PM Modi UAE Visit: भारत का पिछले कुछ सालों में अरब देशों से नजदीकियां बढ़ी है. इन्हीं में से एक देश संयुक्त अरब अमीरात है. यूएई के साथ भारत के द्विपक्षीय संबंध काफी पुराने हैं और भविष्य में इसमें और प्रगाढ़ता आने की संभावना है.
ऐसा इसलिए कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फ्रांस की यात्रा पूरी होने के बाद 15 जुलाई को संयुक्त अरब अमीरात की यात्रा करेंगे. इस दौरान पीएम मोदी और संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रपति और अबू धाबी के शासक शेख मोहम्मद बिन ज़ायद अल नाहयान के साथ वार्ता करेंगे.
पीएम मोदी 15 जुलाई को जाएंगे यूएई
यूएई की राजधानी अबू धाबी की यात्रा को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काफी उत्सुक हैं. दो देशों की विदेश यात्रा शुरू करने से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिए गए बयान से ये साफ है कि इस यात्रा को लेकर उन्हें कितनी उम्मीदें हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि पिछले साल वे और यूएई के राष्ट्रपति शेख मोहम्मद बिन ज़ायद भावी साझेदारी का रोडमैप बनाने पर सहमत हुए थे और इस बार वे उनके साथ चर्चा करने की प्रतीक्षा में हूं कि कैसे दोनों देश अपने रिश्तों को और गहरा बना सकते हैं.
व्यापक रणनीतिक साझेदारी का नया अध्याय
प्रधानमंत्री मोदी ने भरोसा जताया है कि उनकी अबू धाबी की यात्रा से भारत और यूएई के बीच समग्र रणनीतिक साझेदारी का एक नया अध्याय शुरू होगा. भारत और यूएई के बीच कई क्षेत्रों में व्यापक सहयोग है. इनमें व्यापार, निवेश, ऊर्जा, खाद्य सुरक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के साथ ही शिक्षा भी शामिल है. इनके अलावा फिन-टेक, रक्षा और सुरक्षा सहयोग द्विपक्षीय संबंधों का मुख्य स्तंभ बनता जा रहा है. दोनों ही देशों ने हमेशा ही लोगों के बीच गहरे मेल-मिलाप के साथ ही सांस्कृतिक सहयोग दिया है. पीएम मोदी की यात्रा से इन क्षेत्रों में सहयोग के नए आयामों की पहचान में मदद मिलेगी.
यूएई के साथ वैश्विक मुद्दों पर भी होगी चर्चा
प्रधानमंत्री मोदी यूएई के राष्ट्रपति के साथ वैश्विक मुद्दों पर भी चर्चा करेंगे. इस साल के आखिर तक संयुक्त अरब अमीरात यूएनएफसीसी COP-28 के सभी पक्षकारों के 28वें सम्मेलन की मेजबानी कर रहा है. पीएम मोदी ने इस बात का जिक्र करते हुए ये भी कहा है कि वे यूएई के राष्ट्रपति नाहयान के साथ जलवायु सम्बंधी कार्यवाही को तेज करने के बारे में वैश्विक सहयोग को मजबूत बनाने के मुद्दे पर भी बातचीत करेंगे. प्रधानमंत्री का मानना है कि इससे पेरिस समझौते के तहत एनर्जी ट्रांजिशन और क्रियान्वयन को मुमकिन बनाया जा सकेगा.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यूएई के राष्ट्रपति के साथ वार्ता में जी 20 के एजेंडे को लेकर भी बातचीत होगी. भारत फिलहाल दुनिया के सबसे ताकतवर आर्थिक समूह जी 20 की अध्यक्षता कर रहा है और जी 20 का सालाना शिखर सम्मेलन 9 और 10 सितंबर को नई दिल्ली में होना है. ऐसे तो यूएई इस समूह का स्थायी सदस्य नहीं है, लेकिन वो समूह का एक विशेष आमंत्रित सदस्य जरूर है.
इंडो-पैसिफिक रीजन और चीन का रुख़
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत का व्यापक हित है. इस रीजन में चीन के बढ़ते आक्रामक और विस्तारवादी रुख़ से भारत समेत कई देश चिंतित हैं. इस रीजन में भारत ने हमेशा ही संबंधित अंतरराष्ट्रीय कानूनों और नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का समर्थन करता है, जिससे बाधारहित समुद्री व्यापार में कोई खलल नहीं पड़े. हालांकि चीन की नीतियों से इस पर असर पड़ रहा है और भारत चाहता है कि इस रीजन से जुड़े तमाम देश और संबंधित पक्ष शांति सुनिश्चित करने के लिए सहयोग करें. इस लिहाज से संयुक्त अरब अमीरात के साथ भारत का मजबूत होता संबंध बेहद महत्वपूर्ण है.
भारत का मकसद एक स्वतंत्र, खुले, समावेशी, सुरक्षित और स्थिर हिंद-प्रशांत क्षेत्र को आगे बढ़ाना है और इसके लिए भारत साझा दृष्टिकोण को साझा करने वाले देशों के साथ मिलकर काम कर रहा है. भारत के इस मंसूबे में फ्रांस के साथ ही यूएई की भूमिका भी काफी महत्वपूर्ण है.
पीएम मोदी की यात्रा और त्रिपक्षीय सहयोग
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विदेश यात्रा के लिए जिन दो देशों को एक साथ चुनाव है, उसका भी सामरिक महत्व है. फ्रांस की यात्रा के बाद यूएई जाने के महत्व को समझने के लिए ये जानना जरूरी है कि भारत, फ्रांस और यूएई तीनों एक त्रिपक्षीय गुट बनाकर साझा हितों में सहयोग बढ़ाने के लिए पिछले कुछ वक्त से मिलकर काम कर रहे हैं.
भारत, फ्रांस और यूएई का त्रिपक्षीय ढांचा
कूटनीति के नए तरीकों के तहत भारत दुनिया की बड़ी ताकतों के साथ द्विपक्षीय साझेदारी मजबूत करने के साथ ही छोटे-छोटे समूहों में सामूहिक भागीदारी को भी तवज्जो दे रहा है. इस कड़ी में अंतरराष्ट्रीय पटल पर एक मजबूत त्रिपक्षीय मंच का अस्तित्व सामने आया है, इसमें भारत के साथ फ्रांस और यूएई शामिल हैं.
त्रिपक्षीय ढांचे के तहत ये तीनों ही देश आपसी साझेदारी को नया आयाम देने पर इसी साल फरवरी में सहमत हुए थे. इन तीनों देशों के बीच गठजोड़ को Trilateral Cooperation Initiative (त्रिपक्षीय सहयोग पहल) नाम दिया गया है. फरवरी में तीनों देशों ने रक्षा, परमाणु ऊर्जा और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में सहयोग को लेकर महत्वाकांक्षी रोडमैप पेश किया था. विदेश मंत्री एस जयशंकर, फ्रांस के विदेश मंत्री कैथरीन कोलोना और यूएई के विदेश मंत्री शेख अब्दुल्ला बिन जायद अल नाहयान के बीच 4 फरवरी को फोन पर बातचीत हुई. थी, जिस दौरान तीनों देश सहयोग के क्षेत्रों की पहचान करते हुए त्रिपक्षीय सहयोग के ढांचे को और मजबूत करने पर सहमत हुए थे.
त्रिपक्षीय सहयोग के मकसद से जी 20 की भारत की अध्यक्षता और 2023 में संयुक्त अरब अमीरात की ओर से COP-28 की मेजबानी के तहत इस साल त्रिपक्षीय कार्यक्रमों की सीरीज़ का भी आयोजन किया जा रहा है.
त्रिपक्षीय सहयोग ढांचे का महत्व
भारत, फ्रांस और संयुक्त अरब अमीरात, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सामरिक हितों को साझा करते हैं. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते वर्चस्व को देखते हुए भारत, फ्रांस और यूएई का आपसी तालमेल बढ़ना बेहद अहम हो जाता है. तीनों देश अलग-अलग हैं और एक-दूसरे के रणनीतिक साझेदार हैं. तीनों देश एक-दूसरे के साथ सहज भी हैं. इनके बीच कई ऐसे क्षेत्र हैं, जिसमें तीनों देशों का सहयोग आपसी हितों को भी पूरा करने में मदद कर सकता है.
ये त्रिपक्षीय ढांचा क्वाड ( भारत, जापान, अमेरिका, और ऑस्ट्रेलिया) और I2U2 ( भारत, इजरायल, यूएई और अमेरिका) के तर्ज पर साझा एजेंडे को पूरा करने के लिहाज से मजबूत मंच साबित हो सकता है. इस तरह का त्रिकोणीय गठजोड़ कूटनीति के नए और समकालीन तरीकों के लिहाज से कारगर भी साबित हो रहे हैं.
पारंपरिक तौर से भारत ऐसे छोटे विशेष ग्रुप से दूर रहता था, लेकिन चीन के साथ बिगड़ते संबंधों और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बदलते हालात को देखते हुए भारत के लिए समान विचारधारा वाले सामरिक भागीदारों के साथ कूटनीति के नए तरीकों पर बढ़ते हुए छोटे-छोटे समूह का हिस्सा बनना वक्त की जरूरत भी है. कूटनीति अब बदल रही है. ऐसे देश जो पड़ोसी नहीं हैं या एक क्षेत्र में एक-दूसरे के अगल-बगल में नहीं हैं, लेकिन जिनके कुछ आपसी हित हैं, वे अब एक-दूसरे के साथ मिलकर काम कर रहे हैं. इस कूटनीति में फ्रांस के साथ यूएई की भूमिका काफी ज्यादा है.
पहला त्रिपक्षीय समुद्री साझेदारी अभ्यास
इस साल जून में भारत, फ्रांस और यूएई के त्रिपक्षीय सहयोग को नया मुकाम हासिल हुआ था, जब तीन देशों की नौसेनाओं के बीच पहले त्रिपक्षीय समुद्री साझेदारी अभ्यास का सफल समापन हुआ था. ये त्रिपक्षीय समुद्री साझेदारी अभ्यास 7 और 8 जून को हुआ था.
सामरिक हितों की समानता और मजबूत द्विपक्षीय संबंधों को देखते हुए, आने वाले वक्त में भारत-फ्रांस-यूएई त्रिपक्षीय गठजोड़ हिंद प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक गतिशीलता को आकार देने वाले एक मजबूत स्तंभ के रूप में उभरेगा, इसकी पूरी संभावना है.
अरब देशों के साथ बेहतर होते रिश्ते
भारत अरब देशों के साथ भी अपने संबंधों को लगातार बेहतर कर रहा है. उसके पीछे भी एक बड़ी वजह रूस और चीन के बीच बढ़ती जुगलबंदी है. ये सही है कि फिलहाल भारत के कच्चे तेल के आयात में रूस की हिस्सेदारी लगातार बढ़ रही है और ओपेक देशों की हिस्सेदारी घट रही है. रूस से कच्चे तेल के आयात का आंकड़ा सऊदी अरब, इराक, संयुक्त अरब अमीरात और अमेरिका से सामूहिक रूप से खरीदे गए तेल के आंकड़ों से भी ज्यादा हो गया है.
लगातार नौ महीने से रूस, भारत का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बना हुआ है. इस हालात के लिए रूस का यूक्रेन से युद्ध सबसे बड़ा कारण है क्योंकि जब रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू नहीं हुआ था, तो उस वक्त फरवरी 2022 में भारत के कच्चे तेल के आयात में रूस का हिस्सा एक प्रतिशत से भी कम था.
अमेरिका और बाकी पश्चिमी देशों की ओर से तमाम पाबंदी की वजह से और युद्ध पर हो रहे खर्च की भरपाई के लिए रूस की ये मजबूरी थी कि वो भारत को कम कीमत पर कच्चा तेल मुहैया कराए. इस बीच ये संभावना बनी रहेगी कि जब यूक्रेन युद्ध खत्म हो जाएगा और रूस की अर्थव्यवस्था पटरी पर आने लगेगी, तो वो फिर से कच्चे तेल के मामले में भारत के साथ अपनी शर्तों पर बार्गेन करने की स्थिति में होगा. भविष्य की आशंका को देखते हुए भारत के लिए जरूरी है कि वो अरब देशों के साथ संबंधों को और बेहतर करे. हमारे लिए पुराने समय से संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब कच्चे तेल के बड़े आपूर्तिकर्ताओं में से एक रहा है.
चीन और पाकिस्तान की काट पर फोकस
भारत के लिए चीन और पाकिस्तान दोनों समस्या बन चुके हैं. इन दोनों ही देशों की ओर से भारत के लिए हमेशा ही परेशानियां पैदा करने की कोशिश की जाती रही है. सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात की इन दोनों देशों के साथ नजदीकी रही है. चीन भी अरब देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने में जुटा है. सऊदी अरब और ईरान की नजदीकियां और सीरिया का फिर से अरब लीग में शामिल होने में चीन की बड़ी भूमिका रही है. इस नजरिए से भारत के लिए जरूरी हो गया है कि चीन और पाकिस्तान को साधने के लिए वो सऊदी अरब और यूएई दोनों के साथ रिश्तों को और मजबूत बनाए. यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अरब के इन दो महत्वपूर्ण देशों के साथ साझेदारी को नया आयाम देने पर पिछले कुछ सालों से काफी मेहनत की है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अबू धाबी यात्रा को इसकी अगली कड़ी के तौर पर भी देखा जाना चाहिए.
यूएई से लगातार प्रगाढ़ हो रहे हैं संबंध
भारत और यूएई के बीच राजनयिक संबंधों के 50 साल 2022 में ही पूरे हुए थे. भारत और यूएई के बीच 1972 में राजनयिक संबंध स्थापित हुए थे. यूएई ने 1972 में भारत में अपना दूतावास खोला, जबकि यूएई में भारतीय दूतावास 1973 में खोला गया था.
दोनों देश बने व्यापक रणनीतिक साझेदार
पिछले कुछ वर्षों में भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच संबंधों का और भी विस्तार हुआ है. पिछले 8 साल में दोनों देशों के बीच उच्चस्तरीय यात्राओं की संख्या में तेजी से इजाफा गहरे होते संबंधों का प्रमाण है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले 8 साल में 4 बार यूएई की यात्रा कर चुके हैं. पीएम मोदी अगस्त 2015, फरवरी 2018, अगस्त 2019 और जून 2022 में वहां जा चुके हैं. अब वे पांचवीं बार यूएई की यात्रा पर जा रहे हैं.
अगस्त 2015 में जब पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूएई की यात्रा की थी, तब दोनों देशों के बीच व्यापक रणनीतिक साझेदारी बनाने को लेकर विचतार करने पर सहमति बनी थी. अबू धाबी के क्राउन प्रिंस के तौर पर शेख मोहम्मद बिन ज़ायद अल नाहयान 2016 और 2017 में भारत आ चुके हैं. शेख मोहम्मद बिन ज़ायद अल नाहयान की 2017 की यात्रा के दौरान औपचारिक तौर से द्विपक्षीय संबंधों को व्यापक रणनीतिक साझेदारी में बदल दिया था.
शेख मोहम्मद बिन ज़ायद अल नाहयान ने मई 2022 में यूएई के राष्ट्रपति पद की जिम्मेदारी संभाली थी. वे यूएई के तीसरे राष्ट्रपति बने हैं. उसके बाद 28 जून 2022 को जर्मनी से लौटते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अबू धाबी में यूएई के राष्ट्रपति नाहयान से मुलाकात की थी.
व्यापार द्विपक्षीय संबंधों का है आधार
व्यापार और निवेश दोनों देशों के आपसी संबंधों का मुख्य आधार है. ये इसी से समझा जा सकता है कि यूएई, भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. इस मामले में यूएई सिर्फ अमेरिका और चीन से पीछे है. वहीं भारत से निर्यात के मामले में यूएई दूसरे पायदान पर है. यूएई से ज्यादा निर्यात भारत सिर्फ़ अमेरिका को करता है.
CEPA से व्यापार बढ़ाने में मिली मदद
भारत और यूएई ने 18 फरवरी 2022 को व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (CEPA) पर हस्ताक्षर किए थे जो उसी साल 1 मई से लागू हो गया था. इस समझौते का मकसद आपसी व्यापार और निवेश को बढ़ाना है. इसका असर दिखने भी लगा है. इस समझौते ने द्विपक्षीय व्यापार और ख़ासकर भारत से यूएई को निर्यात पर व्यापक प्रभाव डाला है. यही वजह है कि वित्तीय वर्ष 2022-23 में द्विपक्षीय व्यापार ऐतिहासिक ऊंचाई तक पहुंच गया. 2021-22 में द्विपक्षीय व्यापार 72.9 अरब डॉलर का था. सीईपीए के बाद 2022-23 में द्विपक्षीय व्यापार 16% बढ़कर 84.5 अरब डॉलर हो गया.
भारत का यूएई को निर्यात बढ़ाने पर ज़ोर
हालांकि अमेरिका के विपरीत यूएई के साथ व्यापार में ट्रेड बैलेंस भारत के पक्ष में नहीं है. यानी हम जितना यूएई को निर्यात करते हैं, उससे कहीं ज्यादा यूएई से आयात करते हैं. व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते से इस पहलू में सुधार करने में भी भारत को मदद मिल रही है. यहीं वजह है कि वित्त वर्ष 2022-23 की अवधि में भारत से संयुक्त अरब अमीरात को निर्यात भी बढ़कर कई वर्षों के उच्चतम स्तर तक पहुंच गया. इस दौरान निर्यात 3.3 अरब डॉलर की वृद्धि के साथ 31.3 अरब डॉलर हो गया.
यूएई से भारत में बड़े पैमाने पर निवेश
यूएई निवेश के नजरिए से भी काफी मायने रखता है कि पिछले कुछ सालों में यूएई से भारत में निवेश लगातार बढ़ा है. एफडीआई के टर्म में यूएई, भारत का सातवां सबसे बड़ा निवेशक देश है. अभी यह 21 अरब डॉलर के आसपास है. जिसमें से 15 अरब डॉलर एफडीआई के तौर पर है और बाकी पोर्टफोलियो इन्वेस्टमेंट के तौर पर है. एक समझौता ज्ञापन के जरिए यूएई ने कुछ साल पहले भारत में बुनियादी ढांचे के विकास के लिए 75 अरब डॉलर के निवेश प्रतिबद्धता जताई थी. अबू धाबी निवेश प्राधिकरण (ADIA) ही यूएई ही प्रमुख संप्रभु धन कोष (sovereign wealth fund) है, इसकी गिनती दुनिया के सबसे बड़े फंडों में से एक में की जाती है. ADIA ही भारत के बुनियादी ढांचा क्षेत्र में 75 अरब डॉलर के निवेश पर आगे बढ़ रहा है. भारत और यूएई के बीच ऊर्जा के क्षेत्र में मजबूत साझेदारी है, जिसके जरिए अब दोनों ही देश अक्षय ऊर्जा पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित कर रहे हैं.
भारत-यूएई के बीच द्विपक्षीय रक्षा सहयोग
जिस तरह से दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंध लगातार मजबूत होते गए हैं, उसी अनुरूप रक्षा सहयोग भी लगातार बढ़ा है. दोनों देशों के बीच सुरक्षा और रक्षा सहयोग के मुद्दों पर चर्चा करने के लिए वार्षिक रक्षा वार्ता आयोजित होती है. दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग को लेकर जून 2003 में समझौता हुआ था, अप्रैल 2004 से प्रभाव में आया. दोनों देशों की सेनाओं के बीच नियमित तौर से संयुक्त अभ्यास होता है. दोनों देश रक्षा उत्पादों के साझा उत्पादन से जुड़ी संभावनाए के हर विकल्प पर भी विचार कर रहे हैं.
दोनों देशों के बीच मजबूत सांस्कृतिक संबंध
भारत और यूएई ऐतिहासिक संबंध साझा करते हैं. दोनों देशों ने आधिकारिक और लोगों से लोगों के स्तर पर नियमित सांस्कृतिक आदान-प्रदान बनाए रखा है. दोनों देशों ने 1975 में एक सांस्कृतिक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसका मकसद द्विपक्षीय सांस्कृतिक गतिविधियों को बढ़ाना और मजबूत करना है. यूएई में करीब 34 लाख भारतीय डायस्पोरा के लोग रहते हैं, जो अब यूएई की अर्थव्यवस्था के विकास का अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं.
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