ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने बुधवार को घोषणा करते हुए कहा कि वह अगले हफ्ते होने वाले मिस्त्र के जलवायु शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे. उनका ये फैसला कुर्सी संभालने के बाद पहला बड़ा यू-टर्न माना जा रहा है. यू-टर्न इसलिए क्योंकि हाल ही में सुनक के ऑफिस की तरफ से बयान जारी करके कहा गया था कि वह इस मीटिंग का हिस्सा नहीं होंगे. उनके इस फैसले के बाद से उन्हें जलवायु कार्यकर्ताओं और अपनी सरकार के अंदर से ही आलोचना का सामना करना पड़ा था. 


अब ऋषि सुनक ने अपने फैसले को बदलते हुए ट्वीट करते हुए कहा, 'जलवायु परिवर्तन पर एक्शन लिए बिना भविष्य में समृद्धि की उम्मीद नहीं की जा सकती है.' सुनक ने कहा कि रिन्यूएबल एनर्जी में निवेश किए बिना भविष्य में ऊर्जा के बात करना बेमानी है.' इससे पहले उन्होंने कहा था कि ब्रिटेन में आर्थिक संकट और अन्य घरेलू मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए शर्म अल-शेख में होने वाली बैठक में भाग नहीं लेंगे.


 






उन्होंने पिछले साल नवंबर में स्कॉटलैंड में ब्रिटेन की अध्यक्षता में आयोजित सीओपी 26 शिखर सम्मेलन के संदर्भ में यह टिप्पणी की. सूनक के फैसले बदलने से विपक्षी लेबर पार्टी ने उन पर जमकर निशाना साधा. सूनक के आलोचकों ने कहा कि उनका शिखर सम्मेलन में ना जाने का फैसला अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और यूरोपीय देशों के नेताओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने का एक मौका छोड़ने जैसा था. 


बता दें कि COP 27 संयुक्त राष्ट्र की जलवायु के मुद्दे पर 27वीं सालाना बैठक है. इस बार यह बैठक मिस्र के शर्म अल-शेख में 6 से 18 नवंबर के बीच होने वाली है. 


क्या है संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन?


संयुक्त राष्ट्र का जलवायु शिखर सम्मेलन यानी सीओपी 27 एक वार्षिक सम्मेलन है. जिसमें अलग अलग देशों की सरकारें वैश्विक स्तर पर चर्चा करती है कि आखिर जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए किन कदमों को उठाया जाना चाहिए. संयुक्त राष्ट्र का जलवायु शिखर सम्मेलन को सीओपी या 'कांफ्रेंस ऑफ़ द पार्टीज़' भी कहा जाता है. इन सम्मेलनों में वो देश शामिल होते हैं जिन्होंने साल 1992 में हुए मूल जलवायु समझौते पर दस्तख़त किए थे.


क्यों है इन बैठकों की जरूरत?


दुनियाभर में जिस तरीके से मौसम में बदलाव आ रहे हैं या यूं कहें कि धरती का तापमान लगातार बढ़ रहा है. इसपर सभी देशों के राष्ट्रध्यक्षों का चर्चा करना बेहद जरूरी है. घरता के तापमान के बढ़ने की एक प्रमुख वजह मानव उत्पादित उत्सर्जन हो जो जीवाश्व ईंधन जैसे तेल, गैस और कोयले के जलने से होता है.


यूनाइटेड नेशन के जलयावु वैज्ञानिकों की मानें तो हमारी धरती का तापमान वर्तमान में 1.1 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है और इंटरनेशनल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज के अनुसार ये तापमान अभी भी 1.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है. 


आईपीसीसी के पूर्वानुमान के अनुसार अगर धरती का तापमान 1850 के दशक के मुक़ाबले 1.7 या 1.8 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता है तो दुनिया की आधी आबादी जानलेवा गर्मी के दायरे में आ जाएगी और उनका जीना मुश्किल हो जाएगा. इस बढ़ते तापमान को रोकने के लिए साल 2015 में 194 देशों ने पेरिस में एक समझौता किया था. इस समझौते का मक़सद वैश्विक स्तर पर तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस से कम पर रोकना था.


मिस्र में क्यों हो रहा है सम्मेलन 


अफ़्रीका के किसी हिस्से में जलवायु सम्मेलन पहले भी हो चुका है. ये पांचवी बार होगा जब अफ्रीका में ये सम्मेलन किया जा रहा है. इस जगह को चुनने का एक कारण ये भी है कि ये जगह दुनिया के सबसे संवेदनशील क्षेत्रों में से एक है. आईपीसीसी के मुताबिक इस समय पूर्वी अफ्रीका में सूखे की वजह से 1.7 करोड़ लोग खाद्य चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. हालांकि कुछ मानवाधिकार समूहों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि मिस्र के सम्मेलन के दौरान सरकार ने उन्हें हिस्सा लेने से रोक दिया है क्योंकि वो सरकार के रिकॉर्ड पर सवाल उठाते रहे हैं.


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