केंद्र सरकार के बड़े कामों में से एक है इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास, 2014 के मुकाबले छह गुणा बढ़ गया है खर्च
इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट पर किए गए खर्च की बात करें तो 2013-14 में इस मद में ₹2.29 लाख करोड़ खर्च किये गए थे. यह खर्च बढ़कर 2023-24 में ₹13.7 लाख करोड़ हो गया, यानी इस मद में 6 गुणा की बढ़त हुई है.
जमकर खर्च हो रहा है इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास में
अगर हम भारत सरकार के इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट पर किए गए खर्च की बात करें तो 2013-14 में इस मद में ₹2.29 लाख करोड़ खर्च किये गए थे. यह खर्च बढ़कर 2023-24 में ₹13.7 लाख करोड़ हो गया, यानी इसका सीधा मतलब है कि लगभग एक दशक में इस मद में 6 गुणा की बढ़त हुई है. हम अगर सरकार के कुल खर्चे में से इस मद में किए खर्च का प्रतिशत निकालें तो यह 2013-14 में केवल 9 फीसदी था और वही 2023-24 में बढ़कर 21.3 प्रतिशत हो गया है. ऐसा नहीं है कि इसे महसूस करने के लिए हमें किसी तरह के रॉकेट साइंस को जानने की या आधुनिक शोध की जरूरत होगी.
हम अपने चारों ओर इसका प्रभाव देख सकते हैं. चारों तरफ सड़कें बन रही हैं, एक्सप्रेसवे का जाल बिछाया जा रहा है, पहले के गंदे पड़े रेलवे स्टेशनों की जगह अब चकमकाते-जगमगाते रेलवे स्टेशन हैं, छोटी जगहों के स्टेशन पर भी एस्केलेटर लग रहा है, लिफ्ट लग रही है, रेलवे लाइन्स का दोहरीकरण किया जा रहा है, नयी लाइन बिछायी जा रही है, नयी-नयी ट्रेन महीने में दो तो कभी तीन लाञ्च की जा रही है, एयरपोर्टों का जाल बिछ रहा है, पहाड़ी इलाकों में सुरंग तो मैदानी इलाकों में हजारों पुल बन रहे हैं, जहाज बनाए जा रहे हैं, बंदरगाहों का आधुनिकीकरण किया जा रहा है, स्कूल-कॉलेज, यूनिवर्सिटी इत्यादि तो हरेक राज्य में बढ़ ही रहे हैं, बन ही रहे हैं. सरकार ने MNREGA को संपत्ति विकास से जोड़ कर भी एक महत्वपूर्ण काम किया है. इससे गांवों और पंचायत स्तर पर भी आधारभूत ढांचा विकसित हो रहा है.
इंफ्रास्ट्रक्चर बनाओ, इकोनॉमी में पैसा घुमाओ
यह अर्थशास्त्र का बुनियादी सिद्धांत है कि विकास चाहिए तो पैसा स्थिर नहीं रहे. वह घूमना चाहिए. इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने से अर्थव्यवस्था में पैसा घूमता है और विकास होता है. इसका सबूत है इंफ्रास्ट्रक्चर वाली कंपनियों का शेयर मार्केट में लगातार अच्छा प्रदर्शन हो रहा है. इसमें मांग भी चूंकि स्थानीय स्तर की होती है, इसलिए वहां Recession जैसी स्थिति नहीं आ पाती. यह कुल मिलाकर अर्थव्यवस्था के लिए बहुत फायदे की बात है. इसी बात को अर्थशास्त्री सूर्यभूषण कुछ इस तरह से समझाते हैं, "भारतीय अर्थव्यवस्था में यह दिख रहा है कि लोग खर्च कर रहे हैं. लोग खर्च करेंगे, तो बिजनेस बढ़ेगा, फिर संसाधनों का इस्तेमाल होगा और संपूर्ण इकोनॉमी को फायदा मिलेगा. हमारा घरेलू बाजार इतना बडा है कि इसी को संभालने में हमारी इकोनॉमी व्यस्त है. दूसरी बात ये है कि अनौपचारिकता हमारी ताकत है. हमारी इकोनॉमी चूंकि इनफॉर्मल है, तो मामला ठीक चल रहा है. वह एक तरह का रिजिलियंस, प्रतिरोधक क्षमता देता है.
किसी भी क्राइसिस से उभरने के लिए यह काम आता है. विश्व जो एक गांव था, वह हमने कोरोना काल में देख लिया. किस तरह से देश स्वार्थी हुए, कंपनियां किस तरह से बदलीं, वह बदल गया. पूरा जो प्रोडक्शन चेन था, वह बदल गया. आप पहले कुछ कहीं बनाते थे, कुछ और कहीं और फिर उसको एसेंबल करते थे. अब लोग प्लान बी और प्लान सी के लिए सोचते हैं. कोरोना में जो सप्लाई चेन टूटा, वैश्विक स्तर पर वह एक तरह से 'ब्लेसिंग इन डिसगाइज' ही था." भारतीय अर्थव्यवस्था पर यह टिप्पणी खास तौर पर महत्वपूर्ण है, जब हम इंफ्रास्ट्र्क्चर के विकास की बात कर रहे हैं.
आगे की राह
हमारा देश अभी पूरी तरह विकसित नहीं है. हम अभी ट्रांजिशन के चरण में हैं. हमारे यहां कार्ड भी चल रहा है, कैश भी. हां, डिजिटलाइजेशन हुआ है, लेकिन लोग तो वही हैं. लोगों की आदत तो बदली है, कंपनियों ने लोगों की आदतों को भुनाया भी है, लेकिन हमलोग संस्थागत तौर पर बहुत रूढि़वादी भी हैं. कोविड से हमलोग इसीलिए जल्दी उबर गए. अभी आप चीन को देखिए तो उसकी हालत बद से बदतर होती जा रही है. जहां तक सरकार के ऊपर कर्ज की बात है, तो उसको समझना पड़ेगा कि क्या कर्ज लेकर हम बैठ गए हैं..नहीं, वह कर्ज हमारी इकोनॉमी में दोबारा आ गया है. जैसे, सरकार का जो खर्च है. वह सब्सिडी पर दे रही है, कैश ट्रांसफर कर रही है, ये सब कुछ कर्ज ही है, लेकिन वह घूम रहा है. कई जगह पर सब्सिडी ट्रांसफर हो रहा है. उसी तरह सरकार अगर इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट में खर्च कर रही है, तो वह वापस घूमकर बाजार में ही आ रहा है और बाजार में पैसे का आना अच्छी बात है, विकास की गति तेज होने के लिए शुभ संकेत है.