National Green Hydrogen Mission: भारत 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने का लक्ष्य लेकर हर क्षेत्र से जुड़ी नीतियों को अमलीजामा पहनाने में जुटा है. ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने का लक्ष्य भी इसी का हिस्सा है और इसी के जरिए 2070 तक नेट जीरो का भी टारगेट हासिल करना है.


ऊर्जा के क्षेत्र में 2047 तक भारत को आत्मनिर्भर बनाने में राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन की बड़ी भूमिका होने वाली है. इस मिशन के तहत भारत तेजी से कदम बढ़ा रहा है. राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के तहत देश के सभी प्रमुख बंदरगाहों पर 2035 तक हरित हाइड्रोजन/ अमोनिया बंकर और ईंधन भरने की सुविधा होगी. इन बंदरगाहों पर मिशन के तहत रिफ्यूलिंग की सुविधा स्थापित की जा रही है.


मुंबई में 29 अप्रैल को इंडिया कॉलिंग कॉन्फ्रेंस 2023' में पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने ये जानकारी दी. उन्होंने बताया कि दीनदयाल, पारादीप और वी ओ चिदंबरनार बंदरगाहों पर हाइड्रोजन बंकरिंग की स्थापना के लिए बुनियादी ढांचा विकसित किया जा रहा है. राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के तहत ये एक बड़ा लक्ष्य है.


2035 तक सभी प्रमुख बंदरगाहों पर रिफ्यूलिंग


इससे पहले सरकार की ओर से मार्च में जानकारी दी गई थी कि कांडला और तूतीकोरिन बंदरगाह ग्रीन शिपिंग के लिए भारत का पहले ग्रीन हरित हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया ईंधन भरने वाले केंद्र होंगे. पश्चिमी तट पर एक बंदरगाह और पूर्वी तट पर दूसरे बंदरगाह को रिफ्यूलिंग पोर्ट के लिए चुना गया. इनमें पश्चिमी तट पर गुजरात के कच्छ जिले में स्थित कांडला पोर्ट है, वहीं पूर्वी तट पर तमिलनाडु के तूतूकुड़ी जिले में तूतीकोरिन बंदरगाह है. सरकार अब राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के तहत अगले 12 साल में देश के सभी प्रमुख बंदरगाहों पर ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया ईंधन भरने वाले केंद्र को स्थापित करने का लक्ष्य लेकर आगे बढ़ रही है.


केंद्र सरकार ने नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के अधीन 4 जनवरी 2023 को राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन को मंजूरी दी थी. सरकार की ओर से 13 जनवरी को इस महत्वाकांक्षी मिशन का ब्लूप्रिंट जारी किया गया. हाइड्रोजन को भविष्य का ऊर्जा माना है और भारत चाहता है कि वो ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन, उपयोग और निर्यात के लिए वैश्विक केंद्र बने. इसी मकसद से राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन की शुरुआत की गई है. मिशन के लिए प्रारंभिक व्यय 19,744 करोड़ रुपये रखा गया था.


ग्रीन हाइड्रोजन का प्रमुख निर्यातक बनना लक्ष्य


भारत दुनिया में ग्रीन हाइड्रोजन का एक प्रमुख निर्यातक बनने का लक्ष्य लेकर आगे बना रहा है. उम्मीद की जा रही है कि 2030 तक ग्रीन हाइड्रोजन का वैश्विक बाजार 100 मिलियन मीट्रिक टन (MMT) तक पहुंच जाएगा और भारत इस बाजार के 10% हिस्से पर अपना कब्जा चाहता है. इस लिहाज राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के तहत कदम उठाए जा रहे हैं.  केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आर.के. सिंह ने मार्च महीने की आखिर में ये जानकारी दी थी कि भारत के पास  छह मिलियन टन ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन करने के लिए अलग-अलग उद्योगों की की ओर ठोस योजनाएं पहले से ही हैं, जिससे करीब 36 मिलियन टन ग्रीन अमोनिया उत्पादन होगा.


निर्यात ऑर्डर को हासिल करने की कोशिश


भारत में जो भी उद्योग इस क्षेत्र में हैं, वे अब ग्रीन हाइड्रोजन के लिए निर्यात ऑर्डर को हासिल करने की कोशिश में जुटे हैं. भारत ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया को लेकर दुनिया का पावरहाउस बनना चाहता है. भारत के पास एक ऐसा पहलू है, जिससे इस क्षेत्र में हमारी संभावनाएं काफी बढ़ जाती है. भारत में नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता की लागत दुनिया में सबसे कम लागत में से एक है और ये दूसरे देशों की तुलना में भारत को लाभ की स्थिति में खड़ा कर देता है. भारत में 6 लाख डॉलर में एक मेगावाट सौर ऊर्जा निर्माण क्षमता स्थापित किया जा सकता है और ये दुनिया में सबसे कम कीमत है. यहीं वजह है कि भारत को भरोसा है कि उसका ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया दुनिया में सबसे सस्ता होगा.


राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के तहत 2030 तक प्रति वर्ष कम से कम 5 मिलियन मीट्रिक टन (MMT) ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन क्षमता स्थापित करना है. लेकिन जिस तरीके से इस तेजी से इस दिशा में काम हो रहा है, उससे अब सरकार को उम्मीद जगी है कि 2030 तक प्रति वर्ष 7 से 10 MMT क्षमता हासिल की जा सकती है.


राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन का फायदा


राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन भारत को दुनिया में ग्रीन हाइड्रोजन का अग्रणी उत्पादक और आपूर्तिकर्ता बना देगा. ग्रीन हाइड्रोजन के क्षेत्र में भारत दुनिया का एक बड़ा निर्यातक बनेगा. इससे देश के उद्योगों के लिए आकर्षक निवेश और व्यापार के अवसर बनेंगे. ये मिशन भारत के डीकार्बोनाइजेशन और ऊर्जा में आत्मनिर्भरता के प्रयासों में महत्वपूर्ण योगदान देगा. इतना ही नहीं रोजगार और आर्थिक विकास के अवसर पैदा होंगे. देश में ग्रीन हाइड्रोजन इको सिस्‍टम के विकास को गति देने के लिहाज से भी इस मिशन का महत्व है. 2030 तक उत्पादन क्षमता के लिए जो लक्ष्य रखा गया है, उससे कुल 8 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का निवेश आने की उम्मीद है. अनुमान लगाया गया है कि इसकी वजह से 6 लाख से ज्यादा नौकरियों का सृजन होगा. राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन अनुसंधान और विकास परियोजनाओं में भी सहयोग करेगा. इस मिशन से कुल मिलाकर एक लाख करोड़ रुपये से अधिक मूल्य के जीवाश्म ईंधन के आयात में कमी होगी. वहीं वार्षिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में लगभग 50 एमएमटी की कमी होगी. भारत 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन (नवीकरणीय ऊर्जा + परमाणु) स्रोतों से 500 गीगावाट ऊर्जा क्षमता विकसित करना चाहता है और इस लक्ष्य को हासिल करने में राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन मील का पत्थर साबित होगा.


भारत में ग्रीन हाइड्रोजन से जुड़ी चुनौतियां


ये भी सच्चाई है कि अगर भारत ग्रीन हाइड्रोजन के क्षेत्र में दुनिया का प्रमुख उत्पादक और निर्यातक बनना चाहता है, तो उसे इस दिशा में और तेजी से काम करना पड़ेगा. भारत कतई नहीं चाहेगा कि वो ग्रीन हाइड्रोजन की वैश्विक दौड़ में पीछे रह जाए.  2022 की शुरुआत में भारत ने इसी मकसद से सबसे पहले ग्रीन हाइड्रोजन पॉलिसी की घोषणा की थी. उस नीति में सबसे पहले 2030 तक 5 मिलियन मीट्रिक टन प्रतिवर्ष  ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन का लक्ष्य रखा गया था. ये देश में मौजूदा हाइड्रोजन मांग से 80% ज्यादा है. ग्रीन हाइड्रोजन पॉलिसी की घोषणा भविष्य के नजरिए से भारत के एनर्जी सेक्टर के लिए एक महत्वपूर्ण पड़ाव है.  उस वक्त भारत व्यापक ग्रीन हाइड्रोजन नीति जारी करने वाला दुनिया का 18वां देश बन गया था.


उत्पादन लागत को कम करने की चुनौती


ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन पारंपरिक हाइड्रोजन (ग्रे, ब्लू) उत्पादन से ज्यादा महंगा है. भारत का फोकस ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन लागत को दुनिया के बाकी देशों की तुलना में बहुत कम करने पर है. इस दिशा में यहां के निजी क्षेत्र भी जुटे हैं. भारत चाहता है कि इस दशक के अंत तक ग्रीन हाइड्रोजन की उत्पादन लागत को एक डॉलर/किलोग्राम से कम किया जाए. इसके लिए सरकारी कंपनी एनटीपीसी से लेकर निजी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड अपने-अपने स्तर से जुटे हैं. फिलहाल ग्रीन हाइड्रोजन, वैश्विक हाइड्रोजन उत्पादन का 1% से भी कम उत्पादन होने के कारण बहुत महंगा है. एक किलोग्राम ग्रे हाइड्रोजन का उत्पादन करने पर 1.7 से 2.3 डॉलर और ब्लू हाइड्रोजन पर 1.3-3.6 डॉलर प्रति किलोग्राम तक खर्च आता है. काउंसिल फॉर एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर के मुताबिक ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन पर 3.5 से 5.5 डॉलर प्रति किलोग्राम खर्च आता है. भारत इसी खर्च को चरणबद्ध तरीके से पहले दो डॉलर और फिर एक डॉलर से नीचे लाना चाहता है.


दूसरे देशों और उनकी कंपनियों से करार


भारत दूसरे देशों के साथ भी ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए करार कर रहा है. पिछले साल जुलाई में भारत और मिस्र ने ग्रीन हाइड्रोजन प्लांट बनाने के लिए 8 बिलियन डॉलर के निवेश से जुड़े समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे. ये प्लांट स्वेज नहर इकोनॉमिक जोन में बनाया जाना है, जिसमें सालाना 20 हजार टन ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन होना है. बाद में धीरे-धीरे बढ़ाकर इस क्षमता का सालाना 220,000 टन तक करना है. फ्रांस की कंपनी टोटल एनर्जीज ने भी भारत की प्राइवेट कंपनी अडानी ग्रुप के साथ साझेदारी का ऐलान किया था. जिसके तहत फ्रांस की कंपनी ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन के लिए अगले 10 साल में 50 बिलियन डॉलर का निवेश करेगी.


राज्य सरकारों से कंपनियों का करार


अलग-अलग कंपनियां राज्यों के साथ भी करार कर रही हैं. ऐसा ही एक करार नवीकरणीय ऊर्जा डेवलर  ACME ग्रुप ने कर्नाटक सरकार के साथ पिछले साल जून में किया था. इससे तहत बनने वाले उत्पादन केंद्र के जरिए कर्नाटक में 2027 तक 1.2 मिलियन मीट्रिक टन प्रति वर्ष ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन होना है. इसी तरह से पिछले साल अक्टूबर में जैक्सन ग्रीन कंपनी ने राजस्थान सरकार के साथ ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया परियोजना स्थापित करने के लिए 22,400 करोड़ रुपये के निवेश से जुड़े समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे. इसके तहत जैक्सन ग्रीन 2023 से 2028 के बीच चरणबद्ध तरीके से 3,65,000 टन प्रति वर्ष उत्पादन क्षमता वाला ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया संयंत्र स्थापित करेगी.


सरकार से लेकर निजी भागीदारी पर काम


इस तरह से दिख रहा है कि ग्रीन हाइड्रोजन नीति की घोषणा के बाद पिछले एक साल से ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन क्षमता को स्थापित करने के लिए सरकार से लेकर निजी भागीदारी के जरिए अलग-अलग स्तर पर कई तरह के काम किए जा रहे हैं. हालांकि समझौता ज्ञापन के जरिए सहमति तो बन रही है, लेकिन उन करार को वास्तविक धरातल पर उतारने में और तेजी दिखानी होगी, तभी ग्रीन हाइड्रोजन को लेकर जो लक्ष्य भारत ने निर्धारित किया है, उसे 2030 तक हासिल किया जा सकता है.


घरेलू बाजार बनाने और मांग बढ़ाने पर काम


राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन 2030 तक ग्रीन हाइड्रोजन के जरिए  घरेलू हाइड्रोजन आवश्यकता का 25% हासिल करने के विजन को दिशा दे रहा है.  ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन और उपयोग में वैश्विक अगुवाई के लिए, भारत को सबसे पहले ग्रीन हाइड्रोजन के लिए एक घरेलू बाजार स्थापित करने की  जरूरत है. उर्वरक बनाने, अमोनिया या पेट्रोलियम रिफाइनिंग में हाइड्रोजन के लिए देश का वर्तमान उपयोग करीब 6 मिलियन मीट्रिक टन है. अभी इनमें ग्रे हाइड्रोजन का इस्तेमाल होता है. इसे ग्रे हाइड्रोजन के साथ 5% या 10% ग्रीन हाइड्रोजन मिलाकर धीरे-धीरे देश में ग्रीन हाइड्रोजन की मजबूत मांग पैदा की जा सकती है. राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के तहत घरेलू बाजार बनाने की दिशा में ये पहला कदम है, जिसे उठाने पर ध्यान देने की जरूरत है. फिर धीरे-धीरे ग्रीन हाइड्रोजन की मात्रा को  उर्वरक बनाने, अमोनिया या पेट्रोलियम रिफाइनिंग में बढ़ाया जाना चाहिए.


चरणबद्ध तरीके से इस्तेमाल बढ़ाने पर ज़ोर


भारत के ग्रीन हाइड्रोजन नीति का टारगेट है कि तेल रिफाइनरियों को ईंधन के उपयोग को धीरे-धीरे  ग्रीन हाइड्रोजन के साथ बदलना है. सबसे पहले तेल रिफाइनरियों को 2025 तक 3% ईंधन के उपयोग को ग्रीन हाइड्रोजन के साथ बदलना होगा और 2035 तक इस आंकड़े को 30% तक ले जाना होगा. उसी तरह उर्वरक उत्पादन में 2035 तक 70% ग्रीन हाइड्रोजन शामिल होना चाहिए, जो 2025 में 15% से शुरू होगा. शहरी गैस वितरण नेटवर्क को 2035 तक अपने ईंधन की मात्रा का 15 प्रतिशत ग्रीन हाइड्रोजन से बदलना होगा, जो 2025 में 5% से शुरू होगा.


प्राकृतिक गैस की खपत होगी कम


राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के तहत जो सालाना 5 मिलियन मीट्रिक टन की प्रस्तावित उत्पादन क्षमता रखी गई है, उससे आने वाले वक्त में तरलीकृत प्राकृतिक गैस से मिलने वाली ऊर्जा का 30 प्रतिशत रिप्लेस किया जा सकता है. भारत में 2021-22 में 63.91 बिलियन क्यूबिक मीटर प्राकृतिक गैस की खपत हुई है. कैलोरी मान के नजरिए से देखें तो हाइड्रोजन में प्राकृतिक गैस की तुलना में प्रति टन लगभग 2.5 गुना अधिक ऊर्जा होती है, जिसका मतलब है कि 5 मिलियन टन हाइड्रोजन करीब 18 बिलियन क्यूबिक मीटर प्राकृतिक गैस की जगह ले सकता है. इस तरह से देखने पर 2030 से लेकर 2035 तक भारत में ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिहाज से ग्रीन हाइड्रोजन में अपार संभावनाएं हैं.


ग्रीन हाइड्रोजन है भविष्य का ईंधन


दरअसल ग्रीन हाइड्रोजन को ऊर्जा के परंपरागत स्रोत यानी जीवाश्म ईंधन की जगह भविष्य के ईंधन के तौर पर देखा जा रहा है. ग्रीन हाइड्रोजन पर्यावरण के नजरिए से भी स्वच्छ ऊर्जा है. भारत पहले से ही 2070 तक शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन हासिक करने के लिए प्रतिबद्ध है और ग्रीन हाइड्रोजन की उत्पादन क्षमताओं के विकास से ही ये संभव है. कच्चे तेल और कोयले पर निर्भरता खत्म करने के लिए आने वाले वक्त में ग्रीन हाइड्रोजन ट्रांजिशन के तौर पर विघटनकारी तत्व के रूप में अहम योगदान देने वाला है. ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन इलेक्ट्रोलिसिस की प्रक्रिया से किया जाता है, जिसमें पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में अलग करने के लिए अक्षय ऊर्जा स्रोतों जैसे सौर और पवन ऊर्जा का उपयोग करना शामिल है. वैकल्पिक रूप से माइक्रोबियल प्रक्रियाओं या गैसीकरण के जरिए भी बायोवेस्ट का उपयोग करके ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन भी किया जा सकता है. 


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