भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा हाल ही में चंद्रयान-3 का सफल प्रक्षेपण चाँद की खोज  में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है.  रोवर प्रज्ञान से सुसज्जित अंतरिक्ष यान ने नई खोजों और अंतर्दृष्टि के वादे के साथ दुनिया को मंत्रमुग्ध करते हुए चंद्रमा की की सतह पर कामियाबी के साथ उतर गया, यह शुरुआती रूसी मिशनों से लेकर अपोलो कार्यक्रम और इसरो की उल्लेखनीय उपलब्धियों तक, चंद्रमा अभियानों के समृद्ध इतिहास की श्रंखला में एक नया अध्याय है.


 चाँद तक पहुंचे की कोशिश 20वीं सदी के मध्य में हुई जब सोवियत संघ ने 1959 में लूना 2 लॉन्च किया, जो चंद्रमा की सतह पर प्रभाव डालने वाला पहला अंतरिक्ष यान बन गया.  इसके बाद, लूना 3 ने दुनिया को चंद्रमा के सुदूर भाग की पहली तस्वीरें पेश की .  इन अग्रणी मिशनों ने पृथ्वी के खगोलीय पड़ोसी को समझने की नींव रखी.  हालाँकि, यह संयुक्त राज्य अमेरिका का अपोलो कार्यक्रम था जिसने सबसे बड़ी सफलता हासिल की.  1969 में, अपोलो 11 अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रांग और एडविन "बज़" एल्ड्रिन को चंद्रमा की सतह पर ले गया, यह पहली बार था जब मनुष्य ने किसी अन्य खगोलीय पिंड पर कदम रखा.  अपोलो मिशन ने, अपनी प्रतिष्ठित कल्पना और वैज्ञानिक प्रयोगों के साथ, चंद्रमा के बारे में हमारे ज्ञान में काफी विस्तार किया!


कई अन्य देशों ने भी चाँद की खोज में कदम रखा.  सोवियत संघ की लूना श्रृंखला जारी रही,हलाकि अभी ये चांद की सतह पर गिर कर टूट गया, अमेरिका और रूस के साथ चीन, जापान और भारत जैसे देश इस दौड़ में शामिल हो गए. चीन के चांग'ई कार्यक्रम ने चंद्रमा पर कई ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर्स को सफलतापूर्वक तैनात किया, जिससे इसकी संरचना और भूविज्ञान के बारे में हमारी समझ बढ़ी.  जापान के हितेन और कागुया मिशनों ने चंद्र डेटा के बढ़ते भंडार में योगदान दिया, और भारत का इसरो अपने चंद्रयान मिशनों के साथ इस परिदृश्य में अपना क़दम रखा.



 2008 में लॉन्च किया गया चंद्रयान-1, इसरो की पहली चाँद यात्रा थी और इसने चंद्र सतह पर पानी के अणुओं की  खोज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.  इस सफलता के आधार पर, 2019 में चंद्रयान -2 का लक्ष्य चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र का पता लगाना था और इसमें एक ऑर्बिटर, एक लैंडर (विक्रम), और एक रोवर (प्रज्ञान) शामिल था.  हालाँकि विक्रम की लैंडिंग योजना के अनुसार नहीं हुई, लेकिन ऑर्बिटर लगातार बहुमूल्य डेटा भेज रहा है.



 चंद्रयान-3 का हालिया प्रक्षेपण चंद्र अन्वेषण के प्रति भारत की दृढ़ता और प्रतिबद्धता का प्रतीक है.  जैसे ही प्रज्ञान ने चंद्रमा की सतह पर कदम रखा, उत्साह स्पष्ट हो गया.  अपने वैज्ञानिक उपकरणों के साथ, रोवर चंद्रमा की मिट्टी, चट्टानों और वायुमंडल का विस्तृत विश्लेषण करेगा इसके भूवैज्ञानिक इतिहास और विकास पर प्रकाश डालेगा.  प्रज्ञान द्वारा भेजी गई पहली तस्वीर उस दुनिया की आकर्षक झलक पेश करती हैं जिसने सदियों से इंसानो को आकर्षित किया है.


 अंतरिक्ष अन्वेषण में इसरो की प्रमुखता में वृद्धि का श्रेय उसके समर्पण, रणनीतिक योजना और उल्लेखनीय उपलब्धियों को दिया जा सकता है.  एक ही मिशन में रिकॉर्ड संख्या में उपग्रहों को लॉन्च करने से लेकर अंतरग्रहीय प्रयासों को शुरू करने तक, इसरो की उपलब्धियां विस्मयकारी हैं, हैरान करने वाली है,2013 में मार्स ऑर्बिटर मिशन (मंगलयान), जिसने भारत को मंगल ग्रह की कक्षा में पहुंचने वाला पहला एशियाई राष्ट्र बना दिया, इसरो की क्षमताओं का उसके क़ाबलियत का उदाहरण है.


 चंद्रयान श्रृंखला भी इसरो की विशेषज्ञता को प्रदर्शित करती है.  संगठन के लागत प्रभावी दृष्टिकोण और तकनीकी नवाचार ने इसे जटिल मिशन शुरू करने में सक्षम बनाया है जो ब्रह्मांड की हमारी समझ में योगदान देता है.  इसरो की उपलब्धियाँ चंद्र अन्वेषण से परे, उपग्रह प्रौद्योगिकी, संचार और पृथ्वी अवलोकन में प्रगति तक फैली हुई हैं.


चंद्रयान -3 और रोवर प्रज्ञान का प्रक्षेपण चंद्र अन्वेषण में एक नए अध्याय का प्रतीक है.  जैसे ही प्रज्ञान अपनी चंद्र यात्रा पर निकलता है, यह चंद्रमा के रहस्यों को जानने के लिए उत्सुक राष्ट्र की आकांक्षाओं को लेकर पिछले मिशनों के नक्शेकदम पर चलता है.  सोवियत लूना मिशन से लेकर अमेरिका के अपोलो कार्यक्रम और विभिन्न अन्य देशों के योगदान तक चंद्र अभियानों का इतिहास, ब्रह्मांड का पता लगाने के लिए मानवता की अतृप्त जिज्ञासा और दृढ़ संकल्प का मिसाल है.  अंतरिक्ष अन्वेषण में एक चैंपियन के रूप में इसरो का उदय वैश्विक मंच पर भारत की बढ़ती भूमिका का उदाहरण है, जो सीमाओं को पार कर रहा है और पीढ़ियों को सितारों तक पहुंचने के लिए प्रेरित कर रहा है.