समलैंगिकता एक ऐसा व्यवहार है जिसमें व्यक्ति को अपने ही लिंग के लोगों के प्रति आकर्षण और प्यार की भावना होती है.इसके लिए कई कारण जिम्मेदार है. इनमें से एक है हॉर्मोनल कारण भी है. कुछ शोध से पता चला है कि प्रीनेटल एंड्रोजन का स्तर, जोकि गर्भावस्था के दौरान शिशु को प्रभावित करता है, समलैंगिक व्यवहार के लिए कारण बन सकता है. इसके अलावा,मस्तिष्क के कुछ हिस्सों में संरचनात्मक अंतर पाए गए हैं जो समलैंगिक लोगों में अधिक आम हैं. हालांकि, हॉर्मोनल कारक अकेले समलैंगिकता को नहीं निर्धारित करते. व्यक्तिगत अनुभव, पालन-पोषण और सामाजिक-सांस्कृतिक कारण भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. और समाज को इन पसंदों एवं अभिवृत्ति का सम्मान करना चाहिए.
क्यों होता लड़को का आवज लड़कियों की तरह
कुछ शोधों से पता चला है कि जन्म के समय शिशुओं में टेस्टोस्टेरोन जैसे हॉर्मोन्स का स्तर असामान्य रूप से अधिक या कम होने से समलैंगिक व्यवहार विकसित करने की संभावना बढ़ जाती है उदाहरण के लिए,जन्म के बाद लड़के में टेस्टोस्टेरॉन हार्मोन की कमी होती है तो आवाज पतली होना, लोगों से घुलने-मिलने में इट्रेस्ट न लेना, लड़कों से ज्यादा बात न करना जैसे लक्षण देखने को मिल सकते हैं. वहीं लड़कियों में टेस्टोस्टेरॉन हार्मोन की अधिकता होने पर शरीर लड़कियों के मुकाबले भारी दिखना, आवाज में भारीपन आना, चेहरे पर बाल और ऑर्गन में बदलाव देखने को मिलते हैं.
जानें भारत में स्थिती
2018 में, सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराधीकृत करने वाले सेक्शन 377 को असंवैधानिक घोषित किया, जो एक मील का पत्थर साबित हुआ. हालांकि, सामाजिक स्तर पर भेदभाव और समस्याएंं बनी हुई हैं.कई बार समाज और परिवार द्वारा समलैंगिक लोगों को स्वीकार नहीं किया जाता या उनका मजाक उड़ाया जाता है. हमें समझना चाहिए कि यौन अभिवृत्ति किसी की निजी बात है. चाहे कोई भी यौन अभिवृत्ति क्यों न हो, हर इंसान की पसंद का सम्मान किया जाना चाहिए. समलैंगिक लोगों से नफरत या उनका मजाक उड़ाना गलत है. हमें एक-दूसरे के प्रति सहिष्णु और समावेशी होना चाहिए.यह हॉर्मोन्स के वजह से होता है न कि कोई बीमारी है. यह किसी भी प्रकार की बीमारी नहीं है.
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