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India At 2047: लक्ष्य से कम, फिर भी भारत के दूरसंचार क्षेत्र के लिए 1.5 लाख करोड़ रुपये की 5G स्पेक्ट्रम नीलामी बड़ी क्यों है?

Looking Ahead, India@2047: 5जी स्पेक्ट्रम की सफल नीलामी को देश के दूरसंचार क्षेत्र के विकास के लिए बड़े संकेत के तौर पर देखा जा रहा है.

India At 2047: 2017 में 5जी स्पेक्ट्रम की प्रक्रिया की शुरू करने के बाद सरकार 5जी स्पेक्ट्रम की नीलामी करने में सफल रही है. इस नीलामी प्रक्रिया में टेलीकॉम कंपनियों ने 1,50,173 करोड़ रुपये के स्पेक्ट्रम खरीद के लिए बोली लगाई. हालांकि नीलामी से पहले 4.3 लाख करोड़ रुपये का अनुमान लगाया था उससे काफी कम है. 

हाल ही में स्पेक्ट्रम की नीलामी के लिए लगाई बोली इसलिए भी सफल रही क्योंकि 2017 में प्रस्तावित 3000 मेगाहर्ट्ज बैंड के 5जी स्पेक्ट्रम की नीलामी के अलावा 800 मेगाहर्ट्ज, 1800 मेगाहर्ट्ज, 2100 मेगाहर्ट्ज, 2300 मेगाहर्ट्ज, और 2500 मेगाहर्ट्ज बैंड की नीलामी नहीं हो पाई थी. ट्राई ने सभी स्टेकहोल्डर्स से तब बात भी की थी लेकिन वित्त संकट से जूझ रही टेलीकॉम कंपनियां इसके लिए तैयार नहीं थीं. 

2018 में टेलीकॉम रेग्युलेटर ट्राई ने 700 मेगाहर्ट्ज, 800 मेगाहर्ट्ज,, 900 मेगाहर्ट्ज,, 1800 मेगाहर्ट्ज, 3300 मेगाहर्ट्ज और 3600 मेगाहर्ट्ज बैंड के स्पेक्ट्रम की नीलामी की सिफारिश की. लेकिन टेलीकॉम कंपनियों का मानना था कि 5जी स्पेक्ट्रम बैंड की नीलामी के लिए जो रिजर्व प्राइस रखा गया है खासतौर से 700 मेगाहर्ट्ज का वो बहुत ही ज्यादा है.

दिसंबर 2019 में डिजिटल कम्यूनिकेशन कमीशन (DCC) ने 2020 में 8300 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम की नीलामी के लिए 5.2 लाख करोड़ रुपये रिजर्व प्राइस बरकरार रखने का फैसला किया. जबकि सुप्रीम कोर्ट ने एडजेस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) मामले में टेलीकॉम कंपनियों के खिलाफ निर्णय आया था. 

टेलीकॉम कंपनियों को राहत
भारी घाटे और वित्तीय संकट से जूझ रहे टेलीकॉम कंपनियों को सरकार ने राहत दी और धीरे-धीरे कर एडजेस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) के भुगतान का विकल्प दिया. दरअसल सरकार को पता था कि वोडाफोन आइडिया अगर बंद हो गया तो दुनियाभर के निवेशकों के बीच गलत संदेश जाएगा और कर्ज में डूबी वोडाफोन आइडिया और भारतीय एयरटेल 5जी स्पेक्ट्रम की नीलामी मे भाग नहीं ले पाएंगी.   

टेलीकॉम सेक्टर का हो रहा विस्तार
टेलीकॉम कंपनियों को राहत देने के बाद सरकार बीते साल मार्च में सरकार ने 5जी स्पेक्ट्रम की नीलामी की लेकिन केवल 37 फीसदी ही स्पेक्ट्रम बेच पाई और सरकार को इससे केवल 77,815 करोड़ रुपये मिले. सरकार को 700 मेगाहर्ट्ज और 2500 मेगाहर्ट्ज के लिए कोई बोली नहीं मिली. रिलायंस जियो जैसी कंपनी जिसके पास कैश की कमी नहीं है उसका भी मानना था कि स्पेक्ट्रम की नीलामी के लिए जो रिजर्व प्राइस रखा गया है वो बहुत ज्यादा है. 

हालांकि अगस्त के पहले हफ्ते में जो स्पेक्ट्रम नीलामी हुई है उससे सरकार को 1.5 लाख करोड़ रुपये मिले है. इस नीलामी में पहली बार 700 मेगाहर्ट्ज के लिए भी इस बार बोली कंपनियों ने लगाई है. UBS का मानना है कि 22 टेलीकॉम सर्किल में 1.5 लाख करोड़ रुपये की 51 गीगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम की खरीदारी हुई है जो कि 72 गीगाहर्ट्ज बेचने के लिए रखा गया था उसका 71 फीसदी है. UBS ने अपने क्लाइंट्स को लिखे नोट में कहा है कि 2 से 3 सालों में धीरे-धीरे स्पेक्ट्रम खरीदने की बजाये हम टेलीकॉम कंपनियों के पैन-इंडिया 3300 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम खरीदने की रणनीति को समझ सकते हैं. लेकिन हम रिलायंस जियो द्वारा पूके देश के लिए बहुत ही महंगे 700 मेगाहर्ट्ज के 10 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम की खरीदारी से हैरान हैं. 

पीएचडी चैंबर के अध्यक्ष प्रदीप मुल्तानी ने एबीपी लाइव को बताया कि, 5G स्पेक्ट्रम की सफल नीलामी देश के दूरसंचार क्षेत्र के लिए विकास का संकेत है. नीलामी की महत्वपूर्ण राशि इस ओर इशारा करती है टेलीकॉम इंडस्ट्री विस्तार की स्थिति में है और एक नई विकास की इबादत लिखने जा रहा है. 

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