भारत ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में कई सारे मील के पत्थर पार कर लिए हैं. 1962 में अपनी स्थापना के बाद से ही भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान यानी इसरो ने भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को सफलतापूर्वक संचालित किया है और आज इसकी झोली में कई सारी सफलताएं हैं. भले ही इसरो को 1969 में यह नाम मिला और 1962 तक इसे INCOSPAR यानी इंडियन नेशनल कमिटी फॉर स्पेस रिसर्च के नाम से ही जाना जाता था. फिलहाल, इसरो के खाते में चंद्रयान, सफल मंगलयान का लॉन्च और सैकड़ों सैटेलाइट का सफल लांच शामिल है.


इतना ही नहीं, कंसलटेंसी फर्म आर्थर डी लिटिल की मानें तो 2040 तक का भारत की स्पेस इकोनॉमी का साइज बढ़कर 40 से 100 बिलियन डॉलर हो सकता है. अर्न्स्ट एंड यंग और इंडियन स्पेस असोसिएशन के शोध का अनुमान है कि 2025 तक ही भारत की स्पेस इकोनॉमी बढ़कर 13 बिलियन डॉलर की हो जाएगी.


इसरो के अंतरिक्ष में बढ़ते कदम


भारत इसरो के लगातार गुणवत्तापूर्ण काम और अंतरिक्ष-तकनीकी स्टार्टअप्स की वजह से नए युग में प्रवेश कर गया है. अंतरराष्ट्रीय फर्म्स के साथ भी इसरो का गठबंधन इसकी गुणवत्ता और कार्यक्षमता को बढ़ा रहा है. इसरो ने अपनी व्यावसायिक शाखा न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड यानी एनएसआईएल भी बनाई है. इससे वह दूसरे देशों के उपग्रहों को भी लॉन्च करता है. हाल ही में लंदन की कंपनी के दो मिशन को सफलतापूर्वक इसरो ने पूरा किया है. यह वर्ष 2023 ख़ास इसलिए है क्योंकि इसी साल चंद्रयान 3 को लांच किया गया है. यह भारत का चांद पर भेजा गया तीसरा खोजी मिशन है.


विभिन्न मिशन के तहत इसरो ने पीएसएलवी (पोलर सैटेलाइट लांच वेहिकल) के जरिए कई सारे सैटेलाइट अंतरिक्ष में भेजे हैं. 1999 के बाद भारत ने 381 विदेशी सैटेलाइट लांच किए हैं और पिछले ही साल 17 अरब रुपये का राजस्व बढ़ाया है. 2017 में इसरो ने एक साथ रिकॉर्ड 104 सैटेलाइट लॉन्च करके इतिहास रचा. इससे पहले एक साथ इतने सैटेलाइट भेजने का रिकॉर्ड रूस के नाम था. दुनिया में सिर्फ छह अंतरिक्ष एजेंसियों के पास ही सैटेलाइट बनाने और छोड़ने की क्षमता है जिसमें इसरो भी शामिल है. भारत के पास खुद का नेविगेशन सैटेलाइट मौजूद है. 


ग्लोबल स्पेस इकोनॉमी और भारत 


2022 में वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था 164 बिलियन डॉलर की थी. भारत की हिस्सेदारी इसमें 8 बिलियन यानी 2 प्रतिशत का है. इसे बढ़ाकर 2030 तक 9 फीसदी और 2040 तक 40 बिलियन डॉलर करने का लक्ष्य है. भारत खासकर डिजिटल क्षेत्र में, सेवा-आधारित अर्थव्यवस्था में सक्रिय हिस्सेदारी कर रहा है और वह अपने उपग्रहों के जरिए यह सेवा मुहैया कराता है.



नयी अंतरिक्ष नीति के जरिए भारत बाजार में अपनी पहुंच लगातार बढ़ाने में लगा है. सैटेलाइट लॉन्च के जरिए ही वैश्विक अंतरिक्ष इकोनॉमी में राजस्व इकट्ठा किया जा सकता है और भारत इसी पर निगाह रखे हुए हैं. भारत ने पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह की छलांग लगाई है, उसे देखकर यह बहुत असंभव भी नहीं लगता है. भारत ने इस साल अब तक 123 सैटेलाइट लॉन्च किए हैं औऱ इनमें से 90 पृथ्वी की निचली कक्षा में हैं. यह भारत की काबिलियत को दिखाता है और संभावनाओं के अनेक द्वार खोलता है.


अंतरिक्ष आधारित इंटरनेट का बाजार और सैटेलाइट लॉन्च करने के लिए देश में जरूरी आधारभूत ढांचा मौजूद है. इसरो अपने उपग्रहों की मदद से जलवायु-परिवर्तन पर नजर रखता है. इससे ग्लोबल वार्मिंग के खतरों और उनसे जुड़ी गतिविधियों में मदद मिलती है. मछुआरों की मदद के लिए भी इसरो इनका इस्तेमाल करता है. चीन और पाकिस्तान जैसे दुश्मनों पर भी हम अपने उपग्रहों से ही पैनी नजर रखते हैं. भारत इनके जरिए रिस्क-एसेसमेंट का काम बेहतर तरीके से करता है और इसीलिए आपदा-प्रबंधन और बीमा के काम में भी इसरो का इस्तेमाल किया जा सकता है. यह भी नए मौके प्रदान करता है. 


भारत रच रहा है नए कीर्तिमान


1975 में पहले सैटेलाइट आर्यभट्ट के अंतरिक्ष में पहुंचने के बाद से अब तक भारत की गंगा और यमुना में बहुत पानी बह चुका है. अभी करीबन 100 से अधिक स्पेस स्टार्टअप भी चल रहे हैं. भारत ने इसरो के व्यावसायिक शाखा को भी मजबूत किया है. प्राइवेट प्लेयर्स भी अब इसमें शामिल हो रहे हैं. हाल ही में केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने बताया था कि गगनयान को 2023 के आखिर या 2024 में लॉन्च किया जाएगा. इस मिशन के तहत तीन यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजने की योजना पर भारत काम कर रहा है. कोविड के चलते इसमें दो साल की देरी हो गई.



इसरो 2030 तक भारत का अपना स्पेस स्टेशन बनाने के काम में भी लगा हुआ है. 2014 के सितंबर में मंगल पर पहुंचने के साथ ही भारत इस तरह के अभियान में पहली बार में ही सफलता हासिल करने वाला दुनिया का पहला देश बन गया. वह इस तरह का मिशन भेजने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया. याद रखना चाहिए कि यह मंगल पर भेजा गया सबसे सस्ता मिशन था. कभी इसरो में अंतरिक्ष यान के पुर्जे और हिस्से बैलगाड़ी और साइकिल पर ढोए जाते थे. आज इसरो सबसे सॉफिस्टिकेटेड तकनीक इस्तेमाल करने वाले चुनिंदा देशों में शामिल है. कभी न्यूयॉर्क टाइम्स और वॉशिंगटन पोस्ट में भारत की अंतरिक्षीय महत्वाकांक्षा को लेकर नस्लीय आधार पर क्रूर और बेहद भौंडे कार्टून छपते थे, आज अमेरिका भारत से हाथ मिलाने को बेताब है.