अमेरिका की राजकीय यात्रा पर जाने वाले दूसरे प्रधानमंत्री होंगे मोदी, तय होगा भविष्य के रिश्तों का आधार, जानें इसका महत्व
चीन का कंट्रोल अभी और बढ़ेगा, वैश्विक स्तर पर और उसे नियंत्रित करने के लिए भारत और अमेरिका जैसे लाइक-माइंडेड देशों को साथ आना पड़ेगा. इस बात को समझते हुए दोनों देश आपस में साथ आ रहे हैं और आगे भी बढ़ते रहेंगे.
प्रधानमंत्री मोदी अपने 9 वर्षों के कार्यकाल में 8वीं बार अमेरिका की यात्रा पर हैं. हालांकि, पहली बार वह राजकीय यात्रा पर हैं. वह 21 जून से 24 जून तक अमेरिका में रहेंगे. साल 2014 में वह पहली बार अमेरिका यात्रा पर गए थे और उसी साल दिसंबर में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में अपना संबोधन दिया था. इस यात्रा पर देश-विदेश के विशेषज्ञ नजरें गड़ाए हैं.
नरेंद्र मोदी का यह दौरा ऐतिहासिक और गेम-चेंजर
यह दौरा काफी ऐतिहासिक है, क्योंकि यह नरेंद्र मोदी का पहला स्टेट विजिट है. वह जब पहली बार 2014 में गए थे, तो उन्होंने कहा था कि ऐतिहासिक झिझक जो है, वह टूट गयी है. अब जब 10वां साल उनके कार्यकाल का शुरू हुआ है, तो बहुतेरी चीजें कार्यान्वित हो गयी हैं. यह दौरा खास इसलिए भी है कि वह एकमात्र ऐसे भारतीय प्रधानमंत्री होंगे, जो अमेरिकी संसद के संयुक्त सत्र को अपने टर्म में दूसरी बार संबोधित करेंगे. अभी जो भारतीय-अमेरिकी संबंधों में ऊर्जा देखने को मिल रही है, उसका एक कारण यह भी है कि पीएम मोदी लगातार संलग्न रहे हैं, संबंधों को गहरा बनाने में. बदलाव का सबसे बड़ा सूचक यह है कि हमने पिछले एक-डेढ़ साल से यूक्रेन युद्ध के बावजूद अपने संबंधों को बैलेंस किया हुआ है. आशंका यह थी कि रूस चूंकि हमारा पुराना सहयोगी और दोस्त है, दूसरे पश्चिमी देशों खासकर अमेरिका के साथ संबंध बहुत तेजी से नयी ऊंचाई छू रहे थे, तो संतुलन साधना मुश्किल होगा, लेकिन पिछले एक-डेढ़ साल में हमारे संबंध बहुत बढ़िया हुए हैं.
अमेरिका-भारत संबंधों में दो ही मापक अभी रहे हैं, फिलहाल. एक तो हमारे तकनीकी हस्तानांतरण कितने होते हैं, दूसरा रक्षा-मामलों में कितनी गरमाहट आ पाती है. भारत अपना भी रक्षा उत्पादन बढ़ाना चाहता है और इसलिए ये मामला खास तौर पर ट्रिकी हो जाता है. जनवरी में आईसेट (इनीशिएटिव ऑन काउंसिल ऑफ इमर्जिंग टेक्नोलॉजीज) पर हस्ताक्षर हुआ. इसमें भारत-अमेरिका एक साथ कैसे काम करेंगे, इसकी रूपरेखा तय हुई. पिछले हफ्ते जब अमेरिकी रक्षामंत्री ऑस्टिन लॉयर भारत आए तो एक डिफेंस समझौते पर भी बात हुई. उम्मीद कर रहे हैं कि पीएम मोदी के दौरे के दौरान इन दोनों चीजों पर बात होगी और ठोस समझौता भी होगा.
भारत और अमेरिका को एक-दूसरे की जरूरत
आज जिस तरह से भू-राजनैतिक संदर्भ और मानचित्र बदल रहे हैं, उसमें भारत और अमेरिका के संबंध परस्पर सहयोग और समन्वय पर आधारित हैं. विदेश मामलों के विशेषज्ञ हर्ष वी पंत कहते हैं, “हमारी जो पुरानी समस्याएं थीं, उससे हम आगे बढ़ रहे हैं. सेंटर ऑफ ग्रैविटी जो है, वह हिंद-प्रशांत क्षेत्र हो गय है. भारत की सबसे बड़ी समस्या चीन और उसका विस्तारवादी रवैया है. इसमें सामंजस्य बिठाने के लिए ही यूक्रेन युद्ध के बावजूद दोनों देश एक-दूसरे के साथ काम करते रहे हैं. दोनों ही देश जानते हैं कि यूक्रेन का मसला हो या ऐसे और भी कई मसले, वे आते-जाते रहेंगे, लेकिन चीन दोनों के लिए ही चुनौती है. इसीलिए, चाहे द्विपक्षीय संबंध हों या फिर क्वाड की सदस्यता और विस्तार, तकनीकी-रक्षा मामले हों या फिर सैन्य सहयोग, दोनों ही देश लगातार आगे बढ़ रहे हैं. भारत और अमेरिका अब बहुपक्षीय संबंधों और वैश्विक स्तर पर काम कर रहे हैं, इसका कारण है कि सामरिक संदर्भ बदल गए हैं, इसका अर्थ ये है कि भारत अब एक मजबूत सहयोगी है.”
भविष्य में संबंध और सशक्त होंगे
चीन का आक्रामक रुख दोनों ही देशों के लिए चिंताजनक है. प्रशांत क्षेत्र में एक स्थिर संतुलन बना रहे, यह दोनों ही देशों के हित में है. हमारी बहुतेरी चिंताएं जो थीं, वह भी मिट गयी हैं. बाइडेन प्रशासन के आने पर यह आशंका थी कि वह भारत के अंदरूनी मसलों में दखल देगा, मानवाधिकार और बाकी मसलों को लेकर भारत को परेशानी में डालेगा, लेकिन वह चिंता खत्म हो गयी है. अभी हाल ही में जब ह्वाइट हाउस में एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान पत्रकार ने भारतीय लोकतंत्र पर सवाल पूछा तो उसे वहां जाकर देख कर आने की सलाह दी गयी. अमेरिका ने यह कह दिया है कि भारतीय लोकतंत्र बहुत अच्छा कर रहा है. दोनों देशों के सामने बड़े और सामरिक मुद्दे हैं, इसलिए दोनों इसी पर काम कर रहे हैं.
चीन का कंट्रोल अभी और बढ़ेगा, वैश्विक स्तर पर और उसे नियंत्रित करने के लिए भारत और अमेरिका जैसे लाइक-माइंडेड देशों को साथ आना पड़ेगा. इस बात को समझते हुए दोनों देश आपस में साथ आ रहे हैं और आगे भी बढ़ते रहेंगे.
ऐतिहासिक झिझक को झाड़ चुके
भारत-अमेरिकी संबंधों में खास बात यह देखने क मिल रही है कि दोनों देशों में सरकार किसी की हो पार्टी किसी की भी हो, वह द्विपक्षीय संबंधों को लेकर आगे बढ़े हैं. जॉर्ज बुश हों या ओबामा या ट्रंप हो या बाइडेन, संबंधों को उन्होंने तरजीह दी है. मोदी के पीएम बनने के बाद भी यह आशंका थी कि अमेरिका ने चूंकि उनको वीजा देने से इनकार कर दिया था, तो उसकी कड़वाहट दिख सकती है, लेकिन पीएम मोदी ने बड़े ग्रेसफुल तरीके से उस बात को भुला दिया. वह 2014 से आजतक यहां पहुंचे हैं, दोनों ही देश संबंध प्रगाढ़ बनाने को उत्सुक हैं, दोनों देशों के प्रधान उत्सुक हैं और भारत-अमेरिकी संबंध नयी ऊंचाई छुएंगे, यही उम्मीद की जानी चाहिए.