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वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था: भारत बड़ी ताक़त बनने की ओर, अगले एक दशक में लंबी छलांग, गगनयान पर फोकस

Space economy: वर्तमान में  वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारत की हिस्सेदारी 2% है. अगले एक दशक में इसके 8% होने की संभावना है. इसके लिए निजी भागीदारी बढ़ाने पर ज़ोर है.

Indian Space economy: भारत दुनिया की सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था है. विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से लेकर दुनिया की तमाम वैश्विक संस्थाओं का मानना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में जिस गति से विकास करने की क्षमता है, वो दुनिया की किसी और अर्थव्यवस्था में नहीं है.

तमाम वैश्विक संस्थानों ने समय-समय पर भारत को वैश्विक अर्थव्यवस्था  में एक चमकता स्थान के साथ ही विकास और नवाचार के पावर हाउस के तौर पर बताया है. एक ओर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने वैश्विक वैश्विक वृद्धि का अनुमान घटाकर तीन प्रतिशत कर दिया, तो भारत के लिए 2023-24 की जीडीपी की वृद्धि दर का अनुमान 0.2% बढ़ाकर 6.3% कर दिया है. घरेलू खपत भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, जिसकी वज्ह से पूरी दुनिया भारत को उम्मीद से देखती है.

वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारत की हिस्सेदारी

वैश्विक अर्थव्यवस्था से ही जुड़ी है अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था, जिसमें भी भारत मज़बूती के साथ अपने पैर पसार रहा है. अगले एक दशक में वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारत की भागीदारी बहुत ही तेज़ी से बढ़ने वाली है. फ़िलहाल वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारतीय अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था की हिस्सेदारी दो फ़ीसदी है. यह क़रीब आठ अरब डॉलर के बराबर है.

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन या'नी इसरो निजी क्षेत्रों की भागीदारी के साथ मज़बूती के साथ वाणिज्यिक क्षमताओं विकास कर रहा है. उसको देखते हुए वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था की हिस्सेदारी 2033 तक दो से बढ़कर आठ फ़ीसदी होने की संभावना है. यह क़रीब 44 अरब डॉलर के बराबर होगा.

अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था पर दशकीय दृष्टि और रणनीति

भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र या'नी IN-SPACe ने भविष्य के लिहाज़ से वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारतीय अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था की हिस्सेदारी को लेकर यह संभावना ज़ाहिर की है. 'इन-स्पेस' भारत के अंतरिक्ष विभाग के तहत आने वाली 'सिंगल विन्डो' स्वायत्त एजेंसी है. IN-SPACe की ओर से 10 अक्टूबर को बेंगलुरु में भारतीय अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के लिए दशकीय दृष्टिकोण और रणनीति पेश की गई. इस दशकीय दृष्टि और रणनीति को इन-स्पेस और इसरो ने सभी हितधारकों के साथ मिलकर तैयार किया है. इसके बारे में जानकारी देते हुए 'इन-स्पेस' के अध्यक्ष पवन गोयनका ने कहा कि दशकीय दृष्टिकोण में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि भारत में अंतरिक्ष क्षेत्र का भविष्य एक साझा प्रयास है.

अंतरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में शीर्ष पांच देशों में

वैश्विक हिस्सेदारी बढ़ाने के मकसद से अंतरिक्ष विभाग अगले एक दशक में अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के विकास को गति देने के लिए संबंधित हितधारकों के बीच सहयोग को बढ़ावा देगा. अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के विस्तार के लिए इसरो पहले से निजी क्षेत्र के साथ काम कर रहा है. हिस्सेदारी बढ़ाने के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए  इसरो निजी क्षेत्र की भागीदारी के लिए अपने दरवाजे पहले से कहीं ज़्यादा खोल रहा है. इससे आत्मनिर्भर भारत की दिशा में अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के आकार को तेज़ी से बड़ा करने में मदद मिलेगी.

भारत अंतरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में भी तेज़ी से क़दम बढ़ा रहा है.अभी भारतअंतरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में दुनिया के शीर्ष पांच देशों में शामिल है. तीसरे चंद्र मिशन चंद्रयान 3 और सूर्य मिशन आदित्य-एल 1 के बाद इसरो देश के पहले मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन 'गगनयान' की तैयारियों में ज़ोर शोर से जुटा है.

गगनयान मिशन की पहली परीक्षण उड़ान

इसरो 21 अक्टूबर को गगनयान मिशन की पहली परीक्षण उड़ान को करने जा रहा है. इसके तहत मानव अंतरिक्ष उड़ान के दौरान भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को ले जाने वाले क्रू मॉड्यूल का परीक्षण होना है . इसके लिए 'गगनयान टेस्ट व्हीकल स्पेस फ्लाइट या'नी 'गगनयान' टेस्ट व्हीकल डेवलपमेंट फ्लाइट (TV-D1) का प्रक्षेपण  किया जायेगा. परीक्षण में मॉड्यूल को बाहरी अंतरिक्ष में प्रक्षेपित करने के बाद उसे पृथ्वी पर वापस लाकर बंगाल की खाड़ी में उतरा जायेगा और उसे दोबारा हासिल किया जायेगा. भारतीय नौसेना मॉड्यूल को दोबारा प्राप्त करने के लिए मॉक ऑपरेशन शुरू कर चुकी है.

क्रू एस्केप सिस्टम के प्रभाव का भी परीक्षण

इसरो क्रू एस्केप सिस्टम के प्रभाव का भी परीक्षण करेगा. यह मिशन गगनयान का बेहद महत्वपूर्ण हिस्सा है.  गगनयान मिशन के तहत 2024 तक बाहरी अंतरिक्ष में मानव रहित और मानवयुक्त मिशन को अंजाम देना है. गगनयान मिशन के दौरान क्रू मॉड्यूल ही अंतरिक्ष यात्रियों को बाहरी अंतरिक्ष में ले जाएगा. 

इसरो 21 अक्टूबर को जो परीक्षण करने जा रहा है, वो मिशन गगनयान के लिए बेहद ख़ास है. इस परीक्षण की सफलता से ही अगले साल पहले मानव रहित गगनयान मिशन और उसके बाद पृथ्वी की निचली कक्षा में बाहरी अंतरिक्ष के लिए मानवयुक्त मिशन के लिए मंच तैयार हो जायेगा.  गगनयान मिशन के तहत मानवयुक्त मिशन से पहले 2024 में  एक परीक्षण उड़ान होगी. इसमें महिला रोबोट अंतरिक्ष यात्री "व्योममित्र" को अंतरिक्ष में ले जाया जायेगा.

गगनयान मिशन सबसे महत्वाकांक्षी मिशन

भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिहाज़ से गगनयान मिशन सबसे महत्वाकांक्षी मिशन है. इस मिशन के तहत मानव चालक दल को 400 किमी की कक्षा में लॉन्च किया जायेगा. फिर भारतीय समुद्री जल में यान को उतारकर पृथ्वी पर सुरक्षित रूप से वापस लाया जाना है.  गगनयान मिशन की सफलता के बहुत सारी तैयारियां एक साथ चल रही है. मिशन से जुड़ी कई महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों का विकास किया जा रहा है. चालक दल को अंतरिक्ष में सुरक्षित रूप से ले जाने के लिए मानव रेटेड लॉन्च वाहन तैयार किया जा रहा है.अंतरिक्ष में चालक दल को पृथ्वी जैसा वातावरण मिले, इसके लिए  जीवन समर्थन प्रणाली पर काम जारी है. चालक दल के आपातकालीन बचाव के प्रावधान से जुड़े पहलुओं पर भी इसरो के वैज्ञानिक काम कर रहे हैं. साथ ही चालक दल के प्रशिक्षण, पुनर्प्राप्ति और पुनर्वास से जुड़े पहलुओं पर भी काम जारी है.

अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में हिस्सेदारी बढ़ाने पर ज़ोर

इसमें कोई दो राय नहीं है कि मौज़ूदा समय में अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत चुनिंदा देशों में शामिल है. चंद्रयान 3 के ज़रिये भारत ने चंद्रमा की सतह के न दिखने वाले दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र पर उतरने वाला दुनिया का पहला देश बनकर इतिहास रचा है. उसके बाद सूर्य के अध्ययन से जुड़े पहले अंतरिक्ष आधारित भारतीय मिशन आदित्य-1 के प्रक्षेपण के साथ ही भारत ने पूरी दुनिया को यह संदेश दे दिया है कि वो अंतरिक्ष जगत की बड़ी ताक़त है. इसके साथ ही यह भी जता दिया है कि वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में हिस्सेदारी बढ़ाने की दिशा में भविष्य में और तेज़ रफ़्तार से आगे बढ़ने वाला है. इसके साथ ही गगनयान मिशन भारत के लिए स्पेस सेक्टर और अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में हैसियत और मज़बूत करने के नज़रिये से काफ़ी महत्वपूर्ण साबित होने वाला है.

अंतरिक्ष क्षेत्र में स्टार्टअप की संख्या तेज़ी से बढ़ी है

भारत सरकार ने जून 2020 में निजी क्षेत्रों के लिए अंतरिक्ष कार्यक्रम के दरवाजे खोल दिए थे. उसके बाद से अंतरिक्ष क्षेत्र में स्टार्टअप की संख्या तेज़ी से बढ़ी है. उस वक़्त इसकी संख्या 4 थी, जो अब 150 हो गई है. वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के लिहाज़ से अंतरिक्ष स्टार्टअप और उद्यमियों का सबसे ज्यादा महत्व है.चंद्रयान-3 के सफल प्रक्षेपण से भी वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारत के प्रभुत्व बढ़ाने में मदद मिल रही है. इससे स्पेस स्टार्टअप और इस क्षेत्र में रुचि रखने वाले कारोबारियों को भी प्रोत्साहन मिल रहा है. केंद्र सरकार संयुक्त मिशन मोड में आकर्षक स्टार्टअप उद्यमों के माध्यम से अंतरिक्ष क्षेत्र की संभावनाओं का पता लगाने पर तेज़ी से काम कर रही है.

अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का विस्तार तेज़ गति से

वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का विस्तार तेज़ गति हो रहा है.  स्पेस इकोनॉमी का आकार  2020 में 447 अरब डॉलर तक था. अर्न्स्ट एंड यंग की रिपोर्ट के मुताबिक इसके 2025 तक 600 अरब डॉलर से अधिक होने की उम्मीद है.  अंतरिक्ष जगत में भारत तेजी से उभरती हुई ताक़त बनने की ओर बढ़ रहा है. भारत पिछले कुछ सालों से वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी को नये स्तर पर ले जाने की दिशा में काम कर रहा है.

वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का सबसे प्रमुख घटक स्पेस लॉन्चिंग का बाज़ार है. आने वाले समय में स्पेस लॉन्चिंग के बाज़ार का आकार बहुत ही तेज़ी से बढ़ेगा.कुछ महीने पहले  इंडियन स्पेस एसोसिएशन और अर्न्स्ट एंड यंग की  'डेवलपिंग द स्पेस इको सिस्टम इन इंडिया' के नाम से जारी रिपोर्ट कहा गया था कि भारत में स्पेस लॉन्चिंग का बाज़ार सालाना 13 फ़ीसदी के हिसाब से बढ़ने की संभावना है.

सैटेलाइट प्रक्षेपण और एप्लीकेशन सेगमेंट

स्पेस के क्षेत्र में निजी भागीदारी बढ़ रही है. इसके साथ ही नयी-नयी तकनीक आने और लॉन्चिंग सेवाओं की लागत में कमी होने के कारण से अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था रफ़्तार पकड़ेगी.  भारत के लिए   अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में सैटेलाइट प्रक्षेपण सेवा और एप्लीकेशन सेगमेंट को सबसे बड़ा हिस्सा माना जाता है. भारतीय अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में सैटेलाइट प्रक्षेपण सेवा और एप्लीकेशन सेगमेंट की हिस्सेदारी 2025 तक 36% होने का अनुमान है.

सार्वजनिक-निजी भागीदारी को भी बढ़ावावैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारतीय हिस्सेदारी को बढ़ाने के लिए भारत सरकार ने 2020 में निजी भागीदारी के लिए अंतरिक्ष क्षेत्र को खोल दिया था. अंतरिक्ष और इससे संबंधित दूसरे क्षेत्रों में व्यावसायिक गतिविधियों को तेजी से लाने के मकसद से सार्वजनिक-निजी भागीदारी को भी बढ़ावा दिया जा रहा है. इससे अंतरिक्ष स्टार्टअप की संख्या बढ़ाने में मदद मिल रही है.

निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ने से इसरो की प्रक्षेपण क्षमता को भी बढ़ाने में मदद मिल रही है. निजी क्षेत्र के लिए दरवाजे खोलने का ही नतीजा है कि वर्तमान में इसरो करीब 150 निजी स्टार्टअप  के साथ काम कर रहा है. इस दिशा में नवंबर 2022 में इसरो ने एक पड़ाव पार करते हुए इतिहास रचा था, जब इसरो ने भारत के पहले निजी सब ऑर्बिटल (VKS) रॉकेट विक्रम को सफलतापूर्वक लॉन्च किया था.

निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने के लिए कदम

भारतीय अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के विस्तार के लिए केंद्र सरकार ने निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए हैं. इस तरह के उपाय किए गए हैं कि निजी क्षेत्र से जुड़ी कंपनियां और कारोबारी रॉकेट और उपग्रहों के निर्माण और विकास, लॉन्चिंग सेवाएं मुहैया कराने और उपग्रहों के स्वामित्व जैसी गतिविधियों में हिस्सा ले सकें. इसके लिए एक नोडल एजेंसी बनाया गया है.इसका नाम  भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe) है. IN-SPACe ही अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी फर्मों और संस्थाओं को अधिकृत करने और बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार है. भारतीय अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का हिस्सा बनने के लिए सैकड़ों स्टार्टअप और गैर-सरकारी संस्थाएं इंतजार में हैं. इसरो की वाणिज्यिक गतिविधियां सरकारी स्वामित्व वाली कंपनियां - न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) और एंट्रिक्स (Antrix) के जिम्मे है.

मार्च 2024 तक निजी क्षेत्र से पहला PSLV

अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी भागीदारी के तह पिछले साल सितंबर में हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स और लार्सन एंड टूब्रो के साझा स्पेस कंसोर्टियम ने पांच PSLV रॉकेट बनाने के लिए 860 करोड़ रुपये का इसरो से कॉन्ट्रैक्ट हासिल किया था. इस अनुबंध के तहत HAL-L&T को पहला PSLV दो साल भीतर बनाकर देना है. हालांकि इसरो अध्यक्ष एस सोमनाथ ने भरोसा है कि ये रॉकेट मार्च 2024 तक मिल जाएगा. बेलाट्रिक्स (Bellatrix)और पिक्सेल जैसी कंपनियों ने 2021 में इसरो के साथ समझौता किया. ये  IN-SPACe के साथ मिलकर काम कर रहे हैं.

स्टार्टअप से इसरो की क्षमता बढ़ाने में मदद

स्टार्टअप अब भारत में अंतरिक्ष परिदृश्य को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. इसी का नतीजा है कि पिछले कुछ सालों में इसरो के प्रक्षेपण की संख्या तेजी से बढ़ी है. जुलाई तक आँकड़ों  के हिसाब से भारत ने अब तक 424 विदेशी उपग्रह प्रक्षेपित किए हैं. इनमें से 389 का प्रक्षेपण पिछले 9 साल में हुआ है. पिछले साढ़े पांच साल की बात करें तो जनवरी 2018 से इसरो ने वाणिज्यिक समझौते के तहत पीएसएलवी और जीएसएलवी-एमके III लॉन्चर से 200 से ज्यादा विदेशी उपग्रहों को सफलतापूर्वक लॉन्च किया है.

इनमें कोलंबिया फ़िनलैंड, इज़राइल, लिथुआनिया, लक्ज़मबर्ग, मलेशिया, नीदरलैंड, सिंगापुर, स्पेन और स्विट्जरलैंड जैसे देश शामिल हैं.इनके अलावा इस दौरान भारत ने अमेरीका, ब्रिटेन, फ्रांस, इटली, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे प्रमुख जी 20 देशों के 200 से  उपग्रहों को भी सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में भेजा है.

अंतरिक्ष क्षेत्र में दूसरे देशों के साथ बढ़ता सहयोग

स्पेस इकोनॉमी में हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए भारत दुनिया की बड़ी ताकतों के साथ सहयोग को बढ़ाने पर भी फोकस कर रहा है. इसी का नतीजा था कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस साल जून में अमेरिका की पहली राजकीय यात्रा पर थे, तो उस वक्त अमेरिका ने स्पेस रिसर्च में भारत को एक समान भागीदार और सहयोगी बताया था.

पीएम मोदी की फ्रांस यात्रा के दौरान भी अंतरिक्ष क्षेत्र में सहयोग को लेकर 14 जुलाई को दोनों देशों के बीच सहमति बनी थी. इसके तहत सैटेलाइट लॉन्चिंग के क्षेत्र में संयुक्त विकास की योजना की भी घोषणा काफी अहम है. इसरो की कमर्शियल एजेंसी न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड और फ्रांस के एरियनस्पेस वाणिज्यिक लॉन्च सेवाओं में सहयोग करेंगे.

अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में संभावनाएं और क्षमता

स्पेस इकोनॉमी बढ़ाने के लिए जो भी चाहिए, भारत के पास उस लिहाज से अपार संभावनाएं और क्षमता है. भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की सबसे बड़ी ख़ासियत है कि इसरो का अंतरिक्ष मिशन लागत प्रभावी योग्य डिज़ाइन किए जाते हैं. इसका तात्पर्य है कि इसरो के किसी भी मिशन पर बाक़ी देशों की तुलना में बहुत कम लागत आती है.इसरो की वाणिज्यिक इकाई के जरिए कमर्शियल सैटेलाइट लॉन्चिंग की लागत विकसित देशों की तुलना में काफी कम है.

इसके साथ ही इसरो के वैज्ञानिक उन तकनीकों के विकास पर भी पूरी मेहनत के साथ जुटे रहते हैं. यही वज्ह है कि इसरो के वैज्ञानिक कोई भी मिशन बजट के आकार को देखकर पूरा नहीं करते हैं. देश के अंतरिक्ष वैज्ञानिक कम लागत में भी बड़े-से -बड़े मिशन या प्रक्षेपण को कुशलता और सफलता से अंजाम देने में सक्षम हैं.

सैटेलाइट लॉन्च करने की लागत और कम होगी.

भारत क़रीब 30,000 से 40,000 डॉलर प्रति किलोग्राम पेलोड की लागत पर सैटेलाइट लॉन्च कर रहा है. भविष्य में निजी क्षेत्र की भागीदारी और अंतरराष्ट्रीय सहयोग से सैटेलाइट लॉन्च करने की लागत और कम होगी. इससे इसरो के वाणिज्यिक सेवा को लेकर दुनिया के बाक़ी देशों में आकर्षण बढ़ता जा रहा है. यह ऐसी ख़ासियत है, जिससे वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारत की हिस्सेदारी बढ़ाने में ख़ूब मदद मिल रही है.

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