जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने अपनी भारत यात्रा के दौरान हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बुनियादी ढांचे को मजबूत करने और सुरक्षा सहायता के लिए 75 अरब डॉलर से अधिक की राशि देने की घोषणा की. सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ आयोजित शिखर सम्मेलन के बाद विश्व मामलों की भारतीय परिषद थिंक टैंक द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान जापानी पीएम ने भारत को इसी साल मई में हिरोशिमा में होने वाले G-7 समूह की शिखर वार्ता में भाग लेने के लिए भी किया है. बता दें कि जापान इस साल G-7 देशों के समूह की अध्यक्षता कर रहा है. जापानी पीएम के आमंत्रण को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वीकार कर लिया है. किशिदा ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र को खुला और मुक्त बनाए रखने के लिए अपने दृष्टिकोण को रेखांकित किया. दरअसल, जापान और भारत के बीच सदियों पुराने व ऐतिहासिक संबंध रहे हैं. दोनों देश वैश्विक शांति, सह-अस्तित्व और समृद्धि के पक्षधर रहे हैं.


G-20 समूह के लक्ष्यों के मुताबिक इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश का आह्वान 


इस नई विकास सहायता जिसे 2030 तक निजी क्षेत्र के साथ मिलकर आपूर्ति की जानी थी. उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे को याद करते हुए कहा कि 2016 से अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने प्रमुख घटनाओं को देखा है, जिन्हें हम पैराडाइम शिफ्ट भी कह सकते हैं. इसमें COVID-19 महामारी और यूक्रेन पर रूस का आक्रमण भी शामिल हैं. उन्होंने कहा कि "यह हमारे लिए एक मौलिक चुनौती है और वैश्वकि शांति लिए हमें बाध्य करता है." जापानी पीएम किशिदा की दो दिवसीय भारत यात्रा न केवल यूरोप में जारी युद्ध की पृष्ठभूमि में महत्वपूर्ण है बल्कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बढ़ते चीनी प्रभाव को कम करने को लेकर आवश्यक हस्तक्षेप करने को लेकर भी निर्णायक माना जा रहा है. चूंकि चीन बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत प्रमुख बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए निवेश कर रहा है. वहीं, उन्होंने कहा कि श्रीलंका जैसे ग्लोबल साउथ राष्ट्र की वित्तीय संकट ने चिंता बढ़ा रखी है. जापानी प्रधानमंत्री ने इस वर्ष भारत की अध्यक्षता में G-20 समूह के लक्ष्यों के मुताबिक गुणवत्तापूर्ण इन्फ्रास्ट्रक्चर के निवेश को आगे बढ़ाने का आह्वान किया है. उन्होंने समान विचारधारा वाले राष्ट्रों के सशस्त्र बलों को मुफ्त सुरक्षा सहायता देने की भी पेशकश की है. लेकिन इसके साथ ही उन्होंने अनियंत्रित "विभाजन और टकराव" के खिलाफ भी चेतावनी भी दी है.


अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में शक्ति परिवर्तन का चल रहा खेल


उन्होंने कहा कि इस समय अंतरराष्ट्रीय समुदाय में शक्ति परिवर्तन का एक बड़ा खेल चल रहा है. उन्होंने जोर देकर कहा कि स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत का विचार कानून के शासन के साथ-साथ विविधता, समावेशिता और खुलेपन के सम्मान के लिए अति आवश्यक है. उन्होंने कहा कि हम न ही किसी को बाहर करते हैं और न ही हम किसी कैंप का हिस्सा बनते हैं. पीएम किशिदा ने कहा, "मेरा मानना है कि हमें एक ऐसी दुनिया का लक्ष्य रखना चाहिए जहां विविध राष्ट्र भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा में पड़े बिना कानून के शासन के तहत सह-अस्तित्व और समृद्ध होने के लिए कार्य करें. इसके लिए कई हितधारकों का सहयोग होना आवश्यकता है और बेशक भारत उन राष्ट्रों में से सबसे महत्वपूर्ण है.


हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति की बात को दोहराया


पीएम नरेंद्र मोदी और जापानी समकक्ष किशिदा ने सोमवार को रक्षा उपकरण और प्रौद्योगिकी सहयोग, व्यापार, स्वास्थ्य, डिजिटल साझेदारी को आगे बढ़ाने को लेकर बातचीत की. इसके अलावा सेमीकंडक्टर और अन्य महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के लिए एक विश्वसनीय सप्लाई चेन को विकसित करने के महत्व पर भी जोर दिया. इस दौरान दोनों नेताओं ने कहा कि हमें अपने द्विपक्षीय साझेदारी को न केवल मजबूत करना है बल्कि यह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति, समृद्धि और स्थिरता को भी बढ़ावा देने के लिए भी महत्वपूर्ण है. जापानी प्रधानमंत्री के साथ बातचीत के बाद पीएम मोदी ने कहा कि हमारे बीच एक बेहतरीन बातचीत हुई. हमने रक्षा, स्वास्थ्य सेवा, प्रौद्योगिकी और अन्य मुद्दों जैसे क्षेत्रों में भारत-जापान संबंधों को बढ़ावा देने पर चर्चा की. हमने लॉजिस्टिक्स, फूड प्रोसेसिंग, एमएसएमई, टेक्सटाइल और अन्य क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने को लेकर बातचीत की.


वैश्विक शांति की बात करने के पीछे रहा है ऐतिहासिक संबंध


जापान और भारत के बीच संबंद्धों की शुरुआत 6वीं शताब्दी से है, जब जापान में बौद्ध धर्म की शुरुआत हुई थी. भारतीय संस्कृति, बौद्ध धर्म के माध्यम से जापानी संस्कृति पर बहुत प्रभाव पड़ा है और यह जापान के लोगों की भारत के साथ निकटता की भावना का मूल स्रोत है. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, 1949 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने टोक्यो में यूनो चिड़ियाघर में एक भारतीय हाथी दान किया था. यह जापान के लोगों के जीवन में प्रकाश पूंज की तरह काम किया था. चूंकि वे उस वक्त तक युद्ध की हार से उबर नहीं पाए थे. जापान और भारत ने एक शांति संधि पर हस्ताक्षर करते हुए 28 अप्रैल, 1952 को राजनयिक संबंधों स्थापित किया. यह संधि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जापान द्वारा हस्ताक्षरित पहली शांति संधियों में से एक थी. दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों स्थापित होने के बाद से अब तक मधुर संबंध रहे हैं. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भारत अपने लौह अयस्क की मदद से जापान को उबारने में काफी मदद की थी. 1957 में जापानी प्रधान मंत्री नोबुसुके किशी ने पहली बार भारत यात्रा की यात्रा की थी. उसके बाद से जापान ने 1958 में भारत को येन ऋण प्रदान करना शुरू किया था जोकि जापानी सरकार द्वारा पहली ऋण सहायता प्रदान थी.


सुरक्षा के क्षेत्र में सहयोग


बदलते वैश्विक आर्थिक, राजनीति और रणनीतिक परिदृश्य को देखते हुए जापान और भारत ने सुरक्षा सहयोग को मजबूत करने के लिए वर्ष 2008 में एक संयुक्त घोषणा पत्र जारी किया था. जापान और भारत के बीच विदेश और रक्षा मंत्रिस्तरीय बैठक (2 + 2 बैठक), वार्षिक रक्षा मंत्रिस्तरीय संवाद और कोस्ट गार्ड संवाद सहित सुरक्षा और रक्षा वार्ता के विभिन्न प्लेटफॉर्म हैं. सितंबर 2022 में, दूसरी 2+2 बैठक टोक्यो में आयोजित की गई थी. इससे पूर्व 9 सितंबर 2020 को, दोनों देशों की सरकार के बीच जापान के सुरक्षा बलों और भारतीय सशस्त्र बलों के बीच आपूर्ति और सेवाओं के लिए अधिग्रहण और क्रॉस-सर्विसिंग समझौता  (ACSA) हुआ था. इसे जुलाई, 2021 को लागू किया गया था.


आर्थिक सहयोग


हाल के वर्षों में, जापान और भारत के बीच आर्थिक संबंधों में लगातार वृद्धि हुए है. दोनों देशों के बीच व्यापार के क्षेत्र में वृद्धि हुई है. भारत जापान के लिए 18वां सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है और जापान 2021 में भारत के लिए 13वां सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार रहा है. जापान ने भारत में प्रत्यक्ष निवेश बढ़ाया है और वित्तीय वर्ष 2021 में जापान भारत के लिए 5वां सबसे बड़ा निवेशक रहा है. भारत में जापानी निजी-क्षेत्र की रुचि बढ़ रही है. वर्तमान में लगभग 1,439 जापानी कंपनियों की भारत में शाखाएं हैं. इससे पिछले साल जब पिछले साल मार्च में अपनी भारत यात्रा के दौरान किशिदा ने अगले पांच साल में भारत में पांच लाख करोड़ येन (3,20,000 करोड़ रुपये) का निवेश करने की घोषणा कर चुके हैं. इसके जरिए भारत-जापान औद्योगिक प्रतिस्पर्धात्मकता साझेदारी के माध्यम से सप्लाई चेन को डायवर्सिफाई करना और उसे आगे बढ़ाया जाएगा. दोनों देश "स्वच्छ ऊर्जा साझेदारी" को बढ़ावा देने के लिए कार्बन न्यूट्रैलिटी प्राप्त करने और वैश्विक स्तर पर ऊर्जा सुरक्षा को सुनिश्चित करने और हाइड्रोजन, अमोनिया और एलएनजी के क्षेत्रों में ठोस सहयोग को बढ़ावा देने को लेकर लगातार आगे बढ़ रहे हैं.


भारत जापानी ओडीए ऋण का सबसे बड़ा प्राप्तकर्ता रहा है. दिल्ली मेट्रो जापानी सहयोग का सबसे सफल उदाहरणों में से एक है. जापान ने 'एक्ट ईस्ट' नीति के तहत और 'गुणवत्तापूर्ण अवसंरचनाओं को विकसित करने के लिए साझेदारी के बीच दक्षिण एशिया को दक्षिण पूर्व एशिया से जोड़ने वाली रणनीतिक कनेक्टिविटी का समर्थन करना जारी रखा है. इसके अलावा, जापान ने भारत में हाई-स्पीड रेलवे के लिए बुनियादी ढांचा को बनाने के लिए सहयोग कर रहा है. इसमें मुंबई और अहमदाबाद के रूट पर भारत में पहली बुलेट ट्रेन के परिचालन भी शामिल है. इसके लिए जापान ने 50 अरब डॉलर का लोन 50 वर्षों के लिए दिया है.