नई दिल्ली: जिस खिलाड़ी ने अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में गोल्ड मेडल तक जीते, देश की शान बढ़ाई, लेकिन वक़्त का सितम और खेल संगठनों की अनदेखी तो देखिए, हालात ये हैं कि न सिर्फ ट्रेनिंग के लिए पैसे नहीं हैं, बल्कि पेट पालना भी दुश्वार है. रोजी रोटी के लिए वो सड़कों पर रेहड़ी लगाने को मजबूर है. इस खिलाड़ी का गुनाह ये है कि गरीब परिवार में जन्म लेने के बावजूद उसने स्केटिंग जैसे महंगे खेल को खेलने का सपना देखा. हौसले और संघर्ष की ये कहानी दिल्ली के पहाड़गंज की तंग गलियों में रहने वाले राजकुमार तिवारी की है. ये वही राजकुमार हैं जिनकी बदौलत भारत ने पहली बार 2013 में दक्षिण कोरिया में हुए स्पेशल ओलम्पिक वर्ल्ड विंटर गेम्स में गोल्ड मेडल जीता.


वक़्त का पहिया कैसे पलट गया, उन दिनों को याद करते हुए राजकुमार कहते हैं, ‘मैंने 2013 में देश के लिए गोल्ड मेडल जीता. उस वक्त मुझे बहुत शाबाशियां मिलीं, खूब सुर्खियां बनी. लेकिन ये सब चंद दिनों के लिए था. कुछ लोगों ने सपोर्ट भी किया लेकिन फिर सब कुछ बदल गया.’



वक़्त की मार उन्हें पीछे धकेल रही है, लेकिन हौसलों की उड़ान उन्हें थमा नहीं पा रही है.  राजकुमार की उड़ान में धन बाधा जरूर है, लेकिन हौसले में रुकावट कतई नहीं है. इसलिए अब भी उनके सपने जिंदा हैं और पंख फड़फड़ा रहे हैं. उनका सपना 2018 में होने वाले ओलंपिक में हिस्सा लेना है. लेकिन ये डगर उनके लिए इतनी आसान नहीं है. राजकुमार को ओलंपिक में क्वालिफाई करने के लिए अच्छी ट्रेनिंग और कोच की जरूरत है. और इसके लिए उन्हें अमेरिका जाना होगा. ओलंपिक के लिए राजकुमार को कम से कम दो से ढ़ाई साल ट्रेनिंग की जरूरत है और एक साल का खर्च कम से कम 25 लाख रूपये है. राजकुमार का कहना है, ‘ओलंपिक के लिए क्वालिफाई करना इतना आसाना नहीं है. इसके लिए मुझे दो से ढाई साल तक ट्रेनिंग की जरूरत है. आर्थिक रूप से इस ट्रेनिंग के लिए कहीं से कोई सपोर्ट नहीं है. हालात ये हैं कि कभी-कभी तो मेरे पास स्केट भी नहीं होते. कॉस्ट्यूम नहीं होता. मेरा कोई कोरियोग्राफर नहीं है. मुझे आज भी कोच का इंतजार है.’



ये जानकर हैरानी होगी कि गोल्ड मेडल जीतने वाले इस खिलाड़ी पास ट्रेनिंग के लिए कोई कोच नहीं है. वो गुड़गांव के एक मॉल में प्रैक्टिस के लिए जाते है जहां उन्हें एक घंटे के लिए करीब 550 रूपये फीस देनी होती है. राजकुमार का कहना है, ‘स्केटिंग में मेरा कोई कोच नहीं है क्योंकि मैं कोच का खर्च नहीं उठा सकता. कोच की फिस साप्ताहिक दो से तीन हजार रूपये हैं. बिना किसी कोच के ट्रेनिंग बहुत मुश्किल है. जब मैं स्केटिंग करता हूं तो लोग प्रशंसा करते हैं. कुछ लोग मदद के लिए वादा भी करते हैं लेकिन बाद में लोग भूल जाते हैं.’

अपनी इस जंग को जीतने के लिए राजकुमार को काफी मशक्कत करनी पड़ी है.

जीवन का चक्र

राजकुमार रोज सुबह पुरानी दिल्ली स्थित सदर बाजार में रेहड़ी लगाते हैं जहां पर वे नकली सोने के सामान जैसे कानों के टॉप्स और झुमके वगैरह बेचते हैं. उनके पापा और भाई भी यही काम करते हैं. इस रेहड़ी से उनके घर की पूरी कमाई करीब 15 हजार की होती है जिसमें उन्हें घर का किराया और छोटे भाइयों की स्कूल फीस भी भरनी होती है.

राजकुमार अपने छोटे भाई के साथ स्केटिंग की प्रैक्टिस के लिए गुड़गांव जाते हैं. स्केटिंग का उनका एक महीने का खर्च करीब 30-40 हजार रूपये है. स्केटिंग का इतना पैसो वो कहां से भरते हैं इस पर राजुकमार बताते हैं, ‘ओएनजीसी ने मेरे बारे में खबर पढ़कर मुझे स्कॉलरशिप देने की घोषणा की. मुझे ओएनजीसी से 16 हजार रूपये मिलते हैं. इन्हीं पैसों से मैं महीने में कुछ दिन प्रैक्टिस कर पाता हूं. इसके बाद कहीं से पैसे मिल गए तो स्केटिंग कर लेता हूं नहीं तो घर का काम करता हूं. कई बार होता है पैसे नहीं होते तो दुकान के पैसों से स्केटिंग कर लेता हूं, बाद में परेशानी होती है. कम से कम तीन लाख रूपये से ज्यादा तो दुकानदारों के उधार हैं क्योंकि कई बार ऐसा हुआ है कि मुझे किसी कंपटीशन में भाग लेना है तो मैं दुकान के पैसों को ही खर्च कर देता हूं.’

(Photo: Rajkumar Tiwari)

ऐसा भी होता है जब राजकुमार काफी दिनों तक प्रैक्टिस नहीं कर पाते. उनका कहना, ‘अगर कुछ दिन ट्रेनिंग नहीं कर पाता हूं तो अफसोस होता है. लोग कहते हैं कि गरीब का बच्चा नहीं खेल पाएगा. लेकिन मुझे स्केटिंग के लिए अगर घर में काम भी करना पड़े तो कर लूंगा लेकिन कोई ऐसा काम भी नहीं मिलता.’

राजकुमार अपनी स्कूलिंग भी ठीक से नहीं कर पाए. 22 साल के राजकुमार ने इसी साल दसवीं पास किया है. पढाई क्यों नहीं कर पाए इस सवाल पर राजकुमार का कहना है, ‘समय नहीं मिल पाता. पढ़ाई करूंगा तो घर के खर्चे कैसे चलेंगे? सदर बाजार में दुकान है, वो कौन चलाएगा? घर का किराया कहां से देंगे? छोटे भाइयों को पढ़ाना है. घरवाले मेरी वजह से परेशान हैं कि जितना पैसा कमाते हैं मेरे ऊपर खर्च हो जाता है.’



राजकुमार के परिवार में कुल सात सदस्य हैं. उनके पापा से उनकी स्केटिंग को लेकर लडाई भी हो जाती है. क्योंकि उनकी इनकम में घर चलाना ही मुश्किल है फिर इतने महंगे गेम के लिए वे पैसे कहां से लेकर आएं. एबीपी न्यूज़ से बातचीत में राजकुमार के पिता ने बताया, ‘जब बेटे को मेडल मिलता है तो गर्व होता है लेकिन कब तक? सारी बात पैसों पर आकर रूक जाती है. शोहरत तो मिल गई लेकिन हालात नहीं बदले.’

राजकुमार कहते हैं, ‘मेरे पास पैसा नहीं है, कोच नहीं है, ग्राउंड नहीं है, सिर्फ हौसला है. सदर बाजार में होता हूं तो सामान बेचना मेरा लक्ष्य होता है और जब ग्राउंड में होता हूं तो स्केट पर.’

राजकुमार ने मदद के लिए स्पोर्ट्स मिनिस्ट्री को चिट्ठी लिखी लेकिन कोई रिस्पॉंस नहीं मिला. राजकुमार का कहना है कि लोग बुलाते हैं और दो-दो घंटे तक ऑफिस के बाहर बिठा लेते हैं. एजुकेटेड फैमिली से आने वाले खिलाड़ियों को फंड मिल जाता है लेकिन उनके जैसे खिलाडियों को नहीं मिलता. उनके साथ भेदभाव होता है क्योंकि वो स्पेशल एथलीट हैं.

राजकुमार इन दिनों कलर्स टीवी पर होने वाले रिएलिटी शो इंडियाज गॉट टैलेंट में भी अपने स्केटिंग का दम दिखा रहे हैं. उन्हें उम्मीद है कि इस प्लेटफॉर्म से उन्हें अपने सपनों को हासिल करने में जरूर मदद मिलेगी. राजकुमार कहते हैं, ‘मैं कोई भी टुर्नामेंट या इवेंट को छोड़ना नहीं चाहता. आईजीटी में जाने का मकसद यही है कि मुझे वहां लोग देखें और मेरी कुछ हेल्प हो.’



आईजीटी का अनुभव शेयर करते हुए राजकुमार बताते हैं कि ‘पहली बार मुझे इस प्लेटफॉर्म पर कोरियोग्राफर मिला. मेरी थकान दूर हो जाती है जब मैं पैरों में स्केट बांधता हूं. मैं भूल जाता हूं कि मैं पटरी लगाता हूं, सामान बेचता हूं. लोग मेरे लिए जब क्लैपिंग करते हैं तो मेरे सारे गम उसमें छुप जाते हैं. अब आईजीटी से बहुत उम्मीदे हैं. आईजीटी जीतता हूं तो ओलंपिक ट्रेनिंग का सपना पूरा हो जाएगा.’