्षिण चीन सागर की बात करें तो कंबोडिया में जिस तरह चीन अपना बेस बनाने की तैयारी में है, उसे भारतीय नौसेना बखूबी समझती है, अपना विकास भी कर रही है. विध्वंसक पोतों की बात कर लें, निगरानी पोतों की बात कर लें तो न केवल उनकी तैनाती बढ़ रही है, बल्कि ताजातरीन तकनीक भी उसमें इस्तेमाल हो रही है, जो खास तौर से पाइरेट्स से निबटने के लिए बनाए गए हैं.
अब पश्चिमी ताकतों पर नहीं निर्भर
हमें याद रखना चाहिए कि जब 10 से 15 साल पहले जब सोमालिया के पाइरेट्स या अफ्रीकी किनारों पर जलदस्युओं का जो खतरा रहता था, तो हम देखते थे कि पश्चिमी देशों खासकर वहां अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन की जो मौजूदगी है, वे मदद को आएंगे और वैश्विक नौवहन नियम और कायदे से चले, इसकी बात होती थी, स्वचालन की बात होती थी. एक तरह पश्चिमी देशों पर हम निर्भर थे, हम उनकी तरफ देखते थे. पिछले दस वर्षों में खासकर जिस तरह सरकार ने अपनी नीति बदली है और सेना को भी यह सुनिश्चित करने को कहा है कि भारत के हित से कोई समझौता नही होगा और ये भारत के दम पर होना चाहिए.
आज भारतीय नौसेना उस स्थिति में है कि वह अपने दम पर विध्वंसक पोतों का, एयरक्राफ्ट कैरियर का, निगरानी पोतों का निर्माण अपने दम पर कर रही है और ये जो आत्मनिर्भरता का प्रतिशत हे,वह भारतीय नौसेना के संदर्भ में 80 प्रतिशत तक है. अगर हम सेना के तीनों अंगों की बात करें तो स्वदेशीकरण और आत्मनिर्भारता के मामले में भारतीय नौसेना सबसे आगे है. खासकर, अगर हम सेंसर्स और खासकर इंजन के मामले में आज भी बहुत हद तक हम विदेशी आपूर्तिकर्ता पर निर्भर हैं. यह बहुत संवेदनशील मामला होता है, लेकिन जो आइएनएस विक्रांत हमने अपने बलबूते बनाया, उसमें कई सेंसर्स भारतीय सेना के इंजीनियर्स ने विकसित किए हैं और हम अब बढ़ रहे हैं हेवी वेसल्स के इंजन के विकास की ओर. आइएनएस विक्रांत का रिपीट ऑर्डर मिल चुका है, यानी भारत अब तीसरा एयरक्राफ्ट कैरियर बनाने की दिशा में आगे बढ़ चुका है.
दो बातें आम तौर पर देखने की हैं. भारत ने अपने व्यापारिक और सामरिक हितों पर ध्यान दिया है, उसे प्राथमिकता दी है और इसमें भारतीय नौसेना का बड़ा योगदान है. दूसरी बात यह है कि अपने दम पर, अपनी क्षमता के आधार पर भारत उस दिशा में बढ़ रहा है, जहां वह आत्मनिर्भरता की बात कर रहा है. भारत को एक आर्थिक सैन्यशक्ति के तौर पर तो देखा जा ही रहा था, लेकिन अब उसे सैन्यशक्ति के दम पर भी आंका जा रहा है, खासकर नौसेना के मामले में, क्योंकि दुनियावी समुद्री व्यापार का 80 फीसदी तो भारतीय समंदर से होकर गुजरता है.