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ग्रीन हाइड्रोजन के जरिए ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता, कम उत्पादन लागत के जरिए भारत बन सकता है ग्लोबल हब

Green Hydrogen: ऊर्जा के क्षेत्र में 2047 तक भारत को आत्मनिर्भर बनाने में ग्रीन हाइड्रोजन की बड़ी भूमिका रहने वाली है. इससे अरबों डॉलर के आयात का बोझ कम होने के साथ ही आर्थिक विकास को गति भी मिलेगी.

Self Reliance in Energy Sector: दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के बाद भारत के लिए आने वाला दशक ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण साबित होने वाला है. अगले 10 साल में भारत को वैश्विक ऊर्जा परिदृश्य में उस मुकाम को हासिल करना है, जिसकी बदौलत पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों यानी अनवीकरणीय या नॉन रिन्यूएबल ऊर्जा स्रोतों पर हमारी निर्भरता बेहद कम हो जाए. कच्चे तेल और कोयला जैसे जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को धीरे-धीरे कम करनी होगी.

इस लक्ष्य को हासिल करने में ग्रीन हाइड्रोजन की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है. स्वच्छ ऊर्जा की ओर भारत के बढ़ते कदम के लिए  ग्रीन हाइड्रोजन एक बेहतर विकल्प साबित हो सकता है. इसके जरिए अगले 25 साल में भारत को ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल हो सकती है. इसको लेकर मार्च महीने में अमेरिका के एक शीर्ष शोध संस्थान लॉरेंस बर्कले नेशनल लेबोरेटरी ने भी दावा किया था. 'द इंडिया एनर्जी एंड क्लाइमेट सेंटर'  के साथ मिलकर 'आत्मनिर्भर भारत का रास्ता' नाम से प्रकाशित इस रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में तेजी से कदम उठा रहा है. 

ग्रीन हाइड्रोजन की क्षमता का विस्तार

ग्रीन हाइड्रोजन की संभावना का पूरी तरह से विस्तार करना स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में ही एक बड़ा कदम है. दरअसल आने वाला वक्त ग्रीन हाइड्रोजन की ही है. इसमें भारत और चीन दोनों के पास अपार संभावनाएं हैं. हम जानते हैं कि दुनिया में जिन देशों के पास ऊर्जा संसाधनों की भरमार होती है, वे देश वैश्विक आर्थिक नीतियों और अर्थव्यवस्थाओं पर प्रभावी असर डालने की स्थिति में  होते हैं. यही वजह है कि रूस, अमेरिका, ओपेक और अरब के देशों का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर लंबे वक्त से दबदबा रहा है. लेकिन ग्रीन हाइड्रोजन से इस परिदृश्य में बड़ा बदलाव आने की पूरी संभावना है. यहीं वजह है कि भारत ग्रीन हाइड्रोजन पर गंभीरता से काम कर रहा है.

विकसित राष्ट्र का लक्ष्य और ऊर्जा आत्मनिर्भरता

ऐसे भी भारत चंद सालों में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने वाला है. हम चीन को पीछे छोड़कर दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाला देश भी बन चुके हैं. भारत 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने का लक्ष्य लेकर आगे बढ़ रहा है. विकसित राष्ट्र बनने की इस यात्रा में ऊर्जा की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होने वाली है. जो भी देश विकसित राष्ट्र की कैटेगरी में आते हैं, उन देशों में प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत भी बाकी देशों की तुलना में ज्यादा होती है. ऐसे में भारत की इतनी बड़ी जनसंख्या के लिहाज से ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता न सिर्फ वक्त की जरूरत है, बल्कि सामरिक और कूटनीतिक नजरिए से भी काफी मायने रखता है.

मिशन इनोवेशन के तहत स्वच्छ ऊर्जा क्रांति

दुनिया के हर देश पर नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने का दबाव लगातार बढ़ रहा है. स्वच्छ ऊर्जा क्रांति के जरिए भारत 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करना चाहता है और मिशन इनोवेशन के जरिए स्वच्छ ऊर्जा क्रांति की दिशा में भारत तेजी से कदम बढ़ा रहा है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल 'मिशन इनोवेशन' के तहत भारत के साथ दुनिया के बाकी देश भी स्वच्छ ऊर्जा को लेकर लगातार प्रयास कर रहे हैं. मिशन इनोवेशन पहल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भारत की जलवायु कार्रवाई पर राष्ट्रीय आकांक्षा के दृष्टिकोण के अनुरूप है. इसे पंचामृत कहा जाता है, जिसे नवंबर 2021 में ग्लासगो में जलवायु परिवर्तन पर आयोजित COP-26 शिखर सम्मेलन के दौरान रेखांकित किया गया था.

स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिहाज से वैश्विक पहल मिशन इनोवेशन में भारत की भागीदारी हर स्तर पर तेजी से बढ़ रही है. भारत इस साल सीईएम-14  के साथ साझा तौर से मिशन इनोवेशन -8 (MI-8) की मेजबानी करेगा. एमआई-8 का आयोजन 19 से 21 जुलाई के बीच होना है. भारत में मिशन इनोवेशन (MI 2.0) का दूसरा चरण 2 जून, 2021 को लॉन्च किया गया था. एमआई 2.0 का फोकस मौजूदा दशक में (2021-2030) नई स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल को बढ़ाने देने पर है. साथ ही इसका मकसद सभी के लिए स्वच्छ ऊर्जा को सस्ती, आकर्षक और सुलभ बनाने पर है. इससे पेरिस समझौते और नेट जीरो के लिए तय लक्ष्यों को हासिल करने में मदद मिलेगी.

स्वच्छ ऊर्जा क्रांति के लिए लक्ष्य

भारत ने स्वच्छ ऊर्जा क्रांति के लिए कुछ लक्ष्य तय किए हैं. इसके तहत 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन यानी नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावाट (GW) तक ले जाना है. भारत को 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा के जरिए 50% ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करना है. भारत ने 2030 तक कार्बन उत्सर्जन को 1 बिलियन टन कम करने का लक्ष्य रखा है. साथ ही 2030 तक कार्बन की तीव्रता को 45% से कम करना है और स्वच्छ ऊर्जा क्रांति के जरिए 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन लक्ष्य प्राप्त करना है.

इन सारे लक्ष्यों को हासिल करने में ग्रीन हाइड्रोजन मील का पत्थर साबित होने वाला है. पिछले साल दावोस में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप पुरी ने कहा था कि भारत ग्रीन हाइड्रोजन के सेक्टर में वैश्विक लीडर बनकर उभरेगा.

ग्रीन हाइड्रोजन का हब बनने का लक्ष्य

हाइड्रोजन को भविष्य का ऊर्जा माना जा रहा है. इसी कारण से भारत ग्रीन हाइड्रोजन का हब बनना चाहता है. इसके लिए भारत ने राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन शुरू किया है. भारत सरकार का लक्ष्य है कि  भारत ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन, उपयोग और निर्यात के लिए वैश्विक केंद्र बने. इसी मकसद से राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन की शुरुआत की गई है. केंद्र सरकार की मंजूरी के बाद इस साल 13 जनवरी को  राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन का ब्लू प्रिंट जारी किया गया था. मिशन के लिए प्रारंभिक व्यय 19,744 करोड़ रुपये रखा गया था.

ग्रीन हाइड्रोजन के वैश्विक बाजार पर नज़र

2030 तक ग्रीन हाइड्रोजन का वैश्विक बाजार 100 मिलियन मीट्रिक टन (MMT) तक पहुंच जाने का अनुमान है. इस बाजार के 10% हिस्से पर भारत अपना कब्जा चाहता है. भारत नवीकरणीय स्रोतों से बिजली का उपयोग करके 60 लाख टन ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन का लक्ष्य बना रहा है. ऐसा मुमकिन होने पर भारत दुनिया में ग्रीन हाइड्रोजन का एक प्रमुख निर्यातक बन सकता है.  केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आर.के. सिंह ने मार्च महीने की आखिर में ये जानकारी दी थी कि भारत के पास  छह मिलियन टन ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन करने के लिए अलग-अलग उद्योगों की ओर ठोस योजनाएं पहले से ही हैं, जिससे करीब 36 मिलियन टन ग्रीन अमोनिया का उत्पादन होगा.

नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता की लागत कम

ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया को लेकर हम दुनिया का पावर हाउस बन सकते हैं. भारत के पास वो क्षमता और संभावनाएं हैं, जिससे हम अगले एक दशक में ग्रीन हाइड्रोजन के मामले में बड़ी ताकत बन सकते हैं. भारत की संभावनाएं इसलिए भी बढ़ जाती है क्योंकि हमारे यहां नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता की लागत दुनिया में सबसे कम लागत में से एक है. यही वो कारक है जिससे दूसरे देशों की तुलना में भारत लाभ की स्थिति में  है. भारत में 6 लाख डॉलर में एक मेगावाट सौर ऊर्जा निर्माण क्षमता स्थापित किया जा सकता है और ये दुनिया में सबसे कम कीमत है.

बना सकता है सबसे सस्ता ग्रीन हाइड्रोजन

ग्रीन हाइड्रोजन बनाने के लिए पानी और सस्ती बिजली की जरूरत होती है और भारत के पास ये दोनों संसाधन मौजूद है. हमारे पास काफी लंबा समुद्र तट है और भारत की भौगोलिक स्थिति भी ऐसी है कि सूरज की रोशनी भरपूर है. सोलर बिजली और समुद्र का पानी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है, जिनसे ग्रीन हाइड्रोजन बनाने में काफी मदद मिल सकती है. इस आधार पर ही भारत को भरोसा है कि उसका ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया दुनिया में सबसे सस्ता होगा.

सालाना 5 मिलियन मीट्रिक टन उत्पादन का लक्ष्य

राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के तहत 2030 तक प्रति वर्ष कम से कम 5 मिलियन मीट्रिक टन (MMT) ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन क्षमता स्थापित करना है. लेकिन जिस तरीके से इस तेजी से इस दिशा में काम हो रहा है, उससे अब सरकार को उम्मीद जगी है कि 2030 तक प्रति वर्ष 7 से 10 MMT क्षमता हासिल की जा सकती है. अगर ऐसा हो गया तो भविष्य में ग्रीन हाइड्रोजन के क्षेत्र में भारत दुनिया का एक बड़ा निर्यातक बन जाएगा. ऐसा होने पर भारत दुनिया में ग्रीन हाइड्रोजन का अग्रणी उत्पादक और आपूर्तिकर्ता बन जाएगा.  उद्योगों के लिए आकर्षक निवेश और व्यापार के अवसर बनेंगे, जिससे आर्थिक गतिविधियों को रफ्तार मिलेगी.  ग्रीन हाइड्रोजन को लेकर 2030 तक उत्पादन क्षमता के लिए जो लक्ष्य रखा गया है, उससे 8 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का निवेश आने की उम्मीद है. इससे  6 लाख से ज्यादा नौकरियों का सृजन होने की भी संभावना है.

प्रमुख बंदरगाहों पर रिफ्यूलिंग की सुविधा 

राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के तहत तेजी से कदम भी उठाए जा रहे हैं. इस मिशन के तहत देश के सभी प्रमुख बंदरगाहों पर 2035 तक ग्रीन हाइड्रोजन/ अमोनिया बंकर और ईंधन भरने की सुविधा होगी. इन बंदरगाहों पर मिशन के तहत रिफ्यूलिंग की सुविधा स्थापित की जा रही है. दीनदयाल, पारादीप और वी.ओ. चिदंबरनार बंदरगाहों पर हाइड्रोजन बंकरिंग की स्थापना के लिए बुनियादी ढांचा विकसित किया जा रहा है. कांडला और तूतीकोरिन बंदरगाह ग्रीन शिपिंग के लिए भारत के पहले ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया ईंधन भरने वाले केंद्र होंगे.

जीवाश्म ईंधन के आयात में आएगी कमी

ग्रीन हाइड्रोजन से भविष्य में कुल मिलाकर एक लाख करोड़ रुपये से अधिक मूल्य के जीवाश्म ईंधन के आयात में कमी होगी. वहीं वार्षिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में लगभग 50 एमएमटी की कमी होगी. भारत 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन (नवीकरणीय ऊर्जा + परमाणु) स्रोतों से 500 गीगावाट ऊर्जा क्षमता विकसित करना चाहता है और इस लक्ष्य को हासिल करने में राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन मील का पत्थर साबित होगा. भारत कच्चे तेल और कोयले की 80 से 85% जरूरत आयात से पूरा करता है. हम चीन और अमेरिका के बाद कच्चे तेल का सबसे बड़ा आयातक देश हैं.

विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव कम होगा

वैश्विक ऊर्जा बाजारों में कीमत और आपूर्ति में उतार-चढ़ाव की वजह से भारत के विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव बढ़ता है. नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में बड़े विस्तार और ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन को बढ़ाकर आयात में अरबों डॉलर की बचत हो सकती है. ये भविष्य में भारतीय अर्थव्यवस्था को गति देने में एक बड़ा कारक साबित हो सकता है. इसके साथ ही भारत सरकार चाहती है कि 2030 तक निजी कारों में 30% इलेक्ट्रिक वाहनों की हिस्सेदारी हो जाए. वहीं 2030 तक वाणिज्यिक वाहनों में 70% और दोपहिया वाहनों में  80% इलेक्ट्रिक वाहनों का लक्ष्य तय किया गया है. 

उत्पादन लागत को कम करने की चुनौती

हालांकि ग्रीन हाइड्रोजन को लेकर भारत के सामने चुनौतियां भी हैं. उत्पादन लागत सबसे बड़ी चुनौती है. ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन पारंपरिक हाइड्रोजन (ग्रे, ब्लू) उत्पादन से ज्यादा महंगा है. भारत की मंशा है कि यहां ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन लागत दुनिया के बाकी देशों की तुलना में बहुत कम हो. भारत इस पर तेजी से काम भी कर रहा है. निजी क्षेत्र की भूमिका इस दिशा में सबसे महत्वपूर्ण है.

भारत चाहता है कि इस दशक के अंत तक ग्रीन हाइड्रोजन की उत्पादन लागत को एक डॉलर प्रति किलोग्राम से कम किया जाए. इसके लिए सरकारी कंपनी एनटीपीसी से लेकर निजी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड अपने-अपने स्तर से जुटे हैं. फिलहाल ग्रीन हाइड्रोजन, वैश्विक हाइड्रोजन उत्पादन का 1% से भी कम उत्पादन होने के कारण बहुत महंगा है. एक किलोग्राम ग्रे हाइड्रोजन का उत्पादन करने पर 1.7 से 2.3 डॉलर और ब्लू हाइड्रोजन पर 1.3-3.6 डॉलर प्रति किलोग्राम तक खर्च आता है. काउंसिल फॉर एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर के मुताबिक ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन पर 3.5 से 5.5 डॉलर प्रति किलोग्राम खर्च आता है. भारत इसी खर्च को चरणबद्ध तरीके से पहले दो डॉलर और फिर एक डॉलर से नीचे लाना चाहता है. ग्रीन हाइड्रोजन को लेकर एक और चुनौती है ..बड़ी मात्रा में भंडारण की, जिस पर भी ध्यान दिए जाने की जरूरत है.

भारत में सुपर पावर बनने की क्षमता

अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) का भी मानना है कि भारत में ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन के क्षेत्र में सुपर पावर बनने की क्षमता है और इस अवसर को भारत को भुनाना चाहिए.  चीन इस क्षेत्र में तेजी से कदम बढ़ा रहा है. भारत नहीं चाहेगा कि वो ग्रीन हाइड्रोजन को लेकर वैश्विक होड़ में पीछे रह जाए. चीन  के साथ ही करीब 30 देशों में ग्रीन हाइड्रोजन के अनुसंधान और विकास से जुड़े प्रोजेक्ट पर तेजी से काम हो रहा है.

2022 की शुरुआत में भारत ने इसी मकसद से सबसे पहले ग्रीन हाइड्रोजन पॉलिसी की घोषणा की थी. उस नीति में सबसे पहले 2030 तक 5 मिलियन मीट्रिक टन प्रतिवर्ष  ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन का लक्ष्य रखा गया था. ये देश में मौजूदा हाइड्रोजन मांग से 80% ज्यादा है. ग्रीन हाइड्रोजन पॉलिसी की घोषणा भविष्य के नजरिए से भारत के एनर्जी सेक्टर के लिए एक महत्वपूर्ण पड़ाव के तौर पर देखा गया. भारत व्यापक ग्रीन हाइड्रोजन नीति जारी करने वाला दुनिया का 18वां देश था.

उत्पादन के लिए दूसरे देशों से भी समझौते

भारत दूसरे देशों के साथ भी ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए करार कर रहा है. पिछले साल जुलाई में भारत और मिस्र ने ग्रीन हाइड्रोजन प्लांट बनाने के लिए 8 बिलियन डॉलर के निवेश से जुड़े समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे. ये प्लांट स्वेज नहर इकोनॉमिक जोन में बनाया जाना है, जिसमें सालाना 20 हजार टन ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन होना है. बाद में धीरे-धीरे बढ़ाकर इस क्षमता का सालाना 220,000 टन तक करना है. बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहली मिस्र यात्रा 24 और 25 जून को होने वाली है. इस दौरान ग्रीन हाइड्रोजन को लेकर दोनों देशों के बीच और सहयोग बढ़ाने का फैसला हो सकता है. फ्रांस की कंपनी टोटल एनर्जीज ने भी भारत की प्राइवेट कंपनी अडानी ग्रुप के साथ साझेदारी का ऐलान किया था. जिसके तहत फ्रांस की कंपनी ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन के लिए अगले 10 साल में 50 बिलियन डॉलर का निवेश करेगी.

नवीकरणीय ऊर्जा डेवलर  ACME ग्रुप ने कर्नाटक सरकार के साथ ग्रीन हाइड्रोजन को लेकर पिछले साल जून में एक करार किया था. इससे तहत बनने वाले उत्पादन केंद्र के जरिए कर्नाटक में 2027 तक 1.2 मिलियन मीट्रिक टन प्रति वर्ष ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन होना है. इसी तरह से पिछले साल अक्टूबर में जैक्सन ग्रीन कंपनी ने राजस्थान सरकार के साथ ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया परियोजना स्थापित करने के लिए 22,400 करोड़ रुपये के निवेश से जुड़े समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे. इसके तहत जैक्सन ग्रीन 2023 से 2028 के बीच चरणबद्ध तरीके से 3,65,000 टन प्रति वर्ष उत्पादन क्षमता वाला ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया संयंत्र स्थापित करेगी.

घरेलू बाजार बनाने और मांग बढ़ाने पर काम

ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन और उपयोग में वैश्विक लीडर बनने के लिए, भारत को सबसे पहले ग्रीन हाइड्रोजन के लिए एक बड़ा घरेलू बाजार बनाना होगा. राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन 2030 तक ग्रीन हाइड्रोजन के जरिए घरेलू हाइड्रोजन आवश्यकता का 25% हासिल करने के विजन को लेकर आगे बढ़ रहा है. उर्वरक बनाने, अमोनिया या पेट्रोलियम रिफाइनिंग में वर्तमान करीब 6 मिलियन मीट्रिक टन हाइड्रोजन का इस्तेमाल होता है. अभी इनमें ग्रे हाइड्रोजन का इस्तेमाल होता है. इसे ग्रे हाइड्रोजन के साथ 5% या 10% ग्रीन हाइड्रोजन मिलाकर धीरे-धीरे देश में ग्रीन हाइड्रोजन की मजबूत मांग पैदा की जा सकती है. ग्रीन हाइड्रोजन का घरेलू बाजार बनाने की दिशा में ये पहला कदम है, जिस पर ध्यान देने की जरूरत है.  धीरे-धीरे उर्वरक बनाने, अमोनिया या पेट्रोलियम रिफाइनिंग में  ग्रीन हाइड्रोजन की मात्रा को बढ़ाया जाना चाहिए.

ग्रीन हाइड्रोजन के उपयोग में धीरे-धीरे वृद्धि

भारत के ग्रीन हाइड्रोजन नीति का लक्ष्य है कि तेल रिफाइनरियों को ईंधन के उपयोग को धीरे-धीरे  ग्रीन हाइड्रोजन के साथ बदलना है. सबसे पहले तेल रिफाइनरियों को 2025 तक 3% ईंधन के उपयोग को ग्रीन हाइड्रोजन के साथ बदलना होगा और 2035 तक इस आंकड़े को 30% तक ले जाना होगा. उसी तरह उर्वरक उत्पादन में 2035 तक 70% ग्रीन हाइड्रोजन शामिल किया जाना है, जो 2025 में 15% से शुरू होगा. शहरी गैस वितरण नेटवर्क को 2035 तक अपने ईंधन की मात्रा का 15 प्रतिशत ग्रीन हाइड्रोजन से बदलना होगा, जो 2025 में 5% से शुरू होगा.

2030 से लेकर 2035 तक भारत में ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिहाज से ग्रीन हाइड्रोजन में अपार संभावनाएं हैं. अगर हम सालाना  5 मिलियन मीट्रिक टन ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करने लगें तो उससे आने वाले वक्त में तरलीकृत प्राकृतिक गैस से मिलने वाली ऊर्जा का 30% रिप्लेस किया जा सकता है. भारत में 2021-22 में 63.91 बिलियन क्यूबिक मीटर प्राकृतिक गैस की खपत हुई है. कैलोरी मान के नजरिए से देखें तो हाइड्रोजन में प्राकृतिक गैस की तुलना में प्रति टन लगभग 2.5 गुना अधिक ऊर्जा होती है, जिसका मतलब है कि 5 मिलियन टन हाइड्रोजन करीब 18 बिलियन क्यूबिक मीटर प्राकृतिक गैस की जगह ले सकता है.

2020 में भारत में जीवाश्म ईंधन से 60 लाख मीट्रिक टन ग्रे हाइड्रोजन बनाया गया था. जब हम आजादी के 100 साल पूरे कर रहे होंगे, उस वक्त तक भारत में हाइड्रोजन की मांग 5 गुना तक बढ़ जाने की उम्मीद है. इसमें ग्रीन हाइड्रोजन की भूमिका बहुत बड़ी रहने वाली है.

क्यों है ग्रीन हाइड्रोजन भविष्य का ईंधन?

ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन इलेक्ट्रोलिसिस (Electrolysis) की प्रक्रिया से किया जाता है. इसमें पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में अलग करने के लिए अक्षय ऊर्जा स्रोतों जैसे सौर और पवन ऊर्जा का उपयोग किया जाता है. वैकल्पिक रूप से माइक्रोबियल प्रक्रियाओं या गैसीकरण के जरिए भी बायोवेस्ट का उपयोग करके ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन किया जा सकता है.

ऊर्जा के परंपरागत स्रोत को हम जीवाश्म ईंधन कहते हैं, जिनके बनने में काफी वक्त भी लगता है और इनकी मात्रा भी सीमित है. भविष्य में पूरी दुनिया की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए ये काफी नहीं हैं, इसके साथ ही जीवाश्म ईंधनों से प्रदूषण भी काफी होता है. वहीं  ग्रीन हाइड्रोजन भविष्य के ईंधन के तौर पर देखा जा रहा है. ग्रीन हाइड्रोजन पर्यावरण के नजरिए से भी स्वच्छ ऊर्जा है.

भारत पहले से ही 2070 तक शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन हासिल करने को लेकर प्रतिबद्ध है और ग्रीन हाइड्रोजन से ही ये संभव है. अगर भविष्य में हमें कच्चे तेल और कोयले पर निर्भरता खत्म करना है तो ग्रीन हाइड्रोजन से बेहतर कोई विकल्प नहीं हो सकता. भारत के डीकार्बोनाइजेशन और ऊर्जा में आत्मनिर्भरता के लक्ष्य के लिए ग्रीन हाइड्रोजन सबसे कारगर साबित होने वाला है. ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिए भारत की मंशा ग्लोबल ग्रीन हाइड्रोजन हब बनने की है.

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