यूक्रेन के साथ चल रहे युद्ध के बीच रूस ने शुक्रवार को अपनी नई विदेश नीति को लेकर रणनीतिक दस्तावेज जारी कर दिया है. रूस ने अपनी नई विदेश नीति में भारत और चीन के साथ व्यापार और प्रौद्योगिकी से लेकर सभी क्षेत्रों में संबंधों को और मजबूत बनाते हुए उसे आगे बढ़ाने का फैसला किया है. रूस ने इसे 2021 की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के अनुरूप बनाया है. शुक्रवार को राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इसे जारी किया है. इसमें शंघाई सहयोग संगठन (SCO), आरआईसी (Russia, India, China), BRICS और दूसरे ऐसे ग्रुप को प्राथमिकता देने पर जोर दिया गया है, जिसमें पश्चिमी देशों के एक भी देश की भूमिका नहीं है.


रूस ने अपनी नई विदेश नीति के तहत भारत के साथ पारस्परिक रूप से लाभकारी आधार पर सभी क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने और विस्तार करने के साथ द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाने, निवेश और तकनीकी संबंधों को मजबूत करने पर जोर देने की बात कही है. इसके साथ ही वह विशेष रूप से विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी (privileged strategic partnership) को बढ़ाने को लेकर काम करना जारी रखेगा और अमित्र देशो और उनके गठबंधनों के विध्वंसक कदमों का प्रतिरोध करने को प्राथमिकता दिया है.

गैर यूरोपीय देशों के समूहों को प्राथमिकता



रूस ने इस तथ्य पर जोर देते हुए कहा है कि वह एक "स्वतंत्र और मल्टी-वेक्टर" विदेश नीति का पालन करता है. रूस ने कहा है  कि वह एक मल्टी पोलर वर्ल्ड की वास्तविकताओं के लिए वैश्विक व्यवस्था को अनुकूल करने में मदद करने व क्षमता बढ़ाने के लिए इसे प्राथमिकता बनाना चाहता है. इसके लिए वह अंतरराज्यीय संघों जैसे BRICS, (SCO), स्वतंत्र राज्यों का राष्ट्रमंडल (CIS), यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन (EAEU), सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन (CSTO) और RIC व अन्य समूहों की अंतर्राष्ट्रीय भूमिका को सुनिश्चित करना चाहता है.

भारत और रूस ने अक्टूबर 2000 में हस्ताक्षरित 'रणनीतिक साझेदारी' को आगे बढ़ाते हुए उसे और उन्नत करने के लिए दिसंबर 2010 में 'विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी' (Special and Privileged Strategic Partnership) पर हस्ताक्षर किया था. दस्तावेज़ में चीन के साथ बढ़ते संबंधों पर कहा गया है कि मास्को का लक्ष्य बीजिंग के साथ "व्यापक साझेदारी और रणनीतिक सहयोग को और मजबूत करना" होगा ताकि "वैश्विक और क्षेत्रीय स्तरों पर सुरक्षा, स्थिरता और सतत विकास के प्रयासों को यूरेशिया और दुनिया के अन्य हिस्सों में सुनिश्चित किया जा सके.

यूरेशियन क्षेत्र के विकास के बड़े लक्ष्यों को लेकर रूस ने कहा कि वह बैकाल-अमूर मेनलाइन और ट्रांस-साइबेरियन रेलवे, अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC) जैसी कुछ परियोजनाओं में अधिक बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए चीन की भूमिका को बढ़ावा देगा. इसके अलावा वह पश्चिमी यूरोप-पश्चिमी चीन अंतर्राष्ट्रीय ट्रांजिट कॉरिडोर, कैस्पियन और काला सागर क्षेत्रों और उत्तरी सागर मार्ग के बुनियादी ढांचे में सुधार, चीन-मंगोलिया-रूस आर्थिक गलियारे सहित अन्य विकास क्षेत्रों और आर्थिक गलियारों का निर्माण करेगा.

'यूरोपीय देशों के प्रति रूस ने बनाई आक्रामक नीति'

पिछले साल फरवरी में रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था और दोनों के बीच अभी भी युद्ध जारी है. रूस के इस कदम से यूरोप और अमेरिका परेशान होकर मास्को ने के प्रति "आक्रामक" रणनीति अपना रहे हैं. दस्तावेज़ में उल्लेख किया गया है कि अधिकांश यूरोपीय देशों ने रूस के प्रति एक आक्रामक नीति अपनाया है, जिसका उद्देश्य रूसी संघ की सुरक्षा और संप्रभुता के लिए खतरा पैदा करना, एकतरफा आर्थिक लाभ प्राप्त करना, घरेलू राजनीतिक स्थिरता को कम करना और पारंपरिक रूसी आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों को नष्ट करना और रूस के सहयोग में बाधाएं उत्पन्न करना है.


लेकिन हम अपनी सुरक्षा, क्षेत्रीय अखंडता, संप्रभुता, पारंपरिक आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों और सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए यूरोपीय संघ (EU) और यूरोप की परिषद और उनके सहयोगी उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO) देशों से मिलने वाले खतरों को कम करने और
उसे बेअसर करने का इरादा रखता हैं.

'अमेरिका के साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की नीति पर जोर'

दिलचस्प बात यह है कि वाशिंगटन और मॉस्को के बीच बढ़ते तनाव के बावजूद दस्तावेज़ में "रणनीतिक समानता बनाए रखने" और संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ "शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व" को बनाए रखने की बात कही गई है. दस्तावेज में कहा गया है कि "रूसी संघ रणनीतिक समानता बनाए रखने, संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच हितों के संतुलन की स्थापना में रुचि रखता है. वह प्रमुख परमाणु शक्तियों के रूप में उनकी स्थिति को ध्यान में रखते हुए और रणनीतिक स्थिरता और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के लिए विशेष जिम्मेदारी निभाने की बात कही है.


इसमें कहा गया है कि "अमेरिका-रूस संबंधों के इस तरह के मॉडल के गठन की संभावनाएं इस बात पर निर्भर करती हैं कि संयुक्त राज्य अमेरिका सत्ता-वर्चस्व की अपनी नीति और रूसी-विरोधी नीतियों को दरकिनार करते हुए रूस की संप्रभुता, समानता, पारस्परिक लाभ और एक दूसरे के हितों के प्रति सम्मान के सिद्धांतों के आधार पर बातचीत के पक्ष में अपनी नीतियों को संशोधित करने के लिए किस हद तक तैयार है."