Pakistan Crisis & India: पाकिस्तान इन दिनों चौतरफा परेशानियों से घिरा हुआ है. राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहे पाकिस्तान को आर्थिक मोर्चे पर भी बुरे दिन देखने पड़ रहे हैं. हालात इतने खराब हो गए हैं कि पाकिस्तान अब दुनिया में घूम-घूम कर भीख मांगने को मजबूर हो गया है.
पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति दिन प्रति दिन खराब ही होते जा रही है. पुराने साथी भी अब उससे पिंड छुड़ाने की कोशिश में हैं. पाकिस्तान समस्याओं का पिटारा बन गया है. उसके पास इन समस्याओं से निकलने के सारे रास्ते धीरे-धीरे बंद होते जा रहे हैं. ऐसे में आर्थिक और राजनीतिक दुष्चक्र में फंसे पाकिस्तान की हर बीमारी का इलाज भारत से बेहतर संबंध ही हो सकता है. ये कैसे संभव हो पाएगा, इसके विश्लेषण से पहले ये समझना जरूरी है कि पाकिस्तान की आर्थिक और राजनीतिक बीमारी कितनी गंभीर है.
आटा-दाल का जुगाड़ हुआ मुश्किल
पाकिस्तान के लोगों के लिए आटा-दाल का जुगाड़ भी अब चांद पर पहुंचने जैसा दुरूह होते जा रहा है. वहां आटे-दाल की कीमतें तो आसमान छू ही रही हैं, वहां के लोगों को पैसा होने के बावजूद आटा-दाल नहीं मिल पा रहा है. महंगाई चरम पर पहुंची हुई है. महंगाई दर 25 फ़ीसदी हो गई है. दूध, प्याज, नमक जैसे जरूरी सामान भी इतने महंगे हो गए हैं कि कई लोगों के लिए इन सब चीजों को खरीदना सपना सरीखा होते जा रहा है. हालात इतने बुरे हो गए हैं कि आटे-दाल के लिए लोगों में मारा-मारी तक हो रही है. बलूचिस्तान की राजधानी क्वेटा में आटे से लदे ट्रक के पीछे भागते लोगों की तस्वीरें पाकिस्तान की जर्जर हो चुकी अर्थव्यवस्था की वास्तविकता को बयां करने के लिए काफी है. डॉलर की कमी के कारण पाकिस्तान खाना पकाने के तेल जैसे जरूरी सामानों का आयात भी नहीं कर पा रहा है. डॉलर की कमी से बंदरगाहों पर बड़े पैमाने पर कच्चा तेल, खाद्य तेल, दवाइयां जैसे जरूरी सामान लेटर ऑफ़ क्रेडिट के लिए अदायगी नहीं होने की वजह से फंसे हुए हैं.
बाढ़ से पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान
2022 में भीषण बाढ़ ने पाकिस्तान में जिस तरह से तबाही मचाई, उससे उबरने में पाकिस्तान की अर्थवस्था को कई साल लग सकते हैं. 2022 में जून से अक्टूबर के बीच गर्मियों में एक तिहाई पाकिस्तान बाढ़ की चपेट में था. सबसे ज्यादा असर सिन्ध और बलूचिस्तान में था. भीषण बाढ़ से करीब साढ़े तीन करोड़ लोग प्रभावित हुए थे. इसे पाकिस्तान का सबसे भीषण जलवायु आपदा भी बताया गया था. हालत इतने बुरे थे कि अभी भी बाढ़ के पानी में बहुत कम उतार आया है. 80 लाख लोग अभी भी विस्थापित हैं. इनके लिए इस आपदा से बाहर आने में अभी कई साल लग जाएंगे. पाकिस्तान में बाढ़ से 1700 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी. 22 लाख से ज्यादा घर तबाह हो गए. स्वास्थ्य सेवाएं चरमरा गई. 44 लाख एकड़ फसलें बर्बाद हो गई. 8 हजार से ज्यादा लंबी सड़कों के साथ दूसरे बुनियादी ढांचे भी तबाह हो गए. बाढ़ के कई महीने बाद भी दूषित जल जमाव से पाकिस्तान के लाखों बच्चे मुश्किल में हैं. यूनिसेफ के मुताबिक 40 लाख बच्चे दूषित जल जमाव के आस-पास रहने के लिए मजबूर हैं.
दर-दर भीख मांगने को मजबूर पाकिस्तान
बाढ़ से हुए नुकसान की भरपाई में पाकिस्तान को कई साल लग जाएंगे. संयुक्त राष्ट्र का मानना है कि पाकिस्तान को बाढ़ से हुए नुकसान की भरपाइ के लिए फौरी तौर से 16 अरब डॉलर की जरुरत होगी. दीर्घकालिक अवधि के हिसाब से ये राशि 30 अरब डॉलर की है. ये रकम इतनी बड़ी है कि पाकिस्तान की जर्जर अर्थव्यवस्था इसका बोझ उठा ही नहीं सकती. पिछले कुछ महीनों से पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ अमेरिका, सऊदी अरब समेत दुनिया के कई देशों के सामने मदद की गुहार लगा रहे थे. संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस की पहल के बाद अब अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने पाकिस्तान को करीब 9 अरब डॉलर की मदद का भरोसा दिया है. इसके लिए बकायदा जेनेवा में यूएन ने फंड रेजिंग कार्यक्रम का आयोजन किया. इस्लामिक विकास बैंक ने 4.2 अरब डॉलर, विश्व बैंक ने 2 अरब डॉलर और एशियाई विकास बैंक ने 1.5 अरब डॉलर और सऊदी अरब ने एक अरब डॉलर देने का वादा किया है. वहीं चीन और अमेरिका ने एक-एक अरब डॉलर, यूरोपीय संघ ने 9.3 करोड़ डॉलर, जर्मनी ने 8.8 और जापान ने 7.7 करोड़ डॉलर देने का आश्वासन दिया है.
जरुरतमंद लोगों तक राहत पहुंचने पर शंका
पाकिस्तान राजनीतिक और आर्थिक संकट के साथ ही भरोसे के संकट से भी गुजर रहा है. दुनिया के कई देशों को वहां की सरकार की मंशा पर अब भरोसा नहीं रहा है. बाढ़ पीड़ितों के पुनर्वास और बाढ़ से हुए नुकसान की भरपाई के लिए पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय समुदाय से 9 अरब डॉलर मदद का भरोसा तो मिल गया है, लेकिन पाकिस्तान के भीतर और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों में ये चिंता बनी हुई है कि क्या पाकिस्तान में ये राशि बाढ़ पीड़ित 3.3 करोड़ लोगों तक पहुंच पाएगी. ये बात किसी से छिपी नहीं है कि पाकिस्तान के सुरक्षा और राजनीतिक प्रतिष्ठान में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी है. इस बात की भी संभावना बनी हुई है कि इस राशि में से ज्यादातर हिस्सा पाकिस्तानी सरकार के खर्चों और आयात बिल को पूरा करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय की इस पर भी नज़र होगी कि बलूचिस्तान के जिन इलाकों में सरकार विरोधी आवाज ज्यादा बुलंद है, उन इलाकों में पाकिस्तान पुनर्वास के लिए इन राशि का इस्तेमाल करता है या नहीं.
दिवालिया होने के कगार पर पाकिस्तान
पाकिस्तान के हर आर्थिक सूचकांक में गिरावट दर्ज की जा रही है. पाकिस्तानी रुपये की तुलना में डॉलर के मूल्य में वृद्धि के साथ-साथ स्टॉक मार्केट पिछले कई महीनों से मंदी का शिकार है. पाकिस्तान में एक डॉलर की कीमत 228 रुपये के बराबर पहुंच चुकी है. खुले बाजार में तो डॉलर की कीमत इससे भी 40 रुपये ज्यादा है. पाकिस्तान में विदेशी मुद्रा कोष फरवरी 2014 के बाद सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है. पाकिस्तान के विदेशी मुद्रा भंडार में सिर्फ 4.3 अरब डॉलर बचे हैं. वहीं देश के वाणिज्यिक बैंकों के पास 5.8 अरब डॉलर हैं. इस तरह से पाकिस्तान के पास कुल 10.1 अरब डॉलर ही हैं. आयात बिल का भुगतान के लिए भी पाकिस्तान के पास जरूरी डॉलर नहीं बच रहे हैं. उसके पास सिर्फ 3 हफ्ते के आयात बिल के लिए ही विदेशी मुद्रा बचा है. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था दिवालिया होने के कगार पर पहुंच चुकी है. हालात इतने बुरे हैं कि अब पाकिस्तान के लिए विदेशी कर्जों की किश्त चुकाना मुश्किल हो गया है. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ घूम-घूम कर खाड़ी देशों के बाद यूरोपीय देशों के आगे हाथ फैला रहे हैं. विश्व बैंक ने अरबों डॉलर के विदेशी कर्ज में डूबे पाकिस्तान की जीडीपी वृद्धि दर को घटाकर 2 प्रतिशत कर दिया है.
विदेशी कर्जों से दबा जा रहा है पाकिस्तान
पाकिस्तान पर 100 अरब डॉलर का कर्ज है. पाकिस्तान को अगले दो साल के लिए सालाना 20 अरब डॉलर से भी ज्यादा का कर्ज चुकाना है. 2017 में सालाना कर्ज भुगतान 7 अरब डॉलर था जो बढ़कर 2023 और 2024 के लिए 20-20 अरब डॉलर हो गया है. पाकिस्तान ने डॉलर के जाने के कई रास्ते बना लिए हैं, लेकिन डॉलर के आमद के रास्ते पाकिस्तान के लिए बंद होते जा रहे हैं. दूसरे देशों में काम करने वाले पाकिस्तानी नागरिकों की तरफ से भेजी जाने वाली रकम भी लगातार घटती जा रही है और दिसंबर 2022 में यह सिर्फ दो अरब डॉलर रह गई. ये पिछले ढाई साल का सबसे निचला स्तर था. इससे भी पाकिस्तान के विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आई है. पुराने कर्ज को चुकाने के लिए ठोस रणनीति की बजाय पाकिस्तान की सरकार नए-नए कर्ज लेने के लिए मजबूर दिख रही है. ऐसा लग रहा है कि पाकिस्तान के पास आर्थिक दुष्चक्र से निकलने का कोई रोडमैप बचा ही नहीं है. न तो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और न ही वित्त मंत्री इसहाक़ डार (Ishaq Dar) के पास कोई ठोस योजना दिख रही है.
पुराने मित्र पाकिस्तान से काट रहे हैं कन्नी
चारों ओर से संकट से घिरे पाकिस्तान के पुराने मित्र भी अब उससे पीछा छुड़ाने की जुगत में हैं. अमेरिका पाकिस्तान को बढ़-चढ़कर मदद करने में ज्यादा रुचि नहीं दिखा रहा है. अमेरिका को आतंकवाद के मुद्दे पर अब पाकिस्तान पर ज्यादा भरोसा नहीं रह गया है. भारत के साथ अमेरिका के बेहतर होते रिश्ते का भी असर दिख रहा है. आर्थिक दुश्वारियों से निकलने के लिए सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और चीन जैसे मित्र देशों से भी पाकिस्तान को तत्काल सहायता नहीं मिल पा रही है. ये सभी देश भी अब पाकिस्तान के अंदरूनी हालात को देखते हुए सोच-समझकर आर्थिक मदद पर कोई फैसला ले रहे हैं. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के साथ भी कुछ मुद्दों पर टकराव की वजह से पाकिस्तान को दूसरे देशों से वित्तीय मदद मिलने में देरी हो रही है. कहा तो ये भी जा रहा है कि पाकिस्तान धीरे-धीरे आईएमएफ का भी भरोसा खोते जा रहा है और इसकी मुख्य वजह ये है कि पाकिस्तान का कर्ज चुकाने का रिकॉर्ड बेहद खराब रहा है. पाकिस्तान की विश्वसनीयता इतनी कम होते जा रही है कि उसका मित्र देश सऊदी अरब पाकिस्तान के पीएम की बजाय पाकिस्तान की सेना प्रमुख से भरोसा मिलने के बाद ही किसी तरह के आर्थिक मदद का घोषणा करता है.
आतंकवाद की आग से जूझ रहा है पाकिस्तान
लंबे वक्त से पाकिस्तानी सरकार की नीति में आतंकवाद को हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जाता रहा है. भारत और अफगानिस्तान इसके बड़े भुक्तभोगी रहे हैं. हालांकि अब खुद पाकिस्तान आतंकवाद की आग में झुलसने को मजबूर है. तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) के आतंकियों ने पाकिस्तान में कोहराम मचा रखा है. 14 जनवरी को ही TTP के आतंकवादियों ने पेशावर में थाने पर हमला कर 3 पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी थी. टीटीपी ने एक तरह से पाकिस्तान सरकार के खिलाफ जंग छेड़ रखी है. इसके आतंकवादी सुरक्षा एजेंसियों से जुड़े लोगों की हत्या कर रहे हैं. इस मुद्दे पर अब अफगानिस्तान में शासन कर रहे तालिबान से भी पाकिस्तान का टकराव बढ़ते जा रहा है. पहले से ही आर्थिक झंझावातों से घिरे पाकिस्तान के लिए टीटीपी जैसे आतंकी संगठनों से निपटना टेढ़ी खीर होते जा रहा है.
राजनीतिक अस्थिरता से बढ़ रही है मुश्किल
पाकिस्तान में राजनीतिक गतिरोध भी बरकरार है. पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ (PTI) के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान सत्तारूढ़ शहबाज शरीफ गठबंधन सरकार पर लगातार हमलावर हैं. इमरान खान ने तो इतना तक दावा कर दिया है कि पीएम शहबाज शरीफ ज्यादा दिन तक पद पर नहीं रह पाएंगे. इमरान खान का कहना है कि नए सिरे से चुनाव ही पाकिस्तान को आर्थिक संकट से बाहर निकाल सकता है. वहीं शहबाज शरीफ का कहना है कि अगस्त में सरकार का कार्यकाल पूरा होने के बाद ही आम चुनाव कराए जाएंगे. पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ़ अल्वी तक ने अपील कि है कि देश के सभी दल संवाद के जरिए आर्थिक परेशानियों से निकलने का रास्ता निकालें. उनका कहना है कि राजनीतिक दलों ने मतभदों को भुलाकर हल नहीं निकाला, तो आर्थिक स्थिति और बदतर हो सकती है.
भारत से खराब संबंध से हो रहा है नुकसान
भारत से खराब संबंधों की वजह से भी पाकिस्तान की परेशानियां बढ़ गई हैं. भारत हमेशा से ही पाकिस्तान के साथ शांतिपूर्ण संबंध बनाए रखने का हिमायती रहा है. लेकिन पाकिस्तान हमेशा ही भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देने की फिराक में रहा है. इस वजह से भारत के साथ उसके संबंध बिगड़ते ही गए हैं. भारत दुनिया की बड़ी ताकत के रूप में आगे बढ़ रहा है, वहीं पाकिस्तान हर मोर्चे पर संकट से घिरते जा रहा है. भारत से खराब संबंध की वजह से दुनिया में कई देश अब पाकिस्तान से कतराने लगे हैं. भारत ने दुनिया के सामने पाकिस्तान के आतंकवाद को प्रश्रय देने वाले चेहरे को कई बार बेनकाब भी किया है. भारत के बढ़ते रुतबे और सधे कूटनीतिक तरीकों की वजह से पाकिस्तान कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अलग-थलग भी हुआ है.
भारत के साथ संबंधों को बेहतर करे पाकिस्तान
तात्कालिक समस्या के साथ ही दीर्घकालिक समस्याओं से निपटने में पाकिस्तान के लिए भारत बहुत ज्यादा मददगार साबित हो सकता है. लेकिन इसके लिए पहले पाकिस्तान को भारत से बेहतर संबंध बनाने का वास्तविक प्रयास करना पड़ेगा. उसे भारत का भरोसा जीतना होगा. इसके लिए भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देने की नीति पर पाकिस्तान को तत्काल रोक लगानी होगी. भारत से ही अलग होकर पाकिस्तान अलग देश बना था. आजादी के 75 साल बाद वैश्विक स्तर पर भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है. अगले 15 साल में भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य को लेकर आगे बढ़ रहा है. वहीं पाकिस्तान दिवालिया होने के कगार पर है. पाकिस्तान को इस बात को समझना होगा कि आखिर ये कैसे हुआ. भारत के साथ बेहतर संबंध कई मोर्चों पर पाकिस्तान को फायदा पहुंचा सकता है. भारत की अनदेखी करने का ही नतीजा है कि आज पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में भरोसे का संकट भी पैदा हो गया है.
अंतरराष्ट्रीय साख बढ़ाने में मिलेगी मदद
भारत से बेहतर संबंध पाकिस्तान के लिए अंतरराष्ट्रीय साख बढ़ाने का बड़ा जरिया बन सकता है. आज भारत की बात दुनिया का हर देश तवज्जो के साथ सुनता है, चाहे वो अमेरिका हो या फिर रूस. अगर पाकिस्तान इस वक्त भारत के साथ अच्छा रिश्ता रख पाता, तो भारत की एक आवाज ही पाकिस्तान की साख को बढ़ाने के लिए काफी होता. आतंकवाद से परेशान करने की वजह से ही भारत ने उसके नापाक मंसूबों को दुनिया के सामने कई बार जगजाहिर किया है. इसका पाकिस्तान को खामियाजा भी भुगतना पड़ रहा है. कई देश पाकिस्तान से मुंह मोड़ रहे हैं. जिस तरह से अस्तित्व में आने के बाद से ही पाकिस्तान ने भारत को आतंकवाद के जरिए परेशान किया, उन परिस्थितियों में कोई और देश पाकिस्तान के मौजूदा हालात का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए करता. लेकिन भारत ऐसा नहीं कर रहा है. आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान से परेशान रहने के बावजूद भारत ने 2010 के भीषण बाढ़ और 2005 में पीओके में आए जबरदस्त भूकंप के दौरान पाकिस्तान की बढ़-चढ़कर मदद की थी.
आर्थिक मोर्चे पर मिल सकती है मदद
भारत के साथ अगर पाकिस्तान रिश्ते सुधार लेता है, तो उसकी अर्थव्यवस्था के लिए ये बूस्टर की तरह काम करेगा. कई सारे ऐसे खाने-पीने के सामान हैं, जिन्हें पाकिस्तान आसानी से भारत से हासिल कर सकता है. संबंध बेहतर रहने पर द्विपक्षीय कारोबार भी बढ़ेंगे. इससे पाकिस्तान को कई चीजें, जिनका भारत में बहुतायत में उत्पादन होता है, वे कम कीमत पर मिल सकते हैं. इससे आयात पर खर्च में कटौती होगी और पाकिस्तान को अपना निर्यात बढ़ाने का भी मौका मिल जाएगा.
भारत के अनुभव का मिल सकता है फायदा
भारत विज्ञान से लेकर तकनीक के हर मोर्चे पर तरक्की कर रहा है. खेती से लेकर अंतरिक्ष जगत में भारत सफलता की नई कहानी गढ़ रहा है. संबंध बेहतर रहने पर पाकिस्तान को भारत के इस अनुभव का भी लाभ मिल सकता है. भारत के साथ बेहतर रिश्तों का फायदा भविष्य में पर्यटन के जरिए भी पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को मिल सकती है. भारत की आबादी इतनी बड़ी है और पड़ोसी होने के नाते इस आबादी का घूमने-फिरने के लिए पाकिस्तान जाना आसान है. संबंध बेहतर होने की स्थिति में इससे पाकिस्तान के पर्यटन को तेजी से बढ़ावा मिलेगा. हालांकि ये सब सिर्फ भविष्य की संभावनाएं हैं, जो सिर्फ और सिर्फ पाकिस्तान के रवैये पर निर्भर है.
पाकिस्तान के रक्षा विशेषज्ञ भी दे रहे हैं सलाह
पाकिस्तान के मशहूर रक्षा विशेषज्ञ शहजाद चौधरी ने भी पाकिस्तान के आकाओं को भारत से रिश्ते सुधारने की सलाह दी है. उन्होंने आर्थिक, राजनीतिक और सैन्य मोर्चे पर दोनों देशों की तुलना करते हुए पाकिस्तान के अखबार एक्सप्रेस ट्रिब्यून में लिखा है कि पाकिस्तान को भारत की तरक्की से सीख लेनी चाहिए. उन्होंने कहा है कि चौतरफा संकट से घिरे पाकिस्तान की सरकार को अपनी नीतियों को फिर से तय करना चाहिए. भारत के लिए नीतियों को साहसिक बनाने की नसीहत देते हुए शहजाद चौधरी ने कहा है कि पाकिस्तान की सरकार को उस नीति पर काम करना चाहिए, जिससे वो एशिया की आर्थिक तरक्की का लाभ उठा सके.
दिखाना होगा राजनीतिक इच्छा शक्ति
ये बात तो तय है कि भारत से बेहतर संबंध हर हाल में पाकिस्तान के लिए फायदेमंद है. हम कह सके हैं कि आर्थिक और राजनीतिक दुष्चक्र में फंसे पाकिस्तान की हर बीमारी का स्थायी इलाज भारत से बेहतर संबंध है. लेकिन इसके लिए पाकिस्तान को ठोस पहल के साथ ही भारत का भरोसा जीतना होगा. पाकिस्तान सरकार को आगे बढ़कर भविष्य में कुछ ऐसा करना होगा, जिससे वो भारत का भरोसा जीत सके. इसके लिए पाकिस्तान को जबरदस्त राजनीतिक इच्छा शक्ति की जरुरत होगी. इन सब तथ्यों के बावजूद सच्चाई यही है कि फिलहाल पाकिस्तान के हुक्मरानों में इतनी ज्यादा समझदारी विकसित होना दूर की कौड़ी है.
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