TTP को लेकर पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच तनाव भारत के लिए क्यों हो सकता है 'खतरनाक'
Neighbourhood Watch: नई दिल्ली का मानना है कि टीटीपी या पाकिस्तानी तालिबान को लेकर इस्लामाबाद और काबुल के बीच बढ़ती कटुता एक बार फिर इस क्षेत्र में 'आतंकवाद के केंद्र' को जन्म देगी.
भारत का मानना है कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) या पाकिस्तानी तालिबान पर पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच बढ़ता तनाव नई दिल्ली के लिए खतरनाक साबित हो सकता है. पाकिस्तान और अफगानिस्तान की जर्जर हो चुकी अर्थव्यवस्था से इसकी संभावना और बढ़ जाती है. शीर्ष स्तर के अधिकारियों ने एबीपी लाइव को बताया है कि इससे ये क्षेत्र फिर से आतंकवाद का केंद्र (hotbeds of terrorism) बन सकता है.
तालिबान ने अगस्त 2001 में काबुल पर कब्जा कर लिया था. उस वक्त से ही TTP को लेकर इस्लामाबाद और काबुल के बीच बढ़ते तनाव भारत की नज़र है. भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा तंत्र में शामिल एक अधिकारी ने एबीपी लाइव को बताया है कि नई दिल्ली का हमेशा से ये विचार रहा है कि अगर इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया गया, तो आतंकी संगठन खुद को फिर से मजबूत बना लेंगे.
सूत्र का ये भी कहना है कि इसी वजह से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का एक महीने के लिए अध्यक्ष बनने पर काबुल के तालिबान के कब्जे में आने के कुछ दिनों के भीतर ही भारत को अफगानिस्तान पर UNSC संकल्प 2593 (2021) को अपनाने के लिए दबाव बनाना पड़ा.
पाकिस्तान के पूर्व प्रधान मंत्री इमरान खान ने मंगलवार को कहा है कि अगर पाकिस्तान और अफगानिस्तान एक सहयोगी द्विपक्षीय संबंध नहीं बनाए रखते हैं, तो यह इस्लामाबाद के आतंकवाद विरोधी प्रयासों को विफल साबित कर देगा. उनका कहना है कि इसका नतीजा विनाशकारी युद्ध के तौर पर भी सामने आ सकता है. इमरान खान ने टीटीपी की धमकियों पर पाकिस्तान और अंतरिम तालिबान सरकार के बीच तनाव बढ़ने का कारण मौजूदा प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के गैर जिम्मेदार रवैये को बताया है. इमरान खान का मानना है कि पाकिस्तान सरकार को तालिबान सरकार के साथ बातचीत करनी चाहिए.
इस महीने की शुरुआत में, जब पाकिस्तान ने अफगानिस्तान सीमा के भीतर टीटीपी के ठिकानों पर हमला करने की धमकी दी, तो उसके बाद पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच तनाव बढ़ गया. शहबाज शरीफ ने दोनों देशों के बीच के तनाव को छिपाने की भी कोशिश की.
पाकिस्तान के गृह मंत्री राणा सनाउल्लाह ने एक टेलीविजन साक्षात्कार में कहा था "अफगानिस्तान हमारा भाईचारा वाला पड़ोसी है. हम सबसे पहले टीटीपी के ठिकानों को खत्म करने और उसके सदस्यों को पाकिस्तान को सौंपने के लिए अफगानिस्तान से बात करेंगे."
लेकिन तब तक बहुत नुकसान हो चुका था. सनाउल्लाह को अपनी स्थिति स्पष्ट करने और तनाव को कम दिखाने के लिए मजबूर होना पड़ा. उन्होंने दिसंबर 2022 के आखिर में अफगानिस्तान के भीतर हमला करने को लेकर एक बयान दिया था, जिसके बाद तालिबान सरकार पाकिस्तान से बेहद नाराज हो गई थी. तालिबान ने पाकिस्तान को 1971 के बांग्लादेश युद्ध में शर्मनाक आत्मसमर्पण तक की याद दिला दी थी.
د پاکستان داخله وزیر ته !
— Ahmad Yasir (@AhmadYasir711) January 2, 2023
عالي جنابه! افغانستان سوريه او پاکستان ترکیه نده چې کردان په سوریه کې په نښه کړي.
دا افغانستان دى د مغرورو امپراتوريو هديره.
په مونږ دنظامي يرغل سوچ مه کړه کنه دهند سره دکړې نظامي معاهدې د شرم تکرار به وي داخاوره مالک لري هغه چې ستا بادار يې په ګونډو کړ. pic.twitter.com/FFu8DyBgio
30 दिसंबर, 2022 को, सुरक्षा और विदेश नीति के मामलों पर पाकिस्तान की शीर्ष निर्णय लेने वाली संस्था, राष्ट्रीय सुरक्षा समिति (NSC) ने कहा था कि आतंकवादी दुश्मन हैं और उनके खिलाफ पूरी ताकत से जवाब देने का फैसला किया गया है. अगस्त 2021 में तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया था. उसके बाद से ही पाकिस्तान में आतंकवादी गतिविधियां अचानक से तेज़ हो गई. खासकर खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान क्षेत्र में आतंकी हमले बढ़े, जिसे कथित रूप से अफगानिस्तान में मौजूद टीटीपी नेताओं ने अंजाम दिया.
हर विरोधाभासी संभावनाओं पर भारत को रखनी होगी नज़र
अफगानिस्तान में भारत के पूर्व राजदूत राकेश सूद ने कहा है कि इसकी उम्मीद पहले से थी और कुछ दिन बाद ही सारी चीजें बाहर आने लगीं क्योंकि आखिरकार
तालिबान और टीटीपी जैसे दूसरे आतंकवादी संगठनों के बीच विचारधाराओं में मामूली फर्क ही है. पाकिस्तान, अमेरिका और रूस तीनों ने इन वर्षों में खुद को भ्रम में रखा कि तालिबान का इस क्षेत्र में और विश्व स्तर पर सीमित एजेंडा है. लेकिन हमने बार-बार देखा है कि यह सच नहीं है.
उन्होंने आगे कहा कि आतंकवादी संगठन अफगानिस्तान के अंदर हैं, क्योंकि उनके लिए वहां माहौल मुफीद है. वे वहां खुलेआम रह सकते हैं. टीटीपी की मुख्य मांगों में से एक 'शरिया कानून' का पालन है, जबकि पाकिस्तानी सेना उनपर सख्ती बरत रही है. वे पाकिस्तान के संवैधानिक ढांचे के भीतर काम करने की चाहत रखते हैं, लेकिन पाकिस्तानी सेना के मुताबिक टीटीपी की मांगें अवैध हैं. पाकिस्तानी सेना उन्हें आतंकवादी मानती है और यहीं पर विरोधाभास पैदा हो जाता है.
राकेश सूद के मुताबिक भारत विरोधी समूह वहां पूरी तरह से सक्रिय है और उनकी भारत के खिलाफ लश्कर-ए-तैयबा (LeT) और जैश-ए-मोहम्मद जैसी मांगें भी होंगी. ये सिलसिला अफगानिस्तान में भी जारी रहेगा क्योंकि वे तालिबान के समान विचारधारा साझा करते हैं. इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि वे भारत के खिलाफ कोई हमला नहीं करेंगे. उन्होंने आगाह किया कि भारत को हर विरोधाभासी संभावनाओं पर नजर रखनी होगी और इस समस्या से निपटने के लिए सिर्फ एक दिशा में ही सभी प्रयासों को सीमित नहीं रखना होगा.
वाशिंगटन स्थित विल्सन सेंटर में एशिया कार्यक्रम के उप निदेशक और दक्षिण एशिया के सीनियर एसोसिएट माइकल कुगेलमैन (Michael Kugelman) का कहना है कि अगर पाकिस्तान अपनी पश्चिमी सीमा पर उलझा रहे, तो भारत निश्चित तौर से निराश नहीं होगा. नई दिल्ली के लिए ये देखना राहत भरी बात होगी कि पाकिस्तान अब उसी प्रकार के सीमा पार आतंकवाद के खतरे का सामना कर रहा है, जिसे अतीत में भारत और अफगानिस्तान भुगत चुके हैं. इसके लिए पाकिस्तान की नीतियां ही जिम्मेदार हैं.
हालांकि, कुगेलमैन ने कहा है कि अफगानिस्तान-पाकिस्तान के बीच बढ़ता तनाव नई दिल्ली के लिए समस्या बन सकता है, अगर वे हिंसा की ओर बढ़ते हैं और पाकिस्तानी सेना अफगानिस्तान में कार्रवाई करती है. पाकिस्तानी सैन्य बल न केवल तालिबान को परेशान करेगा बल्कि टीटीपी और IS-K के गुस्से को भी बढ़ाएगा. नई दिल्ली अफगानिस्तान में सुरक्षा माहौल को लेकर बेहद चिंतित है क्योंकि भारत काबुल में अपने दूतावास में शांति से काम करना चाहता है. उन्होंने कहा है कि पाकिस्तान के सैन्य कार्रवाई से पैदा होने वाली किसी भी अस्थिरता से अफगानिस्तान में नई दिल्ली की सुरक्षा चिंताएं बढ़ जाएंगी.
'तालिबान और पाकिस्तान के बीच बढ़ रहा तनाव वास्तविक है'
टीटीपी का बढ़ता खतरा अमेरिका के लिए भी मुश्किलें पैदा करेगा. उसका मानना है कि इससे अल-कायदा और आईएसआईएस को और ज्यादा ताकत मिलेगी. कुगेलमैन के मुताबिक दोनों पक्षों (पाकिस्तान और अफगानिस्तान) ने सार्वजनिक रूप से समस्याओं को कम करने की कोशिश की है, फिर भी ये स्पष्ट है कि
तालिबान और पाकिस्तान के बीच तनाव वास्तविक है और ये लगातार बढ़ रहा है. उन्होंने कहा कि तालिबान अब ये बताने के लिए उतावला है कि उसे पाकिस्तानी संरक्षण की बिल्कुल जरुरत नहीं है क्योंकि अफगानिस्तान में अब युद्ध खत्म हो चुका है.
कुगेलमैन ने ये भी कहा है कि यही कारण है कि तालिबान ने पाकिस्तान की ओर से उनके बीच 2700 किलोमीटर की सीमा पर बाड़ लगाने के सभी प्रयासों का विरोध किया है. पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा को 'डूरंड लाइन' (Durand Line) के नाम से जाना जाता है. अफगानिस्तान इसे स्वीकार नहीं करता है.
पिछले महीने डूरंड रेखा पर गोलीबारी की एक बड़ी घटना हुई थी. उसके बाद पाकिस्तान ने इस्लामाबाद में अफगानिस्तान के प्रभारी राजदूत को तलब कर इस घटना की निंदा की थी. इस बीच, टीटीपी प्रमुख मुफ्ती नूर वली महसूद ने कहा है कि पाकिस्तान सरकार के साथ युद्धविराम समझौते के लिए बातचीत करने का विकल्प अभी भी खुला है.
अफगानिस्तान में काम कर चुके रॉ के एक पूर्व अधिकारी ने पहचान बताए बिना एबीपी लाइव को बताया है कि तालिबान का टीटीपी से लड़ने का कोई मतलब या इरादा नहीं है क्योंकि तालिबान टीटीपी संगठन को अपने में से एक मानता है. पूर्व खुफिया अधिकारी ने आगे कहा कि ऐसे हालात में पाकिस्तान के पास स्थिति से निपटने के लिए अमेरिका या सउदी की मदद लेने का कोई विकल्प नहीं होगा और आखिर में पाकिस्तान को काबुल में तालिबान शासन के साथ शांति वार्ता के लिए बैठना ही होगा.
दूसरी तरफ हालात को और बिगाड़ते हुए अमेरिका ने पाकिस्तान को मौन समर्थन दिया है. अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता नेड प्राइस के मुताबिक पाकिस्तान वही करेगा जो उसके हित में है और आत्मरक्षा के अधिकार के आधार पर वो उचित समझे तो कार्रवाई करेगा. पाकिस्तान को अपनी रक्षा करने का पूरा अधिकार है.
F-16 कार्यक्रम के लिए विवादास्पद 450 मिलियन डॉलर का पैकेज और आतंकवाद विरोधी प्रयासों में पाकिस्तान की मदद करने के अलावा चार दशकों से अधिक समय तक अफगान शरणार्थियों को रखने के एवज में अमेरिका ने 2022 में इस्लामाबाद को अलग से 60 मिलियन डॉलर भी दिए हैं.
क्या है टीटीपी (TTP)?
9/11 के हमलों के बाद 2001 में अफगानिस्तान पर अमेरिकी आक्रमण के बाद 2007 में टीटीपी अस्तित्व में आया. ये समूह अमेरिका के 'आतंकवाद पर युद्ध' का समर्थन करने पर पाकिस्तान के खिलाफ हो गया. इस समूह ने अफगानिस्तान में युद्ध से भाग रहे अफगान तालिबान और अल-कायदा के सदस्यों को शरण देना शुरू कर दिया. यह तालिबान के तत्कालीन नेता मुल्ला मोहम्मद उमर द्वारा स्थापित किया गया था और पाकिस्तान में 'शरिया कानून' लागू करना चाहता है. ठीक वैसे ही जैसे अफगान तालिबान अफगानिस्तान में लागू करना चाहता है.
यूनाइटेड स्टेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ पीस (USIP) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि तालिबान के अधिग्रहण के बाद से, टीटीपी ने इस बात पर जोर दिया है कि अफगान तालिबान विद्रोह का न सिर्फ मॉडल है, बल्कि उनके आंदोलन की जननी भी है. टीटीपी प्रमुख नूर वली महसूद ने सार्वजनिक रूप से अफगान तालिबान नेता मौलवी हिबतुल्ला अखुंदजादा (Maulvi Hibatullah Akhundzada) के प्रति निष्ठा जाहिर की है और दावा किया है कि टीटीपी पाकिस्तान में तालिबान की एक शाखा है. अपने फायदे के लिए फिलहाल तालिबान, अफगानिस्तान में टीटीपी की मौजूदा स्थिति और भविष्य पर बचाव कर रहा है. यहीं वजह है कि पाकिस्तान के खिलाफ हिंसा के बावजूद टीटीपी के खिलाफ किसी कार्रवाई को लेकर तालिबान चुप्पी साधे है.
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