जयशंकर की अगुआई में विदेश नीति की बढ़ती धार, US में राजनीतिक बदलाव..., महत्वपूर्ण है विदेश मंत्री का अमेरिका दौरा
अमेरिका अपनी साख बचाने और एशिया में ड्रैगन को रोकने के लिए हाथी की ओट लेने की अहमियत भी जानता है. भारत को भी अमेरिका की जरूरत है.
भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर हाल ही में एक सप्ताह के लिए अमेरिका की यात्रा पर थे. 24 से 29 दिसंबर तक की इस आधिकारिक यात्रा के दौरान उन्होंने कई महत्वपूर्ण द्विपक्षीय मुलाकातें की. इसके साथ ही, जयशंकर ने विदेश नीति के तौर पर अहम देश अमेरिका में भारतीय नजरिए को सामने रखा. इस दौरान उन्होंने अमेरिकी एनएसए जैक सलिवन से लेकर अपने अमेरिकी समकक्षीय एंथनी ब्लिंकन के साथ कई प्रतिनिधिमंडलों से भी विशद चर्चा की. ये यात्रा चर्चा में इसलिए भी रही क्योंकि बाइडेन प्रशासन के अब गिने-चुने दिन ही बचे हुए हैं. जनवरी के तीसरे हफ्ते से वहां ट्रंप का प्रशासन चलेगा तो इस हस्तांतरण के बीच भारतीय विदेश मंत्री का वहां होना बहुतेरे संकेत भी देता है.
भारत-अमेरिकी संबंधों में हिचकोले
नई दिल्ली और वाशिंगटन के बीच संबंध हाल-फिलहाल में नरम-गरम और फिर गर्मजोशी के ही रहे हैं. बीच में अमेरिकी चुनाव के दौरान जरुर बाइडेन प्रशासन की तरफ से भारत की रस्सी को खींचा गया था, लेकिन उसी दौरान रक्षा और वैज्ञानिक करार भी होते रहे. अमेरिका अपनी साख बचाने और एशिया में ड्रैगन को रोकने के लिए हाथी की ओट लेने की अहमियत भी जानता है. भारत को भी अमेरिका की जरूरत है. भारतीय प्रधानमंत्री अभी सितंबर 2024 में क्वाड शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने अमेरिका गये थे और अब दिसंबर के आखिरी हफ्ते में विदेश मंत्री का सप्ताह भर का दौरा! कुछ तो खिचड़ी पक रही है. खालिस्तानी आतंकवादी गुरपतवंत सिंह पन्नू की अमेरिका में हत्या करने की कथित साजिश को लेकर भारत और अमेरिका के संबंधों में हल्की सी तल्खी तब आयी थी, जब वहां के जस्टिस डिपार्टमेंट ने इस संबंध में टिप्पणी की थी.
उसके बाद हालांकि भारत और अमेरिकी अधिकारियों ने एक-दूसरे के सहयोग से ये पाया कि ऐसे किसी भी आरोप में दम नहीं है. विश्व के कई देशों में आतंकवाद एक बड़ा मसला है. भारत और कनाडा के संबंधों में भी तनाव है, इन सबके मद्देनजर भारत के की यात्रा भारत-अमेरिका संबंधों में मजबूती के लिए अहम मानी जा रही है.
एस. जयशंकर को डिप्लोमैसी का तगड़ा अनुभव है. उन्होंने बिल्कुल शुरुआती सीढ़ी से अपने करियर की शुरुआत की है. वह विदेश सेवा की नौकरी से अंतिम सीढ़ी भारत के विदेश सचिव तक रहे और विदेश सचिव के रूप में अमेरिका समेत चीन देशों में बेहद महत्वपूर्ण कूटनीतिक संबंधों पर काम किया. 2019 में जब वह भारत के विदेश मंत्री बने, तो उसके पहले विदेश नीति के हरेक आयाम से सुपरिचित थे. शायद इसीलिए, उनको पता होता है कि कितना बोलना है, कब बोलना है और किस हद तक बोलना है.
जयशंकर ने भारत-अमेरिका न्यूक्लियर डील, टाइगर ट्रायम्फ और भारतीय रक्षा उत्पादन औद्योगिक सुरक्षा अनुबंध, उभरती हुई प्रौद्योगिकी (ए आई), साइबर सुरक्षा को बढ़ावा, एफ-414 लड़ाकू जेट इंजन, एमक्यू-9बी स्काई गार्जियन ड्रोन आदि जैसे कई महत्वपूर्ण समझौतों में अहम भूमिका निभायी है. अमेरिका से रणनीतिक साझेदारी बढ़ने का ही नतीजा है कि अंतरिक्ष अनुसंधान से लेकर रक्षा क्षेत्र तक में अमेरिका अपनी तकनीक भी हमसे साझा करने को तैयार है.
बदला है विदेशमंत्री के तौर पर देश की छवि को
भारत और विदेशी मीडिया अब भारत की विदेश नीति व विदेश मंत्री और उनके कथन को स्थान देता है. एस. जयशंकर की यात्राओं ने भारत की छवि को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर दुरुस्त किया है, बड़ा बनाया है. अमेरिका के साथ भारत भविष्य में "रक्षा उपकरण और नई प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण, युद्ध में प्रयोग के लिए नई तकनीक वाले हथियार खरीद, लड़ाकू वाहनों (स्ट्राइकर बख्तरबंद) की क्षमता को बढ़ावा देने, रक्षा उन्नत अनुसंधान परियोजना एजेंसी के माध्यम से भारत में नए स्टार्टअप को बढ़ाने, अमेरिका की नई प्रौद्योगिकी को भारत लाने के नियमों को सरल करने, एसटीए-1 में भारतीयों के लिए छूट और उसमें सुधार करने" जैसे लक्ष्यों को पूरा करके आगे बढ़ना चाहता है.
भारत और अमेरिका के बीच संबंधों में भरोसा बढ़ा
रिपब्लिकन पार्टी के नेता डोनाल्ड ट्रम्प ने 5 नवंबर 2024 को राष्ट्रपति पद का चुनाव जीता. वह राष्ट्रपति की गद्दी पर 20 जनवरी 2025 को औपचारिक रूप से बैठेंगे. इसके पहले ही एक के बाद एक उन्होंने अपनी टीम के सदस्यों का जिस तरह नाम जाहिर किया है, उससे ये तो पता चल रहा है कि भारत और भारतवंशियों को वह खास तरजीह दे रहे हैं. हाल ही में जब एच1बी वीजा के मसले पर हंगामा हुआ तो एलन मस्क से लेकर डोनाल्ड ट्रम्प तक लगातार कैमरे के सामने आकर सफाई देते रहे. जाहिर सी बात है कि अमेरिका का नया प्रशासन भी भारतवंशियों को नाराज कर अपनी पारी की शुरुआत नहीं करना चाहता. यह वहां भारतीय प्रवासियों की बढ़ती ताकत से भी प्रभावित होनेवाली सच्चाई है. जयशंकर ने अमेरिका स्थित भारतीय दूतावास के सभी सदस्यों के साथ भी भारत के आगामी दूरदर्शी लक्ष्य के बारे में बातचीत की. भारत-अमेरिका के वाणिज्य संबंधों में तेज़ी से बढ़ोतरी हो, यह भी भारत की मंशा है.
राजनीति भी, अर्थनीति भी
जयशंकर के नेतृत्व में भारतीय विदेश नीति का सार अब बहुत स्पष्ट और साफ है. भारत के लिए स्वहित महत्वपूर्ण है और वह बिना किसी समूह का हिस्सा बने निडरता से अपनी बात को रखता है. भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने जैक सुलिवन (अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार), एंटनी ब्लिंकन (अमेरिका के विदेश मंत्री) समेत अमेरिकी सरकार के अन्य वरिष्ठ मंत्रियों और कई अधिकारियों से भी अहम मुलाकात की. सत्ता बदलने के बिल्कुल शुरुआती बीज-रोपण वाले समय भारत की वहां उपस्थिति संबंधों की बेहतरी की ओर इशारा करता है. अब जब दो सप्ताह के ही बाद ट्रंप प्रशासन-2 अमेरिका में शुरू हो जाएगा, तो सरकारी स्तर पर भी हस्तानांतरण की प्रक्रिया शुरू हो गयी होगी.
ह्वाइट हाउस में 78 वर्षीय ट्रम्प की अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में दूसरी पारी है. इससे वह 2017 से 2021 तक अमेरिका के राष्ट्रपति रह चुके हैं. साल 2020 की फरवरी में डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत का दौरा किया था. उस दौरान भारत-अमेरिका के संबंधों में नयी गरमाहट आ गयी थी. उसी साल भारत में 'नमस्ते ट्रम्प इवेंट' हुआ था. मोदी ने अमेरिका को तब मित्र देश बताया था और तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने भारत के लिए कहा था कि "India has a true friend in the White House”.
अब, जब एक बार फिर ह्वाइट हाउस में भारत का वही 'सच्चा दोस्त' बैठने जा रहा है, तो दोनों ही देशों को एक-दूसरे से उम्मीदें भी अधिक रहेंगी. ट्रम्प ने अपनी टीम में कई भारतवंशियों को लेकर पहले ही संकेत दे दिया है कि वह भी भारत के साथ संबंध बिल्कुल गर्मजोशी वाले ही रखना चाहेंगे. भारत-अमेरिका के संबंध नई ट्रम्प 2.0 सरकार में कैसे रहेंगे? यह कहना तो भविष्यवाणी सरीखा हो जाएगा, लेकिन वर्तमान के बीज को अगर भविष्य की पौध के तौर पर देखना चाहें तो सब कुछ हरा ही दिखता है.