चीन को रोकने के लिए भारत और अमेरिका दोनों देश ही एक जैसी ही सोच रखते हैं. इसी को दिमाग में रखते हुए भारत लगातार अमेरिका के करीब हो रहा है. अमेरिका भी भारत का लगातार समर्थन करता रहा है. मौजूदा संयुक्त युद्धाभ्यास भी इसी नजरिए से देखा जाना चाहिए. यह अलग बात है कि हाल ही में अमेरिका ने भारत के आंतरिक मामलों में टिप्पणी की है, चाहे वो सीएए हो, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी या फिर कांग्रेस के बैंकखातों के फ्रीज करने का. भारत ने इस माले में अमेरिका के कार्यवाहक मिशन उप-प्रमुख को तलब भी किया था. हालांकि, इससे रिश्तों में बहुत कड़वाहट नहीं आयी है और फिलहाल अमेरिका और भारत समुद्री इलाके में युद्ध का संयुक्ताभ्यास कर रहे हैं.
मजबूत हुई है भारतीय सेना
भारत की सैन्य व्यवस्था पहले से काफी मजबूत हुई है. इसके लिए जो भी आवश्यक कदम है वो सरकार की ओर से उठाए जा रहे हैं. भारत सुरक्षा को ध्यान में रखकर थल, जल और वायु तीनों जगहों पर अपने सैन्य-बल को काफी मजबूत कर रहा है. इसी क्रम में बीते कुछ सालों में भारत और अमेरिका दोनों देश मिलिट्री ट्रेनिंग पार्टनर बने है. दोनों देशों ने बहुत बार युद्ध का संयुक्त अभ्यास किया है.
इस कदम से भारत और अमेरिका दोनों के दुश्मन देशों की भी नजर टेढ़ी होती है. कई मौकों पर देखा गया है कि भारत और अमेरिका दोनों देशों के सेना की कई कंपनियों ने संयुक्त अभ्यास किया है. सेना की कई शाखाओं से जुड़े सैन्य अभ्यास को संयुक्त अभ्यास के तौर पर जाना जाता है. दो या दो से अधिक देशों से जुड़े सैन्य अभ्यास को संयुक्त , गठबंधन , द्विपक्षीय सैन्य अभ्यास के रूप में जाना जाता है, जो देशों के बीच संबंधों की प्रकृति और संख्या पर निर्भर करता है. भारत बीते कुछ समय में अमेरिका का सबसे बड़ा सैन्य प्रशिक्षण भागीदार बनकर भी उभरा है.
चीन के लिए हम साथ-साथ हैं
भारत और अमेरिका के सैन्य अभ्यास का एक बड़ी वजह ये है कि दोनों ही चीन के विस्तारवादी रवैये पर अंकुश लगाने की सोच रहे हैं. चीन के विस्तारवाद को पूरी दुनिया देख रही है, उसके शिकार मुल्क उसे भुगत रहे हैं. चीन अपने पड़ोसी देशों को परेशान करता है और उनकी जमीन को हथियाना चाहता है, चाहे वो जमीन का मामला हो या समुद्री इलाका हो. अमेरिका और भारत के बढ़ते सैन्य अभ्यासों की कोशिश चीन के आक्रामक व्यवहार से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के लिए क्षेत्र को मजबूती भी प्रदान करेगी. अभी तक देखा जाए तो सबसे अधिक बार भारत ने अमेरिका के साथ युद्धाभ्यास किया है. अभी तक भारत बांग्लादेश, श्रीलंका, थाईलैंड, संयुक्त राज्य अमेरिका, मंगोलिया, इंडोनेशिया, फ्रांस, दक्षिण कोरिया और जापान सहित कई देशों के साथ अभ्यास कर चुका है.
अभी भारत और अमेरिका के बीच टाइगर-ट्रायम्फ -24 नामक द्विपक्षीय त्रि-सेवा मानवीय सहायता और आपदा राहत का अभ्यास 18 मार्च को शुरू हुआ. भारत के पूर्वी समुद्री तट पर यह अभ्यास 31 मार्च तक जारी रहेगा. इस अभ्यास में हेलिकॉप्टर और लैंडिंग क्राफ्ट के साथ भारतीय नौसेना के युद्धपोत, भारतीय सेना के जवान और वाहन, और भारतीय वायु सेना के विमान और हेलिकॉप्टर, रैपिड एक्शन मेडिकल टीम शामिल है. वहीं अमेरिका का प्रतिनिधित्व अमेरिकी नौसेना के युद्धपोतों और अमेरिकी मरीन कोर और अमेरिकी सेना के सैनिकों द्वारा किया जा रहा है.
अमेरिका के साथ सर्वाधिक अभ्यास
भारत ने किसी भी अन्य देश की तुलना में अमेरिका के साथ अधिक अभ्यास किया है. अमेरिकी और भारतीय विशेष बल के सैनिकों के 2010 से 14 संयुक्त अभ्यास आयोजित किए जा चुके हैं. इसके साथ ही सैकड़ों अमेरिकी विशेष बल के सैनिकों ने भारत के काउंटर-इनसर्जेंसी जंगल वारफेयर स्कूल में भाग लिया है. दोनों देशों की वायु सेनाओं को शामिल करते हुए "कोप इंडिया" पिछले अप्रैल में आयोजित किया गया था, और इसे 2004 में शुरू होने के बाद से सबसे बड़ी पुनरावृत्ति माना जा सकता है, जिसमें अमेरिकी वायु सेना के बी-1बी बमवर्षक और एफ-15 लड़ाकू विमानों भी शामिल रहे.
चीन का प्रशांत महासागर और आसपास के द्वीपों पर दखल बढ़ता जा रहा है. इसको ध्यान में रखकर भारत और अमेरिका संयुक्त अभ्यास कर रहे हैं, ऐसा भू-राजनैतिक विश्लेषकों का भी मानना है. दक्षिण प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव से ताइवान सहित कई देशों के लिए समस्या है. ताइवान को भी चीन लगातार परेशान करते रहता है. चीन ने उन देशों पर महत्वपूर्ण राजनीतिक, राजनयिक और आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं, जो ताइवान को औपचारिक रूप से मान्यता देना जारी रखते हैं. इसके अलावा दक्षिण प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ता हस्तक्षेप के कारण भारत और अमेरिका के अलावा कई देश चिंतित है. अमेरिका चीन को रोकने के लिए भारत के साथ सैन्य अभ्यास कर रहा है. दोनों मिलकर चीन को रोकने की योजना पर ही शायद काम कर रहे हैं.
अमेरिका को अपने प्रभाव की चिंता
अमेरिका को चिंता है कि बढ़ते चीनी राजनीतिक प्रभाव के परिणामस्वरूप कई दिक्कतों का सामना ना करना पड़े. प्रशांत क्षेत्र कई महत्वपूर्ण अमेरिकी सैन्य अड्डों का भी ठिकाना है. हालांकि, अमेरिका ने जलवायु परिवर्तन अनुकूलन, टिकाऊ मछली पकड़ने और आर्थिक विकास से जुड़ी पहलों के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करके क्षेत्र में अपने राजनयिक संबंधों को बढ़ाने का प्रयास हमेशा से चीन के साथ किया भी है, लेकिन पिछले कुछ दशक में चीन और पश्चिम के बीच बढ़े तनाव ने इस प्रक्रिया को और अधिक चुनौतीपूर्ण बना दिया है. चीन दक्षिण चीन सागर में ताइवान और उसके आसपास अपनी प्रधानता का दावा कर रहा है और सैन्य दबाव बढ़ा रहा है. क्षेत्र में प्रभाव के लिए चीन के संघर्ष में अब दक्षिण प्रशांत क्षेत्र में पहले से अपना प्रभाव और पश्चिमी सुरक्षा प्रभुत्व को चुनौती भी दे रहा है. ऐसे में अमेरिका और अन्य देशों के लिए परेशानी का सबब तो खैर है ही.