भारत को स्वास्थ्य के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की आवश्यकता है. जब कोरोना महामारी अपने चरम पर था तब लोगों की जान बचाने के लिए जरूरी दवाएं थीं. वैक्सीन और मेडिकल उपकरण कुछ देशों के लिए हथियार बन गए थे. भारत ने इस सब चीजों पर पिछले कुछ वर्षों में अपना ध्यान केंद्रित किया है. हम लगातार स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाने और स्वास्थ्य क्षेत्र में अपनी जरूरतों पूरा करने के लिए दूसरे देशों पर अपनी निर्भरता को कम करने को लेकर काम कर रहे हैं. ये बातें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार यानी 6 मार्च को ‘स्वास्थ्य और चिकित्सा अनुसंधान’ पर आयोजित पोस्ट बजट वेबिनार के नौवें श्रृंखला में अपने संबोधित के दौरान कही. 


दरअसल, कोरोना वायरस के प्रकोप ने वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के बारे में दुनिया को सोचने के लिए मजबूर कर दिया. भारत में स्वास्थ्य सुविधाओं को विकसित व व्यवस्थित करने की राह में कई चुनौतियां हैं. हम सब इस बात को व्यापक तौर पर स्वीकार करते हैं कि स्वस्थ मानव बल किसी देश के बेहतर उत्पादकता के लिए कितना जरूरी होता है. लेकिन जब स्वास्थ्य सुविधाएं बेहत नहीं होती हैं तो प्री-मेच्योर डेथ, लंबे समय तक विकलांगता और जल्दी सेवानिवृत्ति से देश को आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ता है. स्वास्थ्य और पोषण सीधे तौर पर विद्वतापूर्ण उपलब्धियों को भी प्रभावित करते हैं और देश की उत्पादकता और आय पर असर डालते हैं. राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (NHP) 2017 का उद्देश्य सरकारी स्वास्थ्य सेवा को दोगुना करना है. 


जीडीपी के मौजूदा 1.2% से 2025 तक 2.5% खर्च करने का लक्ष्य रखा गया है. सरकार का जोर अब सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए राष्ट्रीय बफर और वैश्विक पंप हाउस के साथ-साथ देश में स्वास्थ्य सेवाओं का एक बेहतर नेटवर्क बनाने पर है. भारत ने मिलेनियम डेवलपमेंट गोल के लक्ष्यों को लगभग प्राप्त कर लिया है और अब हम सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल के तहत वर्ष 2030 तक यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज की दिशा में बढ़ रहे हैं. यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज-3 के तहत वित्तीय रिस्क को कम करना, गुणवत्ता पूर्ण स्वास्थ्य सुविधाओं तक सभी की पहुंच, सभी लोगों तक सुरक्षित, प्रभावी और अफोर्डेबल तरीके से जरूरी दवाएं और टीका उपलब्ध कराने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है.  


हमने दुनिया के सामने 'एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य' की परिकल्पना रखी


प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि हमें स्वास्थ्य सुविधाओं को कोविड से पूर्व और कोविड महामारी के बाद के परिदृश्य में देखना चाहिए. उन्होंने कहा कि महामारी ने दुनिया के समृद्ध देशों तक की परीक्षा ली.  इस कारण पूरी दुनिया ध्यान स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने पर गया. इसी क्रम में भारत ने एक कदम आगे बढ़ाते हुए आरोग्य पर अपना ध्यान लगाया. इसलिए हमने दुनिया के सामने–'एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य' की परिकल्पना रखी है. इसमें सभी प्राणियों–मानव, पशु या पौधे सबके लिये समग्र स्वास्थ्य सम्मिलित है. भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली को बेहतर बनाने के लिए भोजन, दवाओं के विनियमन; जीवन रक्षक दवाएं, टीके और टीबी मुक्त भारत के लिए किये जा रहे प्रयासों; स्वास्थ्य देखभाल पुनर्वास; चिकित्सा में अंतराल, दंत चिकित्सा, नर्सिंग और फार्मेसी आदि से संबंधित संस्थाओं को सशक्त बनाने में सरकार द्वारा हस्तक्षेप किया जाना आवश्यक है. 


स्वास्थ्य सेवाओं की असमानता को करने और स्वास्थ्य देखभाल की मांग की 90 प्रतिशत जरूरतों को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के माध्यम से दूर किया जा सकता है. प्रधानमंत्री ने कोरोना महामारी के दौरान वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला से मिले सबक को दोहराया. उन्होंने कहा कि उसी समय दवा, टीके और मेडिकल उपकरणों की आपूर्ति पर बैन लगा दिया गया था. इसके बाद से सरकार लगातार यह कोशिश कर रही है की दूसरे देशों पर भारत की निर्भरता कम हो. उन्होंने इस मामले में सभी हितधारकों की भूमिका पर जोर दिया.


देश भर में 9000 जन औषधि केंद्रों के जरिये लोगों को मिल रही हैं सस्ती दवाएं


प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता के बाद देश में दशकों तक स्वास्थ्य के लिये एकीकृत दीर्घकालिक परिकल्पना के अभाव का हवाला देते हुए कहा कि अब स्वास्थ्य का मुद्दा स्वास्थ्य मंत्रालय तक सीमित नहीं है. अब हम सम्पूर्ण-सरकार की सोच को आगे बढ़ा रहे हैं. आयुष्मान भारत के जरिये मुफ्त इलाज उपलब्ध कराके गरीब मरीजों की लगभग 80 हजार करोड़ रुपये की बचत हुई है. चिकित्सा उपचार को सस्ता बनाना हमारी प्राथमिकता है. सात मार्च को जन औषधि दिवस के रूप में मनाये जाने का उल्लेख करते हुए कहा कि 9000 जन औषधि केंद्रों के जरिये लोगों को सस्ती दवाएं मिल रही हैं. इससे निर्धन और मध्य वर्गों के लगभग 20 हजार करोड़ रुपये की बचत हुई है. 


इसका अर्थ यह हुआ कि केवल इन दो योजनाओं से ही नागरिकों का एक लाख करोड़ रुपये की बचत हुई है. गंभीर रोगों के इलाज के लिए मजबूत स्वास्थ्य इन्फ्रास्ट्रकर के महत्व को रेखांकित किया. कहा कि देशभर में 1.5 लाख से अधिक स्वास्थ्य केंद्रों को विकसित किए जा रहे हैं. ताकि जांच केंद्र और प्राथमिक उपचार उपलब्ध हो सके. मधुमेह, कैंसर और हृदय संबंधी रोगों जैसे गंभीर मामलों की स्क्रीनिंग की सुविधा भी इन केंद्रों में उपलब्ध होगी. पीएम-आयुष्मान भारत स्वास्थ्य इन्फ्रास्ट्रकर मिशन के तहत गंभीर स्वास्थ्य अवसंरचना को छोटे शहरों और गांवों तक पहुंचाई जा रही है, जिससे न केवल नये अस्पतालों की वृद्धि हो रही है, बल्कि एक नई और सम्पूर्ण स्वास्थ्य इकोसिस्टम भी तैयार हो रहा है. इसके परिणामस्वरूप स्वास्थ्य उद्यमियों, निवेशकों और कार्य-व्यावसायिकों के लिये अनेक अवसर बनाये जा रहे हैं.


डिजिटल स्वास्थ्य पहचान-पत्र, ई-संजीवनी जैसी योजनाओं से लोगों को हो रहा फायदा


पिछले कुछ वर्षों में 260 से अधिक नये मेडिकल कॉलेज खोले गये हैं। इसकी बदौलत 2014 की तुलना में स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में सीटें दोगुनी हो गई हैं. प्रधानमंत्री ने उल्लेख किया कि इस वर्ष के बजट में नर्सिंग सेवा के क्षेत्र पर जोर दिया गया है. उन्होंने कहा कि मेडिकल कॉलेजों के साथ-साथ 157 नर्सिंग कॉलेजों का खोला जाना चिकित्सा मानव संसाधनों की दिशा में एक बड़ा कदम है. इस तरह हम न केवल घरेलू मांग व जरूरतों को पूरा कर सकेंगे बल्कि दूसरे देशों की मांग को भी पूरा करने में भी यह उपयोगी साबित होगा. प्रधानमंत्री ने चिकित्सा सेवाओं को लगातार सुगम बनाने में प्रौद्योगिकी की भूमिका को रेखांकित किया. कहा कि डिजिटल स्वास्थ्य पहचान-पत्र की सुविधा के जरिये हम नागरिकों को समय पर स्वास्थ्य सुविधा देना चाहते हैं. ई-संजीवनी जैसी योजनाओं के जरिये 10 करोड़ लोगों को टेली-परामर्श से लाभ पहुंच चुका है. उन्होंने कहा कि 5-जी, स्टार्टअप के लिये इस क्षेत्र में नये अवसर पैदा कर रहा है. दवा आपूर्ति और जांच सेवाओं में ड्रोन क्रांतिकारी बदलाव ला रहे हैं.


उन्होंने कहा, उद्यमियों के लिये यह बहुत बड़ा अवसर है और इससे पब्लिक हेल्थ सर्विस के लिये हमारे प्रयासों को भी बल मिलेगा. उन्होंने बल्क ड्रग पार्कों, चिकित्सा उपकरण पार्कों और पीएलआई योजनाओं पर 30 हजार करोड़ रुपये की धनराशि खर्च किए जाने का उल्लेख किया और कहा कि पिछले कुछ वर्षों में चिकित्सा उपकरणों में 12-14 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है और आने वाले वर्षों में यह बाजार चार लाख करोड़ रुपये का हो जाएगा. प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि भारत ने भविष्य की चिकित्सा प्रौद्योगिकी और उच्च कोटि के निर्माण व अनुसंधान के लिए कुशल श्रम शक्ति पर काम करना शुरू कर दिया है. आईआईटी जैसे संस्थानों में बायोमेडिकल इंजीनियरिंग जैसे पाठ्यक्रम चलाये जायेंगे.


10 लाख करोड़ रुपये से अधिक का हो सकता है भारत का फार्मा सेक्टर


देश के फार्मा सेक्टर पर दुनिया का भरोसा बढ़ता ही जा रहा है. हमें इसका लाभ उठाते हुए हमें कायम रखने के लिये काम करते रहना चाहिए होगा. उन्होंने बताया कि एक नया कार्यक्रम शुरू किया जा रहा है, ताकि उत्कृष्टता केंद्रों के जरिये फार्मा सेक्टर में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा दिया जाए. इससे देश की अर्थव्यवस्था भी मजबूत होगी और रोजगार के नये अवसर भी पैदा होंगे. आज फार्मा सेक्टर का बाजार आकार चार लाख करोड़ रुपये का है. इसलिए निजी सेक्टर और अकादमिक जगत के बीच समन्वय स्थापित करने की जरूरत है, ताकि बाजार को 10 लाख करोड़ रुपये से अधिक तक बढ़ाई जा सके. प्रधानमंत्री ने कहा कि फार्मा सेक्टर को निवेश के अहम क्षेत्रों की पहचान करना चाहिए.


साथ ही, अनुसंधान को बढ़ाने के लिये सरकार द्वारा उठाये गए कदमों को रेखांकित करते हुए बताया कि आईसीएमआर द्वारा अनेक प्रयोगशालाओं को अनुसंधान उद्योग के लिये खोल दिया गया है. स्वच्छता के लिये स्वच्छ भारत अभियान, धुएं से होने वाले रोगों की रोकथाम के लिये उज्ज्वला योजना, पानी से पैदा होने वाले रोगों की रोकथाम के लिये जल जीवन मिशन तथा खून की कमी और कुपोषण से निपटने के लिये राष्ट्रीय पोषण मिशन का हवाला दिया. उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष में मोटे अनाजों –श्री अन्न की भूमिका का उल्लेख करते हुए कहा कि इसी तरह पीएम मातृ वंदना योजना, मिशन इंद्रधनुष, योग, फिट इंडिया मूवमेंट और आयुर्वेद लोगों गंभीर बीमारियों से बचा रहे हैं.


भारत में विश्व स्वास्थ्य संगठन के तत्वावधान में पारंपरिक औषधि के लिये वैश्विक केंद्र स्थापित करने के संदर्भ में प्रधानमंत्री ने आयुर्वेद में प्रमाण आधारित अनुसंधान किए जाने की बात कही. कहा कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में सिर्फ अपने नागरिकों के लिये नई क्षमताएं विकसित करना व सुविधाएं मुहैया कराने तक सीमित ही नहीं हैं, बल्कि हमारा लक्ष्य भारत को दुनिया का सबसे आकर्षक चिकित्सा पर्यटन का गंतव्य भी बनाना है. उन्होंने कहा कि चिकित्सा पर्यटन देश में रोजगार सृजन का भी माध्यम बनता जा रहा है. कहा कि विकसित स्वास्थ्य और आरोग्य इकोसिस्टम केवल सबों के प्रयास से ही तैयार हो सकता है. उन्होंने सभी हितधारकों से इसके लिये सुझाव मांगा है.


लायबिलिटी गैप फंडिंग और पीपीपी मॉडल के तहत स्वास्थ्य सुविधाओं को बनाया जा सकता है बेहतर


अध्ययनों में यह पाया गया है कि भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र बुनियादी ढांचे की कमी और विशेषज्ञ डॉक्टरों और स्टाफ की कमी का सामना कर रहा है. यह सही समय है जब हम प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करते हुए स्वास्थ्य सुविधाओं के पुनर्गठन करने की ओर बढ़ सकते हैं. ऐसा करके हम एक न्यू क्लास ऑफ केयर डिलीवरी को विकसित कर सकते हैं. भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र को विकसित बनाने में अपार संभावनाएं हैं.  लायबिलिटी गैप फंडिंग पहल के जरिए आकांक्षी जिलों में पीपीपी मॉडल के तहत अस्पतालों की स्थापना हमें स्वास्थ्य आवंटन के क्षेत्र में सीमित नवाचार करने का अवसर प्रदान कर सकता है. चिकित्सा उपकरण से प्राप्त होने वाले टैक्स का इस्तेमाल सरकारी अस्पताल के फंडिंग के लिए किया जा सकता है.


यूनियन बजट-2021 में बुनियादी ढांचे की कमी और विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी को दूर करने के लिए पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत मौजूदा जिला अस्पतालों को मेडिकल कॉलेज के रूप में परिवर्तित करने का प्रावधान किया गया है. इसके साथ ही हम प्रत्यक्ष कर पर लगभग 1% स्वास्थ्य उपकर कर से सालाना प्राप्त होने वाले 10,000 करोड़ रुपये को स्वास्थ्य क्षेत्र में डायवर्ट करने की आवश्यकता है. निजी स्वास्थ्य सेवा हितधारकों के साथ साझेदारी कर उन्हें सीएसआर के तहत फंडिंग के माध्यम से सेकेंडरी और टर्शियरी स्वास्थ्य सेवाओं को विकसित करने के लिए प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है.