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भारत में "वियरेबल्स" के मार्केट में अभूतपूर्व उछाल, पिछले साल 8000 करोड़ के बिके, चीन की फैक्ट्रियों को लग रहा है ताला

पहनने और बांधनेवाले सामानों (वीयरेबल्स) का बाजार एक महत्वपूर्ण सेक्टर के तौर पर उभर रहा है और इसीलिए 2026 तक 65 हजार करोड़ रुपए के प्रोडक्शन का लक्ष्य है. 

जब पूरी दुनिया में मंदी की आशंका है और बड़ी-बड़ी अर्थव्यवस्थाएं इससे जूझ रही हैं, तो भारत के लिए आर्थिक मोर्चे पर लगातार अच्छी खबरें आ रही हैं. वैसे तो भारत में स्मार्टफोन के बाजार पर लगभग चीनी फोन का कब्ज़ा है, लेकिन कलाई पर, गले में या कान में पहने जानेवाले उनसे संबंधित उपकरणों यानी वियरेबल्स का निर्माण भारत में बहुत तेज हुआ है. ईयरबड्स, नेक बैंड और स्मार्टवॉच जैसे वियरेबल्स के बाज़ार पर भारत की देसी कंपनियों ने कब्जा कर लिया है. इंडियन ब्रांड आज देश के 75 फीसदी बाजार पर कब्जा रखते हैं. इन सब से चीन की फैक्ट्रियों में तालाबंदी की नौबत आ गयी है, क्योंकि उनके ऑर्डर में भारी गिरावट आयी है, और एक के बाद एक कंपनियों पर ताला लग रहा है. पिछले वित्तीय वर्ष में भारत में तकरीबन 8000 करोड़ रुपए के वियरेबल्स का निर्माण हुआ था. 

एक फैसले ने बदल दिया सब कुछ 

ईयरफोन और स्मार्टवॉच का बाजार भारत में 2021 में केवल 2.1 अरब डॉलर का था. यह बढ़कर 2022 में 2.8 अरब डॉलर हो गया. इंडिया में पिछले साल यानी 2022-23 में कुल 8000 करोड़ रुपए के इयरफोन, स्मार्टवॉच और नेकबैंड वगैरह बनाए गए. यह सरकार के PMP यानी फेज्ड मैन्युफैक्चरिंग प्लैन या चरणबद्ध निर्माण योजना के कार्यान्वयन से हो पाया है. आईसीए (ICEA) यानी इंडिया सेलुलर एंड इलेक्ट्रॉनिक असोसिएशन के एक विश्लेषण के अनुसार भारत का बाजार फिलहाल पूरी दुनिया के वियरेबल्स का 4 से 5 फीसदी हिस्सा है, हालांकि इसमें से अधिकांश पिछले साल तक चीन से आयात के द्वारा पूरा किया जाता था. सरकार ने पिछले बजट में वियरेबल्स सामानों के आयात पर 20 फीसदी बेसिक कस्टम ड्यूटी लगा दी, इससे लागत तो बढ़ी ही, जो इनवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर था, वह भी ठीक हो गया.

पीएमपी के लागू होते ही कंपनियों ने चीन से सामान मंगवाने के बजाय देश में ही उत्पादन शुरू किया, क्योंकि वह सस्ता पड़ता था. पहले चीन से पूरी तरह तैयार ईकाइयां मंगाई जाती थीं, सरकार के उस एक फैसले के बाद कंपनियां अब उन्हें भारत में ही एसेंबल करती हैं. इसका असर यह हुआ है कि बोट और गिजमोर जैसे ब्रांड्स अब भारत में ही उत्पादन कर रहे हैं. दूसरा असर यह हुआ है कि भारत से जब मांग कमी तो चीन की एसेंबलिंग कंपनियों के पास काम नहीं बचा और अब वहां तालाबंदी हो रही है. भारत की कंपनियां ठेके पर काम करने वाली कंपनियों के साथ गठजोड़ कर रही हैं और वियरेबल्स कंपनियां चीन से अब भारत का रुख कर रही हैं. 

2026 तक 300 अरब डॉलर का विजन

फिलहाल जो हालात हैं, उसे देखते हुए सरकार को यह फीडबैक मिला है कि  वित्तवर्ष 2023-24 तक वियरेबल्स का उत्पादन अभी से दोगुना होकर 15 से 17 हजार करोड़ तक का हो सकता है. सरकार का लक्ष्य देश में इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण के जरिए 300 अरब डॉलर हासिल करना है, जिसमें वियरेबल्स का उत्पादन 8 अरब डॉलर का होना है. अच्छी बात यह है कि इसमें से 3 अरब डॉलर निर्यात से हासिल होने का लक्ष्य रखा है. यह लक्ष्य अगर पूरा कर लिया गया तो भारत 2026 तक दुनिया के बाजार में कम से कम 8 से 10 फीसदी हिस्सेदारी भी हासिल कर सकता है, जो निर्यात के माध्यम से हासिल होगा. 300 अरब डॉलर का लक्ष्य मुश्किल नहीं है, क्योंकि सरकार के पास इलेक्ट्रॉनिक्स सामानों के निर्माण के हरेक सेक्टर, हरेक वर्टिकल के लिए एक व्यापक योजना है. पहनने और बांधनेवाले सामानों (वीयरेबल्स) का बाजार एक महत्वपूर्ण सेक्टर के तौर पर उभर रहा है और इसीलिए 2026 तक 65 हजार करोड़ रुपए के प्रोडक्शन का लक्ष्य है. 

यह सब पीएमपी के शुरू होने के एक साल के भीतर हुआ है और इसकी वजह है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जब बजट में इसकी घोषणा की थी तो वित्त वर्ष 2023 से 2026 तक, वीयरेबल्स के अधिकांश घटकों पर सीमा-शुल्क को घटाते हुए वित्तीय वर्ष 2023 में शून्य किया था. साथ ही, ड्यूटी को बढ़ाकर 20 फीसदी कर दिया. इसको धीरे-धीरे रिकवर भी किया जाेगा. जैसे, वियरेबल्स के लिए बैटरी पर शुल्क जो घटाकर शून्य किया, उसे 24 में 5 फीसदी, 25 में 10 और 26 में 15 फीसदी करेंगे. इससे स्थानीय स्तर पर उत्पादन को जबर्दस्त सफलता मिली और 2026 तक घरेलू वियरेबल्स का बाजार लगभग 4 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा. हालांकि, उत्पादन इससे कहीं अधिक 8. 2 अरब डॉलर तक का हो सकता है, क्योंकि इसमें 4.2 अरब डॉलर निर्यात का शामिल है. पीएमपी कार्यक्रम का फायदा इसी से समझ सकते हैं कि वियरेबल्स के लिए निर्माण में वृद्धि लगभग 400 फीसदी तक हुई है, क्योंकि कंपनियां अब आयात बंद कर स्थानीय स्तर पर उत्पादन बढ़ा रही हैं. इससे लगभग 30 हजार अतिरिक्त प्रत्यक्ष रोजगार का भी सृजन हुआ है. आज बोट, नॉयज और फायरबोल्ट जैसे इस सेगमेंट के सभी मशूहर और मुख्य खिलाड़ी अपना उतापादन बढ़ा रहे हैं. 

आगे की राह

आइडीसी इंडिया ने एक आंकड़ा जारी किया है जिसके मुताबिक जनवरी से मार्च के बीच भारत के घरेलू बाजार में बड़ी तेजी आई और वियरेबल्स के 2.5 करोड़ यूनिट बिके. इसके साथ ही चीन को पीछे छोड़कर भारत दुनिया का वियरेबल्स का सबसे बड़ा बाजार बन गया. इस बीच चीन में चार फीसदी की गिरावट देखी गयी. पिछले वित्तीय वर्ष 2022 के मुकाबले 2023 में भारतीय शिपमेंट के 13 करोड़ से अधिक पहुंचने की उम्मीद है. अगर बाजार के आयतन (वॉल्यूम) के हिसाब से देखें तो देसी मार्केट पर देसी कंपनियों का ही बोलबाला है. उम्मीद की जा रही है कि देश के वियरेबल्स बाजार का 80 फीसदी साल के अंत तक देश में ही बनने लगेगा. अभी की हालत यह है कि 75 फीसदी ऑडियो उत्पाद और 95 फीसदी स्मार्टवॉच भारत में बन रहे हैं और यह आंकड़ा केवल पिछले साल तक केवल 20 फीसदी था. जाहिर तौर पर यह सारा कमाल, पीएमपी का है. 

हालांकि, उद्योग जगत को सरकार से अभी भी बहुत उम्मीदें हैं. काफी काम हुआ है, पर दुनिया से टक्कर लेने के लिए बहुत कुछ करना बाकी है. देश में दुनिया के विभिन्न विक्रेताओं को लुभाने के लिए भारत को कॉस्ट हैंडीकैप्ड डिफरेंशियल को कम करने की आवश्यकता है, जो फिलहाल भारत बनाम वियतनाम लगभग 7 से 9 फीसदी है, जबकि चीन के खिलाफ तो यह संख्या लगभग 19 फीसदी है. स्थानीय यानी देसी उद्योग को अगर पार पाना है, विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा करनी है तो इस अंतर को बिल्कुल पाटना होगा, बेहद कम करना होगा. 

ये भी पढ़ें: सेमीकंडक्टर का हब बन सकता है 2026 तक भारत, "माइक्रोन" करेगा चीन की जगह गुजरात में चिप-निर्माण

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