India US Relations: अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन का कहना है कि भारत से बेहतर साझेदार कोई और देश नहीं हो सकता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका की पहली राजकीय यात्रा को देखते हुए ये काफी महत्वपूर्ण है. जबसे जो बाइडेन राष्ट्रपति बने हैं, भारत का अमेरिका से द्विपक्षीय संबंध लगातार मजबूत होते गया है.


अमेरिका की ओर से पिछले कुछ महीनों से लगातार भारत को लेकर बयान आ रहे हैं. व्हाइट हाउस, अमेरिकी रक्षा विभाग के मुख्यालय पेंटागन और दूसरे तमाम विभागों से हर दिन ऐसा बयान आने लगा है, जिसके जरिए अमेरिका के लिए भारत की अहमियत पर प्रकाश डाला जा रहा है. रूस और यूक्रेन के बीच फरवरी 2022 में युद्ध शुरू होने के बाद ये सिलसिला और तेज़ हुआ है.


वैश्विक राजनीति में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका


बाइडेन प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने एक बयान दिया है कि अमेरिका के राष्ट्रपति का मानना है कि वैश्विक राजनीति के हर पहलू में भारत महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है. उस अधिकारी के मुताबिक बाइडेन ने ये तक कहा है कि भारत से बेहतर कोई और साझेदार हो ही नहीं सकता है. व्हाइट हाउस के इस रुख से स्पष्ट है कि बहुध्रुवीय होती दुनिया में अब अमेरिका के लिए भारत का महत्व पहले जैसा नहीं रहा है, बल्कि अब कई गुना बढ़ गया है. अमेरिका चाहता है कि बदलते वैश्विक व्यवस्था में भारत की जो ताकत है, जो क्षमता है, उसका सीधा लाभ उसे भी मिले.


जो बाइडेन 20 जनवरी 2020 को अमेरिका के राष्ट्रपति बने थे. इन करीब ढाई साल में दुनिया के सिर्फ दो ही नेता को बाइडेन ने अमेरिका की राजकीय यात्रा पर बुलाया था. इस दौरान सिर्फ़ फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक योल ही अमेरिका की राजकीय यात्रा पर गए हैं. अब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राजकीय यात्रा पर बुलाया है. इस तरह से नरेंद्र मोदी तीसरे राष्ट्र प्रमुख या सरकार प्रमुख होंगे, जो बाइडेन के कार्यकाल में अमेरिका की राजकीय यात्रा करेंगे.


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 21 से 24 जून के बीच अमेरिका की यात्रा पर रहेंगे. इस दौरान व्हाइट हाउस में उनके लिए राजकीय भोज का भी आयोजन किया जाएगा. साथ ही पीएम मोदी 22 जून को अमेरिकी संसद 'कांग्रेस' को भी संबोधित करेंगे. 


भारत से बेहतर कोई और साझेदार नहीं


व्हाइट हाउस के जिस वरिष्ठ अधिकारी ने बाइडेन के हवाले से भारत के साथ संबंधओं पर प्रकाश डाला है, उससे पता चलता है कि बाइडेन पीएम मोदी की राजकीय यात्रा को लेकर खासा उत्साहित हैं. इस बयान से ये भी पता चलता है कि पीएम मोदी को आधिकारिक यात्रा पर आमंत्रित करने के पीछे बाइडेन प्रशासन की मंशा क्या है.


भारत के लिए ये यात्रा काफी महत्वपूर्ण है. भारतीय विदेश नीति के हिसाब से देखें तो ये दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के साथ भारत के संबंधों में नए अध्याय की शुरुआत है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मई 2014 से देश के प्रधानमंत्री है. इस बीच वे 2014, 2015, 2016 (दो बार), 2017, 2019 और 2021 में अमेरिका जा चुके है. लेकिन इन यात्राओं में से किसी को भी राजकीय यात्रा का दर्जा हासिल नहीं था. नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के 9 साल बाद ये होने जा रहा है.


ऐसे करीब 14 साल बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री की अमेरिका की राजकीय यात्रा होने जा रही है. इससे पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह 23 से 25 नवंबर 2009 में अमेरिका की राजकीय यात्रा पर गए थे. नरेंद्र मोदी तीसरे भारतीय प्रधानमंत्री हैं, जिन्हें ये अवसर मिल रहा है. ये दिखाता है कि जो बाइडेन की ओर से दोनों देशों के बीच संबंधों दिए जा रहे महत्व को दिखाता है. बाइडेन प्रशासन ने काफी विचार-विमर्श के बाद पीएम मोदी को राजकीय यात्रा पर आमंत्रित किया है.


वैश्विक व्यवस्था में संतुलन के लिए साझेदारी अहम


बाइडेन प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी ने पीटीआई से बातचीत में कहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति का मानना है कि दुनिया के किसी भी देश के साथ अमेरिका के द्विपक्षीय संबंधों की तुलना में भारत के साथ संबंध काफी उन्नत है. यही वजह है कि 21वीं सदी में अमेरिका-भारत की साझेदारी वैश्विक व्यवस्था के संतुलन के लिए भी काफी मायने रखता है.


व्यापार युद्ध में उलझते चले गए अमेरिका-चीन


अमेरिका का भारत के साथ संबंधों को मजबूत करने पर ज़ोर देने के पीछे कई कारक हैं. आर्थिक कारक के हिसाब से सोचें तो अमेरिका पिछले दो साल से भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. 2021-22 और 2022-23 में  व्यापार के मामले में भारत का सबसे बड़ा साझेदार बनने के मामले में अमेरिका ने चीन को पीछे छोड़ दिया है. अमेरिका का चीन के साथ व्यापारिक रिश्ते जनवरी 2018 से लगातार बिगड़ते ही गए हैं. इसी वक्त तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप चीनी सामानों के आयात पर टैरिफ बढ़ाने का फैसला किया था. उसके बाद चीन की ओर से भी टैरिफ बढ़ाया गया और ये सिलसिला बढ़ते ही गया. दोनों देश एक तरह से व्यापार युद्ध में उलझते चले गए.


तनाव के बावजूद अमेरिका और चीन के बीच 2022 में रिकॉर्ड करीब 690 अरब डॉलर का व्यापार हुआ था. उसी तरह LAC से जुड़े सीमा विवाद की वजह से भारत का भी चीन के साथ तनाव चरम पर है. इसके बावजूद भारत और चीन के बीच व्यापार लगातार बढ़ ही रहा है. आयात के मामले में तो चीन पर भारत की निर्भरता काफी व्यापक हद तक है.


साझेदारी के केंद्र में आर्थिक संबंध


जो बाइडेन चीन के साथ कूटनीतिक और व्यापारिक तनाव के मद्देनजर भारत के साथ संबंधों को और मजबूत करना चाहते हैं. अमेरिका और भारत दोनों ही व्यापार के मसले पर चीन का विकल्प खोज रहे हैं. ऐसे में भारत और अमेरिका के बीच मजबूत होती साझेदारी दोनों ही देशों के हित में है. अब चूंकि भारत दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है और भारत विशाल मार्केट के साथ आर्थिक तौर से भी बेहद मजबूती से आगे बढ़ रहा है. फिलहाल भारत का अमेरिका के साथ व्यापार भारत के पक्ष में है क्योंकि हम अमेरिका से जितना आयात करते हैं, उससे कहीं ज्यादा निर्यात करते हैं. जबकि चीन के साथ बिल्कुल इसके उलट है. हम चीन को बहुत कम निर्यात करते हैं और भारी मात्रा में आयात करते हैं. अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने आर्थिक संबंध दोनों देशों के बीच के रणनीतिक संबंधों का केन्द्र बताया है.


इंडो-पैसिफिक रीजन में संतुलन पर फोकस


एक और वजह है, जिसको लेकर जो बाइडेन भारत को लेकर काफी सकारात्मक नजरिया रख रहे हैं. इंडो-पैसिफिक रीजन में चीन लगातार विस्तारवादी और आक्रामक रुख अपना रहा है. अमेरिका और भारत इसी संतुलन को साधने के लिए क्वाड और दूसरे वैश्विक मंचों पर निकटता के साथ सहयोग कर रहे हैं.  अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा है कि भारत अमेरिका के नए हिंद-प्रशांत आर्थिक ढ़ांचे के तीन आधार स्तंभों- अधिक लचीली आपूर्ति श्रंखला बनाने की प्रतिबद्धता, स्वच्छ ऊर्जा के अवसरों का लाभ उठाने और भ्रष्टाचार से निपटने- में जुड़ गया है.


रूस-यूक्रेन युद्ध से बदले हालात


रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध ने भी अमेरिका का ध्यान भारत की ओर बढ़ाया है. जिस तरह से इस युद्ध के शुरू होने के बाद चीन और रूस के बीच नजदीकियां और तेजी से बढ़ी हैं, वो भी अमेरिका के लिए चिंता का सबब है. अमेरिका को पता है कि रूस के साथ भारत का संबंध लंबे समय से काफी अच्छा रहा है. अमेरिका ये भी जानता है कि भारत की विदेश नीति किसी गुट में शामिल होने की नहीं रही है और इस वजह से भारत के नाटो में शामिल होने की संभावना भी न के बराबर है.


अमेरिका का रूस और चीन के साथ टकराव लगातार बढ़ते ही जा रहा है. रूस के साथ भारत का रक्षा सहयोग भी काफी ज्यादा है. रूस पिछले कई साल से भारत को सबसे ज्यादा हथियार आपूर्ति करने वाला देश रहा है. इस सब पहलुओं को देखते हुए अमेरिका की नजर में भारत ही वो देश है, जो भविष्य में रूस पर दबाव बनाने के लिहाज से काम आ सकता है.


अरब देशों के समीकरणों पर भी नज़र


अमेरिका अरब देशों में भी हो रहे उथल-पुथल के समीकरणों को साधने में भारत की भूमिका को भविष्य के नजरिए से काफी अहम मान रहा है. चीन, ईरान और सऊदी अरब के साथ संबंधों को लगातार बढ़ा रहा है.  10-11 जून को सऊदी अरब की राजधानी रियाद में 10वां अरब-चीन व्यापार सम्मेलन हुआ. इसमें दोनों देशों ने 10 अरब डॉलर के समझौते हुए हैं. पहले इन दोनों देशों का संबंध मुख्य तौर से कच्चे तेल पर ही आधारित था, लेकिन अब चीन और सऊदी अरब इससे आगे जाना चाह रहे हैं. ईरान और सऊदी अरब के बीच राजनयिक संबंध बहाली में भी चीन ने हाल ही में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी.  हाल ही में अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने सऊदी अरब की यात्रा की थी, लेकिन अब चीन-सऊदी अरब के बीच जो व्यापार को विस्तार देने से जुड़ा करार हुआ है, वो बताता है कि सऊदी अरब की प्राथमिकता बदल रही है और चीन का रवैया अरब देशों पर प्रभाव बढ़ाने पर है.


इस बीच भारत की छवि शांतिप्रिय देश के तौर पर  रही है. जब से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं, उन्होंने अरब देशों के साथ संबंधों को विस्तार देने पर काफी काम किया है. इस साल मई में भारत, अमेरिका और यूएई के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस और प्रधानमंत्री मोहम्मद बिन सलमान के साथ मुलाकात हुई थी. इसे अरब देशों में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिहाज से काफी अहम माना जा रहा है. इसके साथ ही 2021 में भारत I2U2 में शामिल हुआ.  I2U2 में भारत और अमेरिका के साथ इजरायल और यूएई शामिल हैं. पिछले दो साल में अमेरिका और भारत की ओर से ये संकेत देने की हर संभव कोशिश की गई है कि अब अरब देशों में अमेरिका और भारत को जुगलबंदी करने से कोई परेशानी नहीं है. भारत से संबंधों को और बेहतर कर बाइडेन इस कड़ी को आगे ले जाना चाहते हैं.


2023 द्विपक्षीय संबंधों के लिहाज महत्वपूर्ण


भारत और अमेरिका के लिए 2023 काफी महत्वपूर्ण होने वाला है. इस साल की शुरुआत में दोनों देशों के बीच ICET (इनीशिएटिव ऑन क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी) पहल की शुरुआत हो चुकी है.  इस पहल पर दोनों देशों के बीच सहमति जापान के टोक्यो में  पिछले साल  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की बातचीत के दौरान बनी थी. मई 2022 में टोक्यो में क्वाड लीडर्स समिट के इतर दोनों नेताओं की मुलाकात हुई थी. ICET के जरिए दोनों देशों के बीच आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्वांटम कंप्यूटिंग, 5जी-6जी, बायोटेक, अंतरिक्ष और सेमीकंडक्टर्स जैसे क्षेत्रों में सहयोग को व्यापक आधार देना है. अमेरिकी विदेश मंत्री ब्लिंकन का भी कहना है कि इस पहल के जरिए एआई से लेकर क्वांटम कंप्यूटिंग तक  दोनों देश मिलकर भविष्य के नवाचारों को और उन्हें संचालित करने वाले नियमों को आकार देने में मदद कर रहे हैं.


2023 में ही पीएम मोदी की अमेरिका की पहली राजकीय यात्रा हो रही है. इसके साथ ही सितंबर में बतौर अध्यक्ष भारत नई दिल्ली में G20 का सालाना शिखर सम्मेलन आयोजित कर रहा है. इस बैठक में शामिल होने के लिए अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन भारत का दौरा करेंगे. उम्मीद की जा रही है कि राष्ट्रपति बनने के बाद भारत के इस पहले दौरे से दोनों देशों के संबंधों में कई नए आयाम जुड़ेंगे. चाहे व्यापार हो या फिर रक्षा सहयोग, इनके अलावा वैश्विक समस्याओं से जुड़े मुद्दों पर भी  सितंबर में जो बाइडेन की पहली भारत यात्रा के दौरान G20 शिखर सम्मेलन से इतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बातचीत हो सकती है. रक्षा सहयोग को नया आयाम देने को लेकर भी दोनों देशों के बीच उस वक्त घोषणा हो सकती है.


ऐसा कहा जा सकता है कि बढ़ती आर्थिक हैसियत और बहुध्रुवीय होती दुनिया में भारत के बढ़ते रुतबे को देखते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन आपसी साझेदारी को उस हद तक ले जाना चाहते हैं, जिससे भविष्य में अमेरिका को भारत, रूस से भी ज्यादा भरोसेमंद साझेदार मान सके. ये अमेरिका के वैश्विक कूटनीति का ही हिस्सा है. यही वजह है कि व्हाइट हाउस में राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सामरिक संचार समन्वयक जॉन किर्बी ने भी कहा है कि अमेरिका की भारत के साथ एक महत्वपूर्ण रक्षा साझेदारी है और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में, क्वाड में भारत के साथ बेहतरीन सहयोग है और व्हाइट हाउस पीएम मोदी  यात्रा के लिए उत्सुक है.


ये भी पढ़ें:


भारत के लिए ब्लू इकोनॉमी अहम, मिशन समुद्रयान के तहत जल्द तैयार हो जाएगा सबमर्सिबल वाहन, 6 किमी की गहराई तक करेंगे खोज