भारत आज बेशक नित नई ऊंचाइयों को छू रहा है और विकास की नई इबारत भी लिख रहा है लेकिन देश में आज भी कई लोग रूढ़िवादिता की जंजीरों में जकड़े हुए हैं. इनकी संकीर्ण मानसिकता अंतरजातीय विवाह को इजाजत नहीं देती है. इसी दकियानूसी सोच के कारण कई युवक-युवतियों को अंतरजातीय विवाह करने पर इनके अपने ही मौत की नींद सुलाने से भी गुरेज नहीं करते हैं. 21 वीं सदीं में देश की ये स्थिति काफी चिंतित करने वाली है. लेकिन इन सब के इतर बीच अच्छी बात ये भी है कि तमाम दबावों , रुकावटों के बावजूद समाज निरंतर बदलाव की ओर बढ़ रहा है और इसी का असर है कि अंतरजातीय विवाह का ट्रेंड भी जोर पकड़ रहा है.


डॉ भीमराव अंबेडकर ने भी अंतरजातीय विवाह पर अपने विचार रखे थे


गौरतलब है कि अंतरजातीय विवाह को बढ़ावा देने के लिए संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर ने भी अपने विचार रखे थे. उन्होंने कहा था कि अंतर जातीय विवाह के बाद लड़के-लड़कियों को घर का सपोर्ट नहीं मिलता है तो ऐसे में सरकार को इन जोड़ों की मदद करनी चाहिए. राज्य और केंद्र सरकार को इन जोड़ों की आर्थिक तौर पर मदद करनी चाहिए ताकि परिवार से मिले असहयोग की भरपाई हो सके.


अंतरजातीय विवाह करने पर केंद्र सरकार देती है 2.5 लाख रुपये


बता दें कि अंतरजातीय विवाह को बढ़ावा देने के लिए केंद्र और राज्य सरकार भी प्रयासरत हैं. ऐसा विवाह करने वालों को केंद्र सरकार द्वारा सहायता राशि भी दी जाती है. इसके लिए सरकार एक स्कीम चला रही है जिसके तहत अगर कोई दलित से अंतरजातीय विवाह करता है तो उस नवविवाहित युगल को मोदी सरकार द्वारा 2 लाख 50 हजार रुपये की सहायता राशि दी जाती है. बता दें ये आर्थिक सहायता डॉ. अंबेडकर स्कीम फॉर सोशल इंटीग्रेशन थ्रू इंटरकास्ट मैरिज के तहत दी जाती है. ये स्कीम साल 2013 में कांग्रेस सरकार द्वारा शुरू की गई थी. मौजूदा सरकार में भी ये योजना चलाई जा रही है.


इस स्कीम का उद्देश्य समाज से जाति व्यवस्था की बुराई को खत्म करना है. साथ ही इस कुरीति के खिलाफ साहसिक कदम उठाने वाले युवाओं को प्रोत्साहित करना भी है. हालांकि, दूसरी शादी करने पर इस योजना का लाभ नहीं मिल पाता है.


ऐसे उठा सकते हैं योजना का लाभ


1. नवदंपति को योजना का लाभ उठाने के लिए अपने क्षेत्र के सांसद या विधायक की सिफारिश के साथ आवेदन को भरने के बाद डॉ अंबेडकर फाउंडेशन को भेजें.
2. नवविवाहित युगल आवेदन को पूरा भरकर राज्य सरकार या जिला प्रशासन को सौंप सकते हैं. जिसके बाद राज्य सरकार या जिला प्रशासन आवेदन को डॉ. अंबेडकर फाउंडेशन को भेज देते हैं.


योजना का लाभ पाने के लिए इन बातो का रखें ध्यान


1. नवदंपति में से कोई एक दलित समुदाय से होना चाहिए. दूसरा दलित समुदाय से बाहर का होना चाहिए.
2. शादी को हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के तहत रजिस्टर होना चाहिए. इस संबंध में नवदंपति को एक हलफनामा दायर करना होता है.
3. इस योजना के तहत फायदा उन्हीं नवदंपति को मिलता है जिन्होंने पहली बार शादी की है. दूसरी शादी करने वालों को इसका फायदा नहीं मिलेगा.
4. आवेदन भरकर शादी के एक साल के अंदर डॉ. अंबेडकर फाउंडेशन को भेजना होता है.
5. अगर नवदंपति को राज्य या केंद्र सरकार द्वारा किसी तरह की आर्थिक सहायता पहले मिल चुकी है, तो उसको इस ढाई लाख रुपये की धनराशि में घटा दी जाएगी.


आवेदन के साथ इन डॉक्यूमेंट्स की पड़ती है जरूरत




  1. नवदंपति में से जो भी दलित समुदाय से होते हैं उन्हें आवेदन के साथ जाति प्रमाण पत्र लगाना अनिवार्य है

  2. हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के तहत शादी रजिस्टर करने के बाद जारी मैरिज सर्टिफिकेट भी अटैच करना होता है.

  3.  आवेदन के साथ कानूनी रूप से विवाहित होने का हलफनामा पेश करना जरूरी है

  4. ऐसा दस्तावेज भी लगाना होता है जिससे यह पता चल सके कि दोनों की यह पहली शादी है.

  5.  नवविवाहित पति-पत्नी को आय प्रमाण पत्र भी देना होता है.

  6.  नवदंपति का संयुक्त बैंक खाते की जानकारी आवेदन में देनी जरूरी है जिसमें सहायता राशि सरकार की ओर से दी जाती है.


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