भारत में गरीबी का असर हो रहा है कम, पिछले नौ वर्षों में 24 करोड़ आए गरीबी रेखा से बाहर
बीते वर्षों में सरकार नई-नई योजनाएं लेकर आई. जिसका असर हमें लगातार देखने को मिल रहा है. उन योजनाओं का भी असर हो रहा है. पोषण अभियान और एनीमिया मुक्त भारत जैसे विभिन्न कार्यक्रमों का भी प्रभाव पड़ा है.
भारत के लिए अच्छी खबर है. यह खबर आर्थिक मोर्चे से है. आइएमएफ ने जहां भारत की जीडीपी के भी 7 फीसदी से अधिक होने का अनुमान लगाया है और जब पूरी दुनिया में मंदी छायी हुई है, तब भारत में यह बेहद अच्छी खबर है. जीएसटी के मोर्चे पर भी हरेक महीने अच्छी खबर ही मिल रही है और अब नीति आयोग की नई रिपोर्ट से यह जानकारी मिली है कि पिछले नौ सालों में 24.82 करोड़ भारतीय बहुआयामी गरीबी रेखा से ऊपर आ गए हैं. उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान में बहुआयामी गरीबी में सर्वाधिक गिरावट दर्ज की गई है. रिपोर्ट के अनुसार पिछले नौ वर्षों में बहुआयामी गरीबी में 17.89 प्रतिशत तक की कमी आई है, क्योंकि इस स्थिति में रहने वाले लोगों की संख्या 2013-14 में 29.17 प्रतिशत थी और 2022-23 में 11.28 प्रतिशत भारतीय इस स्थिति में थे. यानी ये संख्या लगभग 15.5 करोड़ की थी, इतने भारतीय बहुआयामी गरीबी के शिकार थे.
बहुआयामी गरीबी (multidimensional poverty) को समझें
ग्लोबल बहुआयामी गरीबी सूचकांक दरअसल गरीबी का स्तर जांचने के लिए ऑक्सफोर्ड द्वारा विकसित किया गया था. इससे गरीबी और मानव जीवन के विविध पहलुओं की जांच की जाती है. यह ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा विकसित किया गया था. किसी देश में गरीबी रेखा को निर्धारित करने के लिए वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक तीन व्यापक आयामों पर काम करता है. वो है: शिक्षा, स्वास्थ्य, और जीवन स्तर. इसमें भी अलग-अलग 12 मापदंड शामिल होते हैं. इनमें पोषण, स्कूली शिक्षा, स्कूल में उपस्थिति, खाना पकाने का ईंधन, बाल और किशोर मृत्यु दर, स्वच्छता, पीने का पानी, बिजली, आवास, बैंक, संपत्ति, खाते और मातृत्व स्वास्थ्य शामिल है.
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ने 100 से अधिक विकासशील देशों में गरीबी स्तर को निर्धारित करने के लिए इसी नियम का इस्तेमाल किया गया है. पहले गरीबी का जो स्तर जांचा जाता था, वह थोड़ा सा संकुचित होता था. अभी के सूचकांकों से एक समाज के तौर पर किसी भी देश का बृहत् और व्यापक स्तर पता चलता है. इतने अधिक मानकों का इस्तेमाल इसलिए किया जाता है कि उससे गरीबी के सभी आयामों का पता चल सके, किसी भी देश की सही स्थिति और गरीबी का पता चले.
सरकार की योजनाओं का कितना असर
बीते वर्षों में सरकार नई-नई योजनाएं लेकर आई. जिसका असर हमें लगातार देखने को मिल रहा है. उन योजनाओं का भी खूब असर हो रहा है. पोषण अभियान और एनीमिया मुक्त भारत जैसे विभिन्न कार्यक्रमों की सहायता से स्वास्थ्य में अभावों की कमी को कम करने का लगातार प्रयास किया जा रहा है. कहीं न कहीं इन कार्यक्रमों की सहायता से ही भारत में स्वास्थ्य सबंधित परेशानियों को कम किया जा सका है. साथ ही स्वच्छ भारत मिशन और जल जीवन मिशन के माध्यम से देश में स्वच्छता कायम रखने की कोशिश की गई है.
प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के माध्यम से महिलाओं को मुफ्त गैस की सुविधा दी जा रही है. बता दें कि प्रधानमंत्री उज्जवला योजना की शुरूआत 2016 में की गई थी. इस योजना के तहत गरीब परिवारों को मुफ्त रसोई गैस की सुविधा दी जाती है. यहीं नहीं प्रधानमंत्री द्वारा चलाई गई जन धन योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी विभिन्न योजनाओं ने बहुआयामी गरीबी को कम करने में अहम भूमिका निभाई है. इस योजना के माध्यम से बिजली, बैंक, पेयजल तक पहुंच कर जीवनस्तर को सुधारने में काफी सहायता की है.
यूपी, बिहार, एमपी और राजस्थान में अधिक असर
उत्तर प्रदेश में पिछले नौ सालों में 5.94 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी रेखा से बाहर निकले है. वहीं बिहार में 3.77 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर निकले है. मध्य प्रदेश में भी 2.30 करोड़ और राजस्थान में 1.87 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर निकलने में सफल हुए है. बिहार की हालत तो खासी खराब थी और वहां हाल-हाल तक 50 फीसदी लोग गरीबी रेखा के नीचे रहते थे. उनमें से अगर 3.77 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर आए हैं, तो 12 करोड़ की जनसंख्या वाले इस राज्य में यह प्रतिशत कितना होगा, इसका बस सहज अंदाजा लगाया जा सकता है.
सरकार का लक्ष्य बहुआयामी गरीबी को 1 फीसदी से कम करना है और इस दिशा में तेजी से काम किया जा रहा है. 2005-06 में गरीबी का स्तर पूरे देश में 55.34% था, जो काफी अधिक और डरावना था. यह अगले दस साल यानी 2015-16 में घटकर 24.85% पर आ गया. 2019-21 में ये स्तर घटकर 15% से भी कम हो गया. वहीं, 2022-23 में ये और कम होकर 11.28 फीसदी मात्र रह गया.
केंद्र सरकार की योजनाओं ने करोड़ों लोगों को गरीबी से बाहर निकलने में मदद की. प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत, 81.35 करोड़ से ज्यादा लोगों को अन्न मुफ्त में दिया जाता है. इसमें शहरी क्षेत्र की 50 फीसदी और ग्रामीण इलाकों की 75 फीसदी आबादी आ जाती है. इसके अलावा पोषण योजना से लगभग 4 करोड़ महिलाएं लाभान्वित हो रही हैं. इसी तरह की अनेक केंद्रीय योजनाएं चल रही हैं, जिनमें जन-धन योजना, उज्ज्वला योजना इत्यादि प्रमुख हैं. उनके बल पर ही सरकार लोगों को गरीबी रेखा से बाहर ला पा रही है.