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Farmers Protest Live Updates: अगले आदेश तक तीनों कृषि कानूनों के अमल पर SC की रोक, चार सदस्य कमेटी का गठन
Farmers Protest Live Updates: अगले आदेश तक तीनों कृषि कानूनों के अमल पर SC की रोक, चार सदस्य कमेटी का गठन
Farmers Protest Live Updates: केंद्र के कृषि कानूनों के विरोध में किसानों के आंदोलन का आज 48वां दिन है. आंदोलन और कृषि कानूनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में आज एक बार फिर सुनवाई हो रही है. कल आंदोलन और कानूनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में करीब डेढ़ घंटे सुनवाई हुई थी. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कई तीखें सवाल पूछे. आज सुप्रीम कोर्ट इसको लेकर अपना आदेश सुना सकता है. संभव है कि कोर्ट इस गतिरोध को दूर करने के इरादे से देश के किसी पूर्व चीफ जस्टिस की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति गठित कर सकता है. आंदोलन से जुड़ी पल-पल की अपडेट्स के लिए बने रहिए एबीपी न्यूज़ पर.
एबीपी न्यूज़
Last Updated:
12 Jan 2021 01:40 PM
सुप्रीम कोर्ट ने कमेटी के सदस्यों के तौर पर तेजिंदर सिंह मान और अशोक गुलाटी समेत चार नाम बोले हैं. फिलहाल आज की सुनवाई पूरी हो गई है. सुनवाई के बाद किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा है कि हम सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अब चर्चा करेंगे, उसके बाद ही कुछ फैसला लेगे. हालांकि उन्होंने कहा कि 26 जनवरी को ट्रेक्टर रैली निकाली जाएगी.
सुप्रीम कोर्ट से केंद्र सरकार को बड़ा झटका लगा है. सुप्रीम कोर्ट ने अगले आदेश तक नए कृषि कानूनों के अमल को स्थगित किया है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने चार सदस्य कमेटी का गठन कर दिया है.
30 लाख सदस्य होने का दावा करने वाले भारतीय किसान संघ ने कमिटी बनाने का समर्थन किया, लेकिन कानूनों के अमल पर रोक का विरोध किया.
फल उत्पादक किसानों की संस्था ने भी कानूनों पर रोक नहीं लगाने की मांग की. वहीं, एटॉर्नी जनरल ने भी कमिटी के गठन का स्वागत किया.
इस बीच गणतंत्र दिवस बाधित करने की आशंका वाली याचिका पर सोमवार को सुनवाई होगी. इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने किसान संगठनों को नोटिस जारी किया है.
पीएस नरसिम्हा ने कोर्ट को बताया कि प्रतिबंधित संगठन भी आंदोलन को शह दे रहे हैं. इसके बाद सीजेआई ने एटॉर्नी जनरल से पूथा कि क्या आप इसकी पुष्टि करते हैं? एटॉर्नी ने कहा कि मैं पता करके बताऊंगा. इसके बाद सीजेआई ने कहा कि आप कल तक इस पर हलफनामा दीजिए. इसका मतलब यह नहीं कि हम पूरे मामले पर आज आदेश नहीं देंगे. आदेश आज ही आएगा. आप इस पहलू पर कल तक जवाब दें.
आंदोलनकारियों का समर्थन कर रहे वकील विकास सिंह ने कहा कि लोगों को रामलीला मैदान में जगह मिलनी चाहिए. ऐसी जगह जहां प्रेस और मीडिया भी उन्हें देख सके. प्रशासन उसे दूर जगह देना चाहता है. इसपर चीफ जस्टिस ने कहा कि रैली के लिए प्रशासन को आवेदन दिया जाता है. पुलिस शर्तें रखती है. पालन न करने पर अनुमति रद्द करती है. क्या किसी ने आवेदन दिया? सिंह ने कहा कि मुझे पता करना होगा.
साल्वे ने यह भी कहा कि आंदोलन में वैंकूवर के संगठन सिख फ़ॉर जस्टिस के बैनर भी लहरा रहे हैं. यह अलगाववादी संगठन है. अलग खालिस्तान चाहता है. इसपर सीजेआई ने पूछा कि क्या इसे किसी ने रिकॉर्ड पर रखा है? तो सॉलिसीटर जरनल ने कहा कि एक याचिका में रखा गया है. कोर्ट की कार्रवाई से यह संकेत नहीं जाना चाहिए कि गलत लोगों को शह दी गई है. सीजेआई ने कहा कि हम सिर्फ सकारात्मकता को शह दे रहे हैं.
भारतीय किसान यूनियन (भानू) के वकील ने कहा है कि बुजुर्ग, बच्चे और महिलाएं आंदोलन में हिस्सा नहीं लेंगे. उनकी इस बात पर चीफ जस्टिस ने कहा है कि हम आपके बयान को रिकॉर्ड पर ले रहे हैं. किसान संगठनों के वकील दुष्यंत दवे, भूषण, गोंजाल्विस स्क्रीन पर नज़र नहीं आ रहे हैं. कल दवे ने कहा था कि सुनवाई टाली जाए. वह किसानों से बात करेंगे. आज कहां गए? इसपर साल्वे ने कहा कि दुर्भाग्य से लगता है कि लोग समाधान नहीं चाहते. आप कमिटी बना दीजिए. जो जाना चाहते हैं जाएंगे.
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने कहा है कि हम कानून का अमल स्थगित करेंगे, लेकिन अनिश्चित काल के लिए नहीं. हमारा मकसद सिर्फ सकारात्मक माहौल बनाना है. उस तरह की नकारात्मक बात नहीं होनी चाहिए जैसी एम एल शर्मा ने आज सुनवाई के शुरू में की. (शर्मा ने कहा था कि किसान कमिटी के पास नहीं जाएंगे. कानून रद्द हो)
वकील शर्मा ने कहा कि किसान यह भी कह रहे हैं कि सब आ रहे हैं, पीएम बैठक में क्यों नहीं आते. इसपर सीजेआई ने कहा कि हम पीएम मोदी से नहीं कहेंगे कि वह बैठक में आएं. इसके बाद सॉलिसीटर जनरल ने कहा कि कृषि मंत्री बात कर रहे हैं. यह उनका विभाग है.
सीजेआई ने कहा कि अभी यह सुनने में आ रहा है कि गणतंत्र दिवस कार्यक्रम को बाधित करने की तैयारी है. सवाल यह है कि लोग हल चाहते हैं या समस्या को बनाए रखना चाहते हैं. अगर हल चाहते हैं तो यह नहीं कह सकते कि कमिटी के पास नहीं जाएंगे.
वकील शर्मा ने कहा कि कोर्ट ही हम सबकी आखिरी उम्मीद है. इसपर सीजेआई ने कहा कि जो वकील हैं, उन्हें न्यायिक प्रक्रिया का सम्मान करना चाहिए. ऐसा नहीं हो सकता कि जब आदेश सही न लगे तो अस्वीकार करने लगें. इसके बाद वकील ने कहा कि किसान कल मरने की बजाय आज मरने को तैयार है. इसको लेकर सीजेआई ने कहा कि हम इसे जीवन-मौत के मामले की तरह नहीं देख रहे. हमारे सामने कानून की वैधता का सवाल है. क़ानूनों के अमल को स्थगित रखना हमारे हाथ में है. लोग बाकी मसले कमिटी के सामने उठा सकते हैं.
कोर्ट में याचिकाकर्ता एम एल शर्मा बोल रहे हैं- मेरी कुछ किसानों से बात हुई है. वह किसी कमिटी के सामने नहीं जाना चाहते हैं. सिर्फ तीन कानूनों को रद्द करवाना चाहते हैं. किसान शांति से विरोध कर रहे हैं. उन्हें बदनाम किया जा रहा है. किसानों को कॉरपोरेट के हाथों में छोड़ देने की तैयारी है. ज़मीन छीन ली जाएगी. इसपर सीजेआई ने कहा कि हम अंतरिम आदेश में कहेंगे कि ज़मीन को लेकर कोई कांट्रेक्ट नहीं होगा.
सुप्रीम कोर्ट कुछ ही देर में किसान आंदोलन और कृषि कानूनों को लेकर फैसला सुनाएगा. इससे पहले राड़ी के निरंकारी समागम ग्राउंड में प्रदर्शन कर रहे फरीदकोट के ज़िला प्रधान बिंदर सिंह गोले वाला ने बताया, "उम्मीद है कि कोर्ट किसानों के पक्ष में और कानूनों को रद्द करने के लिए कोई फैसला लेगी. हमें बुराड़ी ग्राउंड में करीब 47 दिन हो गए.''
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट करके कहा है कि सरकार की सत्याग्रही किसानों को इधर-उधर की बातों में उलझाने की हर कोशिश बेकार है. अन्नदाता सरकार के इरादों को समझता है; उनकी मांग साफ़ है. कृषि-विरोधी क़ानून वापस लो, बस.''
सिंघु बॉर्डर पर मौजूद एक प्रदर्शनकारी किसान ने कहा है कि अगर सरकार नहीं मानी तो लोहड़ी तो क्या हम होली भी यहीं मनाएंगे. हम सरकार से कहना चाहते हैं कि किसानों की तरफ ध्यान दे. यहां 51-52 लोग मर गए सरकार को उनकी फिक्र नहीं है."
कृषि कानूनों के खिलाफ बुराड़ी के निरंकारी समागम ग्राउंड में किसानों का प्रदर्शन जारी है. फरीदकोट के ज़िला प्रधान बिंदर सिंह गोले वाला ने बताया, "उम्मीद है कि कोर्ट किसानों के पक्ष में और कानूनों को रद्द करने के लिए कोई फैसला लेगी. हमें बुराड़ी ग्राउंड में करीब 47 दिन हो गए."
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले एक प्रदर्शनकारी किसान ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट से तो उम्मीद है मगर सरकार से उम्मीद नहीं है, क्योंकि अगर सरकार चाहती तो यह फैसला अब तक हो गया होता."
आज आंदोलन और कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले भारतीय किसान यूनियन के राजवीर सिंह जादौन ने कहा है, "हम कोर्ट से अपेक्षा करेंगे कि कानूनों को खत्म करने का आदेश दे और MSP पर कानून बने."
बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी ने सुप्रीम कोर्ट में नए कृषि क़ानूनों की वैधता पर हुई सुनवाई पर कहा है कि केंद्र सरकार ने पहले ही कह दिया है सुप्रीम कोर्ट का फैसला हमें मंजूर होगा. फैसले का इंतजार करना चाहिए.
इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी संकेत दिया था कि वह किसी पूर्व चीफ जस्टिस की अध्यक्षता में एक समिति गठित कर सकता है, जिसमें देश की सभी किसान यूनियनों के प्र्रतिनिधियों को भी शामिल किया जा सकता है. कोर्ट ने इस गतिरोध का सर्वमान्य समाधान खोजने के लिये केन्द्र सरकार को और समय देने से इंकार करते हुये कहा था कि पहले ही उसे काफी वक्त दिया जा चुका है.
बेंच ने कल तीनों कृषि कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के साथ ही किसानों के आन्दोलन के दौरान नागरिकों के निर्बाध रूप से आवागमन के अधिकार के मुद्दे उठाने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की थी. कोर्ट ने किसानों के साथ बातचीत का अभी तक कोई हल नहीं निकलने पर केन्द्र को आड़े हाथ लिया था और सारी स्थिति पर घोर निराशा व्यक्त की थी.
चीफ जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस ए एस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमणियन की बेंच ने कल इस मामले की सुनवाई के दौरान संकेत दिया था कि वह कृषि कानूनों और किसानों के आन्दोलन से संबंधित मुद्दों पर अलग अलग हिस्सों में आदेश पारित कर सकती है. इस संबंध में बाद में कोर्ट की वेबसाइट पर यह सूचना अपलोड की गयी है.
केंद्र के कृषि कानूनों के विरोध में किसानों के आंदोलन का आज 49वां दिन है. कल आंदोलन और कानूनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में करीब डेढ़ घंटे सुनवाई हुई. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कई तीखें सवाल पूछे. आज सुप्रीम कोर्ट इसको लेकर अपना आदेश सुना सकता है. संभव है कि कोर्ट इस गतिरोध को दूर करने के इरादे से देश के किसी पूर्व चीफ जस्टिस की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति गठित कर सकता है.
किसान आंदोलन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में आज की सुनवाई पूरी हो गई है. बड़ी बात ये है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का एक हिस्सा आज आने की उम्मीद है.वहीं, सुप्रीम कोर्ट में कमिटी के गठन समेत बाकी मुद्दों पर कल सुनवाई हो सकती है.
कृषि क़ानून के विरोध में INLD नेता अभय सिंह चौटाला ने हरियाणा विधानसभा से त्यागपत्र देने की पेशकश कर दी है. विधायक पद से त्यागपत्र की चिठी स्पीकर को भेजी गई है. अभय चौटाला ने कहा अगर केंद्र सरकार अगर कृषि क़ानून वापस नहीं लेती तो विधानसभा से मेरा इस्तीफ़ा समझा जाए. अभय ने कहा अगर 26 जनवरी तक क़ानून वापस नहीं होते तो इस पर को मेरा त्यागपत्र समझा जाए.
सुप्रीम में सुनवाई के बाद संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा है कि किसानों के मुद्दों सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही कल भी जारी रहेगी, इसलिए किसान नेताओं की आज की प्रेस कॉन्फ्रेंस रद्द की जा रही है. आपको हुई असुविधा के लिए हमें खेद है.
चीफ जस्टिस ने कहा कि मैं रिस्क ले रहा हूं. आप बुजुर्गों को बताइए कि चीफ जस्टिस चाहते हैं कि बुजुर्ग वापस चले जाएं. इसपर एटॉर्नी जनरल ने कहा कि कमिटी के सामने भी लोग अड़ियल रुख अपनाएंगे. कहेंगे कि कानून वापस लो.इसके बाद सीजेआई ने कहा कि हमें उनकी समझदारी पर भरोसा है. हम विरोध के लिए वैकल्पिक जगह नहीं दे रहे. क्या हम किसी पूर्व CJI को कमिटी के प्रमुख बनाएं. जस्टिस लोढ़ा का नाम कैसा रहेगा? दुष्यंत दवे ने सही कहा. सीजेआई ने कहा कि क्या आप उनसे उनकी सहमति पूछेंगे? सॉलिसीटर ने कहा कि हम भी सुझाव देंगे. कल तक समय दीजिए. CJI ने कहा हम आज की सुनवाई बंद कर रहे हैं. एटॉर्नी जनरल ने कहा कि जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए. इसपर CJI ने जवाब दिया- हमें जल्दबाजी पर लेक्चर मत दीजिए. हमने बहुत समय दिया है.
CJI ने कहा कि हम रोक लगाने जा रहे हैं. बाद में आंदोलनकारियों से पूछेंगे कि आप सड़क से हटेंगे या नहीं. प्रशांत भूषण ने कहा कि मैं 8 संगठनों के लिए आया हूँ. हमारी तरफ से दवे ने भी जिरह की है. चीफ जस्टिस ने कहा कि अगर हम कानून का अमल रोक देते हैं तो फिलहाल आंदोलन करने जैसा कुछ नहीं होगा. आप लोगों को समझा कर वापस भेजिए. सबका दिल्ली में स्वागत है, लेकिन लाखों लोग आए तो कानून व्यवस्था की स्थिति भी बिगड़ेगी. कोरोना का खतरा है. महिलाओं, वृद्धों और बच्चों को आंदोलन से अलग करना चाहिए. उन्हें वापस भेजना चाहिए.
CJI ने कहा कि कानून की वैधता पर कोई भी फैसला सबको सुनकर ही होगा. नरसिम्हा के बाद एक और वकील एमपी देवनाथ ने कहा कि कानून पर रोक नहीं लगनी चाहिए. दोनों अलग-अलग किसान संगठन के लिए पेश हुए हैं. महाराष्ट्र के एक किसान संगठन के वकील आशीष सोनावने ने कानून लागू रखने की दरख्वास्त की.
किसान संगठन के वकील ने कोर्ट को बताया कि हम हर बैठक में जा रहे हैं. साल्वे ने कहा कि इनसे कहना चाहिए कि बातचीत में कुर्सी पीछे कर अड़ियल रुख न दिखाएं. साल्वे ने कहा कि सबको कहें कि सकारात्मक बातचीत करें. इसपर CJI ने कहा कि हम ऐसा आदेश कैसे दे सकते हैं? साल्वे ने कहा कि यह साफ करें कि कोर्ट आंदोलनकारियों की बात को सही नहीं ठहरा रहा है. इससे बहुत गलत संदेश जाएगा.
साल्वे ने कहा कि अगर कानून पर रोक लगनी से शांति होती है तो ठीक है, लेकिन आंदोलन के दौरान वैंकुवर के संगठन सिख फ़ॉर जस्टिस के बैनर दिख रहे हैं. ऐसे लोगों को आंदोलन से बाहर कौन करेगा? आंदोलन को नियंत्रित रखना भी ज़रूरी है.
सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ता के वकील पी एस नरसिम्हा ने कहा कि कुछ ही लोग विरोध कर रहे हैं. इसपर चीफ जस्टिस ने कहा कि हो सकता है आपके क्लायंट और कई लोगों को कानून सही लगता हो, लेकिन इससे मौजूदा समस्या का हल नहीं होगा. बेहतर है कानून पर रोक लगे और सब कमिटी के पास जाएं. नरसिम्हा ने कहा कि सरकार को थोड़ा समय दें. सीजेआई ने पूछा- अगर हिंसा हुई तो किसकी ज़िम्मेदारी होगी?
दवे ने कहा कि पंजाब के किसान संगठन कभी भी गणतंत्र दिवस परेड को बाधित नहीं करना चाहेंगे. हर परिवार से लोग सेना में हैं. हमें रामलीला मैदान जाने देना चाहिए. इस मांग पर एटॉर्नी जनरल ने कहा कि कोर्ट साफ करे कि किन प्रावधानों पर रोक लगेगी. इसके बाद चीफ जस्टिस ने टिप्पणी करते हुए कहा कि हम आलोचना को दोहराना नहीं चाहते, लेकिन आप स्थिति को संभालने में असफल रहे हैं.
CJI ने कहा कि आंदोलन वैसे ही चले जैसे गांधी जी सत्याग्रह करते थे. इसपर किसानों के वकील दवे ने कहा कि लोग अनुशासित हैं. उनकी आजीविका का गंभीर सवाल है, इसलिए सड़क पर आए हैं. सीजेआई ने कहा कि हम कानून पर नहीं उसके अमल पर रोक लगा रहे हैं. हमने एटॉर्नी जनरल की दलीलों पर विचार किया है. किसी कानून के आधार पर कदम उठाए जाने पर रोक तो लग ही सकती है.
CJI ने कहा कि हम आपको कानून तोड़ने वालों पर कार्रवाई से नहीं रोक रहे. एटॉर्नी जनरल ने कहा कि 26 जनवरी को राजपथ पर 2000 ट्रैक्टर दौड़ाने की बात कहीं जा रही है. इसपर किसान संगठनों के वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि हम ऐसा नहीं करेंगे. इसको लेकर CJI ने कहा कि हम इससे खुश हैं. इसके बाद एटॉर्नी जनरल ने कहा कि इनसे हलफनामा लीजिए.
एटॉर्नी ने कहा तमाम मामलों में कोर्ट ने संसद के कानूनों पर रोक नहीं लगाई है. इस बार भी ऐसा नहीं करना चाहिए. CJI ने कहा कि हमें उन मामलों की जानकारी है. आप अपनी दलीलें दीजिए. इसके बाद एटॉर्नी जनरल ने कहा कि किसी कानून पर तब तक रोक नहीं लगनी चाहिए, जब वह पहली नज़र में असंवैधानिक या मौलिक अधिकारों का हनन करने वाला न लगे. ऐसा कुछ इस मामले में नहीं है. सिर्फ 2-3 राज्यों के कुछ लोग इसका विरोध कर रहे हैं. आप विचार कीजिए कि बाकी राज्यों के लोग उनके साथ क्यों नहीं आए? अब तक सब कुछ शान्तिपूर्ण रहा है. लेकिन कल एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई है.
एमपी के कुछ किसान संगठनों के लिए वरिष्ठ वकील विवेक तनखा दलील रखने की कोशिश की. इसपर CJI ने कहा कि हम आपकी याचिका पर भी आगे सुनवाई करेंगे. आप किसी राजनीतिक दल के लिए आए हैं या किसान के लिए. आज एक पार्टी ने बताने की कोशिश की है कि हमें क्या करना चाहिए. आप सब सार्वजनिक जीवन में हैं. ऐसा करना सही नहीं.
कानून के खिलाफ याचिका करने वाले एम एल शर्मा ने 1955 के संविधान संशोधन का मसला उठाया. इसपर चीफ जस्टिस ने कहा कि हम फिलहाल इतने पुराने संशोधन पर रोक नहीं लगाने जा रहे हैं. जज कुछ देर चर्चा कर रहे थे. इसलिए सुनवाई रुकी हुई थी.
चीफ जस्टिस ने कहा कि हमें आशंका है कि किसी दिन वहां हिंसा भड़क सकती है. इसके बाद साल्वे ने कहा कि कम से कम आश्वासन मिलना चाहिए कि आंदोलन स्थगित होगा. सब कमिटी के सामने जाएंगे. इसपर CJI ने कहा कि यही हम चाहते हैं, लेकिन सब कुछ एक ही आदेश से नहीं हो सकता. हम ऐसा नहीं कहेंगे कि कोई आंदोलन न करे. यह कह सकते हैं कि उस जगह पर न करें.
याचिकाकर्ता के वकील हरीश साल्वे ने कहा कि सिर्फ कानून के विवादित हिस्सों पर रोक लगाइए. लेकिन चीफ जस्टिस ने कहा कि
नहीं हम पूरे कानून पर रोक लगाएंगे. कानून पर रोक लगने के बाद भी संगठन चाहें तो आंदोलन जारी रख सकते हैं, लेकिन हम जानना चाहते हैं कि क्या इसके बाद नागरिकों के लिए रास्ता छोड़ेंगे.
चीफ जस्टिस ने कहा कि आप हल नहीं निकाल पा रहे हैं. लोग मर रहे हैं. आत्महत्या कर रहे हैं. हम नहीं जानते क्यों महिलाओं और वृद्धों को भी बैठा रखा है. खैर, हम कमिटी बनाने जा रहे हैं. किसी को इस पर कहना है तो कहे.
सॉलिसीटर जनरल ने कहा है कि बहुत बड़ी संख्या में किसान संगठन कानून को फायदेमंद मानते हैं. इसपर चीफ जस्टिस ने कहा कि हमारे सामने अब तक कोई नहीं आया है जो ऐसा कहे. इसलिए, हम इस पर नहीं जाना चाहते हैं. अगर एक बड़ी संख्या में लोगों को लगता है कि कानून फायदेमंद है तो कमिटी को बताएं. आप बताइए कि कानून पर रोक लगाएंगे या नहीं. नहीं तो हम लगा देंगे.
एटॉर्नी जनरल ने कहा कि कानून से पहले एक्सपर्ट कमिटी बनी. कई लोगों से चर्चा की. पहले की सरकारें भी इस दिशा में कोशिश कर रही हैं. इसके बाद सीजेआई ने कहा कि यह दलील काम नहीं आएगी कि पहले की सरकार ने इसे शुरू किया था. आपने कोर्ट को बहुत अजीब स्थिति में डाल दिया है. लोग कह रहे हैं कि कोर्ट को क्या सुनना चाहिए, क्या नहीं, लेकिन हम अपना इरादा साफ कर देना चाहते हैं. एक साझा हल निकले. अगर आपमें समझ है तो फिलहाल कानून के अमल पर ज़ोर मत दीजिए. इसके बाद बात शुरू कीजिए. हमने भी रिसर्च किया है. हम एक कमिटी बनाना चाहते हैं.
किसान आंदोलन और कृषि कानूनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हो गई है. एटॉर्नी जनरल ने कोर्ट को बताया है कि सभी पक्षों में बातचीत जारी रखने पर सहमति है. इसपर चीफ जस्टिस ने कहा कि हम बहुत निराश हैं. पता नहीं सरकार कैसे मसले को डील कर रही गया? किससे चर्चा किया कानून बनाने से पहले? कई बार से कह रहे हैं कि बात हो रही है। क्या बात हो रही है?
पूर्व केंद्रीय मंत्री और शिरोमणि अकाली दल (SAD) की नेता हरसिमरत कौर बादल ने कहा है, ''डेढ़ महीने से किसानों को ठंड में बैठाकर आज सरकार किसी नतीजे पर नहीं पहुंची है, इससे स्पष्ट होता है कि 3 कानूनों को वापस लेने का सरकार का इरादा नहीं है, किसानों की जो जान जा रही है उसकी भी उन्हें परवाह नहीं है.''
किसानों के विरोध के चलते हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर अपने ही विधानसभा क्षेत्र करनाल में सभा नहीं कर पाए. सीएम खट्टर को कैमला गांव में किसान महापंचायत में शामिल होना था.
कल करनाल में सीएम खट्टर की रैली में जो हंगामा हुआ था उसकी जिम्मेदारी किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने ली है. भारतीय किसान यूनियन हरियाणा के नेता गुरनाम सिंह देर रात वीडियो बयान जारी कर कहा कि कैमला गांव की घटना उन्होंने करवाई है. यही ने गुरनाम सिंह ने चेतावनी देते हुए कहा कि मुख्यमंत्री किसान आंदोलन को कमजोर करने लिए जहां भी इस प्रकार की रैली करेंगे, हम वहां भी विरोध करेंगे.
आंदोलन को लेकर किसान मज़दूर संघर्ष समिति के प्रेस सचिव ने बताया है, "अब सरकार ने दूसरी रणनीति शुरू कर दी है. वे फर्जी किसान संगठन लेकर आ रहे हैं. हमको चुनौती देने के लिए छोटे मोटे संगठन खड़े कर रहे हैं."
सुप्रीम कोर्ट में नए कृषि कानूनों को चुनौती देने वाली कुछ याचिकाओं और किसानों के जारी आंदोलन से जुड़े मुद्दों वाली याचिकाओं पर सुनवाई से पहले किसान संगठन ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा ‘‘कॉरपोरेट घरानों के दबाव’’ में लागू किए गए कानूनों को लेकर बने ‘‘राजनीतिक गतिरोध को सुलझाने में’’ कोर्ट की ‘‘भूमिका नहीं है और नहीं होनी चाहिए’’. संगठन ने कहा कि इसमें ‘‘सुप्रीम कोर्ट की कोई भूमिका नहीं है’’ और यह मामला ‘‘राजनीतिक नेतृत्व पर छोड़ देना चाहिए’’.
ऑल इंडिया किसान संघर्ष कॉर्डिनेशन कमेटी (एआईकेएससीसी) ने कहा कि सरकार को नए कृषि कानूनों पर बने ‘‘राजनीतिक गतिरोध’’ का समाधान सुप्रीम कोर्ट के दखल के बगैर निकालना चाहिए. उसने चेतावनी दी कि प्रदर्शनकारी किसानों की कानूनों को रद्द करने की मांग नहीं मानी जाएगी तो वे ‘‘दिल्ली की सभी सीमाओं को जल्द ही बंद कर देंगे.’’
भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा है कि 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस की परेड में एक तरफ टैंक चलेंगे तो दूसरी तरफ हमारे तिरंगा लगे हुए ट्रैक्टर. टिकैत ने कहा, '26 जनवरी को दिल्ली में गणतंत्र दिवस की परेड में एक तरफ टैंक चलेंगे और दूसरी तरफ हमारे तिरंगा लगे हुए ट्रैक्टर. वो हम पर लाठी चलाएंगे और हम राष्ट्रगान गाएंगे.' बागपत के बड़ौत में किसानों के धरने में पहुंचे राकेश टिकैत ने दावा किया कि जब तक तीन कृषि क़ानूनों की वापसी नहीं होती तब तक किसानों की घर वापसी नहीं होगी.
आज आंदोलन और कृषि कानूनों से जुड़े सभी मामलों की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी. किसानों की पैरवी वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण और दुष्यंत दवे करेंगे. केंद्र और किसान संगठनों के बीच अब तक हुई आठ राउंड की बैठक बेनतीजा रही है. सुप्रीम कोर्ट में मामले की आखिरी सुनवाई 17 दिसंबर को हुई थी.
भारतीय किसान यूनियन दोआब के अध्यक्ष मंजीत सिंह राय ने कहा है, ''हमने बैठक में 8 तारीख को सरकार के साथ होने वाली बैठक पर चर्चा की. हमारी मांग वही रहेगी कि सभी कृषि क़ानूनों को वापस लिया जाए. 26 जनवरी को ट्रैक्टर मार्च में ज्यादा से ज्यादा ट्रैक्टर लाए जाएं, इसपर चर्चा हुई.''
किसान आंदोलन को लेकर केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने कहा है, ''इस मुद्दे पर किसानों को भड़काया जा रहा है बहुत सारे किसान इन कृषि क़ानूनों के पक्ष में हैं. हमारा किसान नेताओं से कहना है कि 15 तारीख को कृषि मंत्री के साथ जो मुलाकात होने वाली है उसमें किसी कॉम्प्रोमाइजेशन फॉर्मूले पर विचार करने की आवश्यकता है.''
गाजीपुर बॉर्डर (दिल्ली-उत्तर प्रदेश सीमा) पर कुछ लोग प्रदर्शन कर रहे किसानों के जूते फ्री में पॉलिश कर रहे हैं. उनमें से एक व्यक्ति ने बताया, "हम सभी यहां सेवा दे रहे हैं. हमारे किसान भाई इतनी दूर से आए हैं. ये किसान भाइयों का साथ देने का हमारा तरीका है.''
गाजीपुर बॉर्डर (दिल्ली-उत्तर प्रदेश सीमा) पर कुछ लोग प्रदर्शन कर रहे किसानों के जूते फ्री में पॉलिश कर रहे हैं. उनमें से एक व्यक्ति ने बताया, "हम सभी यहां सेवा दे रहे हैं. हमारे किसान भाई इतनी दूर से आए हैं. ये किसान भाइयों का साथ देने का हमारा तरीका है.''
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Farmers Protest Live Updates:केंद्र के कृषि कानूनों के विरोध में किसानों के आंदोलन का आज 48वां दिन है. आंदोलन और कृषि कानूनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में आज एक बार फिर सुनवाई हो रही है. कल आंदोलन और कानूनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में करीब डेढ़ घंटे सुनवाई हुई थी. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कई तीखें सवाल पूछे. आज सुप्रीम कोर्ट इसको लेकर अपना आदेश सुना सकता है. संभव है कि कोर्ट इस गतिरोध को दूर करने के इरादे से देश के किसी पूर्व चीफ जस्टिस की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति गठित कर सकता है.
दे. चीफ जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस ए एस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमणियन की बेंच ने कल इस मामले की सुनवाई के दौरान संकेत दिया था कि वह कृषि कानूनों और किसानों के आन्दोलन से संबंधित मुद्दों पर अलग अलग हिस्सों में आदेश पारित कर सकती है. इस संबंध में बाद में कोर्ट की वेबसाइट पर यह सूचना अपलोड की गयी है.
इस सूचना में कहा गया है, ‘‘इन मामलों को 12 जनवरी को आदेश के लिये सूचीबद्ध किया जाये.’’ बेंच ने कल तीनों कृषि कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के साथ ही किसानों के आन्दोलन के दौरान नागरिकों के निर्बाध रूप से आवागमन के अधिकार के मुद्दे उठाने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की थी. कोर्ट ने किसानों के साथ बातचीत का अभी तक कोई हल नहीं निकलने पर केन्द्र को आड़े हाथ लिया था और सारी स्थिति पर घोर निराशा व्यक्त की थी.
इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी संकेत दिया था कि वह किसी पूर्व चीफ जस्टिस की अध्यक्षता में एक समिति गठित कर सकता है, जिसमें देश की सभी किसान यूनियनों के प्र्रतिनिधियों को भी शामिल किया जा सकता है. कोर्ट ने इस गतिरोध का सर्वमान्य समाधान खोजने के लिये केन्द्र सरकार को और समय देने से इंकार करते हुये कहा था कि पहले ही उसे काफी वक्त दिया जा चुका है. किसान आंदोलन से जुड़ी पल-पल की अपडेट्स के लिए बने रहिए एबीपी न्यूज़ पर.