भारत बहुत तेजी से और बेहद मजबूती के साथ अंतरिक्ष के बाजार में अपने पांव जमा और बढ़ा रहा है. 28 मई को पूर्ण स्वदेश 'नाविक' (NAVIC, यानी नेविगेशन विद इंडियन कांस्टेलेशन) सैटेलाइट के सफल लांच के साथ ही भारत की उपलब्धियों में एक और पल शुमार हो गया है. दो हजार किलो से ज्यादा वजह का यह स्पेसक्राफ्ट एनवीएस-1 भारत की निगरानी करने की क्षमताओं को कई गुणा बढ़ा देगा. यह दरअसल सात सैटेलाइट्स का एक समूह है. यह अंतरिक्ष में ग्राउंड स्टेशन की तरह काम करेगा और इसका नेटवर्क आम जनों से लेकर आर्म्ड फोर्सेज तक के लिए नेविगेशनल सेवाएं मुहैया कराएगा. यह खासकर पाकिस्तान और चीन पर हमारी बढ़त को मजबूत करेगा, क्योंकि इसके जरिए भारत और उसके आसपास का 1500 किलोमीटर का इलाका पूरी तरह निगरानी में आ जाएगा. भारत में चूंकि एविएशन सेक्टर भी लगातार बढ़ रहा है और उसकी मांग भी बढ़ रही है, तो ये स्टेशन कमाल के नेविगेशन, समय और स्थिति को निर्धारित करने के भी काम आएगा. एनवीएस-1 के रहने से अब भारत को समय पर सीमा पर होनेवाली गतिविधियों का अंदाजा लग सकेगा, इसलिए पड़ोसियों की किसी भी कारगुजारी का जवाब समय रहते दिया जा सकेगा. किसी भी तरह की इमरजेन्सी में इसरो की यह नाविक सैटेलाइट तीसरी आंख का काम करेगी.


अंतरिक्ष के बाजार में भारत बड़ी ताकत


भारत बहुत तेजी से अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में बड़ी ताकत बनकर उभर रहा है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और अर्न्स्ट एंड यंग की रिपोर्ट के अनुसार अगले दो साल यानी 2025 तक भारत की अंतरिक्षीय अर्थव्यवस्था 13 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच सकती है. उपग्रह निर्माण को लेकर भारत अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में दूसरा सबसे तेजी से बढ़नेवाला देश है. भारत का स्पेस लांच सेगमेंट काफी तेजी से बढ़ रहा है और इसकी वार्षिक वृद्धि दर लगभग 13 फीसदी है. दो साल बाद देश का उपग्रह-निर्माम बढ़कर दो बिलियन डॉलर होने की उम्मीद है, और उपग्रह सेवाओं का खंड हमारा सबसे बड़ा हिस्सा होगा, यानी अंतरिक्ष पारिस्थितिकी तंत्र का 36 फीसदी हिस्सा. यह सबकुछ अगले दो वर्षों में प्राप्त किया जा सकता है. भारत सरकार भलीभांति इस पूरे व्यापार को समझती है, इसलिए निजी क्षेत्र को स्वतंत्रता और इनोवेशन की छूट देने के साथ ही सरकार युवाओं को भी भविष्य के लिए तैयार करना चाह रही है. केंद्र सरकार की यही सोच है कि अंतरिक्ष का क्षेत्र कटा-फंटा न रहे, बल्कि यह आम आदमी की प्रगति के लिए एक संसाधन के तौर पर काम करे. इस सोच का फायदा भी दिखने लगा है और सरकार अब प्रवर्तक की भूमिका में ही है. 2021 में सरकार ने भारतीय अंतरिक्ष संघ यानी ISpA की स्थापना की. इसका प्रतिनिधित्व प्रमुख घरेलू और वैश्विक कंपनियां या निगम (कॉरपोरेट्स) करते हैं, जिनके पास जो अंतरिक्ष और सैटेलाइट टेक्नोलॉजी में उन्नत हैं। यह अंतरिक्ष और उपग्रह कंपनियों का प्रमुख उद्योग संघ है. 


भारत की नयी अंतरिक्ष नीति


भारत ने अंतरिक्ष में बड़ी उड़ान भरी है. इसी साल 6 अप्रैल को केन्द्रीय मंत्रिमंडल की सुरक्षा संबंधी समिति ने भारत की स्पेस पॉलिसी को मंजूरी दे दी. भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023, शीर्षक के साथ जारी इस नीति में इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO), न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (‌NSIL) और द इंडियन नेशनल स्पेन प्रोमोशन एंड ऑथराइजेशन सेंटर (IN-SPACe) के साथ-साथ भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भूमिका को साफ कर दिया गया है, इसके साथ ही उनकी जिम्मेदारियां भी स्पष्ट कर दी गयी हैं. भारत की नई अंतरिक्ष नीति में भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र को खोल दिया गया है. इसमें निजी क्षेत्र को इंडियन स्पेस प्रोग्राम में विकास करने और सक्रिय भूमिका निभाने का मौका देने की बात की गई है. भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम में निजी क्षेत्र की बढ़ी हुई भूमिका के कारण अब ISRO को उन्नत अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के अनुसंधान और विकास, अंतरिक्ष अन्वेषण और ऐसे ही अन्य मसलों पर ध्यान देने का मौका मिलेगा. नई अंतरिक्ष नीति कॉम्पोनन्ट्स की भूमिका को लेकर स्पष्टता देगी और इसके माध्यम से रॉकेट, उपग्रहों और वाहनों के निर्माण के साथ-साथ डेटा संग्रह आदि गतिविधियों में निजी क्षेत्र की भागीदारी सुनिश्चित की गई है. निजी क्षेत्र की भागीदारी से निश्चय ही भारत के अंतरिक्ष उद्योग को एक नयी उड़ान मिलेगी. 


भारत की कई उपलब्धियां


भारत अब वह देश नहीं जिसको अपना उपग्रह छोड़ने के लिए किसी दूसरे देश पर निर्भर रहना पड़ता था. हाल ही में इसरो ने इकट्ठे 50 सैटेलाइट दूसरे देशों के लिए छोड़े. बहुत जल्द चंद्रयान जाने को तैयार है. हमने मंगलयान के तौर पर एक करिश्मा करके दिखाया है. भारत तो अब अंतरिक्ष में अपनी संपत्तियों की सुरक्षा के लिए भी आत्मनिर्भर हो चुका है. इसके इसरो का IS4OM  केंद्र बेंगलुरु में काम करना शुरू कर चुका है. इसरो का सिस्टम फॉर सेफ एंड सस्टनेबल स्पेस ऑपरेशन एंड मैनेजमेंट सेंटर (IS4OM) देश को आत्मनिर्भरता बनाने के लिए स्थापित किया गया है. इसकी शुरुआत से न सिर्फ अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत की धमक बढ़ेगी बल्कि वह अपने सैटेलाइट की रक्षा खुद करने में सक्षम साबित होगा. दरअसल, पिछले 50 वर्षों में अंतरिक्ष में भी मानव निर्मित कूड़ा बहुत अधिक हो गया है और इससे कूड़े की एक पट्टी बन गयी है. ये अंतरिक्ष में मौजूद निष्क्रिय उपग्रहों और रॉकेटों के मलबे हैं जो कई वर्षों तक वहां बने रहते हैं. ये अंतरिक्ष में हजारों की संख्या में मौजूद हैं और किसी सक्रिय उपग्रह को नुकसान पहुंचा सकते हैं. पिछले कुछ दशकों से इसरो अपने उपग्रहों की निगरानी और सुरक्षा करता रहा है, लेकिन अब मलबे के बढ़ने की वजह से चुनौतियां काफी बढ़ गई हैं. IS4OM इस दिशा में बढ़ाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है. 


आगे की राह 


भारतीय अंतरिक्ष उद्योग पर फिलहाल इसरो का एकाधिकार है. सरकार ने अब यह क्षेत्र निजी क्षेत्र के लिए खोला है, तो उम्मीद की जानी चाहिए कि सैटेलाइट और रॉकेट बनाने के लिए जरूरी तकनीक, ज्ञान और बाकी जरूरी आयामों को भी साझा किया जाएगा. सरकार जानती है कि देश का अंतरिक्ष कार्यक्रम दुनिया के श्रेष्ठतमों में से एक है, इसलिए अगर एफडीआई की अनुमति वह देती है तो देशी और विदेशी भंडार में तो अकूत इजाफा होगा ही, टेक्नोलॉजी का लेनदेन और इनोवेशन भी होगा, शोध भी बढ़ंगा. निजी कंपनियां अंतरिक्ष क्षेत्र में आएं और जुड़ें, इसके लिए सरकार कोई विधेयक भी पेश कर सकती है.