(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
मेक इन इंडिया 2.0 - अब भारत बनेगा कंप्यूटर विनिर्माण का वैश्विक हब
ज भी मात्र 30% लैपटॉप और टैबलेट ही भारत में ही असेंबल किए जाते हैं, शेष 70% मुख्य रूप से चीन से आयात किये जाते हैं. भारत में लैपटॉप और टैबलेट का बाजार आकार 2023 में 6 बिलियन डॉलर होने का अनुमान है
भारत को दुनिया का IT हब बोला जाता है, हमारे यहाँ दुनिया में सबसे ज्यादा संख्या में सॉफ्टवेयर प्रोफेशनल्स हैं, बड़ी बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनियां हैं. वहीं दूसरी ओर भारत दुनिया के सबसे बड़े कंप्यूटर मार्केट्स में से एक है. वैसे, क्या आपको पता है कि आज भी मात्र 30% लैपटॉप और टैबलेट ही भारत में ही असेंबल किए जाते हैं, शेष 70% मुख्य रूप से चीन से आयात किये जाते हैं. अगर हम आंकड़ों की बात करें, तो भारत में लैपटॉप और टैबलेट का बाजार आकार 2023 में 6 बिलियन डॉलर होने का अनुमान है, जो 7% की सीएजीआर पर 2028 तक बढ़कर 8.4 बिलियन डॉलर हो जाएगा. इस कारण भारत को हर वर्ष कई अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा का नुकसान होता है, वहीं हमारी निर्भरता चीन पर बनी रहती है. साथ ही लाखो संभावित नौकरियों और हाई टेक प्रोफेशनल्स का अभाव भी रहता है.
यह बाजार नहीं है संतुलित
अब मोदी सरकार ने इस स्थिति को बदलने के लिए कमर कस ली है. पिछले दिनों वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय की अधिसूचना आयी, जिसमें लैपटॉप, टैबलेट, ऑल-इन-वन पर्सनल कंप्यूटर और अल्ट्रा-स्मॉल फॉर्म फैक्टर कंप्यूटर के आयात पर प्रतिबंध लगाया गया है. यूं तो इस अधिसूचना के बाद मार्किट में बड़े स्तर पर हलचल हुई, थोड़ी नकारात्मकता भी फैलाई गयी, लेकिन इस निर्णय के पीछे एक ही उद्देश्य है, भारत को आईटी हार्डवेयर विनिर्माण का वैश्विक केंद्र बनाना. दरअसल, यह कोई एकदम से लिया गया निर्णय नहीं था. यह प्रतिबंध लगाने से कुछ महीने पहले, भारतीय सरकार ने आईटी हार्डवेयर विनिर्माण के लिए 17,000 Crore की उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन योजना 2.0 (पीएलआई 2.0) प्रस्तुत की थी. वर्तमान में, एचपी, डेल, एसर और लेनोवो जैसे बड़े ब्रांड भारत में सीमित स्तर पर लैपटॉप और कंप्यूटिंग डिवाइस का निर्माण कर रहे हैं. हालाँकि, देश की खपत का बमुश्किल 30% भारत में असेंबल किया जाता है.
सरकार द्वारा यह निर्णय लेने के पश्चात उन्होंने कुछ महीनों की मोहलत भी दी, ताकि ये कंपनियां इस स्कीम के अंतर्गत आवेदन दे सकें. अब यह सामने आया है कि लगभग 44 हार्डवेयर निर्माताओं ने उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन योजना के तहत भारत में विनिर्माण के लिए आवेदन कर दिया है. इन हार्डवेयर निर्माताओं में एप्पल को छोड़ कर दुनिया की लगभग सभी बड़ी कंप्यूटर मैन्युफैक्चरिंग कंपनियां शामिल हैं, जिन्होंने भारत में अपना निर्माण बेस स्थापित करने के लिए पंजीकरण कराया है. इनमें से कुछ कम्पनिया भारत में पूरी तरह से निर्माण शुरू कर चुकी हैं, कुछ अगले वर्ष तक पूरी क्षमता से भारत में निर्माण करने लगेंगी, और कुछ 2025 तक अपने प्लांट्स यहाँ लगा लेंगी.
क्या है उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन योजना 2.0?
इस योजना में सरकार ने कंप्यूटर हार्डवेयर निर्माण करने के लिए कंपनियों को १७,००० करोड़ की प्रोत्साहन राशि का आवंटन किया है. प्रत्येक कंप्यूटिंग घटक (जैसे मदरबोर्ड, प्रोसेसर, हार्ड डिस्क, मेमोरी आदि) के स्थानीयकरण के लिए अतिरिक्त प्रोत्साहन भी दिया जाएगा, जिसका अर्थ है कि प्रत्येक घटक स्थानीयकरण के लिए, आधार प्रतिशत में एक निश्चित प्रतिशत जोड़ा जाएगा, और कंपनियों को यह रकम दी जायेगी. इसके अतिरिक्त कई तरह की टैक्स छूट भी दी जाएंगी. इसके अतिरिक्त, भारत सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि सभी एक्सपेंसेज का पूरी तरह से एक खंड बनाकर उपयोग किया जाए, जहां अच्छा प्रदर्शन करने वालों को रेटिंग प्रणाली के आधार जांचा जाएगा और उन्हें अतिरिक्त प्रोत्साहन भी दिया जाएगा.
भारत को यह निर्णय लेने से क्या फायदे होंगे?
कुछ लोगों को लग सकता है कि यह जल्दबाजी में उठाया हुआ कदम है, लेकिन ऐसा है नहीं. इस कदम को उठाने के कई कारण हैं. सबसे पहले तो यह कदम 2025-26 तक घरेलू इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण में आत्मनिर्भरता हासिल करने के सरकार के लक्ष्य का एक हिस्सा है. इससे देश को चीन से आयात कम करने में मदद मिलेगी (2022-23 में चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 83.1 बिलियन डॉलर था), इसके अतिरिक्त यह कदम व्यापार को प्रभावित करने वाले अन्य भू-राजनीतिक दबावों को दूर करेगा, और देश की हार्डवेयर आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करेगा. इस कदम से हर वर्ष कई हजार करोड़ रुपए की विदेशी मुद्रा का बचाव होगा, जो अभी चीन के पास चली जाती है . वहीं लाखों की संख्या में भारत में नौकरियां भी पैदा होंगी. जिसके कारण भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण होगा और साथ ही देश में अनुसंधान और विकास को बढ़ावा भी मिलेगा. इसके अतिरिक्त एक और बड़ा महत्वपूर्ण कारण है सुरक्षा चिंताओं का निवारण करना . चीन से आयातित इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स अविश्वसनीय होते हैं, और उनसे लगातार देश की सुरक्षा को खतरा रहता है. ऐसे में अगर इन उत्पादों को भारत में ही बनाया जाएगा, तो इस प्रकार की सुरक्षा समस्यायों का समाधान हो जाएगा और हमारे डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर की विश्वसनीयता बनी रहेगी. देश में आईटी हार्डवेयर सहित इलेक्ट्रॉनिक्स की बढ़ती मांग को देखते हुए, भारत में न केवल घरेलू खपत बल्कि निर्यात के लिए लैपटॉप और टैबलेट के विनिर्माण के लिए पसंदीदा स्थान के रूप में उभरने की महत्वपूर्ण क्षमता है, और मोदी सरकार के इस कदम के पश्चात भारत निश्चित रूप से कंप्यूटर विनिर्माण के वैश्विक हब के रूप में उभरेगा.