'लॉन्ग कोविड' यानी लंबे समय तक कोरोना वायरस के संक्रमण से प्रभावित होना. कुछ हफ्तों से लेकर कई महीनों तक लक्षणों के सामने आने की स्थिति को लॉन्ग कोविड का नाम दिया गया है. एक नई रिसर्च से पता चला है कि लॉन्ग कोविड के लक्षणों से 40 फीसद लोगों को जूझना पड़ा.


भारत में मैक्स अस्पताल के रिसर्च से खुलासा हुआ है. ये रिसर्च अप्रैल और अगस्त 2020 के बीच 1000 लोगों पर किया गया. मरीजों में कोरोना संक्रमण की पुष्टि RT-PCR जांच के जरिए हुई थी. मैक्स के तीन जगहों पर इलाज होने के बाद मरीज डिस्चार्ज हो चुके थे.


40 फीसद लोग लॉन्ग कोविड के लक्षणों से रहे प्रभावित


नतीजे से पता चला कि 990 मरीजों में से 31.8 फीसद को तीन महीनों बाद भी पोस्ट-कोविड के लक्षण थे, 11 फीसद में बीमारी की शुरुआत से 9-12 महीनों तक कुछ लक्षण बने रहे. 12.5 फीसद में थकान सबसे आम पाया गया जबकि पोस्ट कोविड के लक्षणों में दूसरे नंबर (9.3 फीसद) पर मांसपेशियो का दर्द रहा. सांस फूलने की भी समस्या उन लोगों में उल्लेखनीय रूप से अधिक बार दर्ज की गई जिनको शुरू में गंभीर लक्षण था.


मैक्स अस्पताल की तरफ से रिसर्च में किया गया दावा


नई रिसर्च लंबे समय तक फॉलोअप और पुनर्वास कार्यक्रमों की जरूरत को समझने में मदद कर सकती है क्योंकि उसकी जरूरत कोविड-9 से ठीक हो चुके मरीजों को होती है. डॉक्टरों ने कहा कि यहां तक ​​कि उन लोगों को जिनको हल्का लक्षण था और घर पर ठीक हो गए थे, उनमें भी सांस फूलने, थकान के लक्षण हो सकते हैं. हाल ही में मुंबई के डॉक्टरों ने 'बोन डेथ' की शक्ल में पोस्ट कोविड पेचीदगी का एक नया मामला देखा है.


ये कोविड-19 मरीजों के कूल्हे का जोड़ और जांच की हड्डियों को प्रभावित करता है. एवैस्कुलर नेक्रोसिस या एवीएन एक ऐसी स्थिति है जहां हड्डी तक ब्लड की आपूर्ति प्रभावित होती है, धीरे-धीरे उसकी मौत हो जाती है. डॉक्टर बोरनाली दत्ता ने बताया कि लॉन्ग कोविड आम तौर से कुछ भी चार सप्ताह बाद की स्थिति बताती है. ये कोविड-19 लक्षणों का लंबा होना, या लक्षणों का लौट आना हो सकता है.


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