Japan PM Kishida Fumio India Visit: भारत-जापान संबंधों को नई ऊंचाई मिलने वाली है. जापान के प्रधानमंत्री किशिदा फुमियो और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच 20 मार्च (सोमवार) को दिल्ली के हैदराबाद हाउस में द्विपक्षीय वार्ता होगी. ये भारत-जापान के बीच सालाना शिखर सम्मेलन का हिस्सा है. जापान के प्रधानमंत्री किशिदा फुमियो दो दिवसीय भारत दौरे पर आ रहे हैं.
किशिदा फुमियो 20 मार्च को ही सुषमा स्वराज भवन में 41वें सप्रू हाउस व्याख्यान में भाग लेंगे. उम्मीद की जा रही है कि इंडियन काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफेयर्स (ICWA) की ओर से आयोजित इस व्याख्यान में पीएम फुमियो दुनिया के सामने नए इंडो-पैसिफिक प्लान की रुपरेखा पेश करेंगे, जिसमें भारत-जापान की दोस्ती को बेहद महत्वपूर्ण माना जाएगा. ये क्षेत्रीय शांति को बरकरार रखने के लिए स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र से जुड़ी योजना होगी.
नए इंडो-पैसिफिक प्लान पर नज़र
नए इंडो-पैसिफिक प्लान का मुख्य उद्देश्य पूरे क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव और विस्तारवादी रुख को संतुलित करना है. साथ ही इस क्षेत्र में विकासशील देशों को विकास और रक्षा सहयोग को बढ़ाने का ज्यादा विकल्प मुहैया कराने पर भी ज़ोर होगा. पिछले साल सिंगापुर में संगरी ला डायलॉग में किशिदा फुमियो ने पहली बार इंडो-पैसिफिक प्लान का जिक्र करते हुए कहा था कि वे 2023 के स्प्रिंग सीजन में इसे दुनिया के सामने रखेंगे. उस वक्त उन्होंने कहा था कि वे अगले स्प्रिंग तक शांति के लिए स्वतंत्र और मुक्त हिंद-प्रशांत योजना का खाका रखेंगे, जिससे इस क्षेत्र को फ्री एंड ओपन रखने में जापान के प्रयासों को मजबूती मिलेगी. इसके तहत गश्ती जहाजों को उपलब्ध कराने के साथ ही खुले समुद्र को लेकर अंतरराष्ट्रीय कानूनों के पालन पर ज़ोर होगा. इसके तहत साइबर सुरक्षा, डिजिटल और हरित पहल के साथ ही आर्थिक सुरक्षा पर भी फोकस किया जाएगा.
जापान दुनिया के उन चुनिंदा देशों में शामिल है, जिसके साथ भारत का संबंध बेहद सौहार्दपूर्ण रहा है. दोनों देशों को जब भी वैश्विक मु्ददों पर जरूरत पड़ी है, मजबूती से एक-दूसरे का हाथ थामे रहे हैं. किशिदो फुमियो और नरेंद्र मोदी के बीच वार्ता में नए इंडो-पैसिफिक प्लान पर भी चर्चा होने की उम्मीद है. किशिदो फुमियो चाहते हैं कि जापान के इस कोशिश में भारत का सहयोग और बढ़े. इस साल भारत-जापान के कूटनीतिक संबंध नई उंचाईयों पर पहुंचने को तैयार है. इस कड़ी में जापान के प्रधानमंत्री किशिदा फुमियो (Kishida Fumio) की भारत यात्रा बेहद महत्वपूर्ण साबित होने वाली है.
कुछ दिन पहले भारतीय विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया था कि भारत-जापान शिखर बैठक के दौरान दोनों ही देशों के प्रधानमंत्री के बीच आपसी हितों से जुड़े द्विपक्षीय और क्षेत्रीय मुद्दों पर विस्तार से चर्चा होगी. साथ ही दोनों ही देश जी7 और जी20 की अपनी अपनी अध्यक्षता से जुड़ी प्राथमिकताओं के बारे में भी चर्चा करेंगे.
दोनों संभाल रहे हैं महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारी
जापान के प्रधानमंत्री किशिदा फुमियो का भारत दौरा उस वक्त हो रहा है, जब दोनों ही देश बहुत बड़ी अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारी निभा रहे हैं. ये हम सबको पता है कि इस वक्त भारत दुनिया के सबसे ताकतवर आर्थिक समूह जी20 की अध्यक्षता कर रहा है, वहीं जापान दुनिया के सबसे विकसित देशों के समूह जी7 की अध्यक्षता कर रहा है. वर्तमान में भारत शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी निभा रहा है. वैश्विक नजरिए से दोनों देशों के लिए इन समूहों की अध्यक्षता बेहद महत्वपूर्ण है.
रूस-यूक्रेन युद्ध के नजरिए से महत्वपूर्ण
कूटनीतिक तौर से जापान के प्रधानमंत्री का भारत दौरा इस लिहाज से भी ख़ास है क्योंकि इस वक्त दुनिया पिछले एक साल से रूस-यूक्रेन युद्ध के प्रभावों से जूझ रही है. ये भी बड़ा पहलू है कि जापान G-7 के दूसरे सदस्यों के साथ मिलकर रूस पर आर्थिक प्रतिबंधों को बढ़ा रहा है, लेकिन भारत, रूस के खिलाफ इस तरह के किसी कार्रवाई से परहेज कर रहा है. दो मार्च को हुई जी20 विदेश मंत्रियों की बैठक में शामिल होने के लिए जापान के विदेश मंत्री योशिम्सा हायाशी भारत नहीं आए थे. ऐसे में ये भी कहा जा रहा था कि रूस को लेकर भारत के रवैये से जापान उतना खुश नहीं है. लेकिन उसके चंद दिनों बाद ही जापान के प्रधानमंत्री के भारत दौरे की घोषणा से उन अटकलों पर विराम लग गया था. भारत और जापान दोनों की ही पहचान शांतिप्रिय देश के तौर पर होती है. दोनों का नजरिया हमेशा से यही रहा है कि किसी भी विवाद का हल कूटनीति तरीके से शांतिपूर्ण वार्ता के जरिए ही होना चाहिए और रूस-यूक्रेन युद्ध के समाधान को लेकर दुनिया के बाकी मुल्क की निगाह भारत के साथ ही जापान पर भी टिकी है. ऐसे में किशिदा फुमियो और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच वार्ता से निकलने वाले नतीजों पर बाकी देशों की भी नज़र रहेगी.
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में संतुलन के लिहाज से अहम
भारत इस वक्त दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, तो जापान दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है कि दोनों ही देश हिंद-प्रशांत क्षेत्र के अहम स्तंभ हैं. चीन के इस क्षेत्र में वर्चस्व वाले रवैये के साथ विस्तारवादी नीतियों को आगे बढ़ाने की पुरजोर कोशिश में जुटा है. इस जियो पॉलिटिकल डायनेमिक्स के मद्देनज़र भारत-जापान की मजबूत साझेदारी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में संतुलन बनाए रखने के लिए न सिर्फ द्विपक्षीय, बल्कि अंतरराष्ट्रीय जरूरत बन गया है. भारत और जापान दोनों ही देश स्थिर और सुरक्षित हिंद-प्रशांत क्षेत्र के पैरोकार हैं और इसको कायम रखने के लिए अलग-अलग बहुपक्षीय मंचों पर भी साथ मिलकर काम कर रहे हैं. क्वाड के तहत भी भारत और जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग बढ़ा रहे हैं. जापान के प्रधानमंत्री किशिदा फुमियो का आगामी भारत दौरा इस लिहाज से भी ख़ास है. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति और समृद्धि के लिए भारत-जापान रिश्तों की अहमियत काफी बढ़ जाती है.
दोनों पक्षों में इस बात पर सहमति है कि राष्ट्रों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता पर आधारित स्वतंत्र, खुले, नियम-आधारित और समावेशी हिंद-प्रशांत के लिए एक मजबूत भारत-जापान संबंध बेहद महत्वपूर्ण है. भारत की इंडो-पैसिफिक ओशन इनिशिएटिव (IPOI)और जापान के फ्री एंड ओपन इंडो-पैसिफिक (FOIP) के बीच कई समानताएं हैं. एडीएमएम प्लस के माध्यम से, भारत और जापान आसियान और अन्य प्लस देशों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं ताकि समुद्री सुरक्षा, एचएडीआर, शांति अभियानों समेत सभी क्षेत्रों में सहयोग को मजबूत किया जा सके. ADMM-Plus आसियान और उसके आठ संवाद भागीदारों का एक मंच है.
समुद्री सहयोग बढ़ाने पर ख़ास जोर
हिंद-प्रंशात क्षेत्र में भारत और जापान की साझेदारी का एक और मजबूत पहलू है समुद्री सुरक्षा, जिसमें सहयोग बढ़ाने को लेकर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जापान के पीएम फुमियो के बीच बातचीत होगी. दोनों देशों की भौगौलिक स्थिति उनकी सुरक्षा, वाणिज्य और व्यापार को समुद्र क्षेत्र से जोड़ती है. दोनों ही देश की निर्भरता महासागरों पर बहुत ज्यादा है क्योंकि उनके व्यापार का 90% हिस्सा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में मौजूद अंतरराष्ट्रीय समुद्री लेन के जरिए किया जाता है.
बतौर पीएम पहली विदेश यात्रा पर भारत आए थे फुमियो
योशीहिदे सुगा के बाद किशिदा फुमियो अक्टूबर 2021 में जापान के प्रधानमंत्री बने थे. भारत के लिए जापान की कितनी अहमियत है, इसे इस बात से समझा जा सकता है कि बतौर प्रधानमंत्री किशिदा फुमियोने पहली विदेश यात्रा के लिए भारत को चुना था. वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ 14वें भारत-जापान वार्षिक शिखर बैठक में भाग लेने के लिए 19 मार्च से 20 मार्च 2022 के दौरान भारत आए थे.
भारत-जापान के बीच व्यापारिक संबंध
आर्थिक संबंध भारत-जापान के बीच विशेष सामरिक और वैश्विक साझेदारी का सबसे मजबूत स्तंभ है.पिछले कुछ साल में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार धीरे-धीरे बढ़ा है. 2013-14 में द्विपक्षीय व्यापार 16.31 अरब डॉलर रहा था. वहीं वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान द्विपक्षीय व्यापार 20.57 अरब डॉलर तक पहुंच गया. इसमें जापान से भारत को 14.39 अरब डॉलर का निर्यात किया गया, वहीं जापान ने भारत से 6.18 अरब डॉलर का आयात किया. भारत के कुल आयात में फिलहाल जापान का हिस्सा 2.35% है, वहीं भारत के कुल निर्यात में जापान को निर्यात होने वाला हिस्सा महज़ 1.46% है, ये आकड़े बताते हैं कि भविष्य में जदोनों देशों के बीच आपसी व्यापार बढ़ने की असीम संभावनाएं हैं.
निवेश के लिहाज से जापान है बेहद महत्वपूर्ण
जापान का भारत में निवेश भी तेजी से बढ़ रहा है. 2013 के मुकाबले जापान से भारत में प्रत्यक्ष निवेश 2021 में दोगुना हो चुका था. 2013 में जापान का भारत में प्रत्यक्ष निवेश 210 अरब येन था, जो 2021 में बढ़कर 410 अरब येन हो गया. पिछले कई दशकों से भारत विकास से जुड़ी परियोजनाओं के लिए जापान से कम ब्याज पर वित्तीय सहायता के तौर पर सबसे ज्यादा कर्ज पाने वाला देश रहा है. इस तरह के कर्ज के बेहतर इस्तेमाल का सबसे बढ़िया उदाहरण दिल्ली मेट्रो का विकास है. पिछले साल मार्च में पीएम किशिदा फुमियो के भारत दौरे पर दोनों के बीच जापानी सहायता से जुड़े सात येन लोन प्रोजेक्ट पर भी हस्तक्षार हुए थे. इसके तहत 7 प्रोजक्ट के लिए जापान भारत को 310 बिलियन येन से ज्यादा की आर्थिक मदद करेगा. जापान के पीएम ने उस वक्त भरोसा दिलाया था कि जापान सरकार आर्थिक सहयोग के जरिए भारत में बुनियादी ढांचे के निर्माण से जुड़ी विकास परियोजनाओं का समर्थन करना जारी रखेगा. उसी समय अगले पांच वर्षों में जापान की ओर से भारत में येन लोन सिस्टम के तहत 5 ट्रिलियन येन यानी 42 अरब डॉलर के सार्वजनिक और निजी निवेश की भी घोषणा की गई थी.
भारत-जापान के बीच रक्षा सहयोग
दोनों देशों की बीच रक्षा सहयोग तेजी से बढ़ रहा है. 2008 में दोनों देशों के बीच सुरक्षा सहयोग को लेकर साझा घोषणापत्र जारी किया गया था. सितंबर 2020 में दोनों देशों की सेनाओं के बीच आपूर्ति और सामरिक ठिकानों के इस्तेमाल को लेकर करार (Acquisition and Cross-Servicing Agreement) हुआ. ये करार 11 जुलाई 2021 से लागू हुआ. अब दोनों देशों ने तीनों सेनाओं और तटरक्षक बल के बीच स्टाफ वार्ता और उच्च स्तरीय वार्ता भी शुरू की है. पिछले ही साल दोनों देश जापानी सेल्फ डिफेंस फोर्सेज के ज्वाइंट स्टाफ और भारत के इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ के बीच स्टाफ वार्ता आयोजित करने पर भी पर सहमत हो गए थे. पिछले साल मार्च में दोनों देशों के बीच आपूर्ति और सेवा समझौते के पारस्परिक प्रावधानों की शुरुआत हुई थी. ये भारत-जापान सेनाओं के बीच रक्षा सहयोग की प्रगति में मील का पत्थर है. जापान के साथ रक्षा उपकरण और तकनीकी सहयोग बढ़ाना भारत की प्रमुख प्राथमिकताओं में से एक है.
भारत-जापान राजनयिक संबंध के 70 साल
भारत और जापान के बीच दोस्ती का एक लंबा इतिहास है. भारत एशिया में सबसे बड़ा लोकतंत्र है और जापान एशिया का सबसे खुशहाल देश है. दूसरे विश्व युद्ध के बाद भारत ने सैनफ्रांसिस्को सम्मेलन में हिस्सा नहीं लिया. लेकिन जापान की संप्रभुता के पूरी तरह बहाल होने के बाद 1952 में जापान के साथ अलग से शांति संधि की और 28 अप्रैल 1952 से दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध स्थापित हो गए. दूसरे विश्व युद्ध के बाद जापान ने दुनिया के किसी देश के साथ पहली शांति संधि भारत के साथ ही किया था. भारत-जापान राजनयिक संबंधों के 70 साल 2022 में पूरे हो चुके हैं.
भारत ने जापान को भेजा था लौह अयस्क
जब दूसरे विश्व युद्ध ने जापान को पूरी तरह से तबाह कर दिया था, उसके बाद भारत ने बड़े पैमाने पर जापान को लौह अयस्क (iron ore) भेजा था, जिससे जापान को तबाही से उबरने में काफी मदद मिली थी. 1957 में जापान के प्रधानमंत्री नोबुसुके किशी (Nobusuke Kishi) ने भारत की यात्रा की. उसके बाद जापान ने 1958 से भारत को येन ऋण (yen loans) देना शुरू किया. जापान की ओर से किसी विदेशी मुल्क को ये पहली येन ऋण सहायता थी. 1958 से शुरू हुआ ये सफ़र अभी भी जारी है. दोस्त के तौर पर जापान की विश्वसनीयता की परख 1991 में उस वक्त हुई, जब जापान उन कुछ देशों में शामिल था, जिन्होंने भारत को भुगतान संकट से बाहर निकालने में बढ़-चढ़कर मदद की थी. ये सारे तथ्य बताने के लिए काफी है कि दोनों देशों के कूटनीतिक संबंधों की जड़ें कितनी गहरी है.
2006 में बने वैश्विक और सामरिक साझेदार
जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री योशिरो मोरी (Yoshirō Mori) ने साल 2000 में भारत की यात्रा की और इस दौरान मोरी और तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों को वैश्विक साझेदारी में बदलने का फैसला किया. 2006 में तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह और तत्कालीन जापानी पीएम शिंजो आबे ने भारत-जापान वार्षिक शिखर बैठक करने का प्रावधान करते हुए द्विपक्षीय संबंधों को वैश्विक और सामरिक साझेदारी में बदलने का फैसला किया और यहीं से दोनों देश सामरिक और वैश्विक साझेदार बन गए. दोनों देशों के बीच 2011 में व्यापक आर्थिक भागीदारी करार (CEPA) हुआ. ये आर्थिक संबंधों के लिहाज से अहम पड़ाव था.
2014 में बने विशेष सामरिक और वैश्विक साझेदार
2014 में भारत-जापान की दोस्ती में अब तक का सर्वोच्च पड़ाव आया. उस साल 30 अगस्त से 3 सितंबर तक भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जापान के पीएम शिंजो आबे के साथ 9वीं वार्षिक शिखर बैठक के लिए जापान का दौरा किया. इस दौरान दोनों देशों ने अपनी दोस्ती को सामरिक और वैश्विक साझेदार से एक कदम आगे जाते हुए विशेष सामरिक और वैश्विक साझेदार ((Special Strategic and Global Partner) बनने का फैसला किया और इसके साथ ही भारत-जापान निवेश संवर्धन साझेदारी की शुरुआत हुई. इसके तहत अगले 5 साल में जापान ने भारत में करीब 35 मिलियन डॉलर निवेश करने की घोषणा की.
2015 में भारत-जापान विजन 2025 जारी
दिसंबर 2015 में जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने भारत की यात्रा की. इस दौरान दोनों प्रधानमंत्रियों ने जापान-भारत विशेष सामरिक और वैश्विक साझेदारी को एक गहरी, व्यापक-आधारित और कार्रवाई-उन्मुख साझेदारी में बदलने का संकल्प लिया. इसके तहत दीर्घकालिक राजनीतिक, आर्थिक और रणनीतिक लक्ष्यों को तय किया गया. दोनों नेताओं ने भारत-जापान विजन 2025 जारी किया. जिसमें ये तय किया गया कि दोनों देश विशेष रणनीतिक और वैश्विक साझेदारी के तहत हिंद-प्रशांत क्षेत्र और विश्व की शांति और समृद्धि के लिए मिलकर काम करेंगे. ये भारत-जापान संबंधों में नए युग की शुरुआत थी.
भारत और जापान एक शांतिपूर्ण, स्थिर और समृद्ध दुनिया के साझा दृष्टिकोण को अपनाते हैं. दोनों देशों के संबंध अब 'विशेष सामरिक और वैश्विक साझेदारी' का रूप ले चुका है. जापान उन चुनिंदा देशों में भी शामिल हैं, जिसके साथ भारत का 2+2 मंत्रीस्तरीय संवाद होता है. भारत और जापान ने हमेशा से माना है कि दोनों देशों के बीच की साझेदारी शांति, स्थिरता और समृद्धि के लिए है. कोविड के बाद की दुनिया में भारत-जापान सहयोग और भी महत्वपूर्ण हो गया है.
भारत-जापान के बीच डिजिटल भागीदारी
जापान बुनियादी ढांचे, प्रौद्योगिकी, नवोन्मेष, स्टार्ट-अप समेत कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में भारत के साथ भागीदारी कर रहा है. दोनों देशों के बीच डिजिटल बदलाव के लिए साझा परियोजनाओं को बढ़ावा में सहयोग भी लगातार बढ़ रहा है. डिजिटल अर्थव्यवस्था को बेहतर करने के मकसद से भारत-जापान के बीच डिजिटल भागीदारी को और मजबूत किया जा रहा है. इसके तहत दोनों देश आईओटी, एआई और दूसरी उभरती प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सहयोग बढ़ा ही रहे हैं. साथ ही 5जी और 6जी, ओपन आरएएन, दूरसंचार नेटवर्क सुरक्षा, समुद्री केबल प्रणाली और क्वांटम कम्युनिकेशन जैसे क्षेत्रों में सहयोग का विस्तार हो रहा है.
भारत-जापान के बीच सांस्कृतिक संबंध
भारत और जापान के बीच गहरे सांस्कृतिक संबंध रहे हैं. दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देने के लिए 1957 में समझौता हुआ था. 2017 में इसकी 60वीं वर्षगांठ भी मनाई गई और वर्ष 2017 को जापान-भारत मैत्रीपूर्ण आदान-प्रदान के वर्ष के तौर पर मनाया गया और दोनों देशों में कई कार्यक्रम का आयोजन किया गया. जापान ने भारत समेत दक्षिण पश्चिम एशिया के सात देशों के साथ कूटनीतिक संबंधों की 70वीं वर्षगांठ के तौर पर 2022 के साल को जापान-साउथ ईस्ट एशिया एक्सचेंज ईयर के तौर पर मनाया. इसका मकसद दक्षिण पश्चिम एशिया के देशों के साथ जापान के संबंधों को नई ऊंचाइयों पर ले जाना था. भारत में जापान के 8 हजार से ज्यादा लोग रहते हैं वहीं जापान में 40,000 से ज्यादा प्रवासी भारतीय हैं.
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