India Egypt Relations: भारत-मिस्र संबंधों का नया अध्याय, मोदी-सिसी की दोस्ती नेहरू-नासिर से भी निकल जाएगी आगे
India Egypt: पीएम मोदी और अब्देल फतह अल-सीसी की मुलाकात काहिरा-नई दिल्ली संबंधों को नए मुकाम पर ले जाने का मौका होगा. इससे दोनों देशों के राजनयिक, आर्थिक और सैन्य संबंधों को नया आयाम मिलेगा.
India Egypt Relations: भारत-मिस्र संबंधों के नजरिए से 2023 का साल ऐतिहासिक बनने वाला है. मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी (Abdel Fattah al-Sisi) इस साल भारत के गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) समारोह में मुख्य अतिथि होंगे. वहीं उम्मीद है कि इस साल ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मिस्र का दौरा कर सकते हैं.
भारत-मिस्र के बीच राजनयिक संबंधों के 75 साल 2022 में ही पूरे हुए थे. इस वजह से भी मिस्र के राष्ट्रपति का भारत दौरा बेहद ख़ास है. 15 अगस्त 1947 को भारत को आजादी मिलने के तीन दिन बाद ही दोनों देशों ने औपचारिक संबंध स्थापित किए थे.
गणतंत्र दिवस समारोह में पहली बार मिस्र के राष्ट्रपति
भारत-मिस्र के बीच राजनयिक संबंधों के 75 साल पूरे हो गए हैं, इसके बावजूद अब तक मिस्र का कोई भी राष्ट्रपति भारत के गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि नहीं बन पाए थे. अब्देल फतह अल-सीसी मिस्र के पहले राष्ट्रपति होंगे, जो गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि बनेंगे. देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और मिस्र के दूसरे राष्ट्रपति जमाल अब्देल नासेर (Gamal Abdel Nasser) के बीच काफी अच्छे रिश्ते थे. इसके बावजूद भी कभी मिस्र के किसी राष्ट्रपति को ये मौका नहीं मिल पाया था. इस लिहाज से मिस्र के राष्ट्रपति अल-सीसी का भारत दौरा ऐतिहासिक है.
नई साझेदारी बनाने का सुनहरा मौका
मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी का भारत दौरा दोनों देशों के लिए नई साझेदारी बनाने का सुनहरा मौका है. भारत में मिस्र के राजदूत वाएल मोहम्मद अवाद हमीद (Wael Mohamed Awad Hamed) ने भी कहा है कि इस यात्रा से दोनों देशों के बीच आर्थिक, राजनीतिक, द्विपक्षीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नई साझेदारी बनेगी. मिस्र के राजदूत अवाद हमीद का तो यहां तक कहना है कि मोदी-सीसी के बीच की दोस्ती नेहरू-नासेर की दोस्ती को भी पीछे छोड़ देगी. इस यात्रा से मजबूत होने वाली साझेदारी से काहिरा और नई दिल्ली के बीच द्विपक्षीय संबंध नासिर-नेहरू युग को भी पीछे छोड़ देंगे. भारत ने जी 20 की अध्यक्षता के दौरान मिस्र को अतिथि देश के तौर पर भी आमंत्रित किया है. गणतंत्र दिवस समारोह के अलावा राष्ट्रपति अल-सिसी और पीएम मोदी के बीच शिखर वार्ता भी होगी, जिसमें द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत बनाकर रक्षा और सुरक्षा सहयोग बढ़ाने पर विस्तार से बातचीत होगी. इसके जरिए दोनों देशों के बीच नई सामरिक साझेदारी की शुरुआत होगी.
तीसरी बार भारत आएंगे अब्देल फतह अल-सीसी
नरेंद्र मोदी 2014 में भारत के प्रधानमंत्री बने थे. वहीं अब्देल फतह अल-सीसी भी 2014 में ही मिस्र के राष्ट्रपति बने थे. पीएम मोदी ने मई में देश की कमान संभाली थी, तो अल-सीसी ने जून में मिस्र का नेतृत्व संभाला था. राष्ट्रपति बनने के बाद अब्देल फतह अल-सीसी तीसरी बार भारत की यात्रा पर आएंगे. पहली बार में अक्टूबर 2015 में भारत आए थे. उस वक्त वे तीसरे भारत-अफ्रीका फोरम समिट में हिस्सा लेने आए थे. इसके बाद मिस्र के राष्ट्रपति अल-सीसी सितंबर 2016 में भारत की यात्रा पर आए. इस दौरान दोनों देशों की ओर से साझा बयान जारी किया गया. इसमें नए युग के लिए नई साझेदारी के आधार के रूप में तीन स्तंभों की पहचान की गई. इनमें राजनीतिक-सुरक्षा सहयोग, आर्थिक जुड़ाव और वैज्ञानिक सहयोग के अलावा सांस्कृतिक सहयोग को शामिल किया गया.
इस साल मिस्र जा सकते हैं पीएम मोदी
ये भी बिडंवना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विदेश दौरे को लेकर चर्चा में रहते हैं, इसके बावजूद अब तक मिस्र की यात्रा पर नहीं जा सके हैं. उम्मीद है कि इस साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मिस्र का दौरा कर सकते हैं. 2020 में प्रधानमंत्री मोदी मिस्र की यात्रा पर जाने वाले थे, लेकिन कोविड महामारी की वजह से यात्रा को स्थगित करनी पड़ी थी. अक्टूबर 2022 में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने मिस्र का दौरा किया था. उस वक्त विदेश मंत्री ने कहा था कि प्रधानमंत्री मोदी के राष्ट्रपति अल सीसी के साथ बहुत ही अच्छे व्यक्तिगत संबंध हैं. वे पिछले कुछ वक्त से मिस्र जाना चाह रहे थे, लेकिन कोविड की वजह से ये मुमकिन नहीं हो पाया. एस जयंशकर ने आगे कहा कि मैं भरोसा दे सकता हूं कि प्रधानमंत्री मोदी के जेहन में मिस्र यात्रा है. बीते 13 साल से किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री ने मिस्र की यात्रा नहीं की है. आखिरी बार 2009 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) के सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए काहिरा गए थे.
भारत-मिस्र बनेंगे अनमोल साझेदार
मिस्र भूमध्य सागर, लाल सागर, अफ्रीका और पश्चिम एशिया में ख़ास स्थान रखता है. ये स्थिति ही काहिरा को दिल्ली के लिए अनमोल साझेदार बनाता है. भूमध्य सागर से हिंद-प्रशांत क्षेत्र तक के समुद्री क्षेत्र से जुड़ी चुनौतियों से निपटने के लिए भारत और मिस्र बेहतर साझेदार बन सकते हैं. मिस्र भारत के लिए कितना महत्वपूर्ण है, ये इसी बात से समझा जा सकता है कि 2022 में सितंबर और अक्टूबर में देश के रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री ने काहिरा का दौरा किया. बीते 7 साल के बाद किसी भारतीय विदेश मंत्री ने मिस्र की यात्रा की थी. इस दौरान द्विपक्षीय मुद्दों, जलवायु परिवर्तन और साझा हितों से जुड़े मसलों पर सहयोग बढ़ाने को लेकर चर्चा हुई. राष्ट्रपति अल-सीसी के भारत दौरे पर मिस्र को 70 तेजस लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट की बिक्री के प्रस्ताव को अंतिम रूप दिया जा सकता है.
द्विपक्षीय व्यापार और निवेश बढ़ाने पर रहेगा ज़ोर
मिस्र अफ्रीका में भारत के सबसे महत्वपूर्ण व्यापारिक भागीदारों में से एक है. वहीं भारत मिस्र का छठा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. दोनों के बीच 1978 से द्विपक्षीय कारोबार समझौता लागू है. दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार लगातार बढ़ रहा है. पिछले 10 सालों में व्यापार में 5 गुना से भी ज्यादा की वृद्दि हुई है. भारत आयात से ज्यादा मिस्र को निर्यात करता है. इस तरह से द्विपक्षीय व्यापार भारत के पक्ष में हैं. 2020-21 की तुलना में 2021-22 में द्विपक्षीय व्यापार में 75 फीसदी का इजाफा हुआ था. निवेश भी दिन पर दिन बढ़ रहे हैं और भविष्य में व्यापार के नई ऊंचाइयों पर पहुंचने की संभावना है. करीब 50 भारतीय कंपनियों ने मिस्र के अलग-अलग सेक्टर में निवेश किया है. ये तीन अरब डॉलर से ज्यादा की राशि है. दोनों देशों के बीच फिलहाल 7 अरब डॉलर से ज्यादा का व्यापार होता है. 2027 तक दोनों देशों ने इसे 12 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है. मिस्र का यूरोपीय संघ के साथ मुक्त व्यापार समझौता है. इस पहलू का भी इस्तेमाल दोनों देश एक-दूसरे के बीच साझेदारी मजबूत करने के लिए कर सकते हैं. मिस्र चाहता है कि भारतीय कंपनियां और निवेशक वहां ज्यादा से ज्यादा निवेश करें. स्वेज नहर आर्थिक क्षेत्र निवेश के नजरिए से बेहद ही महत्वपूर्ण क्षेत्र है.
कृषि निर्यात के लिए मिस्र बड़ा बाजार
मिस्र बड़े पैमाने पर खाद्य पदार्थों का आयत करता है, कृषि निर्यात के लिहाज से मिस्र भारत के लिए बड़े बाजार के तौर पर काम कर सकता है. रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध से मिस्र के लिए गेहूं का संकट खड़ा हो गया था. वो 80 फीसदी गेहूं इन्हीं दोनों देशों से खरीदता था. अप्रैल 2022 में मिस्र ने गेहूं आयात करने वाले देशों की सूची में भारत को शामिल किया. इसके बाद से मिस्र भारत से बड़े पैमाने पर गेहूं का आयात करता है. जून 2022 में भारत ने मिस्र को 1.8 लाख टन गेहूं का निर्यात किया था. वहीं उर्वरक निर्यात के मामले में सऊदी अरब और ओमान के बार मिस्र भारत के लिए तीसरा सबसे बड़ा निर्यातक है. भारत मिस्र से कच्चा तेल, उर्वरक, कॉटन और इन ऑर्गेनिक केमिकल आयात करता है. मिस्र से साझेदारी मजबूत कर भारत कच्चे तेल को लेकर खाड़ी देशों पर अपनी निर्भरता को कम कर सकता है.
बढ़ रहा है रक्षा और सुरक्षा सहयोग
दोनों देश रक्षा और सुरक्षा सहयोग को बढ़ाने के लिए हमेशा ही प्रयासरत रहते हैं. दोनों ही देशों के सुरक्षा बल के बीच लगातार संपर्क होते रहता है. सैन्य सहयोग के नए क्षेत्रों पर भी चर्चा होते रहती है. भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सितंबर 2022 में मिस्र का दौरा किया था. उस दौरान उन्होंने मिस्र के रक्षा मंत्री के अलावा राष्ट्रपति अल-सीसी के साथ भी द्विपक्षीय वार्ता की थी. इस दौरान दोनों देशों ने साझा ट्रेनिंग, रक्षा सामग्रियों के उत्पादन और उपकरणों के रखरखाव पर सहयोग बढ़ाने से जुड़े समझौता ज्ञापन पर भी हस्ताक्षर किए थे. दोनों देशों की थल सेना के साथ ही वायु सेना और नौसेना के बीच भी अभ्यास होते रहता है.
समुद्री सुरक्षा के लिहाज से महत्वपूर्ण
हिंद प्रशांत क्षेत्र में भारत एक बड़ी ताकत है. हिंद महासागर की सुरक्षा लाल सागर की सुरक्षा से शुरू होती है. वहीं मिस्र के लिए लाल सागर की सुरक्षा स्वेज नहर से जुड़ी हुई है. स्वेज नहर और लाल सागर की सुरक्षा, वे पहलू हैं, जिनसे मिस्र का भारत और हिंद महासागर कनेक्शन बढ़ जाता है. स्वेज नहर की सुरक्षा मिस्र पर ही निर्भर है. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में मिस्र का सामरिक महत्व है. ऐसे में मिस्र के साथ मजबूत साझेदारी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की स्थिति को और मजबूत बनाएगी.
ब्रिक्स सदस्य बनना चाहता है मिस्र
मिस्र की नजर ब्रिक्स (BRICS) संगठन का सदस्य बनने पर भी है. पिछले साल जुलाई में मिस्र ने इसके लिए आवेदन भी किया था. फिलहाल ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका इसके सदस्य हैं. इस साल ब्रिक्स का शिखर सम्मेलन दक्षिण अफ्रीका में होना है, जिसमें मिस्र की सदस्यता पर कोई फैसला हो सकता है. 2021 में मिस्र, ब्रिक्स न्यू डेवलपमेंट बैंक का सदस्य बना था. मिस्र के राष्ट्रपति अल-सीसी चाहेंगे कि आगामी भारत दौरे पर वो ब्रिक्स की सदस्यता के लिए भारत का समर्थन हासिल कर पाएं.
यूएनएससी में स्थायी सदस्यता को लेकर दावेदारी
बहुपक्षीय मंचों पर भारत और मिस्र का सहयोग देखने को मिलते रहा है. हालांकि दोनों के बीच एक और बड़ा मुद्दा है जिसपर सहमति बनाने की जरुरत है. भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की दावेदारी करता है. इस मसले पर मिस्र की ओर से खुलकर ज्यादा कुछ नहीं कहा गया है. ऐसे अफ्रीकी देशों के प्रतिनिधि के तौर पर खुद मिस्र भी स्थायी सदस्यता को लेकर दावेदारी करता है. इस मसले पर भी दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ना चाहिए.
50 और 60 के दशक में मजबूत संबंध
भारत को अगस्त 1947 में आजादी मिली थी. वहीं मिस्र को जून 1953 में गणतंत्र (REPUBLIC) का टैग लगा. 1950 और 60 के दशक में भारत और मिस्र के बीच संबंध अपने सुनहरे युग में था. भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल नासेर के बीच की दोस्ती उस वक्त अंतरराष्ट्रीय सुर्खियां हुआ करती थी. मिस्र हमेशा से कहते रहा है कि पश्चिमी देशों की तुलना में जवाहरलाल नेहरू काहिरा को ज्यादा अच्छे से समझते थे. नेहरू और नासेर ने ही इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो और युगोस्लाविया के राष्ट्रपति टीटो के साथ मिलकर गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) की नींव रखी थी. इस गुट के जरिए ही नए-नए आजाद हुए कई देशों को अमेरिका और सोवियत संघ के बीच जारी शीत युद्ध के दौर में भी निरपेक्ष रहने का अवसर मिला था.
1970 के दशक के आखिर और 80 के दशक के कुछ सालों को छोड़ दें, तो मिस्र के साथ भारत का संबंध लगातार सौहार्दपूर्ण रहा है. 1970 के दशक के आखिरी सालों में काहिरा ने सोवियत की अगुवाई वाले गुट से दूरी बनाते हुए अमेरिका के करीब जाना शुरू किया था. उस वक्त कुछ सालों के लिए दोनों देशों के बीच आपसी संबंध थोड़े शिथिल हुए थे. भारत और मिस्र दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है. भारत और मिस्र द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर संपर्क और सहयोग के लंबे इतिहास के आधार पर करीबी राजनीतिक समझ साझा करते हैं. मध्य-पूर्व देशों के लिए विदेश नीति के लिहाज से मिस्र भारत के लिए बेहद ही महत्वपूर्ण साझेदार है. भारत की तरह ही मिस्र भी विकासशील देश है. सामरिक साझेदारी को मजबूत कर दोनों ही देश अंतरराष्ट्रीय मंचों पर विकासशील और गरीब देशों की मुखर आवाज बन सकते हैं.
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