Consumer Protection Act 2019: मॉल या स्टोर शॉपिंग करते वक्त कई लोग (Consumer Rights) जाने-अनजाने अपने अधिकार को नजरअंदाज कर देते हैं और बेझिझक थैले (Plastic Carry Bag) के लिए पैसे दे देते हैं. मगर कई मामलों में स्टोर्स का इस तरह पैसा मांगना कानून का उल्लंघन है. अगर आप भी इस मनमानी का साथ देते हैं तो ऐसा कर आप भी क्राइम कर रहे हैं.
पहले मुफ्त मिलते थे शॉपिंग बैग्स
जब भारत में मॉल और स्टोर का चलन शुरू हुआ हम सुपरमार्केट में सामान खरीदने जाते थे तो हमें मुफ्त में थैला मिलता था, लेकिन साल 2011 में भारत सरकार (Ministry of Environment and Forests) ने प्लास्टिक अपशिष्ट को लेकर (Plastic Waste Management and Handling Rules) निर्देश जारी किया कि कोई भी खुदरा व्यापारी ग्राहकों को मुफ्त में प्लास्टिक का थैला नहीं देगा. हालांकि इस निर्देश का उद्देश्य प्लास्टिक थैले पर निर्भरता को कम करना था, लेकिन इसकी आड़ में कंपनियों ने मनमाने ढंग से वसूली शुरू कर दी.
शॉपिंग बैग्स के लिए पैसे लेना गलत
मॉल से महंगे कपड़े और चीजें खरीददते वक्त हमें इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि थैले के नाम पर स्टोर हमसे 5-10 रुपये अलग से मांग रहा है. असलियत में यह गैरकानूनी है. चंडीगढ़ कंस्यूमर कमिशन (Chandigarh Consumer Commission) ने अप्रैल 2019 पर फुटवेयर ब्रैंड बाटा पर 9 हजार रुपये का जुर्माना लगाया था. कंपनी ने ग्राहक से शॉपिंग बैग के लिए 3 रुपये लिए थे. आयोग ने स्पष्ट किया कि जिस थैले के लिए कंपनी ने ग्राहक से पैसे लिए उस पर ब्रांड का लोगो बना था. इस लिहाज से कंपनी से ग्राहक के माध्यम से ना केवल अपना प्रचार कराया बल्कि उस प्रचार के बदले ग्राहक पर वित्तीय बोझ भी डाला.
क्या कहता है काननू?
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के अनुसार अगर कंपनी या दुकानदार ब्रांड का लोगो, टैगलाइन या प्रचार-प्रसार संबंधी जानकारी छपे थैले के लिए ग्राहकों से पैसे की मांग करती है तो वह दंडनीय अपराध है. हालांकि, अगर थैले पर किसी भी तरह की ब्रांडिंग या टैगलाइन नहीं है और ग्राहक ऐसे थैले की मांग करता है तो कंपनियां इसके लिए राशि की मांग कर सकती हैं. अगर आपके साथ ऐसा होता है तो उपभोक्ता संरक्षण फोरम (Consumer Forum) की वेबसाइट पर जाकर जरूर शिकायत करें.
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