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पीएम मोदी की पेरिस यात्रा से भारत-फ्रांस साझेदारी को मिलेगा नया आयाम, रक्षा क्षेत्र में रूस पर निर्भरता कम करने पर नज़र

PM Modi Paris Visit: दोनों देश 25 साल से रणनीतिक साझेदार हैं. पीएम मोदी की पेरिस यात्रा से इस साझेदारी को और मजबूती मिलेगी. फ्रांस से रक्षा सहयोग बढ़ाकर रूस पर निर्भरता कम करने पर भारत की नज़र होगी.

PM Modi France Visit: भारत-फ्रांस के बीच संबंध काफी पुराने हैं. फ्रांस भारत के सबसे करीबी रणनीतिक साझेदारों में से एक है. अब दोनों देशों के बीच आपसी संबंधों में नया आयाम जुड़ने वाला है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले हफ्ते फ्रांस की यात्रा पर जाने वाले हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 13 और 14 जुलाई को फ्रांस की यात्रा पर रहेंगे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 14 जुलाई को फ्रांस के बैस्टिल दिवस समारोह में विशिष्ट अतिथि (Guest of Honour) के तौर पर शामिल होंगे. फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों (Emmanuel Macron) के ख़ास निमंत्रण पर पीएम मोदी पेरिस में होने वाली परेड में शामिल होने फ्रांस जा रहे हैं. बैस्टिल दिवस फ्रांस का राष्ट्रीय दिवस है जो हर साल 14 जुलाई को मनाया जाता है.

बेहद ख़ास है पीएम मोदी की यात्रा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ये यात्रा इस लिहाज से भी बेहद ख़ास है क्योंकि फ्रांस अपने राष्ट्रीय दिवस के समारोह यानी बैस्टिल डे परेड में अमूमन विदेशी गणमान्य व्यक्तियों को आमंत्रित नहीं करता है. ये दिखाता है कि फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों भारत के साथ संबंधों को और बेहतर करने की चाह रख रहे हैं.

फ्रांस के बैस्टिल डे परेड में भारतीय सशस्त्र बलों की एक टुकड़ी भी अपने फ्रांसीसी समकक्षों के साथ हिस्सा लेगी. इस परेड में भारतीय सशस्त्र बलों की 269 सदस्यीय त्रि-सेवा टुकड़ी अपने फ्रांसीसी समकक्षों के साथ मार्च करते हुए दिखाई देगी. भारतीय टुकड़ी 6 जुलाई को ही फ्रांस के लिए रवाना हो गई थी.

रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत मिलेगी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपनी इस फ्रांस यात्रा को लेकर उत्सुकता जाहिर की है. फ्रांस के राष्ट्रपति के राजनयिक सलाहकार इमैनुएल बोन से 6 जुलाई को दिल्ली में पीएम मोदी से मुलाकात की थी. उसके बाद पीएम मोदी ने कहा था कि वे दो दिवसीय पेरिस दौरे के दौरान राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों से वार्ता करने को लेकर उत्सुक हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भरोसा जताया है कि इस वार्ता से भारत-फ्रांस रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत मिलेगी. प्रधानमंत्री कार्यालय से जारी बयान में कहा गया है कि इमैनुएल बोने ने आगामी फ्रांस यात्रा के सिलसिले में द्विपक्षीय सहयोग के अलग-अलग क्षेत्रों में प्रगति की जानकारी पीएम मोदी को दी.

फ्रांस के राष्ट्रपति के राजनयिक सलाहकार इमैनुएल बोन की दिल्ली यात्रा पीएम मोदी के फ्रांस दौरे से जुड़े एजेंडे को अंतिम रूप देने के लिहाज से महत्वपूर्ण था. इस मुलाकात के बाद पीएमओ से जारी बयान में कहा गया कि हिरोशिमा में राष्ट्रपति मैक्रों के साथ अपनी हालिया बैठक को याद करते हुए, प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि वे पेरिस में उनकी बातचीत जारी रखने के लिए उत्सुक हैं, जो भारत-फ्रांस रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत करेगा. इस यात्रा से रणनीतिक सहयोग, वैज्ञानिक प्रगति, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और आर्थिक सहयोग के जरिए रणनीतिक साझेदारी मजबूत होने की उम्मीद है.

रक्षा सहयोग पर सबसे ज्यादा होगा ज़ोर

पीएम मोदी की यात्रा के दौरान रक्षा सहयोग एजेंडे के प्रमुख बिंदुओं में से एक हो सकता है. हम सब जानते है कि रक्षा जरूरतों के लिए भारत व्यापक पैमाने पर रूस पर निर्भर है. चीन की रूस के साथ बढ़ती नजदीकियों को देखते हुए अब भारत को इस दिशा में नए विकल्प पर भी काम करने की जरूरत है. इस लिहाज से फ्रांस, भारत का महत्वपूर्ण साझेदार साबित हो सकता है. ऐसे तो पिछले दो दशक से फ्रांस, भारत का मजबूत रक्षा सहयोगी है. अतीत में जिस तरह से रूस (सोवियत संघ) भारत के साथ कंधे से कंधे मिलाकर खड़ा रहता था, हाल के वर्षों में फ्रांस ने भारत के साथ वैसा ही रुख दिखाया है.

रक्षा क्षेत्र में रूस पर निर्भरता कम करने पर नज़र

भारत लंबे वक्त से वैश्विक स्तर पर हथियारों के सबसे बड़े आयातक देशों में से एक रहा है. अभी भी भारत इस सूची के शीर्ष देशों में शामिल है. स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) के मुताबिक भारत 2018 से 2022 के बीच दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक था. इस दौरान भारत के हथियारों का आयात दुनिया के कुल आयात का करीब 11% प्रतिशत था. रूस से सबसे ज्यादा भारत हथियार खरीदा है और भारत को हथियार सप्लाई करने के मामले में दूसरे नंबर पर फ्रांस है. हम अपने आधे से भी ज्यादा सैन्य उपकरण के लिए रूस पर निर्भर रहते हैं. नए विकल्प के तौर पर फ्रांस से बेहतर कोई और देश नहीं हो सकता है, जो रक्षा सहयोग तो करता ही है, साथ ही तकनीक में भी सहयोग कर रहा है.

राफेल-एम (समुद्री) लड़ाकू जेट पर नज़र

भारत राफेल-एम (समुद्री) लड़ाकू जेट प्राप्त करने के बेहद करीब है और पीएम मोदी की यात्रा से इसमें प्रगति आएगी. ये लड़ाकू विमान आईएनएस विक्रांत के उड़ान डेक से संचालित हो सकता है. साथ ही पीएम मोदी की यात्रा के दौरान डसॉल्ट एविएशन के राफेल लड़ाकू विमानों के नौसैनिक संस्करण के लिए भी बातचीत हो सकती है.

राफेल लड़ाकू विमानों की डिलीवरी, स्कॉर्पीन पनडुब्बियों का साझा विकास ( छह कलवरी पनडुब्बियां) और गुजरात में सी-295 सामरिक परिवहन विमान बनाने के लिए एयरबस सौदे के मद्देनजर हम कह सकते हैं कि रक्षा साझेदारी दिन-प्रतिदिन और मजबूत होते जा रही है.

रक्षा उपकरणों और टेक्नोलॉजी में भरोसेमंद सहयोगी

काफी लंबे वक्त से फ्रांस रक्षा उपकरणों और टेक्नोलॉजी में भारत का भरोसेमंद सप्लायर रहा है. दोनों देशों के लड़ाकू विमान से लेकर पनडुब्बियों के निर्माण में सहयोग रहा है. फ्रांस की कंपनियां भारतीय कंपनियों के साथ मिलकर भारत में रक्षा उपकरण बना रही हैं. साथ ही फ्रांस की कंपनियों से रक्षा तकनीकों के विकास भी सहयोग मिल रहा है.

न्यूक्लियर पावर के क्षेत्र में भी बढ़ता सहयोग

फ्रांस न्यूक्लियर पावर के क्षेत्र में भी भारत के प्रमुख साझेदारों में से एक है. भारत और फ्रांस के बीच परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग के विकास पर 2008 में समझौता हुआ था. महाराष्ट्र के जैतापुर में 6 न्यूक्लियर पावर रिएक्टर बनाने की योजना में भी फ्रांस से काफी महत्वपूर्ण सहयोग मिलने वाला है. पीएम मोदी के पेरिस यात्रा के दौरान इस प्रोजेक्ट से संबंधित तकनीकी, वित्तीय और असैन्य परमाणु दायित्व के मुद्दों पर भी बातचीत होने की संभावना है.

इंटरनेशनल एक्सपोर्ट कंट्रोल रिजीम में सदस्‍यता के लिए भी फ्रांस ने भारत का ठोस समर्थन किया था. करीब 6 दशक से दोनों देशों के बीच अंतरिक्ष क्षेत्र में भी सहयोग जारी है. भारत के ब्लू रिवोल्यूशन में भी फ्रांस सहयोग कर रहा है. भारत और फ्रांस जलवायु परिवर्तन से जुड़े मुद्दे और ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग बढ़ा रहे हैं. इसके साथ ही फ्रांस संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता की दावेदारी का भी समर्थन करता है.

पिछले 15 महीने में मैक्रों से चौथी बार मिलेंगे मोदी

पिछले 15 महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों से ये चौथी मुलाकात होगी. इससे पहले इस साल मई में जापान के हिरोशिमा में जी 7 शिखर सम्मेलन के दौरान दोनों नेताओं की बातचीत हुई थी. उससे पहले नवंबर 2022 में दोनों नेता के बीच इंडोनेशिया के बाली में हुए जी 20 के सालाना शिखर सम्मेलन में मिले थे. दोनों नेताओं के बीच जून 2022 में भी वार्ता हुई थी, जब दोनों नेता जी 7 की बैठक में शामिल होने के लिए जर्मनी गए थे. इससे पहले मई 2022 में पीएम मोदी ने फ्रांस की आधिकारिक यात्रा की थी, जिसमें इमैनुएल मैक्रों के साथ आमने-सामने और प्रतिनिधिमंडल स्तर की बैठक की थी.

कई बार फ्रांस यात्रा से संबंधों को मिली है मजबूती

प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार नरेंद्र मोदी 9 से 12 अप्रैल 2015 के बीच फ्रांस की यात्रा पर गए थे. उस वक्त  फ्रांस्वा ओलांद (Francois Hollande) फ्रांस के राष्ट्रपति थे. इसी यात्रा के दौरान दोनों नेताओं के 36 राफेल लड़ाकू विमान से जुड़े समझौते को जल्द से जल्द पूरा करने पर सहमति बनी थी. इसी साल नवंबर में COP21 में हिस्सा लेने के लिए पीएम मोदी ने एक बार फिर से पेरिस की यात्रा की. इसी दौरान भारत और फ्रांस की पहल से सौर ऊर्जा पर आधारित सौ से ज्यादा देशों के सहयोग संगठन 'अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन' की नींव पड़ी.

उसके बाद पीएम मोदी ने जून 2017 में भी फ्रांस की यात्रा की. उस वक्त इमैनुएल मैक्रों फ्रांस के राष्ट्रपति बन चुके थे. फिर अगस्त 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फ्रांस की आधिकारिक यात्रा की. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आखिरी बार मई 2022 में फ्रांस की यात्रा की थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इन यात्राओं से दोनों देशों के रिश्तों में प्रगाढ़ता आई.
 
रणनीतिक साझेदारी के 25 साल पूरे

भारत और फ्रांस पिछले 25 साल से रणनीतिक साझेदार हैं. 1998 में फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति जैक्स शिराक (Jacques Chirac) भारत के दौरे पर आए थे. उस वक्त दोनों देशों ने द्विपक्षीय संबंधों को रणनीतिक साझेदारी में बदलने का फैसला किया था.  फ्रांस उन पहले देशों में से एक था जिसके साथ भारत ने जनवरी 1998 में शीत युद्ध के बाद के युग में 'रणनीतिक साझेदारी' पर हस्ताक्षर किया था. फ्रांस 1998 में भारत के परमाणु परीक्षणों का समर्थन करने वाले कुछ चुनिंदा देशों में से एक था. इन सब बातों से समझा जा सकता है कि पिछले ढाई दशक से द्विपक्षीय संबंधों में तेजी से मजबूती आई है.

मजबूत त्रिपक्षीय ढांचे के तहत भी सहयोग

भारत और फ्रांस की साझेदारी एक त्रिपक्षीय ढांचे के लिहाज से भी महत्वपूर्ण है. भारत, फ्रांस और संयुक्त अरब अमीरात के रूप में एक मजबूत त्रिपक्षीय सहयोग का ढांचा बन चुका है. इस साल फरवरी में ही इन तीनों देशों ने इस ढांचे के भीतर सहयोग के प्रमुख क्षेत्रों की पहचान कर उनकी रूपरेखा दुनिया के सामने रखी थी. भारत, फ्रांस और यूएई के बीच गठजोड़ को त्रिपक्षीय सहयोग पहल का नाम दिया गया है. तीनों देशों ने रक्षा, परमाणु ऊर्जा और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में सहयोग को लेकर महत्वाकांक्षी रोडमैप पेश किया था. विदेश मंत्री एस जयशंकर, फ्रांस के विदेश मंत्री कैथरीन कोलोना और यूएई के विदेश मंत्री शेख अब्दुल्ला बिन जायद अल नाहयान के बीच 4 फरवरी को फोन पर हुई बातचीत के बाद त्रिपक्षीय सहयोग के ढांचे को और मजबूत करने पर सहमत बनी थी.

भारत, फ्रांस और यूएई का त्रिपक्षीय सहयोग

भारत, फ्रांस और संयुक्त अरब अमीरात के विदेश मंत्रियों के बीच पिछले साल 19 सितंबर को त्रिपक्षीय प्रारूप के तहत पहली बार बैठक हुई थी. ये बैठक संयुक्त राष्ट्र महासभा की सालाना बैठक के दौरान अलग से न्यूयॉर्क में हुई थी. इसमें तीनों देश आपसी हितों से जुड़े क्षेत्रों में सहयोग के लिए औपचारिक त्रिपक्षीय सहयोग पहल को लेकर सहमत हुए थे.

उससे पहले पिछले साल 28 जुलाई को तीनों देशों ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र (Indo-Pacific region) में सहयोग बढ़ाने को लेकर ज्वाइंट सेक्रेटरी लेवल की एक बैठक की थी. उसमें तीनों पक्षों ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर अपने-अपने नजरियों का आदान-प्रदान किया था और त्रिपक्षीय सहयोग के संभावित क्षेत्रों को टटोलने की कोशिश की थी. इनमें समुद्री सुरक्षा, मानवीय सहायता और आपदा राहत, ब्लू अर्थव्यवस्था, क्षेत्रीय संपर्क, बहुपक्षीय मंचों में सहयोग, ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा, नवाचार और स्टार्टअप, आपूर्ति श्रृंखला लचीलापन जैसे क्षेत्र शामिल थे. इसके साथ ही सांस्कृतिक जुड़ाव और नागरिकों के बीच संपर्क को भी सहयोग बढ़ाने के नजरिए से महत्वपूर्ण माना गया था. इसी बैठक में तीनों पक्षों ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में त्रिपक्षीय सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए उठाए जाने वाले भावी कदमों पर भी चर्चा की थी.

त्रिपक्षीय सहयोग पहल का महत्व

भारत, फ्रांस और संयुक्त अरब अमीरात, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सामरिक हितों को साझा करते हैं. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते वर्चस्व को देखते हुए भारत, फ्रांस और यूएई का आपसी तालमेल बढ़ना बेहद अहम हो जाता है. तीनों देश अलग-अलग हैं और एक-दूसरे के रणनीतिक साझेदार हैं. तीनों देश एक-दूसरे के साथ सहज भी हैं. इनके बीच कई ऐसे क्षेत्र हैं, जिसमें तीनों देशों का सहयोग आपसी हितों को भी पूरा करने में मदद कर सकता है. सामरिक हितों की समानता और मजबूत द्विपक्षीय संबंधों को देखते हुए, आने वाले वक्त में भारत-फ्रांस-यूएई त्रिपक्षीय गठजोड़ हिंद प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक गतिशीलता को आकार देने वाले एक मजबूत स्तंभ के रूप में उभरेगा, इसकी पूरी संभावना है.

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में साझा सामरिक हित

फ्रांस भारत के सबसे करीबी रणनीतिक साझेदारों में से एक है. दोनों देश समुद्री शक्तियां हैं. दोनों ही देशों का हिंद-प्रशांत जल में विशाल अनन्य आर्थिक क्षेत्र (exclusive economic zones)है. दोनों की समुद्री अर्थव्यवस्था जैसे ब्लू इकोनॉमी, समुद्री प्रौद्योगिकी, मत्स्य पालन, बंदरगाह और शिपिंग में भी रुचि बढ़ रही है. इससे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक स्वतंत्र और सुरक्षित समुद्री व्यवस्था सुनिश्चित दोनों देशों के हित में है. रक्षा, अंतरिक्ष और परमाणु डोमेन समेत कई  क्षेत्र हैं, जिसमें फ्रांस-भारत संबंधों का विस्तार हो रहा है. इसके साथ ही यूरोपीय यूनियन के साथ भारत अपने संबंधों को और मजबूत करना चाहता है. यूरोप में फ्रांस एक बड़ी ताकत है. इस लिहाज से भी फ्रांस, भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण हो जाता है.

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