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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहली मिस्र यात्रा से द्विपक्षीय संबंधों को मिलेगी नई ऊंचाई, अफ्रीका में भारत का बढ़ेगा दबदबा

PM Modi Egypt Visit: मिस्र अफ्रीका और यूरोप में व्यापार के लिए भारत के लिए सामरिक रूप से महत्वपूर्ण है. खाद्य जरूरतों के लिए भारत, मिस्र के लिए फायदेमंद है. पीएम मोदी की यात्रा से संबंध मजबूत होंगे.

India Egypt Relations: अफ्रीका महाद्वीप में मिस्र का सबसे बड़ा और करीबी साझेदार है. भारत-मिस्र की दोस्ती में एक नए अध्याय की शुरुआत होने वाली है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 24 से 25 जून तक मिस्र की राजकीय यात्रा पर काहिरा जाएंगे. ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दो देशों की यात्रा का दूसरा चरण होगा. विदेश मंत्रालय के मुताबिक पीएम मोदी 20 जून से 25 जून तक अमेरिका और मिस्र की राजकीय यात्रा करेंगे.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मिस्र यात्रा ऐतिहासिक होने वाली है. बतौर प्रधानमंत्री पहली बार ऐसा होगा जब नरेंद्र मोदी मिस्र जाएंगे. ये यात्रा मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी के निमंत्रण पर हो रही है. अल-सीसी इस साल भारत के गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल हुए थे और उसी दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को काहिरा आने का निमंत्रण दिया था.

बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहली मिस्र यात्रा

मिस्र यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अल-सिसी के बीच द्विपक्षीय वार्ता होगी. इस दौरान द्विपक्षीय मुद्दों के साथ ही क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मामलों पर दोनों नेता विचारों का आदान-प्रदान करेंगे. इसके अलावा प्रधानमंत्री मोदी मिस्र की सरकार के वरिष्ठ लोगों के साथ ही कुछ प्रमुख हस्तियों और भारतीय समुदाय के लोगों के साथ भी बातचीत करेंगे.

भारत-मिस्र संबंधों के लिए 2023 बेहद महत्वपूर्ण

भारत और मिस्र के आपसी संबंधों को नई ऊंचाई देने के लिहाज से साल 2023 बेहद महत्वपूर्ण साबित होने जा रहा है. मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी ने 24 से 26 जनवरी के बीच भारत की यात्रा की थी. उस वक्त 74वें गणतंत्र दिवस पर राजधानी दिल्ली के कर्तव्य पथ से पूरी दुनिया ने भारत के शौर्य और पराक्रम का प्रदर्शन देखा. उसके साथ ही कर्तव्य पथ से भारत और मिस्र की दोस्ती की नई इबारत भी लिखी गई, जब अल-सिसी ने मुख्य अतिथि बनकर इस समारोह की शोभा बढ़ाई. ये पहला मौका था जब अरब देश मिस्र के कोई राष्ट्रपति भारत के गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल हुए थे. इसके साथ ही मिस्र की एक सैन्य टुकड़ी ने भी कर्तव्य पथ पर 74वें गणतंत्र दिवस परेड की शोभा बढ़ाई थी. ऐसा पहली बार हुआ था, जब मिस्र की सेना के किसी दल ने भारतीय गणतंत्र दिवस समारोह के परेड में हिस्सा लिया हो.

अल-सिसी तीन बार आ चुके हैं भारत

मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सिसी  तीन बार भारत की यात्रा कर चुके हैं. जनवरी की यात्रा उनकी तीसरी भारत यात्रा थी. वे सबसे पहले तीसरे भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन में शामिल होने के लिए अक्टूबर 2015 में भारत आए थे. उसके बाद वे सितंबर 2016 में द्विपक्षीय वार्ता के मकसद से भारत की राजकीय यात्रा की थी. प्रधानमंत्री बनने के बाद से नरेंद्र मोदी ने अभी तक मिस्र  की यात्रा नहीं की थी. इसी को ध्यान में रखते हुए जनवरी में अल-सिसी ने पीएम मोदी का मिस्र आने का न्योता भी दिया था. उस वक्त मिस्र के राष्ट्रपति अल-सिसी ने भरोसा जताया था कि पीएम मोदी के भविष्य में मिस्र यात्रा से दोनों देशों के रिश्ते और आगे बढ़ेंगे.

सामरिक साझेदारी से संबंधों में प्रगाढ़ता

जब मिस्र के राष्ट्रपति ने इस साल जनवरी में भारत का दौरा किया था, तो उस वक्त पीएम मोदी के साथ बातचीत के बाद दोनों देशों ने द्विपक्षीय संबंधों को 'सामरिक साझेदारी' में बदलने पर सहमति बनी थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मिस्र के राष्ट्रपति अल-सिसी के बीच 25 जनवरी को दिल्ली के हैदराबाद हाउस में प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता हुई थी. भारत और मिस्र के बीच द्विपक्षीय व्यापार करीब 7 अरब डॉलर का है, मोदी और अल-सिसी ने जनवरी में वार्ता के दौरान इसे अगले 5 साल में 12 अरब डॉलर तक पहुंचाने का फैसला किया था. अल-सिसी की यात्रा के दौरान भारत और मिस्र के बीच संस्कृति, सूचना प्रौद्योगिकी, साइबर सुरक्षा, युवा मामलों और प्रसारण क्षेत्र से जुड़े पांच समझौता ज्ञापन पर भी हस्ताक्षर हुए थे.

व्यापक सहयोग के लिए लॉन्ग टर्म ढांचा

सामरिक साझेदारी के तहत दोनों देशों ने सहयोग के चार स्तंभों या आयामों की पहचान की थी. इसमें राजनीतिक, सुरक्षा सहयोग, आर्थिक गठजोड़ और वैज्ञानिक गठजोड़ शामिल हैं. दोनों देशों ने व्यापक सहयोग के लिए लॉन्ग टर्म ढांचा विकसित करने का फैसला किया.  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति अल-सीसी दोनों नेता चाहते हैं कि समयबद्ध तरीके से रक्षा, सुरक्षा, कारोबार और आतंकवाद से निपटने में सहयोग को बढ़ाया जाए. रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से खाद्य और दवा आपूर्ति श्रृंखला प्रभावित हो रही है. इस दिशा में दोनों देशों ने मिलकर काम करने का फैसला किया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहली मिस्र यात्रा के दौरान इन मुद्दों पर और विस्तार से चर्चा होने की संभावना है.

निवेश और व्यापार बढ़ाने पर रहेगा ज़ोर

भारत और मिस्र के बीच अभी भी व्यापार को लेकर असीम संभावनाएं हैं. अभी फिलहाल दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय कारोबार 7 अरब डॉलर का है, जिसे अगले पांच साल में 12 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है. दोनों देश आपसी निवेश भी बढ़ाएंगे. दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौता 1978 से लागू है. ये समझौता मोस्ट फेवर्ड नेशन क्लॉज से जुड़ा हुआ है. बीते 10 साल में दोनों देशों के बीच व्यापार पांच गुना से भी ज्यादा बढ़ा है. 2018-19 में द्विपक्षीय व्यापार 4.5 अरब डॉलर पहुंच गया था. कोरोना महामारी का असर होने के बावजूद 2019-20 में व्यापार 4.5 अरब डॉलर और 2020-21 में द्विपक्षीय व्यापार 4.15 अरब डॉलर रहा. इसके बाद द्विपक्षीय व्यापार ने बहुत तेज गति से रफ्तार पकड़ ली. 2021-22 में दोनों देशों के बीच 7.26 अरब डॉलर का व्यापार हुआ. ये 2020-21 की तुलना में 75 फीसदी ज्यादा था.

व्यापार संतुलन भारत के पक्ष में

मिस्र के साथ व्यापार संतुलन भारत के पक्ष में है. 2021-22 में भारत से मिस्र को 3.74 अरब डॉलर के मूल्य का सामान निर्यात हुआ था. निर्यात में ये पिछले साल से 65 फीसदी ज्यादा था.  इस अवधि में भारत ने मिस्र से 3.52 अरब डॉलर के सामान का आयात किया था. भारत मिस्र से खनिज तेल, उर्वरक, इनऑर्गेनिक केमिकल और कपास मंगवाता है. वहीं भारत से मिस्र को बफैलो मीट, आयरन और स्टील, इंजीनियरिंग प्रोडक्ट, लाइट व्हीकल और कॉटन यार्न निर्यात होता है. करीब 50 भारतीय कंपनियों का मिस्र के अलग-अलग क्षेत्रों में 3.15 अरब डॉलर का निवेश है. ये क्षेत्र केमिकल, ऊर्जा, टेक्सटाइल, एग्री-बिजनेस और रिटेल से जुडे़ हुए हैं. दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय रिश्तों के लिहाज से टेक्निकल सहयोग और मदद भी मायने रखता है.  बीते 22 साल में 1300 से ज्यादा मिस्र के अधिकारी आईटीईसी के अलावा आईसीसीआर और आईएएफएस छात्रवृत्ति जैसे कार्यक्रमों से लाभान्वित हुए हैं.

खाद्य जरूरतों के लिए भारत फायदेमंद

मिस्र बड़े पैमाने पर खाद्य पदार्थों का आयात करता है. रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से उसके सामने गेहूं का संकट खड़ा हो गया था. वो 80 फीसदी गेहूं इन्हीं दोनों देशों से खरीदता था.  इस संकट से निकालने के लिए भारत आगे आया. अप्रैल 2022 में मिस्र ने गेहूं आयात करने वाले देशों की सूची में भारत को शामिल किया. भारत ने दूसरे देशों के लिए गेहूं की निर्यात पर रोक लगा रखी थी. इसके बावजूद मई 2022 में भारत ने मिस्र  को 61,000 टन गेहूं निर्यात करने की अनुमति दी. जरूरतों को देखते हुए मिस्र, भारत से और गेहूं चाहता है. वहीं मिस्र से साझेदारी मजबूत कर भारत कच्चे तेल को लेकर खाड़ी देशों पर अपनी निर्भरता को कम कर सकता है.

भारत और मिस्र के बीच बढ़ेगा सुरक्षा सहयोग

भारत और मिस्र के बीच पिछले कुछ वर्षों से रक्षा और सामरिक सहयोग लगातार बढ़ रहा है. इस साल जनवरी में दोनों देशों की सेनाओं ने पहला साझा अभ्यास किया था. भारत रक्षा उत्पादों के निर्यात पर भी ध्यान दे रहा है और इस लिहाज से मिस्र, अफ्रीका में बेहद महत्वपूर्ण देश हो जाता है. मिस्र ने भारत से हल्के लड़ाकू विमान तेजस, रडार, सैन्य हेलीकॉप्टर समेत दूसरे सैन्य साजो सामान खरीदने में विशेष रुचि दिखाई है. स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमान तेजस की खरीद को लेकर मिस्र, भारत के साथ बातचीत कर रहा है. मिस्र, भारत से 20 लड़ाकू विमान खरीदना चाहता है. मिस्र, भारत से आकाश मिसाइल और स्मार्ट एंटी-एयरफील्ड सिस्टम भी खरीदना चाहता है. मिस्र ने द्विपक्षीय वार्ता में भारतीय सैन्य साजो सामान को खरीदने को लेकर उत्सुकता जाहिर की थी.

दोनों देश चाहते भी हैं कि उभरते क्षेत्रीय सुरक्षा से जुड़ी चुनौतियों से निपटने में आपसी रक्षा जुड़ाव और ज्यादा मजबूत हो. बीते कुछ सालों में भारत और मिस्र के बीच रक्षा संबंध तेजी से बढ़े हैं. इसी कड़ी में जुलाई 2022 में इंडियन एयरफोर्स ने तीन सुखोई SU-30MKI लड़ाकू विमान और दो बोइंग C-17 ग्लोबमास्टर परिवहन विमानों के साथ सामरिक नेतृत्व कार्यक्रम में हिस्सा लिया था. पीएम मोदी की यात्रा के दौरान दोनों देश रक्षा उद्योगों के बीच सहयोग को और मजबूत करने पर भी कोई फैसला ले सकते हैं.

आतंकवाद के खिलाफ बढ़ाएंगे सहयोग

मिस्र ने हमेशा ही आतंकवाद के मुद्दे पर भारत का साथ दिया है. जनवरी में भारत दौरे पर मिस्र के राष्ट्रपति अल-सिसी ने आतंकवाद को लेकर जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाने की प्रतिबद्धता फिर से दोहराया था. दोनों ही देश विदेश नीति के एक उपकरण के रूप में आतंकवाद के इस्तेमाल की कड़ी निंदा करते हैं. मुस्लिम देश होने के बावजूद मिस्र के राष्ट्रपति अल-सिसी का इस तरह से खुलकर आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत का समर्थन बेहद मायने रखता है. दोनों देश इस बार पर सहमत है कि सीमा पार आतंकवाद को खत्म करने के लिए ठोस कार्रवाई बेहद जरूरी है. आतंकवाद से संबंधित सूचनाओं और खुफिया सूचनाओं के आदान-प्रदान को बढ़ाने का भी फैसला किया है. दोनों देशों ने फैसला किया है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अंतरराष्ट्रीय समुदाय को सतर्क करने का भी काम भी मिलकर किया जाएगा. साइबर स्पेस के दुरुपयोग के खिलाफ भी दोनों देश सहयोग बढ़ाएंगे.

सांस्कृतिक सहयोग और लोगों के बीच संपर्क

सांस्कृतिक सहयोग और लोगों के बीच सम्पर्क बढ़ाकर भी सामरिक भागीदारी को सुनिश्चित किया जाएगा. राष्ट्रपति अल-सिसी की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों ने जनवरी में प्रसारण सामग्री के आदान-प्रदान, क्षमता निर्माण और सह-निर्माण की सुविधा के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे. इसके तहत दोनों देशों के प्रसारक द्विपक्षीय आधार पर खेल, समाचार, संस्कृति, मनोरंजन और कई अन्य क्षेत्रों के अपने कार्यक्रमों का आदान-प्रदान करेंगे. इन कार्यक्रमों को दोनों देशों के रेडियो और टेलीविजन प्लेटफार्म पर प्रसारित किया जाएगा. ये एमओयू फिलहाल तीन साल के लिए हुआ था. इसके तहत प्रसार भारती और मिस्र का राष्ट्रीय मीडिया प्राधिकरण (NMA) कार्यक्रमों का आदान-प्रदान करेंगे.

आजादी के बाद से ही मजबूत रिश्ता

भारत-मिस्र के बीच राजनयिक संबंधों के 75 साल 2022 में पूरे हुए. भारत को आजादी मिलने के तीन दिन बाद ही 18 अगस्त 1947 को दोनों देशों ने राजनयिक संबंध शुरू करने की घोषणा की थी. भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और मिस्र के दूसरे राष्ट्रपति जमाल अब्देल नासेर (Gamal Abdel Nasser)के दौर में दोनों देशों के संबंध बेहद मजबूत हो गए थे. उसी  का नतीजा था कि दोनों ही देशों ने 1955 में  Friendship Treaty पर हस्ताक्षर किए थे.  1956 में स्वेज नहर संकट के वक्त भारत ने मिस्र का समर्थन किया था. नेहरू और नासेर ने ही इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो और युगोस्लाविया के राष्ट्रपति टीटो के साथ मिलकर गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) की शुरुआत की थी. कोविड के दूसरे लहर के वक्त मिस्र पूरी मजबूती से भारत के साथ खड़ा था. उस वक्त मिस्र ने 9 मई 2021 को भारत को चिकित्सा आपूर्ति से जुड़े सामानों को लेकर तीन विमान भेजे थे.

मिस्र  है सबसे मजबूत एफ्रो-अरब सहयोगी

मिस्र अरब जगत और अफ्रीका में राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला देश है. मिस्र की एफ्रो-अरब राष्ट्र के तौर पर दोहरी पहचान है और इससे वो पश्चिम एशिया, अफ्रीका, भूमध्य सागर और लाल सागर में भारत का मजबूत सहयोगी बन जाता है. भारत के व्यापार के नजरिए से देखें तो मिस्र अफ्रीका और यूरोप के बाजारों के लिए एक महत्वपूर्ण प्रवेश द्वार है. ऐसे में भारत भी मिस्र के साथ साझेदारी को और मजबूत करना चाहता है. मिस्र भारत का सबसे मजबूत एफ्रो-अरब (Afro-Arab) सहयोगी है. जनवरी में मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सिसी की भारत यात्रा और अब भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की होने वाली पहली मिस्र यात्रा से द्विपक्षीय संबंधों को नए मुकाम तक ले जाने के लिए एक ठोस रोडमैप बनाने में मदद मिलेगी. ऐसे में दोनों देशों के बीच फार्मा, सैन्य उद्योग, खाद्य सुरक्षा से लेकर सूचना प्रौद्योगिकी तक के क्षेत्रों में सहयोग के नए द्वार खुलने की उम्मीद बढ़ गई है. पश्चिम एशिया में क्षेत्रीय एकीकरण के लिहाज से भी भारत-मिस्र की बढ़ती दोस्ती महत्वपूर्ण हो जाती है. अरब सागर के एक छोर पर भारत है और दूसरी ओर मिस्र है. दोनों देशों के बीच सामरिक भागीदारी और बढ़ने से पूरे क्षेत्र में शांति और समृद्धि बढ़ेगी. दोनों देशों का भी यही मानना है.

भारत-मिस्र के बीच सदियों पुराना नाता

भारत और मिस्र की गिनती दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं में की जाती है. दोनों देशों के बीच हज़ारों वर्षों का नाता रहा है. चार हजार साल से भी पहले, गुजरात के लोथल पोर्ट के जरिए मिस्र के साथ व्यापार होता था. इस दौरान दुनिया में कई बदलाव हुए. इसके बावजूद भारत- मिस्र के संबंधों में एक स्थिरता रही है. दोनों देशों के बीच सहयोग लगातार मजबूत ही होता रहा है. संयुक्त राष्ट्र और दूसरे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत और मिस्र लंबे वक्त से एक-दूसरे का सहयोग करते आ रहे हैं. दोनों ही देश अंतरराष्ट्रीय विवादों के समाधान के लिए कूटनीति और संवाद की जरूरत को लेकर एकमत रहे हैं. दोनों देशों के बीच अभी भी सुरक्षा और रक्षा सहयोग के साथ आर्थिक सहयोग बढ़ाने की अपार संभावनाएं हैं. मिस्र के राष्ट्रपति अल-सिसी की भारत की इस यात्रा से इन संभावनाओं को खोजने और भविष्य में ठोस पहल होने से दोनों देशों के रिश्ते नई ऊंचाइयों को छू सकते हैं.

सामरिक साझेदारी को और मिलेगी मजबूती

उम्मीद की जा सकती है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा से भारत-मिस्र दोस्ती मिसाल बनेगी. दोनों देश सामरिक साझेदारी को आगे बढ़ाएंगे और इससे अफ्रीका-एशिया  में भारत की धाक बढ़ेगी. चीन अफ्रीका के कई देशों में भारी निवेश करने में जुटा है. चीन की मंशा है कि वो अफ्रीकी देशों पर अपना प्रभुत्व बढ़ाए. इस नजरिए से भी संतुलन बनाने के लिए भारत-मिस्र की साझेदारी काफी महत्वपूर्ण हो जाती है. इस साल भारत ने  जी 20 अध्यक्षता के दौरान मिस्र को अतिथि देश के रूप में आमंत्रित किया है. ये दिखाता है कि भारत-मिस्र दोस्ती नए मुकाम पर पहुंच गई है और पीएम मोदी की यात्रा से सामरिक साझेदारी को और मजबूती मिलेगी.

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