"मेक इन इंडिया" ने जीता रूसी राष्ट्रपति पुतिन का भी दिल, 83 बिलियन डॉलर के FDI से बदल रही भारत की तकदीर
पहली बार रेलवे, बीमा, रक्षा और मेडिकल उपकरणों को एफडीआई यानी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए खोल दिया गया. उसी तरह रक्षा क्षेत्र में 2020 में FDI की सीमा को बढ़ाकर 49% से 74% कर दिया गया.
भारत के "मेक इन इंडिया" कार्यक्रम को रूसी राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन के तौर पर एक नया प्रशंसक मिला है. शुक्रवार 30 जून को मॉस्को में उन्होंने एक कार्यक्रम में बोलते हुए मेक इन इंडिया की सराहना की और कहा कि इसने भारतीय अर्थव्यवस्था पर बहुत ही सकारात्मक प्रभाव डाला है. उन्होंने कहा कि भारत में हमारे गहरे दोस्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ साल पहले "मेक इन इंडिया" लांच किया था. इसका सचमुच ही बहुत प्रभावशाली प्रभाव भारतीय इकोनॉमी पर पड़ा था. जो चीज अच्छा कर रही है, उसको अपनाने में कोई बुराई नहीं है, भले ही उसे हमने नहीं, हमारे दोस्तों ने बनाया हो. पुतिन दरअसल रूसी कंपनियों को प्रोत्साहित करने की जरूरत पर बोल रहे थे और उसी दौरान उन्होंने इसका उदाहरण दिया. भारत की बड़ाई करते हुए पुतिन ने कहा कि स्थानीय निर्माण को बढ़ावा देने के साथ ही विदेशी निवेशकों को भी आकर्षित करने में भारत सफल रहा है.
एक सफल शुरुआत का 9वां साल
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सितंबर 2014 में घरेलू निर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने और देश में विनिवेश की मात्रा बढ़ाने के लिए 'मेक इन इंडिया' कार्यक्रम को लांच किया था. सरकार अर्थव्यवस्था की विकास दर बढ़ाना चाहती थी और विनिर्माण क्षेत्र के पिछड़ेपन को हटाना भी चाह रही थी. बाहर से मल्टीनेशनल कंपनियों और व्यापारियों को देश में निवेश के लिए आकर्षित करना भी एक लक्ष्य था, दूसरे देशों से लोग यहां आकर निर्माण करें, यह भी टारगेट था और इसके लिए देश के 'ईज ऑफ डूइंग बिजनेस' को ईजी यानी आसान बनाना था. इसका दीर्घकालीन लक्ष्य कहें तो भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब या विनिर्माण क्षेत्र में बदलना था, ताकि देश में रोजगार के मौके बढ़ें. फिर, चिर प्रतिद्वंद्वी चीन को भी पछाड़ना तो है ही.
इसके अलावा इस कार्यक्रम का उद्देश्य भारत को निवेश गंतव्य में बदलने के साथ ही दुनिया भर के निवेशकों और भागीदारों यानी स्टेकहोल्डर्स को भारत की विकास गाथा में हिस्सा लेने, यहां बसने के लिए एक खुला निमंत्रण भी है. चीन से आगे निकलने के लिए सरकार भारत में पहले से मौजूद औद्योगिक आधार का विकास तो कर ही रही है, साथ ही विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए सभी प्रयास कर रही है. भारत सरकार निर्यात आधारित विकास को बढ़ावा देना चाहती है और देश की जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र की हिस्सेदारी को बढ़ाकर एक चौथाई तक ले जाना चाहती है. इसके लिए 25 खास सेवाओं और क्षेत्रों पर ध्यान दिया जा रहा है. इनमें मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस इंडस्ट्री के स्ट्रेटेजिक एरिया शामिल हैं.
कार्य जो 'मेक इन इंडिया' ने किए
पहली बार रेलवे, बीमा, रक्षा और मेडिकल उपकरणों को एफडीआई यानी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (फॉरेन डायरेक्ट इनवेस्टमेंट) के लिए खोल दिया गया. उसी तरह रक्षा क्षेत्र में 2020 में एफडीआई की सीमा को बढ़ाकर 49 फीसदी से 74 फीसदी कर दिया गया. कुछ खास रेल परियोजनाओं और निर्माण में 100 फीसदी तक एफडीआई की मंजूरी दी गयी. इसके अलावा निवेशकों की सुविधा के लिए एक सेल भी बनाया गया, जो बाहर से आनेवाले निवेशकों की सुविधा के लिए उनके भारत आने से लेकर जाने के समय तक उनका ख्याल रखते हैं. इसे 2014 में ही बनाया गया, ताकि निवेश से पहले, दौरान और बाद में भी सारे चरण सफलतापूर्वक पूरे हों. इसके साथ ही 2021 के सितंबर में एनएसडब्ल्यूएस यानी राष्ट्रीय एकल खिड़की प्रणाली खोली गयी, ताकि निवेशकों को अनुमोदन और मंजूरी के लिए एक ही प्लेटफॉर्म पर जाना पडे और आसानी हो. मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी हेतु प्रधानमंत्री गतिशक्ति कार्यक्रम भी शुरू किया गया, ताकि ढुलाई में दिक्कत न हो. एक जिला, एक उत्पाद प्रोजेक्ट के जरिए स्वदेशी उत्पादों के प्रचार और प्रसार की सुविधा दी गयी.
खिलौना निर्यात में सुधार किया गया, आयात को बढ़ाया गया. आयात को रोकने के लिए सीमा शुल्क तिगुना कर दिया गया, यानी 20 फीसदी से बढ़ाकर 60 फीसदी कर दिया गया और घरेलू निर्माताओं को सुविधा दी गयी. सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम बनाने हेतु सरकार ने 10 बिलियन डॉलर की प्रोत्साहन योजना शुरू की. हाल ही में पीएम मोदी जब अमेरिका के स्टेट विजिट पर गए थे, तो वहां भी इससे संबंधित बहुत सारे समझौते हुए. माइक्रोन अब गुजरात में ही चिप बनाएगा और अगले साल से ये शुरू भी हो जाएगा. ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की रैंकिंग में भारत लगातार ऊपर बढ़ रहा है और दक्षिण एशिया में यह नंबर एक पर है. 2023 के बजट में भी मेक इन इंडिया को और सुविधाजनक बनाने के लिहाज से काम किया गया है. पब्लिक-प्राइवेट मोड के तहत लगातार काम का नतीजा है कि अभी कुछ ही दिनों पहले हमने चीन को सड़क निर्माण के मामले में पीछे छोड़ दिया है.
'मेक इन इंडिया' के फायदे
इस कार्यक्रम के लागू होने के समय यानी 2014-15 में एफडीआई 45.15 बिलियन अमेरिकी था और लगातार 8 वर्षों तक यह रिकॉर्ड दर से बढ़ता रहा. मौजूदा वित्त वर्ष के अंत तक इसके दोगुने से भी अधिक हो जाने की उम्मीद है. इसमें आर्थिक सुधारों और ईज ऑफ डूइंग बिजनेस का हाथ है. वित्त वर्ष 2022 में ही खिलौनों का आयात घटकर 70 फीसदी रह गया था. वहीं भारतीय खिलौनों के निर्यात में लगभग 636 फीसदी वृद्धि भी दर्ज की गयी है. 14 मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्रों में प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेटिव यानी पीएलाई योजना अब लागू है.
वैसे, मेक इन इंडिया से संबंधित कुछ मसले भी हैं, जिसमें लालफीताशाही, नौकरशाही और भ्रष्टाचार सबसे बड़ी वजहें हैं. इसीलिए विश्व बैंक के लॉजिस्टिक्स परफॉर्मेंस इंडेक्स में हम अभी भी बहुत पीछे हैं. बुनियादी ढांचे में हम चीन के लगभग बराबर होनेवाले हैं, लेकिन तब भी हम इकोनॉमी में बहुत पीछे हैं, क्योंकि हमारे यहां बिजली की कटौती काफी है, परिवहन में हमारी औसत गति अब तक 60 किलोमीटर ही है, जबकि चीन में यह 100 किमी हो चुका है. हमारी उत्पादकता कम है और हमारे श्रमिक कुशल नहीं हैं. इसके अलावा हमारी एफडीआई पर भी शंका है. यह अधिकांशतः मॉरीशस की शेल कंपनियों का है, जिससे लगता है कि ये काले धन को बस सफेद किया जा रहा है.
अब हमारी आगे की राह यही है कि जो भी मेक इन इंडिया हो, वह विश्वस्तरीय हो. यह जिन सुधारों के माध्यम से संभव हुआ है, उसे और तीव्र किया जाए और सेंमीकंडक्टर हब के लिए इकोसिस्टम बनाने के प्रयास और तेज हों.