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Opinion: भारत का रक्षा बजट संतुलित, GDP का 3% जरूरी नहीं, लेकिन टू फ्रंट वॉर के लिए नहीं पर्याप्त

अगर हम चीन से तुलना करेंगे तो उसकी अर्थव्यवस्था चार-पांच गुना बड़ी है. इसलिए अगर उसका बजट हमसे चार गुना बड़ा है तो ये स्वभाविक ही है.

मोदी सरकार के दूसरा कार्यकाल का आखिरी पूर्ण बजट केन्द्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने पेश करते हुए पिछले वित्तीय वर्ष के मुकाबले करीब 13 फीसदी का इजाफा किया है. साल 2023-24 के लिए रक्षा बजट 5.25 लाख करोड़ रुपये 5.95 लाख करोड़ किया गया. यानी, कुल 69 हजार करोड़ का इजाफा किया गया है. ये चीन के रक्षा बजट का एक चौथाई और पाकिस्तान के रक्षा बजट का करीब 14 गुणा अधिक है. लेकिन, इस बजट को इस लिहाज से नहीं देखा जाना चाहिए, क्योंकि हर देश की अपनी सुरक्षा जरूरतें होती हैं और उसी हिसाब से सुरक्षा बजट बनना चाहिए.

अगर हम चीन से तुलना करेंगे तो उसकी अर्थव्यवस्था चार-पांच गुना बड़ी है. इसलिए अगर उसका बजट हमसे चार गुना बड़ा है तो ये स्वभाविक ही है. दूसरा ये कि हर रक्षा बजट वो चाहे अमेरिका हो या कोई और देश हो, कभी भी उतना रक्षा बजट नहीं होता, जितना सुरक्षा बल चाहते हैं. कभी भी इतना कम भी नहीं होता कि उससे सुरक्षा न हो. इसलिए सुरक्षा जरूरत और आर्थिक जरूरत के बीच एक समन्वय बनाकर रखना होता है.

बजट में संतुलन का प्रयास

अगर आर्म्ड फोर्स के हिसाब से सारा कुछ करना शुरू कर देंगे तो बाकी चीजों के लिए पैसा ही नहीं बचेगा. लेकिन अगर इसे पूरी तरह से नजरंदाज कर देंगे तो सुरक्षा ही नहीं रहेगी. इसलिए, इस बजट में एक संतुलन का प्रयास किया गया है. दूसरी तरह से देखें तो करीब 25 प्रतिशत डिफेंस के पेंशन पर खर्च होने जा रहा है. तो अब पता लगता है कि अग्निवीर स्कीम हमारे लिए कितनी जरूरत थी. क्योंकि डिफेंस पर खर्च इस हिसाब से बढ़ता रहा तो दिवालिया निकल जाएगा. न सुरक्षा होगी और न अर्थव्यवस्था बचेगी.

दूसरी बात ये कि पूंजीगत खर्च के लिए एक बड़ी रकम रखी गई है. लेकिन अगर मेक इन इंडिया का सारा प्रोग्राम चल जाए, अगर वो कारगर साबित हुआ तो उतने ही पैसे में रक्षा की जरूरतें पूरी हो सकती है. बशर्तें की वो चीजें आयात किए जाएं.

दरअसल, वहां भी एक समन्वय बैठाने की कोशिश की गई है. इसके अलावा, पिछले वर्ष की तुलना में अगर देखा जाए तो मॉडर्नेजाइजेशन के लिए जो रकम रखी गई थी, वो भी पूरी तरीके से इस्तेमाल नहीं की गई है. तो मेरे हिसाब से इस बजट को लेकर कोई चिंता की बात नहीं है.    

जरूरी नहीं जीडीपी की 3 फीसदी हो रक्षा बजट

कुछ लोग इस वजह से ऊंगलियां उठाते हैं कि भारत की कुल मिलाकर जो अर्थव्यवस्था है, उसमें सुरक्षा का बजट आइडियली 3 फीसदी होना चाहिए. लेकिन हमारा 2 या उससे भी थोड़ा कम है. लेकिन वो भी एक बेईमानी सी बात हो जाती है. जापान के तो संविधान में ये लिखा हुआ है कि राष्ट्रीय आय का 1 प्रतिशत से ज्यादा रक्षा बजट नहीं हो सकता है. लेकिन, आपकी राष्ट्रीय आय अगर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हो तो वे 1 फीसदी भी बहुत ज्यादा हो जाता है. अगर राष्ट्रीय आय दुनिया के 100वें नंबर पर हो तो 5% भी कम रहता है. लेकिन, ये देखा जाता है कि आखिर आपकी क्या रक्षा जरुरियात है. पूरी की पूरी तो की नहीं हो सकती है.

टू फ्रंट वॉर जैसी न हो कभी स्थिति

भगवान से ये प्रार्थना करना चाहिए कि कभी भारत को टू फ्रंट वॉर की स्थिति का सामना न करना पड़ा. उस स्थिति के लिए यह बजट पर्याप्त नहीं है. फिर, ये भी देखना है कि दो दो फ्रंट पर लड़ना ही पड़े तो जो सामरिक हथियार हैं, उनको भी पॉजिशन में लेकर आना पड़ेगा. ये संभव नहीं है को दो फ्रंट पर आप लड़े और उसकी जरूरत न पड़े. दुनिया का कोई भी देश टू फ्रंट पर एक साथ नहीं लड़ सकता. अमेरिका भी इराक और अफगानिस्तान के साथ दो छोटे वॉर लड़ रहा था तो उस वक्त उसकी हालत काफी खराब हो गई  थी.

इसलिए, पाकिस्तान भले ही अर्थव्यवस्था के हिसाब से 10 गुना छोटी है लेकिन सैन्य लिहाज से वो भारत का एक तिहाई है. इसलिए कोशिश यही हो कि दो फ्रंट में न लड़ा जाए.  

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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