Russia UNSC Presidency And India: रूस को एक बार फिर से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की अध्यक्षता करने का मौका मिला है. एक अप्रैल को जब रूस को अध्यक्षता मिली, तो यूक्रेन इसका सबसे मुखर विरोधी था. वो कुछ दिनों से सुरक्षा परिषद की रूसी अध्यक्षता का लगातार विरोध कर रहा था. रूस के UNSC का अध्‍यक्ष बनने के बाद से ही यूक्रेन की सरकार बेहद खफा है. उसने इसे अप्रैल फूल का सबसे भद्दा मजाक भी करार दिया था.


वैसे, रूस संयुक्त राष्ट्र के नियमों के तहत ही सुरक्षा परिषद (UNSC) की अध्‍यक्षता कर रहा है. रूस सुरक्षा परिषद के 5 स्‍थायी सदस्‍यों में से एक है और, सुरक्षा परिषद के 10 अस्‍थायी सदस्‍यों को मिलाकर यह संख्‍या 15 हो जाती है. इसमें सुरक्षा परिषद के सभी 15 सदस्यों के पास एक-एक महीने के लिए सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता आती है.


रूस ने अपनी पिछली अध्यक्षता के दौरान ही यूक्रेन पर हमला किया था. तब भी यूक्रेन ने दुनिया के देशों से खुद को बचाने की गुहार लगाई थी. हालांकि, रूस के अध्यक्ष होने की वजह से ही तब दुनिया के बाकी देश कुछ कर नहीं पाए थे. रूस-यूक्रेन युद्ध एक साल से अधिक समय से जारी है और अभी तक उसका कोई फैसला नहीं हुआ है. 


भारत के लिए भी है कठिन राह


यह समय भारतीय डिप्लोमेसी के लिए भी परीक्षा की तरह का है. रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद अमेरिका ने अपने साथी देशों के साथ मिलकर रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए. हालांकि रूस पर इन प्रतिबंधों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा और वह यूक्रेन में घुस ही गया. भारत ने भी रूस पर ऑयल कैप लगा होने के बावजूद तेल खरीदना जारी रखा. यहां तक कि विदेश मंत्री जयंशकर से जब इस बारे में सवाल पूछा गया तो उन्होंने यूरोपीय समुदाय को अपने आंगन में झांकने की सलाह दी थी. उन्होंने यह भी कहा था कि यूरोप अगर सोचता है कि उसकी समस्या पूरी दुनिया की है तो उसे भी ऐसा ही सोचना चाहिए कि भारत या एशिया की समस्या भी पूरी दुनिया की है.


इसी पर बात करते हुए जवाहरलाल नेहरू विश्विद्यालय के अंतरराष्ट्रीय अध्ययन संस्थान (SIS) में असोसिएट प्रोफेसर रणविजय कहते हैं, 'भारत की अपनी एक स्वतंत्र विदेश नीति रही है. भारत ने अब तक अपनी विदेश नीति में गुटनिरपेक्षता का ही अनुसरण किया है. हालांकि, रूस के साथ भारत के संबंध बड़े गहरे भी रहे हैं. अभी भी भारत का सबसे पुराना और गहरा रणनीतिक साझेदार रूस ही है. हथियारों की आपूर्ति भी भारत को सबसे अधिक रूस ही करता है. यह दरअसल भारतीय विदेश नीति और कूटनीति के लिए एक परीक्षा की घड़ी है. डिप्लोमेसी को बहुत ही संतुलित होकर चलना होगा. भारत अपने आदर्शों के मुताबिक किसी देश पर आक्रमण को जायज भी नहीं ठहरा सकता और वह रूस के साथ अपने संबंध पूरी तरह तोड़ भी नहीं सकता. तो यह सचमुच संतुलन की परीक्षा है."


यूक्रेन हो चुका है बर्बाद


भारत के लिए यह सोचने का विषय है, क्योंकि अमेरिका समेत उसके सहयोगी संगठनों ने रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए हैं. हालांकि, रूस ने इनकी परवाह किए बगैर एक साल से भी अधिक समय से अपने हमले जारी रखे हैं. रूस को जहां फौजी और हथियारों का नुकसान उठाना पड़ा है, वहीं यूक्रेन बर्बाद हो गया है. लाखों लोग यूक्रेन छोड़कर अन्‍य देशों में शरण लेने के लिए जान बचाकर भागे हैं. रूसी मिसाइलों ने यूक्रेन के घर-मकान, ऊर्जा-प्रतिष्ठानों, अस्‍पतालों, मेट्रो  जैसे बुनियादी ढांचे सब को तहस-नहस कर डाला. यूक्रेन में हजारों सैनिकों के साथ आम नागरिकों को भी अपनी जान गंवानी पड़ी है. इसके बाद ही अमेरिका ने कई तरह के प्रतिबंध रूस पर लगाए.


हालांकि, रूस ने सऊदी अरब को साथ मिलाते हुए अपने ऊपर लगे ऑयल-प्राइस कैप को धता बता दिया है. अमेरिका ने जहां तय किया था कि 60 डॉलर प्रति बैरल ही रूस अपना तेल बेच सकता है, वहीं रूस अब सऊदी अरब की सहायता से इससे महंगा तेल बेच रहा है. सऊदी अरब ने अपने सहयोगी तेल-निर्यातक देशों के साथ उत्पादन घटा दिया और इससे रूस को काफी सहायता मिली है.


भारत को साधना होगा संतुलन


1947 के बाद से ही भारत का झुकाव रूस की ओर रहा है. रूस इसका सबसे पुराना और बड़ा रणनीतिक साझेदार रहा है. यहां तक कि एशिया में जब अमेरिका पाकिस्तान को पूरी तवज्जो दे रहा था और उसके जरिए भारत को साधने की कोशिश कर रहा था, तब भी रूस ने भारत का साथ नहीं छोड़ा है. रूस हमेशा से भारत की सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य के तौर पर आगमन का भी समर्थन करता रहा है. हाल के वर्षों में भारत,अमेरिका के साथ अपनी दोस्ती भले बढ़ा रहा है, लेकिन राजनयिक हलकों में अभी भी रूस को भारत का सबसे पक्का और गहरा साझेदार माना जाता है. भारत को अपना हरेक कदम संतुलन के साथ साध कर चलना होगा.