South Korean FM Park Jin India Visit: पिछले दो दशक में दक्षिण कोरिया, भारत के महत्वपूर्ण साझेदार के तौर पर उभरा है. दोनों ही देशों के बीच बहुआयामी संबंध रहे हैं. दक्षिण कोरिया के विदेश मंत्री पार्क जिन (Park Jin) के भारत दौरे से द्विपक्षीय साझेदारी में और प्रगाढ़ता आएगी.
भारत और दक्षिण कोरिया के बीच द्विपक्षीय संबंधों को विशेष सामरिक साझेदारी का दर्जा हासिल है. विदेश मंत्री पार्क जिन के इस दौरे का मकसद इस साझेदारी में ठोस प्रगति लाना है. इससे पहले जनवरी में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने दक्षिण कोरिया के विदेश मंत्रा पार्क जिन के साथ टेलीफोन पर बातचीत की थी. इस दौरान दोनों के बीच में कूटनीतिक संबंधों के 50 साल पूरे होने के बारे में बातचीत हुई थी.
राजनयिक संबंधों के 50 साल का जश्न
भारत और दक्षिण कोरिया के बीच राजनयिक संबंधों ( diplomatic ties) की शुरुआत 1973 में हुई थी. इस लिहाज से मौजूदा साल दोनों ही देशों के लिए बेहद ख़ास है. दोनों देश कूटनीतिक रिश्तों के 50 साल पूरे होने का जश्न मना रहे हैं. भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी और दक्षिण कोरिया की न्यू सदर्न पॉलिसी ( New Southern Policy) का तालमेल द्विपक्षीय संबंधों को मजबूती देने का काम कर रहा है.
कोरिया के पहले चुनाव में भारत की रही है भूमिका
भारत और दक्षिण कोरिया एक ही दिन यानी 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं. भारत को 1947 में आजादी मिली थी, वहीं कोरिया 1945 में एक तरह से जापान के शिकंजे से मुक्त हुआ था. 15 अगस्त 1945 के दिन ही जापान ने बिना शर्त सरेंडर करने की घोषणा की थी. इसके बाद कोरिया को उत्तर और दक्षिण दो भागों में बांट दिया गया था. मई 1948 में दक्षिण कोरिया में पहली बार आम चुनाव हुआ था. ये चुनाव संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में हुआ था. इसके लिए 9 सदस्यीय कोरिया पर यूएन अस्थायी आयोग (UNTCOK) बना था, जिसके चेयरमैन आजाद भारत के पहले विदेश सचिव के.पी. एस. मेनन थे. कोरिया के पहले चुनाव को शांतिपूर्ण तरीके से कराने में के.पी. एस. मेनन की बहुत ही ख़ास भूमिका रही है. हम कह सकते हैं कि दक्षिण कोरिया के पहले लोकतांत्रिक सरकार बनाने में भारत का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है. 15 अगस्त 1948 को दक्षिण कोरिया में पहली बार चुनी हुई सरकार बनी थी.
इंडो पैसिफिक क्षेत्र में साझेदारी महत्वपूर्ण
इंडो पैसिफिक क्षेत्र में दोनों देशों की साझेदारी महत्वपूर्ण है. इस रीजन में भारत का विजन हमेशा ही समावेशिता, आसियान को महत्व और साझी समृद्धि पर ख़ास जोर देता है. ये एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें भारत और दक्षिण कोरिया के साझा हित जुड़े हैं. वर्तमान में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के विस्तारवादी रुख और आक्रामक रवैये के लिहाज से भारत और दक्षिण कोरिया के बीच मजबूत संबंध और भी प्रासंगिक हो जाते हैं. जनवरी 2010 में तत्कालीन कोरियाई राष्ट्रपति ली म्यूंग बाक (Lee Myung-bak) ने भारत का दौरा किया था और उस वक्त वे गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि भी थे. इसी यात्रा के दौरान आपसी रिश्तों को सामरिक साझेदारी में बदल दिया गया था. जुलाई 2011 में दोनों देशों ने असैन्य परमाणु सहयोग करार पर हस्ताक्षर किए थे. मार्च 2012 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कोरिया की यात्रा की, जिसमें दोनों देशों के बीच वीजा सरलीकरण समझौता हुआ.
2015 में बने विशेष सामरिक साझेदार
जबसे नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं, उसके बाद भारत का कोरिया के साथ आपसी संबंधों को और मजबूत करने पर ज़ोर रहा है. पीएम मोदी ने मई 2015 में पहली बार दक्षिण कोरिया की यात्रा की. इस यात्रा के दौरान ही सामरिक साझेदारी को विशेष सामरिक साझेदारी में बदलने का फैसला किया गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फरवरी 2019 में दूसरी बार दक्षिण कोरिया की राजकीय यात्रा की. नवंबर 2022 में इंडोनेशिया के बाली में G20 की सालाना बैठक हुई थी, जिसमें पीएम मोदी और मौजूदा कोरियाई राष्ट्रपति यून सुक-योल (Yoon Suk-yeol) के बीच द्विपक्षीय वार्ता हुई थी.
मजबूत आर्थिक संबंध पर फोकस
भारत का ये मत रहा है कि उसके आर्थिक परिवर्तन और विकास में कोरिया मूल्यवान साझेदार है. दोनों देशों के बीच व्यापार और निवेश संबंध भी बढ़ रहे हैं. दोनों देशों के बीच जनवरी 2010 से व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (CEPA) लागू हुआ. इसके बाद से आपसी कारोबार तेजी से बढ़ा. भारत कोरिया के 10 शीर्ष कारोबारी साझेदारों में आता है. 2021 तक भारत, कोरिया के आयात का 16वां सबसे बड़ा स्रोत और 7वां सबसे बड़ा निर्यात बाजार है. 2018 में आपसी व्यापार 21.5 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया था. महामारी का साल होने के बावजूद 2021 में आपसी व्यापार रिकॉर्ड 23.7 अरब डॉलर तक पहुंच गया. साल 2020 में ये आंकड़ा गिरकर 19.9 अरब डॉलर तक चला गया था. 2021 में द्विपक्षीय व्यापार में 40 प्रतिशत का इजाफा देखा गया. 2022 के पहले 6 महीने में द्विपक्षीय व्यापार का आंकड़ा 14.2 अरब डॉलर तक पहुंच गया था. दोनों देशों ने 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ा कर 50 अरब डॉलर ले जाने का लक्ष्य रखा है. दोनों ही देशों के बीच बुनियादी ढांचा, पोर्ट डेवलपमेंट, मरीन, फूड प्रोसेसिंग, स्टार्टअप के साथ ही छोटे और मझोले उद्योगों के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर सहयोग जारी है.
भारत में बढ़ रहा है कोरियाई निवेश
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर जून 2016 में दोनों देशों ने 'कोरिया प्लस' इनिशिएटिव की शुरुआत की. इसका मकसद भारत में कोरियाई निवेश को बढ़ाना था. दिसंबर 2021 तक भारत में कोरिया से 7.27 अरब डॉलर का FDI के तौर पर निवेश हुआ था. वहीं उस वक्त तक भारत से भी कोरिया में 3 अरब डॉलर का निवेश हुआ था. सिर्फ 2021 में ही भारत ने कोरिया से 600 से ज्यादा बड़े और छोटे कोरियाई कंपनी का बिजनेस भारत में है. अप्रैल 2000 से सितंबर 2022 तक दक्षिण कोरिया भारत का 13वां सबसे बड़ा FDI निवेशक रहा है. इस दौरान कोरिया ने भारत में 5.35 अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश किया है.
रक्षा और सुरक्षा क्षेत्र में बढ़ती साझेदारी
पिछले डेढ़ दशक में दोनों देशों के बीच रक्षा संबंधों का भी विस्तार हुआ है. सामरिक हितों, साझा आपसी सद्भावना और कई उच्च स्तरीय राजकीय यात्राओं से रक्षा सहयोग को बढ़ाने में मदद मिली है. सितंबर 2010 में तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी ने कोरिया की यात्रा की थी, जिस दौरान रक्षा सहयोग के साथ डिफेंस रिसर्च और डेवलपमेंट को लेकर कई समझौतों पर सहमति बनी थी. इसके बाद भारत सियोल में भारतीय दूतावास में डिफेंस विग बनाने पर सहमत हो गया था, जिसे अक्टूबर 2012 में खोला गया.एक्ट ईस्ट पॉलिसी और न्यू सदर्न पॉलिसी के तहत दोनों देशों के लिए इंडो पैसिफिक रीजन में संतुलन बनाने के लिए भी मजबूत रक्षा सहयोग जरूरी होते गया. विशेष सामरिक साझेदार बनने के बाद दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों के बीच 2015 से लगातार सालाना तौर से वार्ता होती है.
रक्षा उद्योग सहयोग के लिए रोडमैप
कोरियाई राष्ट्रपति मून जे-इन (Moon Jae-in) ने जुलाई 2018 में भारत का दौरा किया और पीएम नरेंद्र मोदी के साथ बैठक की. संयुक्त बयान में दोनों नेताओं ने एक दूसरे की अनूठी क्षमताओं और अनुभव से लाभ उठाने के लिए रक्षा और रणनीतिक क्षेत्रों में प्रयासों के समन्वय और संभावनाएं तलाशने पर सहमति जाहिर की. दोनों नेताओं के बीच सैन्य आदान-प्रदान, प्रशिक्षण और अनुभव साझा करने, अनुसंधान और विकास को बढ़ाने पर सहमति बनी. इस दौरान दोनों देश रक्षा उद्योग सहयोग को बढ़ाने पर भी राजी हुए. सितंबर 2019 में दोनों देशों के बीच रक्षा उद्योग सहयोग के लिए एक रोडमैप पर हस्ताक्षर हुआ था. इसमें डिफेंस टेक्नोलॉजी और सह-उत्पादन दोनों को शामिल किया गया था. इसके जरिए रक्षा उत्पादन में भी दोनों देश सहयोग बढ़ा रहे हैं. भारत और कोरिया के बीच रक्षा बढ़ाने में अब टू प्लस टू डायलॉग की बड़ी भूमिका है. भारत और दक्षिण कोरिया के बीच बढ़ती सामरिक साझेदारी में रक्षा क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका है. कुछ साल पहले ही भारतीय थल सेना में K-9 'वज्र' आर्टिलरी गन शामिल किया गया था, जो दक्षिण कोरियाई हॉवित्जर के-9 थंडर का भारतीय संस्करण है. भारत में बनाए जा रहे डिफेंस इंडस्ट्रियल कॉरिडोर में कोरियाई कंपनियों की भागीदारी को सुनिश्चित किया जा रहा है.
द्विपक्षीय समुद्री सहयोग पर ज़ोर
द्विपक्षीय समुद्री सहयोग भारत और दक्षिण कोरिया के बीच रक्षा और सुरक्षा संबंधों के नजरिए से काफी महत्वपूर्ण पहलू है. इसी के तहत दोनों देशों की नौसेना और तटरक्षक पोत (Coast Guard ships) नियमित आधार पर एक-दूसरे के बंदरगाहों का दौरा करते रहे हैं और संयुक्त अभ्यास भी करते हैं.
पर्यटन में सहयोग की अपार संभावनाएं
दोनों देशों के बीच पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं. कोरियाई पर्यटकों को सुविधा हो, इसके लिए भारत आने वाले कोरियाई नागरिकों के लिए आगमन पर वीजा सुविधा 1 अक्टूबर, 2018 से शुरू की गई. व्यापार, पर्यटन, सम्मेलन और चिकित्सा संबंधी यात्रा के मकसद से आगमन पर वीजा सुविधा का लाभ दिया जाता है. कोरियाई नागरिकों के लिये सुविधा भारत के छह हवाई अड्डों यानी नई दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, बेंगलुरु और हैदराबाद में उपलब्ध है. 2018 में कोरियाई नागरिकों को जारी किए गए वीजा की कुल संख्या 34754 थी. 2019 में ये आंकड़ा 25369 था. हालांकि कोविड महामारी की वजह से 2020 में ये संख्या 5386 और 2021 में 6869 रही. अब कोविड महामारी से जुड़े प्रतिबंधों के खत्म होने और दोनों देशों के बीच सीधी उड़ानों की संख्या बढ़ने के बाद पर्यटकों की संख्या और सहयोग बढ़ने की उम्मीद है.
आर्थिक प्रगति विश्व स्तर के बुनियादी ढांचे से ही संभव है. भारत 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने के लक्ष्य के साथ अपने कदम बढ़ा रहा है. विकास की इस राह में परिवहन, ऊर्जा. बंदरगाह, जहाज निर्माण, आवास और शहरी बुनियादी ढांचा हर चीज़ की भारत को जरूरत है. दूसरी तरफ दक्षिण कोरिया के पास मजबूत तकनीकी योग्यताएं और क्षमताएं हैं, जिसका लाभ भारत को मिल सकता है.
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