अयोध्या फैसला: जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष अरशद मदनी ने कहा- ये हमारी उम्मीद के मुताबिक नहीं है
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष ने देश के लोगों से भाईचारा और अमन का माहौल बनाए रखने की अपील की. उन्होंने कहा कि जमीयत उलेमा ए हिंद ने आखिरी हद तक न्याय के लिए लड़ाई लड़ी.
नई दिल्ली: अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना सैयद अरशद मदनी ने कहा कि इस फैसले को हार-जीत की दृष्टी से न देखें. उन्होंने देश के मुसलमानों और देशवासियों से अपील की कि वे देश में अमन एवं भाईचारे के वातावरण को बनाए रखें. उन्होंने कहा कि ये फैसला हमारी उम्मीद के मुताबिक नहीं है लेकिन सुप्रीम कोर्ट सर्वोच्च संस्था है.
हम जो कर सकते थे वो किया- मदनी
अरशद मदनी ने कहा कि देश के संविधान ने हमें जो शक्तियां दी हैं उसपर निर्भर करते हुए जमीयत उलेमा-ए-हिन्द ने आखिरी हद तक न्याय के लिए लड़ाई लड़ी. देश के सुप्रसिद्ध अधिवक्ताओ की सेवाएं प्राप्त की. अपने पक्ष में तमाम सबूत इकठ्ठा किये गए और कोर्ट के सामने रखे गए. यानी अपने दावे को मजबूती देने के लिए हम जो कर सकते थे वो किया. हम इसी बुनियाद पर आशावास थे कि निर्णय हमारे पक्ष में आएगा.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अहम बातें
आज सुप्रीम कोर्ट ने सर्वसम्मति से किए गए फैसले में 2.77 एकड़ की पूरी विवादित भूमि को रामलला को सौंपने का फैसला किया. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद बनाने के लिए पांच एकड़ जमीन आवंटित किया जाए. जिस पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने ये फैसला सुनाया. इसमें चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के अलावा न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं. पूरा फैसला 1045 पन्नों का है, इसमें 929 पन्नें एक मत से हैं जबकि 116 पन्नें अलग से हैं. एक जज ने फैसले से अलग राय जताई है. अभी जज के नाम का कोई जिक्र नहीं है. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर 40 दिन सुनवाई चली. 6 अगस्त 2019 से इसपर सुनवाई शुरू हुई. 16 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई पूरी कर ली.
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