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India Egypt: भारत-मिस्र दोस्ती बनेगी मिसाल, सामरिक साझेदारी के जरिए अफ्रीका-एशिया में इंडिया की बढ़ेगी धाक

India Egypt: इस साल भारत ने जी 20 अध्यक्षता के दौरान मिस्र को अतिथि देश के रूप में आमंत्रित किया है. जाहिर है कि भारत-मिस्र दोस्ती नए मुकाम पर पहुंच गई है. सामरिक साझेदारी से संबंध और मजबूत होंगे.

India Egypt Strategic Partnership: 74वें गणतंत्र दिवस पर राजधानी दिल्ली के कर्तव्य पथ से पूरी दुनिया ने भारत के शौर्य और पराक्रम का प्रदर्शन देखा. इसके साथ ही एक बार फिर से भारत की अद्भुत संस्कृति के इंद्रधनुषी रंगों से भी दुनिया का परिचय हुआ. इन सबके बीच कर्तव्य पथ से भारत और मिस्र की दोस्ती की नई इबारत भी लिखी गई.

कर्तव्य पथ पर हुए गणतंत्र दिवस समारोह में मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सिसी (Abdel Fattah el-Sisi) मुख्य अतिथि थे. पहली भारत अरब देश मिस्र के कोई राष्ट्रपति भारत के गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल हुए. इसके साथ ही अब्दुल फतेह अल-सीसी  दुनिया के उन चुनिंदा नेताओं में शामिल हो गए हैं, जिन्हें ये गणतंत्र दिवस समारोह में शामिल होने का मौका मिला है. ये अपने आप में दोनों देशों के बीच दोस्ती की नई मिसाल है.

गणतंत्र दिवस समारोह में मिस्र की सेना

मिस्र की एक सैन्य टुकड़ी ने भी कर्तव्य पथ पर 74वें गणतंत्र दिवस परेड की शोभा बढ़ाई. इसकी अगुवाई कमांडर कर्नल महमूद मोहम्मद अब्देलफत्ताह एल्खारासावी ने किया. ऐसा पहली बार हुआ है, जब मिस्र की सेना के किसी दल ने भारतीय गणतंत्र दिवस समारोह के परेड में हिस्सा लिया हो. इस टुकड़ी में 144 सैनिक शामिल थे.

सामरिक साझेदार बनेंगे भारत और मिस्र

मिस्र के राष्ट्रपति अल-सिसी की ये भारत यात्रा कई मायनों में ऐतिहासिक रही. मिस्र के राष्ट्रपति अल-सिसी तीन दिन के भारत दौरे पर 24 जनवरी को दिल्ली पहुंचे थे. इस यात्रा के दौरान भारत और मिस्र ने द्विपक्षीय संबंधों को सामरिक साझेदारी (Strategic Partnership) में बदलने का फैसला किया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मिस्र के राष्ट्रपति अल-सिसी के बीच 25 जनवरी को दिल्ली के हैदराबाद हाउस में प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता हुई. इसमें द्विपक्षीय भागीदारी को सामरिक साझेदारी के स्तर पर ले जाने का निर्णय लिया गया. भारत-मिस्र के बीच सामरिक गठजोड़ के तहत सहयोग के चार स्तंभों या आयामों की पहचान की गई है. ये स्तंभ हैं: 

1. राजनीतिक सहयोग
2. सुरक्षा सहयोग
3. आर्थिक गठजोड़ 
4. वैज्ञानिक गठजोड़

व्यापक सहयोग के लिए लॉन्ग टर्म ढांचा

दोनों देश व्यापक सहयोग के लिए लॉन्ग टर्म ढांचा विकसित करेंगे. इन पहलुओं पर फोकस करते हुए भारत और मिस्र के बीच दोस्ती की नई इबारत लिखी जाएगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति अल-सीसी ने समयबद्ध तरीके से रक्षा, सुरक्षा, कारोबार और आतंकवाद से निपटने में सहयोग को बढ़ाने का निर्णय किया है. अल-सिसी की इस यात्रा के दौरान भारत और मिस्र के बीच संस्कृति, सूचना प्रौद्योगिकी, साइबर सुरक्षा, युवा मामलों और प्रसारण क्षेत्र से जुड़े पांच समझौता ज्ञापन पर भी हस्ताक्षर किए गए. रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से प्रभावित हुए खाद्य और दवा आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करने की दिशा में भी दोनों देश मिलकर काम करेंगे.

भारत और मिस्र के बीच बढ़ेगा सुरक्षा सहयोग

भारत और मिस्र के बीच सुरक्षा सहयोग बढ़ाने पर भी सहमति बनी है. भारत के रक्षा निर्यात के लिहाज से मिस्र की अहमियत बढ़ जाती है. मिस्र ने भारत से हल्के लड़ाकू विमान तेजस, रडार, सैन्य हेलीकॉप्टर समेत दूसरे सैन्य साजो सामान खरीदने में ख़ास रुचि दिखाई है. तेजस की खरीद पर  मिस्र, भारत के साथ बातचीत शुरू भी कर चुका है. मिस्र, भारत से आकाश मिसाइल और स्मार्ट एंटी-एयरफील्ड सिस्टम भी खरीदना चाहता है. मिस्र ने द्विपक्षीय वार्ता में भारतीय सैन्य साजो सामान को खरीदने को लेकर उत्सुकता जाहिर की. दोनों देश चाहते भी हैं कि उभरते क्षेत्रीय सुरक्षा से जुड़ी चुनौतियों से निपटने में आपसी रक्षा जुड़ाव और ज्यादा मजबूत हो. बीते कुछ सालों में भारत और मिस्र के बीच रक्षा संबंध तेजी से बढ़े हैं. इसी कड़ी में जुलाई 2022 में इंडियन एयरफोर्स ने तीन सुखोई SU-30MKI लड़ाकू विमान और दो बोइंग C-17 ग्लोबमास्टर परिवहन विमानों के साथ सामरिक नेतृत्व कार्यक्रम में हिस्सा लिया था. दोनों देश रक्षा उद्योगों के बीच सहयोग को और मजबूत करेंगे. पिछले कुछ वर्षों में दोनों देशों की सेनाओं के बीच संयुक्त अभ्यास प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण के कार्यों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है.

आतंकवाद के खिलाफ बढ़ाएंगे सहयोग

मिस्र ने हमेशा ही आतंकवाद के मुद्दे पर भारत का साथ दिया है. इस बार भी द्विपक्षीय वार्ता में दोनों देशों ने आतंकवाद को लेकर जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाने की प्रतिबद्धता दोहराई है. दोनों ही देश विदेश नीति के एक उपकरण के रूप में आतंकवाद के इस्तेमाल की कड़ी निंदा करते हैं. भारत अपने पड़ोसी पाकिस्तान के इसी रवैये से लंबे वक्त से परेशान रहा है. पाकिस्तान आतंकवाद का इस्तेमाल विदेशी नीति के उपकरण के तौर पर करते रहा है. मुस्लिम देश होने के बावजूद मिस्र के राष्ट्रपति अल-सिसी का इस तरह से खुलकर आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत का समर्थन बेहद मायने रखता है. दोनों देश इस बार पर सहमत है कि सीमा पार आतंकवाद को खत्म करने के लिए ठोस कार्रवाई बेहद जरूरी है. आतंकवाद से संबंधित सूचनाओं और खुफिया सूचनाओं के आदान-प्रदान को बढ़ाने का भी फैसला किया है. दोनों देशों ने फैसला किया है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अंतरराष्ट्रीय समुदाय को सतर्क करने का भी काम भी निलकर किया जाएगा. साइबर स्पेस के दुरुपयोग के खिलाफ भी दोनों देश सहयोग बढ़ाएंगे.

निवेश और व्यापार के नजरिए से भी अहम

भारत और मिस्र के बीच अभी भी व्यापार को लेकर असीम संभावनाएं हैं. अभी फिलहाल दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय कारोबार 7 अरब डॉलर का है, जिसे अगले पांच साल में 12 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है. दोनों देश आपसी निवेश भी बढ़ाएंगे. दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौता 1978 से लागू है. ये समझौता मोस्ट फेवर्ड नेशन क्लॉज से जुड़ा हुआ है. बीते 10 साल में दोनों देशों के बीच व्यापार पांच गुना से भी ज्यादा बढ़ा है. 2018-19 में द्विपक्षीय व्यापार 4.5 अरब डॉलर पहुंच गया था. कोरोना महामारी का असर होने के बावजूद 2019-20 में व्यापार 4.5 अरब डॉलर और 2020-21 में द्विपक्षीय व्यापार 4.15 अरब डॉलर रहा. इसके बाद द्विपक्षीय व्यापार ने बहुत तेज गति से रफ्तार पकड़ ली. 2021-22 में दोनों देशों के बीच 7.26 अरब डॉलर का व्यापार हुआ. ये 2020-21 की तुलना में 75 फीसदी ज्यादा था.

व्यापार संतुलन भारत के पक्ष में

मिस्र के साथ व्यापार संतुलन भारत के पक्ष में है. 2021-22 में भारत से मिस्र को 3.74 अरब डॉलर के मूल्य का सामान निर्यात हुआ था. निर्यात में ये पिछले साल से 65 फीसदी ज्यादा था.  इस अवधि में भारत ने मिस्र से 3.52 अरब डॉलर के सामान का आयात किया था. भारत मिस्र से खनिज तेल, उर्वरक, इनऑर्गेनिक केमिकल और कपास मंगवाता है. वहीं भारत से मिस्र को बफैलो मीट, आयरन और स्टील, इंजीनियरिंग प्रोडक्ट, लाइट व्हीकल और कॉटन यार्न निर्यात होता है. करीब 50 भारतीय कंपनियों का मिस्र के अलग-अलग क्षेत्रों में 3.15 अरब डॉलर का निवेश है. ये क्षेत्र केमिकल, ऊर्जा, टेक्सटाइल, एग्री-बिजनेस और रिटेल से जुडे़ हुए हैं. दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय रिश्तों के लिहाज से टेक्निकल सहयोग और मदद भी मायने रखता है.  बीते 22 साल में 1300 से ज्यादा मिस्र के अधिकारी आईटीईसी के अलावा आईसीसीआर और आईएएफएस छात्रवृत्ति जैसे कार्यक्रमों से लाभान्वित हुए हैं.

सांस्कृतिक सहयोग और लोगों के बीच संपर्क

सांस्कृतिक सहयोग और लोगों के बीच सम्पर्क बढ़ाकर भी सामरिक भागीदारी को सुनिश्चित किया जाएगा. राष्ट्रपति अल-सिसी की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों ने प्रसारण सामग्री के आदान-प्रदान, क्षमता निर्माण और सह-निर्माण की सुविधा के लिए समझौता ज्ञापन (MOU) पर हस्ताक्षर किए हैं. इसके तहत दोनों देशों के प्रसारक द्विपक्षीय आधार पर खेल, समाचार, संस्कृति, मनोरंजन और कई अन्य क्षेत्रों के अपने कार्यक्रमों का आदान-प्रदान करेंगे. इन कार्यक्रमों को दोनों देशों के रेडियो और टेलीविजन प्लेटफार्म पर प्रसारित किया जाएगा. ये एमओयू फिलहाल तीन साल के लिए हुआ है. इसके तहत प्रसार भारती और मिस्र का राष्ट्रीय मीडिया प्राधिकरण (NMA) कार्यक्रमों का आदान-प्रदान करेंगे. 

खाद्य जरूरतों के लिए भारत फायदेमंद

मिस्र बड़े पैमाने पर खाद्य पदार्थों का आयात करता है. रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से उसके सामने गेहूं का संकट खड़ा हो गया था. वो 80 फीसदी गेहूं इन्हीं दोनों देशों से खरीदता था.  इस संकट से निकालने के लिए भारत आगे आया. अप्रैल 2022 में मिस्र ने गेहूं आयात करने वाले देशों की सूची में भारत को शामिल किया. भारत ने दूसरे देशों के लिए गेहूं की निर्यात पर रोक लगा रखी थी. इसके बावजूद मई 2022 में भारत ने मिस्र  को 61,000 टन गेहूं निर्यात करने की अनुमति दी. जरुरतों को देखते हुए मिस्र, भारत से और गेहूं चाहता है. वहीं मिस्र से साझेदारी मजबूत कर भारत कच्चे तेल को लेकर खाड़ी देशों पर अपनी निर्भरता को कम कर सकता है.

आजादी के बाद से ही मजबूत रिश्ता

भारत-मिस्र के बीच राजनयिक संबंधों के 75 साल 2022 में पूरे हो गए.  भारत को आजादी मिलने के तीन दिन बाद ही 18 अगस्त 1947 को दोनों देशों ने राजनयिक संबंध शुरु करने की घोषणा की थी. भारत के पहले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू और मिस्र के दूसरे राष्ट्रपति जमाल अब्देल नासेर (Gamal Abdel Nasser)के दौर में दोनों देशों के संबंध बेहद मजबूत हो गए थे. उसी  का नतीजा था कि दोनों ही देशों ने 1955 में  Friendship Treaty पर हस्ताक्षर किए थे.  1956 में स्वेज नहर संकट के वक्त भारत ने मिस्र का समर्थन किया था. नेहरू और नासेर ने ही इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो और युगोस्लाविया के राष्ट्रपति टीटो के साथ मिलकर गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) की शुरुआत की थी. कोविड के दूसरे लहर के वक्त मिस्र पूरी मजबूती से भारत के साथ खड़ा था. उस वक्त मिस्र ने 9 मई 2021 को भारत को चिकित्सा आपूर्ति से जुड़े सामानों को लेकर तीन विमान भेजे थे.

तीसरी बार भारत आए अल-सिसी

मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सिसी की ये तीसरी भारत यात्रा थी. वे सबसे पहले तीसरे भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन में शामिल होने के लिए अक्टूबर 2015 में भारत आए थे. उसके बाद वे सितंबर 2016 में द्विपक्षीय वार्ता के मकसद से भारत की राजकीय यात्रा की थी. इस बार मिस्र के राष्ट्रपति अल-सिसी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को काहिरा आने का न्योता भी दिया है. प्रधानमंत्री बनने के बाद से नरेंद्र मोदी ने अभी तक मिस्र  की यात्रा नहीं की है. मिस्र के राष्ट्रपति अल-सिसी ने भरोसा जताया है कि पीएम मोदी के भविष्य में मिस्र यात्रा से दोनों देशों के रिश्ते और आगे बढ़ेंगे.

मिस्र  है सबसे मजबूत एफ्रो-अरब सहयोगी

मिस्र भारत का सबसे मजबूत एफ्रो-अरब (Afro-Arab) सहयोगी है. ये हम सब जानते है कि मिस्र की एफ्रो-अरब राष्ट्र के तौर पर दोहरी पहचान है और इससे वो पश्चिम एशिया, अफ्रीका, भूमध्य सागर और लाल सागर में भारत का मजबूत सहयोगी बन जाता है. मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सिसी की इस भारत यात्रा से द्विपक्षीय संबंधों को नए मुकाम तक ले जाने के लिए एक ठोस रोडमैप बनाने में मदद मिली है. इससे फार्मा, सैन्य उद्योग, खाद्य सुरक्षा से लेकर सूचना प्रौद्योगिकी तक के क्षेत्रों में सहयोग के नए द्वार खुलने की उम्मीद बढ़ गई है. भारत के व्यापार के नजरिए से देखें तो मिस्र अफ्रीका और यूरोप के बाजारों के लिए एक महत्वपूर्ण प्रवेश द्वार है. पश्चिम एशिया में क्षेत्रीय एकीकरण के लिहाज से भी भारत-मिस्र की बढ़ती दोस्ती महत्वपूर्ण हो जाती है. अरब सागर के एक छोर पर भारत है और दूसरी ओर मिस्र है. दोनों देशों के बीच सामरिक भागीदारी और बढ़ने से पूरे क्षेत्र मे शांति और समृद्धि बढ़ेगी. दोनों देशों का भी यहीं मानना है.

भारत-मिस्र के बीच सदियों पुराना नाता 

भारत और मिस्र की गिनती दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं में की जाती है. दोनों देशों के बीच हज़ारों वर्षों का नाता रहा है. चार हजार साल से भी पहले, गुजरात के लोथल पोर्ट के जरिए मिस्र के साथ व्यापार होता था. इस दौरान दुनिया में कई बदलाव हुए. इसके बावजूद भारत- मिस्र के संबंधों में एक स्थिरता रही है. दोनों देशों के बीच सहयोग लगातार मजबूत ही होता रहा है. संयुक्त राष्ट्र और दूसरे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत और मिस्र लंबे वक्त से एक-दूसरे का सहयोग करते आ रहे हैं. दोनों ही देश अंतरराष्ट्रीय विवादों के समाधान के लिए कूटनीति और संवाद की जरूरत को लेकर एकमत रहे हैं. दोनों देशों के बीच अभी भी सुरक्षा और रक्षा सहयोग के साथ आर्थिक सहयोग बढ़ाने की अपार संभावनाएं हैं. मिस्र के राष्ट्रपति अल-सिसी की भारत की इस यात्रा से इन संभावनाओं को खोजने और भविष्य में ठोस पहल होने से दोनों देशों के रिश्ते नई ऊंचाईयों को छू सकते हैं.

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