स्वच्छ भारत अभियान और भारत के गांवों-शहरों की बदलती तस्वीर, रेलवे स्टेशन से सड़कों और गलियों तक दिख रहा है असर
साल 2014 में भारत सरकार ने स्वच्छ भारत अभियान शुरू किया. जनवरी 2020 की स्थिति के अनुसार 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 706 जिलों और 603,175 गांवों को खुले में शौच मुक्त घोषित कर दिया गया है
![स्वच्छ भारत अभियान और भारत के गांवों-शहरों की बदलती तस्वीर, रेलवे स्टेशन से सड़कों और गलियों तक दिख रहा है असर Swachh Bharat Abhiyan has changed India dramatically and it shows in the lanes and on streets स्वच्छ भारत अभियान और भारत के गांवों-शहरों की बदलती तस्वीर, रेलवे स्टेशन से सड़कों और गलियों तक दिख रहा है असर](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2023/09/29/619858053593947a96e7796a4aea6bcb1695984974900702_original.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
क्या हम कभी ऐसा सोच सकते थे कि देश के प्रधानमंत्री जब लाल किले से स्वतंत्रता दिवस का भाषण दें, तो शौचालय और सफाई की चर्चा करें. यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था. इसके साथ ही साल 2014 में जब वह देश के प्रधानमंत्री बने थे तब 2 अक्टूबर 2014 को उन्होंने स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत की थी. इसका आधार मई 2014 में आई यूएन की एक रिपोर्ट थी. उस रिपोर्ट में यह कहा गया था कि भारत की करीबन 60 प्रतिशत आबादी खुले में शौच करती है. खुले में निपटने की इस आदत से कई तरह की बीमारियों को भारतीय आमंत्रित करते हैं और केवल इसी कारण भारतीयों मे कॉलेरा, डायरिया और टायफाइड होने का खतरा बना रहता है. 2006 में विश्व बैंक की एक रिपोर्ट भी आई थी. इस रिपोर्ट में बताया गया था कि भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद का 6.4 प्रतिशत हिस्सा सिर्फ सफाई और हाइजीन पर खर्च करता है. इसीलिए स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत की गई.
मिशन का उद्देश्य- देश में सफाई
साल 2019 तक यानी योजना की शुरुआत से पांच साल बाद ही देश के हर घर में शौचालय बनवाने और लोगों को गंदगी से फैलने वाली बीमारियों से सुरक्षित रखना ही स्वच्छ भारत अभियान का मकसद था. इस मिशन का उद्देश्य खुले में शौच से मुक्ति और सार्वभौमिक स्वच्छता कवरेज प्रदान करना भी रहा है. स्वच्छ भारत अभियान का मकसद घरेलू कचरे, प्लास्टिक वेस्ट, इंडस्ट्रियल वेस्ट, मेडिकल कचरे, प्रदूषण और अन्य सभी तरह के कूड़े से से देश को मुक्त बनाना है. अगर हम कचरा केवल डस्टबिन में फेंके, यहां-वहां थूकें नहीं, प्लास्टिक की थैलियों की कम से कम उपयोग करें, सामान लेने जाएं तो साथ में बैग लेकर जाएं और अपने आसपास के लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करें, तो बहुत सारा प्रदूषण कम हो सकता है. जहां तक संभव हो, हम अगर पब्लिक ट्रांसपोर्ट का उपयोग करें तो इससे ईंधन की बचत के साथ-साथ हम प्रदूषण को भी रोक सकते हैं.
इस अभियान का व्यापक असर देश भर में देखने को मिला है. ख़ासतौर पर केंद्र सरकार के दफ्तरों, रेलवे स्टेशनों और सार्वजनिक जगहों पर साफ़ सफ़ाई पर विशेष तौर पर ध्यान दिया जाता है. साल 2014 से भारत सरकार ने यूनिसेफ़ की साझेदारी में खुले में शौच मुक्त लक्ष्य तक पहुँचने में उल्लेखनीय प्रगति की है. जनवरी 2020 की स्थिति के अनुसार 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 706 जिलों और 603,175 गांवों को खुले में शौच मुक्त घोषित कर दिया गया है, हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर गुजरात के साबरमती आश्रम से यह ऐलान किया था कि ग्रामीण भारत ने, वहां के गांवों ने खुद को खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) घोषित कर दिया है.
भारत सरकार के पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय के 'स्वच्छ भारत मिशन' की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार 2 अक्तूबर 2014 से लेकर 2 अक्टूबर 2019 तक देश में 10,07,62,869 (10 करोड़ से ज़्यादा) शौचालय बनाये गए हैं जिसके आधार पर भारत को 100 प्रतिशत 'ओडीएफ़' घोषित किया गया है. ओडीएफ का मतलब ऐसी जगह से है, जहां खुले में कोई शौच नहीं जाता है.
चुनौतियां भी हैं बहुतेरी
हालांकि, भारत सरकार की आधिकारिक घोषणा के बाद जब कई सारे मीडिया हाउस और लोगों ने इस दावे की पड़ताल की, तो समझ आया कि कई सारी चुनौतियां अभी भी बाकी हैं. मसलन, कुछ ऐसे गांव, जिले या फिर राज्यों में जब जमीनी पड़ताल हुई तो पता चला कि वहां लोग अभी भी शौच के लिए बाहर ही जाते हैं, हालांकि उनमें से कई तो आदतन जाते थे, भले ही उनके घर में शौचालय हो, लेकिन बहुतेरे लोगों का शौचालय बना भी नहीं था. साल 2014 से भारत सरकार ने यूनिसेफ़ की साझेदारी में खुले में शौच मुक्त लक्ष्य तक पहुँचने में उल्लेखनीय प्रगति की है. स्वच्छ भारत मिशन के वेबसाइट पर जो जानकारी दी गयी है, उसके मुताबिक जनवरी 2020 की स्थिति के अनुसार 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 706 जिलों और 603,175 गांवों को खुले में शौच मुक्त घोषित कर दिया गया है. यह काफी प्रभावशाली आंकड़ा है, लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि हम सामाजिक और व्यवहारिक परिवर्तन संचार के दृष्टिकोण सेवाओं के संवितरण के साथ तालमेल बनाए रखें, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि शौचालय की सुविधा प्राप्त करने वाले परिवार इसका नियमित रूप से उपयोग करते रहें. इसकी वजह यह है कि ये आदत बचपन के गहरे पैठे संस्कारों की वजह से बनती है.
आगे की राह
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने 'मन की बात' के 105 वें संस्करण में भी देशवासियों को स्वच्छता अभियान की याद दिलाई है. इसके साथ ही आज यानी 29 सितंबर को उन्होंने सोशल मीडिया साइट एक्स पर भी अपील की है कि रविवार 1 अक्टूबर को सभी देशवासी 1 घंटा कम से कम सार्वजनिक सफाई और शुचिता को जरूर दें. वह सार्वजनिक पार्कों में, सार्वजनिक सड़कों, राहों, गलियों और ऐसी बहुतेरी जगहों पर सफाई का काम कर सकते हैं. हाल ही में भयावह महामारी कोरोना से पूरा देश जूझ रहा था. उस समय हमने सफाई और हाइजीन का बहुत ख्याल रखा था और यह ध्यान दिया था कि हम लोग अपने घरों और बाहर भी सफाई को कायम रखें. देश की सरकार ने स्वच्छ भारत अभियान को अभी तक जारी रखा है और जब तक हमलोग पूरी तरह स्वच्छता के आंकड़े नहीं पा जाते, नागरिकों को भी यह योगदान देना ही होगा.
(स्रोतः यूनिसेफ की वेबसाइट, स्वच्छ भारत अभियान की वेबसाइट और जल संसाधन विभाग की वेबसाइट)
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