नई अंतरिक्ष नीति निजी कंपनियों, स्टार्टअप और आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्यों को पूरा करने में करेगी मदद
नई भारतीय अंतरिक्ष नीति-2023 भविष्योन्मुखी है. यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दृष्टिकोण को पूरा करने में मदद करेगी. इस नीति से भारत में अंतरिक्ष उद्योगों के विकास को बढ़ावा मिलेगा.
केंद्रीय मंत्रिमंडल से हाल ही में मंजूरी मिलने के बाद ISRO ने 20 अप्नैल को नई अंतरिक्ष नीति (Indian Space Policy 2023) का अनावरण किया है. नई भारतीय अंतरिक्ष नीति-2023 में गैर-सरकारी संस्थाओं (NGE) या निजी कंपनियों या स्टार्टअप को देश में और देश से बाहर रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट सिस्टम स्थापित करने और उन्हें संचालित करने की स्वीकृति प्रदान की गई है.
नई नीति के अंतर्गत निजी कंपनियां या स्टार्टअप दोनों ही अपने स्वामित्व वाली और दूसरा बाहर से खरीदे गए या लीज पर ली गई उपग्रहों को संचालित कर पाएंगी. उपग्रहों के नागरिक अनुप्रयोगों के अलावा, रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट का उपयोग भारत में सर्विलांस यानी निगरानी के लिए खास तौर पर किया जाता है. ये एक तरह से 'आकाश में भारत की आंख' के रूप में उपयोग किए जाते हैं.
इसरो ने पहले ही कई रिमोट सेंसिंग उपग्रह जैसे रिसैट (Risat) और कार्टोसैट (Cartosat) आदि की लांचिंग की है, जिनका बाद में भारतीय सुरक्षा एजेंसियों द्वारा देश की सीमाओं पर नज़र रखने, घुसपैठ की जाँच करने और 2016 के सर्जिकल स्ट्राइक जैसे सीमा पार सैन्य अभियान और संचालन की योजना बनाने के लिए उपयोग किया गया था. हालांकि, यह अभी पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है कि नई अंतरिक्ष नीति के तहत रणनीतिक क्षेत्र में उपयोगिता होने के कारण निजी उद्यमों और कंपनियों को कितनी छूट दी जाएगी. क्योंकि नई नीति के अंतर्गत यह उल्लेखित किया गया है कि "यह (अनुमति) IN-SPACE (अंतरिक्ष नियामक) द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों या विनियमों के अधीन होगी".
नई नीति निजी कंपनियों को अपनी खुद की अंतरिक्ष संपत्ति स्थापित करने की अधिक स्वतंत्रता देती है. इसमें कहा गया है, "नॉन गवर्नमेंटल एंटिटीज को अंतरिक्ष वस्तुओं, जमीन-आधारित संपत्तियों को स्थापित कर सकते हैं और संबंधित सेवाओं जैसे संचार, रिमोट सेंसिंग, नेविगेशन इत्यादि की स्थापना और संचालन के माध्यम से अंतरिक्ष क्षेत्र में एंड-टू-एंड गतिविधियां करने की अनुमति दी जाएगी. इसके अलावा टेलीमेट्री, ट्रैकिंग एंड कमांड, अर्थ स्टेशन और सैटेलाइट कंट्रोल सेंटर (एससीसी) जैसे स्पेस ऑब्जेक्ट ऑपरेशन के लिए जमीनी सुविधाओं को संचालित कर सकेंगे. वे भारत और भारत के बाहर संचार सेवाओं के लिए अंतरिक्ष वस्तुओं को स्थापित करने के लिए इंडियन ऑर्बिटल रिसोर्सेज और नॉन-इंडियन ऑर्बिटल रिसोर्सेज का भी उपयोग कर सकते हैं.
नई नीति में कहा गया है कि उपग्रहों के एक समूह के माध्यम से अंतरिक्ष-आधारित ब्रॉडबैंड सेवाएं प्रदान करने पर, "एनजीई स्व-स्वामित्व या खरीदे गए या जीएसओ/एनजीएसओ संचार उपग्रहों के माध्यम से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष-आधारित संचार सेवाओं की पेशकश कर सकते हैं." नई नीति ने ISRO अंतरिक्ष नियामक IN-SPACe और उसकी वाणिज्यिक शाखा NSIL की नई भूमिकाओं को भी स्पष्ट रूप से परिभाषित किया है. नई अंतरिक्ष नीति के अंतर्गत IN-SPACe पर यह कहा गया है कि " यह प्रासंगिक सरकारी निर्देशों के अधीन, सुरक्षा, राष्ट्रीय सुरक्षा, अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों और/या विदेश नीति के विचारों को ध्यान में रखते हुए, सरकारी संस्थाओं के साथ-साथ एनजीई द्वारा अंतरिक्ष गतिविधियों के प्राधिकरण के लिए सिंगल विंडो एजेंसी (Single Window Agency) के रूप में कार्य करेगा. वहीं, इसरो पर, नीति में कहा गया है कि इसरो "राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी के रूप में, मुख्य रूप से नई अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों और अनुप्रयोगों के अनुसंधान और विकास और बाहरी अंतरिक्ष की दुनिया को लेकर मानवीय समझ को बढ़ाने पर अपना ध्यान केंद्रित करेगी."
नई नीति में वाणिज्यिक NSIL के बारे में कहा गया है कि सार्वजनिक व्यय के माध्यम से बनाई गई अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों और प्लेटफार्मों के व्यावसायीकरण के लिए जिम्मेदार होगी. यह ध्वनि वाणिज्यिक सिद्धांतों पर निजी या सार्वजनिक क्षेत्र से अंतरिक्ष कंपोनेंट्स, प्रौद्योगिकियों, प्लेटफार्मों और अन्य संपत्तियों का निर्माण, लीज या खरीद करेगा. यह वाणिज्यिक सिद्धांतों पर उपयोगकर्ताओं की अंतरिक्ष-आधारित जरूरतों को भी पूरा करेगा.
कुल मिलाकर यह नई भारतीय अंतरिक्ष नीति-2023 भविष्योन्मुखी है. यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दृष्टिकोण को पूरा करने में मदद करेगी. यह भारत में अंतरिक्ष उद्योगों के विकास को बढ़ावा देगा. विशेष रूप से अंतरिक्ष संचार और अन्य अनुप्रयोगों के संबंध में सभी अंतरिक्ष गतिविधियों पर स्पष्टता प्रदान करने वाली नीति है. यह निजी क्षेत्र के लिए अंतरिक्ष उद्योग के सभी पहलुओं में संलग्न होने के अवसर पैदा करने में भी मदद करेगा. नीति भारत में एक मजबूत नवोन्मेषी और विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी अंतरिक्ष पारिस्थितिकी तंत्र के विकास के लिए एक उत्प्रेरक बन सकता है. इस नीति से अंतरिक्ष से जुड़े कार्यक्रम तो बेहतर होंगे ही, साथ ही देश की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में निजी उद्योग की भागीदारी को भी बढ़ावा मिलेगा.