जीआई टैग (GI Tag) मिलने से किसी भी ब्रांड को उसकी पहचान मिलती है. केंद्र सरकार ने ऐसे ब्रांड्स को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने की मंशा बनाई है. एग्रीकल्चर, नेचुरल, या मिठाई आदि से संबंधित प्रोडक्ट्स के लिए किसी भी क्षेत्र के किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह या संगठन को ये टैग मिल सकता है.
किसी प्रोडक्ट के लिए जीआई टैग प्राप्त लेने के लिए चेन्नई स्थित जीआई डेटाबेस में अप्लाई किया जाता है. डेटाबेस की ओर से वेरिफिकेशन प्रोसेस पूरा होने के बाद किसी भी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह को जीआई टैग मिल सकता है. ये टैग 10 सालों तक वैलिड रहेगा. इसके बाद रिन्यू करवाना होगा.
फेक प्रोडक्ट्स को रोकने में मिलता है फायदा
फेक प्रोडक्ट्स को रोकने और क्षेत्रीय प्रोडक्ट्स को उसकी पहचान दिलाने के लिए इस टैग का प्रयोग किया जाता है. वहीं, अंतरराष्ट्रीय मार्केट में जीआई टैग को ट्रेडमार्क के रूप में भी देखा जाता है. इस टैग से टूरिज़म और निर्यात को भी बढ़ावा देने में मदद मिलती है. चंदेरी की साड़ी, कांजीवरम की साड़ी, दार्जिलिंग चाय और मलिहाबादी आम समेत अब तक 300 से ज्यादा उत्पादों को जीआई मिल चुका है.
किन प्रोडक्ट्स को मिलता है जीआई टैग?
बता दें कि कृषि से जुड़े प्रोडक्ट्स जैसे मसाला, चायपत्ती, बासमती चावल को जीआई टैग मिलता है. इसके अलावा, खाद्य सामग्री जैसे बीकानेरी भुजिया, पश्चिम बंगाल का रसगुल्ला को जीआई टैग दिया जाता है. हैंडीक्राफ्ट प्रोडक्ट्स जैसे सिल्क साड़ी, बनारसी साड़ी आदि को भी जीआई टैग दिया जाता है.
भारत में इन उत्पादों को मिल चुका है जीआई टैग
भारत में कई उत्पादों को जीआई टैग प्राप्त हो चुका है. इन प्रोडक्ट्स में महाबलेश्वर स्ट्रॉबेरी, जयपुर -ब्लू पोटरी, बनारसी साड़ी, तिरुपति के लड्डू, मध्य प्रदेश के झाबुआ के कड़कनाथ मुर्गा, कांगड़ा की पेंटिंग, नागपुर का संतरा, छत्तीसगढ़ का जीराफूल और ओडिशा की कंधमाल हल्दी, कश्मीर की पाश्मीना, हिमाचल का काला जीरा शामिल हैं.
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