नई दिल्ली: देश के सबसे पुराने अयोध्या भूमि विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आज विवादित जमीन पर राम जन्मभूमि पर मंदिर बनाने रास्ता साफ कर दिया. फैसले मुताबिक पूरी विवादित ज़मीन रामलला को दी गई है. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने फैसले पर नाखुशी जतायी है. पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी ने कहा कि फैसला संतोषजनक नहीं है, सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कई बातें विरोधाभासी हैं.


जफरयाब जिलानी ने कहा, ''शांति बनाकर रखें, फैसले का सम्मान करते हैं लेकिन हमारे उम्मीद के मुताबिक संतोषजनक फैसला नहीं आया. हमारी जमीन रामलला को दे दी गयी, हमसे इससे सहमत नहीं हैं. हम अपने साथी वकील राजीव धवन के साथ चर्चा करके तय करेंगे कि रिव्यू पिटीशन दायर करनी है या नहीं.''





जफरयाब जिलानी ने कहा, ''पूरा फैसला पढ़ने बाद स्थिति स्पष्ट होगी लेकिन हम अभी इतना कहना चाहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला संतोषजनक नहीं है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कई बातें विरोधाभासी हैं. कुछ टिप्पणियां अच्छी हैं जो हिंदू मुस्लिम एकता के को मजबूत कर सकती हैं.''


क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला?
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि विवादित जमीन रामलला की है. कोर्ट ने इस मामले में निर्मोही अखाड़े का दावा खारिज कर दिया. कोर्ट ने कहा कि तीन पक्ष में जमीन बांटने का हाई कोर्ट फैसला तार्किक नहीं था. कोर्ट ने कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ की वैकल्पिक जमीन दी जाए. इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को भी वैकल्पिक ज़मीन देना ज़रूरी है.


कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार तीन महीने में ट्र्स्ट बना कर फैसला करे. ट्रस्ट के मैनेजमेंट के नियम बनाए, मन्दिर निर्माण के नियम बनाए. विवादित जमीन के अंदर और बाहर का हिस्सा ट्रस्ट को दिया जाए.'' कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम पक्ष को 5 एकड़ की वैकल्पिक ज़मीन मिले. या तो केंद्र 1993 में अधिगृहित जमीन से दे या राज्य सरकार अयोध्या में ही कहीं दे.


अयोध्या विवाद पर फैसला सुनाने वाली पीठ में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के अलावा जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस धनंजय वाई चन्द्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर शामिल हैं. सुप्रीम कोर्ट में 16 अक्टूबर 2019 को अयोध्या मामले पर सुनवाई पूरी हुई थी. 6 अगस्त से लगातार 40 दिनों तक इसपर सुनवाई हुई थी.