QUAD India US Japan Australia: व्हाइट हाउस में दुनिया के दो सबसे बड़े आर्थिक ताकतों अमेरिका और जापान के बीच द्विपक्षीय बैठक चल रही थी. अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन (Joe Biden) और जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा (Fumio Kishida) आपसी संबंधों को बेहतर बनाने पर बातचीत कर रहे थे. उस वक्त भी इन दोनों नेताओं के जेहन में भारत का नाम घूम रहा था और उसकी बड़ी वजह क्वाड(QUAD) है. 


अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन और जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा के बीच बैठक के बाद 13 जनवरी को दोनों देशों का साझा बयान जारी हुआ. इसमें भारत का भी जिक्र था. साझा बयान में कहा गया कि अमेरिका और जापान, भारत और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर क्वाड (QUAD) को दूसरों की भलाई के लिए काम करने की एक ताकत बनाने की भरपूर कोशिश करेंगे.


दुनिया की भलाई के लिए क्वाड बड़ी ताकत


अमेरिका-जापान के साझा बयान में कहा गया है कि हम  दुनिया के फायदे के लिए  हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अन्य पक्षों के साथ भी साझेदारी करेंगे. अमेरिका और जापान के साझा बयान से स्पष्ट है कि क्वाड की सफलता के लिए भारत के साथ साझेदारी बेहद महत्वपूर्ण है. अमेरिका और जापान ने साझा बयान में उन पहलुओं का भी जिक्र किया है, जिसमें बेहतर नतीजे के लिए क्वाड से जुड़े देशों के बीच सहयोग बेहद जरूरी है. इनमें वैश्विक स्वास्थ्य, साइबर सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन और समुद्री सुरक्षा जैसे मुद्दे शामिल हैं.


समुद्री सुरक्षा से जुड़ा घरेलू कानून


क्वाड में भारत के होने से हिंद महासागर में बाकी देशों की आवाजाही और सुरक्षा का मुद्दा बहुत हद तक सुलझ जाता है. अब तो भारत के पास अपना घरेलू एंटी मैरीटाइम पायरेसी कानून भी है.  इस कानून को दिसंबर 2022  में ही संसद से मंजूरी मिली थी. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ख़ास भौगोलिक स्थिति की वजह से भारत की क्वाड में महत्व बाकी देशों की तुलना में ज्यादा बढ़ जाता है. सामरिक रूप से महत्वपूर्ण हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते सैन्य दबदबे को कम करने के नजरिए से भी भारत क्वाड देशों के लिए सबसे ज्यादा अहमियत रखता है. द्विपक्षीय बैठक में भी अमेरिका और जापान, भारत का जिक्र करना नहीं भूलते, इससे क्वाड में भारत के महत्व को समझा जा सकता है.


चीन के बढ़ते दबदबे का तोड़ है क्वाड


चीन हिंद महासागर में पूर्वी अफ्रीका से लेकर होनोलूलू में  US Indo-Pacific Command मुख्यालय तक फैले इंडो-पैसिफिक रीजन पर अपना दबदबा कायम करना चाहता है. बीजिंग ने दक्षिण चीन सागर में कृत्रिम द्वीप और सैन्य प्रतिष्ठान बना लिए हैं. चीन विवादित दक्षिण चीन सागर के करीब सभी हिस्सों पर अपना दावा जताता है. ताइवान, फिलीपीन, ब्रूनेई, मलेशिया और वियतनाम भी दक्षिण चीन सागर के हिस्सों पर अपना दावा जताते हैं. पूर्वी चीन सागर में द्वीपों और जलक्षेत्र पर अधिकार को लेकर चीन और जापान के बीच विवाद भी बना हुआ है. चीन के रवैये से साफ है कि वो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति के संतुलन को बिगाड़ रहा है.


क्वाड के नजरिए से भारत सबसे महत्वपूर्ण


चीन के हिंद-प्रशांत क्षेत्र में विस्तारवादी मंसूबे से अमेरिका, जापान को सबसे ज्यादा नुकसान है. इसके साथ ऑस्ट्रेलिया के लिए सामरिक नजरिए से क्षेत्र का बहुत महत्व है. जैसे ही 2017 में क्वाड को लेकर भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच व्यापक सहमति बनी, उससे अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के लिए हिंद महासागर से जुड़ी चिंताएं कम हो गई और चीन के लिए खतरा बढ़ गया. हिंद महासागर रणनीतिक और व्यापारिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण क्षेत्र है. ये चीन के साथ जापान को भी भलीभंति मालूम है. भारत का साथ हिंद महासागर क्षेत्र में पकड़ बनाने के लिहाज से अमेरिका की चिंताओं का भी दूर करता है. इस इलाके से भारत बेहतर तरीके से परिचित है. इन इलाकों में भारत की स्थानीय जानकारी और खुफिया कवरेज किसी भी तरह से चीन से कम नहीं है. भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया मुक्त और खुले हिंद-प्रशांत के पक्षधर हैं. इन देशों की मंशा है कि हिंद-प्रशात क्षेत्र में शांति कायम रहे, ताकि इस एरिया से होने वाले अंतरराष्ट्रीय व्यापार में कोई बाधा नहीं आए. हिंद-प्रशात क्षेत्र से भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया समेत कई देशों के साझा हित जुड़े हुए है.


आर्थिक और राजनीतिक तौर से भी भारत अहम


2017 में जब क्वाड को मजबूत करने पर सहमति जताई गई थी, तो उस वक्त भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी थे, जो अभी भी भारत की अगुवाई कर रहे हैं. भारत को छोड़कर बाकी तीनों देशों के राष्ट्र प्रमुख अब बदल गए हैं. इस राजनीतिक स्थिरता के पहलू पर भी क्वाड के बाकी सदस्यों की नज़र है. बीते तीन साल में जिस तरह से सीमा विवाद पर भारत ने चीन के उकसावे की हर कार्रवाई का मुंहतोड़ जबाव दिया है, उससे भी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की स्थिति और मजबूत नज़र आती है. अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रलिया इस बात को स्वीकार भी करते हैं. हिंद-प्रशांत क्षेत्र का सिर्फ सैन्य नजरिए से ही महत्व नहीं है. इसका आर्थिक पहलू उससे भी ज्यादा अहम है. क्वाड सदस्य  के तौर पर भारत इस क्षेत्र में बेहतर स्थिति में हैं, जिससे अमेरिका, जापान और बाकी देशों का चीन के मैन्युफैक्चरिंग पर निर्भरता कम हो जाता है. इससे चीन को भी आर्थिक नुकसान पहुंचेगा, जो अमेरिका के साथ ही बाकी देशों के लिए फायदेमंद साबित होगा. इंडो-पैसिफिक रीजन में चीन के वाणिज्यिक दबदबे का मुकाबला करने में भारतीय कंपनियां महत्वपूर्ण निभा सकती हैं.


कैसा रहा है QUAD का सफ़र?


QUAD हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते सैन्य दबदबे के बीच बनाया गया एक चतुर्भुज सुरक्षा संवाद  है. क्वाड दरअसल Quadrilateral Security Dialogue का संक्षिप्त रूप है. क्वाड एक तरह का अनौपचारिक सामरिक मंच है. इसमें चार कोने की तरह 4 सदस्य भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया हैं. 
क्वाड का प्राथमिक उद्देश्य मुक्त, खुला, समृद्ध और समावेशी हिंद-प्रशांत क्षेत्र (Indo-Pacific region) सुनिश्चित करना है. इस तरह के मंच का पहली बार विचार जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने 2007 में रखा था. लेकिन इसके अस्तित्व का लिंक भारत के अभ्यास मालाबार और 2004 में आए सुनामी के बाद खुद के लिए और पड़ोसी देशों के लिए चलाए गए राहत और बचाव अभियान से जुड़ा है. अमेरिका के साथ शुरु हुआ एक्सरसाइज मालाबार में बाद में जापान और ऑस्ट्रेलिया भी जुड़े थे. हालांकि अगले 10 साल तक ये विचार ज्यादा आगे नहीं जा सका. चीन के कूटनीतिक विरोध और दबाव की वजह से ऑस्ट्रेलिया ने इससे अपने आप को दूर रखा.


क्वाड को 2017 में मिला नया आयाम


क्वाड को 2017 में जाकर एक नया आयाम मिला. यही वो साल था जब क्वाड के तहत पहली आधिकारिक वार्ता फिलीपींस में हुई थी. मनीला में 2017 आसियान सम्मेलन हुआ था. उस वक्त क्वाड के देशों के नेता भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, ऑस्ट्रलिया के प्रधानमंत्री मैल्कन टर्नबुल, जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे और अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प ने चतुर्भुज गठबंधन (quadrilateral alliance) को पुनर्जीवित करने पर सहमति जताई. वैश्विक राजनीति में ये एक बेहद महत्वपूर्ण पल था, जब हिंद-प्रशांत क्षेत्र का 4 सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश और सैन्य शक्तियां आपस में जुड़ गए. दरअसल ये सहमति उस रणनीति का हिस्सा था, जिसके तहत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते सैन्य दखल से मुकाबला के लिए इन देशों के बीच सहयोग बढ़ाना था. दक्षिण चीन सागर में चीन लगातार अपना प्रभुत्व बढ़ा रहा था. उसकी वजह से क्वाड के सदस्य देशों और चीन के बीच तनाव ने एक तरह से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नए शीत युद्ध जैसा माहौल बना दिया था.


क्वाड के तहत 4 बार हुई है शिखर वार्ता


आखिरी बार जापान की राजधानी टोक्यो में क्वाड की शिखर बैठक 24 मई 2022 को हुई थी. इसमें भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज और जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने हिस्सा लिया था. टोक्यो की शिखर वार्ता क्वाड के तहत चार देशों के राष्ट्र प्रमुखों की बातचीत का चौथा अवसर था. पहली बार चारों देशों के प्रमुख के बीच कोराना काल में मार्च, 2021 में वर्चुअल बैठक हुई थी. दूसरी बैठक व्यक्तिगत तौर से सितंबर, 2021 में वाशिंगटन डीसी में हुई. तीसरी बैठक वर्चुअल फॉर्म में मार्च 2022 में हुई थी. क्वाड की अगली शिखर वार्ता ऑस्ट्रेलिया में इसी साल के मध्य में होनी है. उससे पहले भारत में इसके विदेश मंत्रियों की बैठक होगी.


(मई 2022 में टोक्यो में हुआ था क्वाड का शिखर बैठक)


टोक्यो शिखर वार्ता  में क्वाड का दिखा दम


मई 2022 को टोक्यो में हुई शिखर वार्ता में चारों देशों ने स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया. इसमें चार देशों के नेताओं ने रूस-यूक्रेन युद्ध से हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर पड़ने वाले प्रभावों का आकलन भी किया था. भारत समेत क्वाड के सभी सदस्यों ने साझा बयान में कहा कि दुनिया के हर देश को अंतरराष्ट्रीय कानून और संयु्क्त राष्ट्र चार्टर का पालन करते हुए विवादों का शांतिपूर्ण समाधान निकालना चाहिए. ये रूस-यूक्रेन के साथ ही चीन के लिए भी संदेश था कि वो साउथ चाइना सी में अपने रवैये में बदलाव लाए. क्वाड देशों ने बिना नाम लिए स्पष्ट कर दिया कि चीन को समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCLOS) का अंतरराष्ट्रीय कानून मानना ही होगा. साझा बयान में कहा गया कि समुद्र में कोई भी ताकत अगर बलपूर्वक, उकसाने वाली हरकत और एकतरफा कार्रवाई करेगा, तो क्वाड देश उसका कड़ा विरोध करेंगे. एक तरह से ये चीन के लिए चेतावनी थी. इसके साथ ही खुले समुद्र (High Seas) में निर्बाध कारोबार पर भी ज़ोर दिया गया.


उत्तर कोरिया पर दबाव बनाने में कारगर


क्वाड कोरियाई प्रायद्वीप के पूर्ण परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए भी लगातार प्रयासरत है. इसके तहत पिछली बैठक में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के उल्लंघन की उत्तर कोरिया की कोशिशों का भी विरोध किया गया था. उत्तर कोरिया के अंतर-महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल परीक्षण की निंदा करते हुए उससे यूएनएससीआर के तहत अपने सभी दायित्वों का पालन करने और उकसावे से दूर रहने की अपील की गई थी. 
 
जलवायु परिवर्तन और साइबर सुरक्षा पर काम


क्वाड के सदस्य देश जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने के लिए भी सहयोग बढ़ा रहे हैं. इसके तहत क्वाड क्लाइमेट चेंज एडेप्टेशन एंड मिटिगेशन पैकेज (क्यू-चैम्प) अभियान चलाया जा रहा है. डिजिटल होती दुनिया में साइबर खतरे भी बढ़ते जा रहे हैं. साइबर सुरक्षा को मजबूत करने के लिए क्वाड के देश क्वाड साइबर सुरक्षा साझेदारी के तहत इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में एक दूसरे के कार्यक्रमों में मदद कर रहे हैं. इसके अलावा क्वाड साझेदार महत्वपूर्ण और उभरती हुई प्रौद्योगिकियों में भी सहयोग बढ़ा रहे हैं. इसके अलावा क्वाड फेलोशिप के तहत अमेरिका में इस साल की तीसरी तिमाही से कक्षाएं भी  शुरू हो जाएंगी. क्वाड के साझेदार देश हिंद-प्रशांत क्षेत्र में तकनीकी और आर्थिक मुद्दों पर सहयोग बढ़ाने पर भी काम कर रहे हैं. 


चीन करता रहा है क्वाड का विरोध


क्वाड साझेदारों की ताकत को देखते हुए ही चीन इस मंच का शुरू से विरोध करते रहा है. वो इस बात से अच्छे से वाकिफ है कि व्यावहारिक तौर से क्वाड का गठन ही हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के दबदबे को कम करने के लिए हुआ है. क्वाड के अस्तित्व में आने के बाद से ही साझेदार देशों के बीच लगातार ऐसे समझौते हो रहे हैं, जिससे इस क्षेत्र में चीन का प्रभाव कम हो सके. चीन क्वाड को अपने खिलाफ साजिश बताते रहा है.


भारत के लिए भी बेहद अहम है क्वाड


आने वाले वक्त में इंडो-पैसिफिक क्षेत्र को स्वतंत्र और खुला बनाए रखने में क्वाड की भूमिका और बढ़ने वाली है. उसमें भी जिस तरह से भारत का हिंद-प्रशांत क्षेत्र में मजबूत पकड़ है, क्वाड के बाकी देशों के लिए भारत की स्थिति कूटनीतिक और सामरिक लिहाज से बेहद ख़ास बन जाती है. चीन के साथ सीमा विवाद को देखते हुए भारत के लिए भी क्वाड साझेदार काफी अहम हैं. इस मुद्दे पर हाल के वर्षों में अमेरिका लगातार भारत का समर्थन करते रहा है. इसके अलावा क्वाड देशों के अनुभवों का भारत नौसेना के मोर्चे पर भी फायदा उठा सकता है और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सामरिक अनुसंधान को बढ़ा सकता है. 


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