(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
अंतरिक्ष में नयी ऊंचाइयां और आकाश की सुरक्षा, दोनों इस नए साल में भारत की प्राथमिकता
भारतीय वायुसेना अंतरिक्ष के हर पहलू का दोहन करना चाह रही है. करीबन 100 निजी कंपनियों को भी सरकार ने मेक इन इंडिया के तहत हथियार बनाने में शामिल किया है और भारतीय वायुसेना भी उनसे लाभ उठा रही है.
भारत इस साल यानी 2024 में सफल रक्षा सौदों और अंतरिक्ष में नयी कवायदों की पूरी बुनियाद रखने जा रहा है. इस साल भारत अतंरिक्ष की नई ताकत बनने और अंतरिक्ष के सहारे अपनी अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाई पर पहुंचाने की दिशा में अपना कदम बढ़ा रहा है. 2014 में भारत की अर्थव्यवस्था 10वें स्थान पर थी, जो कि फिलहाल पांचवें स्थान पर है. भारत सिर्फ अंतरिक्ष ही नहीं कृत्रिम बुद्धिमता यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र, मशीन लर्निंग आदि तकनीकों की दुनिया में भी मजबूती से अपना कदम बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. इसमें भी अंतरिक्ष के सहारे उसकी कोशिश तेजी से ग्लोबल साउथ के देशों के लिए एक मुफीद और कल्याणकारी विकल्प बनने की है औऱ इसमें वह सफल भी हो रहा है. भारत 2030 से पहले 3 तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लिए निरंतर काम कर रहा है. इस साल भारत अंतरिक्ष में अपना पहला मानव मिशन गगनयान-3 भी लांच करने की तैयारी में है. इतना ही नहीं, भारत चांद पर जल की खोज करने के लिए भी तैयार है.
भारत की अंतरिक्ष में पहलकदमी
भारत अंतरिक्ष में महाशक्ति बनने की ओर तेजी से कदम बढ़ा रहा है और इसके लिए भारतीय वायुसेना अंतरिक्ष के हर पहलू का दोहन करना चाह रही है. करीबन 100 निजी कंपनियों को भी सरकार ने मेक इन इंडिया के तहत हथियार बनाने में शामिल किया है और भारतीय वायुसेना भी उनसे लाभ उठा रही है. स्पेस इकोनॉमी का आकार बहुत ही तेजी से बढ़ रहा है. अर्न्स्ट एंड यंग की रिपोर्ट के मुताबिक 2020 में स्पेस इकोनॉमी का आकार 447 अरब डॉलर तक था जिससे 2025 तक 600 अरब डॉलर के पार जाने की उम्मीद है.
इंडियन स्पेस एसोसिएशन और अर्न्स्ट एंड यंग की 'डेवलपिंग द स्पेस इको सिस्टम इन इंडिया' के नाम से प्रकाशित रिपोर्ट में भी कहा गया था कि स्पेस लॉन्चिंग का बाजार 2025 तक बहुत ही तेजी से बढ़ेगा. इस रिपोर्ट में भारत में इसके सालाना 13 फीसदी के हिसाब से वृद्धि का अनुमान लगाया गया है. भारत को एक बेहतरीन 'वायुशक्ति' से लैस 'मजबूत एयरोस्पेस पावर' बनाने पर काम चल रहा है. अब तक एलन मस्क के स्पेसएक्स के साथ ही रूस और चीन वाणिज्यिक तौर से सैटेलाइट लॉन्च करने के बड़े खिलाड़ी रहे हैं. रूस के यूक्रेन से चल रहे दो साल से अधिक के युद्ध और चीन की विस्तारवादी नीतियों ने उससे ये बाजार छीन लिया है औऱ भारत तेजी से दूसरे देशों को आकर्षित कर रहा है.
भारतीय वायुसेना अब केवल इंटेलिजेंस, सर्विलांस और कम्युनिकेशन तक सीमित नहीं है. वह ISRO और DRDO, IN-SPACe के साथ ही निजी कंपनियों के साथ मिलकर अपने पंजे तेज कर रही है. चीन के खतरे से निबटने और भविष्य के खतरों से निबटने के लिए वायुसेना लगातार ऑपरेशन मोड में काम कर रही है. अगला युद्ध हो सकता है कि अंतरिक्ष में हो, इसीलिए वायुसेना अग्रणी संचार, अंतरिक्ष मौसम भविष्यवाणी, स्पेस ट्रैफिक मैनेजमेंट के साथ मिलिट्री स्पेस स्टेशन तक बनाने पर सोच रही है.
ड्रोन और मिसाइलों से हो रही लैस IAF
अभी हाल ही में अमेरिका और भारत के बीच 3.99 बिलियन अमेरिकी डॉलर यानि लगभग 300 करोड़ रुपए की 31 एमक्यू-9बी ड्रोन डील फाइनल हुई है. ड्रोन के माध्यम से वर्तमान और भविष्य में खतरों से लड़ने के लिए भारत की क्षमता को बढ़ाया जायेगा. इसी बीच भारत ने एक और सफल परिक्षण को अपने नाम किया है, वो है स्वदेशी अभ्यास. रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन यानि डीआरडीओ द्वारा 30 जनवरी से लेकर 2 फरवरी तक चार बार उस विमान का सफल परीक्षण किया गया जो मिसाइल टेस्टिंग के दौरान उनका टारगेट बनता है. यह विमान तेजी से उड़ान भरता है.
इस बार किया गया परीक्षण सिंगल बूस्टर की मदद से किया गया है. डीआरडीओ ने इसका परीक्षण ओडिशा के चांदीपुर स्थिट इंडीग्रेटेड टेस्ट रेंज में किया गया, जिसका नाम हाई स्पीड एक्सपेंडेबल एरियल टारगेट (HEAT) रखा गया है. इसके अलावा 'इंडियन एक्सप्रेस' की एक खबर के मुताबिक नेशनल एयरोस्पेस लेबोरेट्रीज (नाल या एनएएल) ने 'हाइ अल्टीट्यूड स्यूडो सैटेलाइट वेहिकल' यानी हैप्स (HAPS) का भी बेंगलुरू में सफल परीक्षण किया है. यह सौर ऊर्जा से चलने वाला स्यूडो-सैटेलाइट है जो नए जमाने का यूएवी (अनमैन्ड एरियल वेहिकल) है. यह भारत की सीमाई इलाकों में सर्विलांस और मॉनिटर करने की क्षमताएं बहुत अधिक बढ़ा सकता है.
यह जमीन से 18 से 20 किमी ऊपर तक ऊपर सकती है, यानी व्यावसायिक हवाई जहाजों से लगभग दोगुनी ऊंचाई पर और सौर ऊर्जा से चालित होने की वजह से यह महीनों तक, बल्कि वर्ष तक भी हवा में रह सकती है औऱ यह किसी उपग्रह की तरह काम कर सकती है. फर्क केवल ये है कि चूंकि अंतरिक्ष में जाने के लिए इसको रॉकेट की जरूरत नहीं होती, तो इसकी लागत कई गुणा कम हो जाएगी. हैप्स अभी भी विकसित हो रही तकनीकी अवस्था में है और इसके सफल टेस्ट फ्लाइट की वजह से भारत उन चुनिंदा देशों में शामिल हो गया है, जो इस तकनीक का प्रयोग कर रहे हैं.
चांद पर पानी की खोज
भारत अपनी सामरिक शक्ति बढ़ाने के साथ ही अंतरिक्ष की और खोजों में भी लगातार प्रगति कर रहा है. इसी साल भारत अपना मानवसहित यान चांद पर भेजेगा. पिछले साल चांद के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान (मानवरहित) की सफल लैंडिंग के बाद भारत का हौसला बुलंद है. गगनयान मिशन भारत का पहला मानव-सहित मिशन होगा. इसमें 3 सदस्यों के दल को 400 किलोमीटर ऊपर पृथ्वी की कक्षा में भेजा जाएगा. इसके बाद क्रू मॉड्यूल को सुरक्षित रूप से समुद्र में लैंड कराया जाएगा. गर यह सफल होता है तो अमेरिका, चीन और रूस के बाद भारत ऐसा करने वाला चौथा देश बन जाएगा. इसके साथ ही भारत एल-1 आदित्य के जरिए सूरज के बारे में भी काफी जानकारी इकट्ठा कर रहा है. मानवरहित चंद्रयान चांद के उस हिस्से में पहुंचा जो अमूमन अंधकार में रहता है औऱ यह बड़ी सफलता है. अब भारत वहां पानी की खोज में भी शामिल हो सकता है. भारत अंतरिक्ष में बहुत तेजी से अपने कदम न केवल रख रहा है, बल्कि उसको मजबूती से स्थापित भी कर रहा है. आने वाले महीनों और वर्षों में हमें कई और खबरें सुनने औऱ देखने को मिल सकती हैं.