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10 वर्षों में रेमिटेंस मनी में 78.5% का इजाफा, विदेशों में रह रहे भारतीय ने 125 अरब डॉलर भेज तोड़ा रिकॉर्ड

वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के साथ दिरहम और रुपये में व्यापार को बढ़ावा देने के लिए किए गए समझौते के चलते रेमिटेंस मनी को बढ़ावा मिला.

विदेशों में रह रहे भारतीयों साल 2023 के दौरान रिकॉर्ड 125 अरब डॉलर भेजा है. दुनिया में दूसरे नंबर पर रेमिटेंस मनी भेजने वालों में मैक्सिको है और तीसरा देश है चीन. रेमिटेंस मनी वो पैसा होता है, जिसे एक विदेशी देश से दूसरे देश या अपने मूल देश में भेजा जाता है. इस प्रक्रिया को रेमिटेंस कहा जाता है. इसके कई तरीके हो सकते हैं, जैसे बैंक ट्रांसफर, ऑनलाइन मनी ट्रांसफर या वित्तीय सेवा प्रदाता के तौर पर. सवाल ये उठता है कि रेमिटेंस मनी के बढ़ने से अर्थव्यवस्था पर किस तरह का असर होता है? क्या इससे देश की इकॉनोमी के बढ़ने, उसे रफ्तार देने में मदद मिलेगी? क्या इससे देश के व्यापार घाटे के परोक्ष तौर पर भरपाई में हेल्प मिल पाएगी? क्योंकि देश में भले ही विदेश मुद्रा बढ़ा हो, लेकिन व्यापार घाटा बढ़ा है और अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर भी रफ्तार बढ़ाने की जरूरत है.

यूएई के साथ समझौता है कारण 

वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के साथ दिरहम और रुपये में व्यापार को बढ़ावा देने के लिए किए गए समझौते के चलते रेमिटेंस मनी को बढ़ावा मिला. रिपोर्ट की मानें तो भारत में धनप्रेषण की वृद्धि 2023 में 12.4 प्रतिशत रहने की उम्मीद है, जो 2022 में अपने ऐतिहासिक उच्चस्तर 24.4 प्रतिशत पर थी. वर्ल्ड बैंक की ताजा प्रवासन और विकास रिपोर्ट में कहा गया, ‘‘2023 में रेमिटेंस मनी 14 अरब अमेरिकी डॉलर बढ़कर 125 अरब डॉलर रहने की उम्मीद है. इसके साथ ही दक्षिण एशिया में आने वाले रेमिटेंस मनी में भारत की हिस्सेदारी 2023 के 63% से बढ़कर 2023 में 66% हो जाएगी.’’

 भारत के बाद मेक्सिको (67 अरब डॉलर), चीन (50 अरब डॉलर), फिलिपीन (40 अरब डॉलर) और मिस्र (24 अरब डॉलर) का स्थान रहा. वर्ल्ड बैंक ने कहा कि भारत में रेमिटेंस मनी बढ़ने में मुद्रास्फीति घटने और विदेश में मजबूत श्रम का विशेष योगदान रहा. भारत को मिलने वाले रेमिटेंस मनी में सबसे अधिक हिस्सेदारी यूएई की रही और उसके बाद अमेरिका का स्थान था. यह भी समझना चाहिए कि जो रेमिटेंस प्रवासी भेजते हैं, वह अपने परिवारों को भेजते हैं. उससे उपभोग में उपभोग में वृद्धि होती है, मांग बढ़ती है और फिर उन वस्तुओं की मांग बढ़ती है, जिनका उपभोग होता है. हालांकि, आरबीआई की हालिया रिपोर्ट देखें तो देश में उपभोग नहीं बढ़ रहा है. उसे विकास का मुख्य इंजिन माना जाता है. सरकारी खर्च तो बढ़ रहा है, लेकिन उपभोग नहीं बढ़ रहा है.

सरकार बनाए मौके, ताकि बढ़े उपभोग-व्यय

दूसरी बात जो होती है कि जब रेमिटेंस बढ़ता है, तो विदेशी मुद्रा भी बढ़ती है. तो, विश्व बैंक की रिपोर्ट मानें तो रेमिटेंस बढ़ रहा है, यानी देश के बहुतेरे लोग देश छोड़कर जा रहे हैं, यानी देश में बेरोजगारी है. सरकार को इस तरफ भी देखना चाहिए. रेमिटेंस तो वैसे भी जीडीपी का 3 फीसदी है. बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था में भी जो एक उछाल आया था, वह इसी वजह से था कि वहां रेमिटेंस बढ़ गया था. उपभोग कम होने का मतलब यह नहीं है कि लोग बचत कर रहे हैं. इसका मतलब है कि उनके पास आय का कोई साधन नहीं है, उनकी इनकम नहीं बढ़ रही है. महंगाई तो खैर है ही. आय नहीं है, बेरोजगारी बढ़ रही है और इसीलिए एग्रीगेट डिमांड तो बढ़ रही है, क्योंकि सरकार का भी खर्च उसमें होता है, लेकिन कंजम्पशन एक्सपेंडिचर (उपभोग पर व्यय) नहीं बढ़ रहा है.

सरकार को शिक्षा पर खर्च करना चाहिए, बाकी जगह भी खर्च बढ़ाना चाहिए, आपके पास हाई-स्किल्ड लेबर अगर आप बनाएंगे, तो रोजगार के अवसर यहीं बढ़ेंगे. हमारा विदेशी मुद्रा भंडार जब बढ़ रहा है, तो हमारी मुद्रा भी मजबूत होती है, लेकिन जब हम आयात करते हैं तो यह मुद्रा भी तो खर्च होगी. दूसरे देशों को वह पैसा तो देना होगा. जहां से भी रेमिटेंस बढ़ रहा है, जैसे मेक्सिको हो या भारत हो, सब मध्य आयवर्ग वाले देश हैं. लोग बाहर जाते ही इसलिए हैं कि वे अपने परिवार को अच्छी आय दे सकें. या फिर, आपके यहां मौके नहीं हैं. तो, प्रवासी मजदूर भी तो भेजते हैं न पैसा, इसीलिए तो रेमिटेंस बढ़ रहा है. 

लोग करें पैसे खर्च, तो आएगी खुशहाली

अमेरिका और यूएई इसलिए भारत में सबसे अधिक रेमिटेंस मनी भेजनेवाले देश बने हैं, क्योंकि अमेरिका में तो आइटी सेक्टर है, वहां लोग जा रहे हैं और यूएई में निचले स्तर के कौशल वाले श्रमिक चाहिए, इसलिए इन दोनों जगहों पर अधिक भारतीय जाते हैं और पैसा भेजते हैं. अमेरिका या दूसरे देश हैं तो वहां भी उपभोग पर खर्च कम हो रहा है, अभी बाइडेन ने भी मिडल-क्लास को खुश करने के लिए बहुत कुछ किया है, ताकि वहां की अर्थव्यवस्था बढ़े. तो, अमेरिकी नागरिकों के साथ प्रवासियों पर भी असर पड़ेगा. रेमिटेंस मनी से जो पैसा आता है, वह तो खर्च के लिए आता है.

वह निवेश के लिए नहीं आता है. अगर आपको इंफ्रास्ट्रकचर पर निवेश करने को पैसा आता है, तो वह निवेश तो नहीं होगा. उससे कंजम्पशन भी नहीं बढ़ेगा. उपभोग बढ़ना चाहिए, लेकिन रेमिटेंस मनी तो 3 परसेंट ही है. उपभोग की बात तो ओवरऑल इकोनॉमी के लिए है, महंगाई भी एक वजह है, जिसकी वजह से एक बड़ा तबका पैसा खर्च नहीं कर पा रहा है और ओवरऑल कंजम्प्शन जो है, वह नहीं बढ़ पा रहा है. सरकार अगर समय रहते संभली और उसने दखल दिया, तो ही इस समस्या से निजात मिलने की उम्मीद है. 

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